Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 10 हिंद महासागर की स्थिति का भू-राजनीति के पक्ष से महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 10 हिंद महासागर की स्थिति का भू-राजनीति के पक्ष से महत्त्व
PSEB 11th Class Geography Guide हिंद महासागर की स्थिति का भू-राजनीति के पक्ष से महत्त्व Textbook Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न तु (Objective Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
हिंद महासागर का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
7 करोड़ 80 लाख वर्ग किलोमीटर।
प्रश्न 2.
हिंद महासागर विश्व के महासमुद्री क्षेत्र का कितने प्रतिशत है ?
उत्तर-
20.9%.
प्रश्न 3.
कौन-से महाद्वीप हिंद महासागर के तटों को छूते हैं ?
उत्तर-
एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया।
प्रश्न 4.
हिंद महासागर के पश्चिम की ओर के किन्हीं दो छोटे सागरों के नाम बताएँ।
उत्तर-
लाल सागर और अरब सागर।
प्रश्न 5.
हिंद महासागर में मिलने वाली धातुओं की गाँठें बताएँ।
उत्तर-
मैंगनीज़, तांबा और कोबाल्ट।
प्रश्न 6.
हिंद महासागर के तट पर मिलने वाले तेल क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी कच्छ, खंबात की खाड़ी, मुंबई हाई।
अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न – (Very Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-
प्रश्न 1.
भू-राजनीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय संबंधों के बारे में भूगोल के योगदान और विश्लेषण के तरीके को भू-राजनीति कहते हैं।
प्रश्न 2.
कौन-से देशांतर हिंद महासागर की सीमाएँ हैं ?
उत्तर-
दक्षिणी गोलार्द्ध में कैपटाऊन का लंबकार 18°82′ पूर्व हिंद महासागर को भौगोलिक पक्ष से अंध महासागर से और तस्मानिया प्रायद्वीप का दक्षिण-पूर्वी लंबकार 147° पूर्व, प्रशांत महासागर से अलग करता है।
प्रश्न 3.
हिंद महासागर को ‘ग्रेट रेस बेस’ क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
भू-राजनीतिक महत्ता के कारण सभी बड़ी शक्तियाँ इस क्षेत्र पर कब्जा करने में लगी हुई हैं।
प्रश्न 4.
हिंद महासागर को ‘तृतीय विश्व का हृदय’ क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
पूर्वी भागों को तृतीय विश्व या ‘तीसरी दुनिया’ कहा जाता है। इस क्षेत्र में हिंद महासागर एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक मार्ग है, इसलिए इस महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग के कारण इसे ‘तृतीय विश्व का हृदय’ कहा जाता है।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न । (Short Answer Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
हिंद महासागर की उसके पड़ोसी देशों के साथ सीमाएँ बताएँ।’ .
उत्तर-
विश्व के तीन महाद्वीपों एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के तटीय किनारे इस महाद्वीप को छूते हैं, जबकि यह महासागर अपने उत्तर की ओर एशियाई धरती से बंद है, परंतु दक्षिण की ओर इसका खुला प्रसार है। अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोग्राफिक ऑर्गेनाइजेशन (आई० एच० ओ०) अंटार्कटिका के तट को हिंद महासागर का दक्षिणी सिरा मानती है। विश्व की कुल तट रेखा का 40% भाग हिंद महासागर के तटों को छूता है।
प्रश्न 2.
हिंद महासागर के पास वाले कम गहरे सागरों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर में कई ऐसे कम गहरे सागर शामिल हैं, जो पास वाले तटीय क्षेत्रों को छूते हैं। इनमें मैलागासी सागर, लक्षद्वीप सागर, लाल सागर, अदन की खाड़ी, अरब की खाड़ी, ओमान की खाड़ी, अरब सागर, पाक जलडमरू, सुवा सागर, तिमौर सागर, अराफरा सागर, कारपैंटरिया की खाड़ी के टोर जलडमरू, ऐगज़माऊथ खाड़ी, ऑस्ट्रेलियाई धुंडी, स्पैंसर खाड़ी और बास जलडमरू आदि शामिल हैं।
प्रश्न 3.
हिंद महासागर के आस-पास कितने देश हैं ?
उत्तर-
हिंद महासागर के आस-पास 38 + 15 + 15 देश पड़ते हैं, जो हिंद महासागरीय रिम ऐसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association) की ओर से संगठित हैं। इनमें अफ्रीका के 13, मध्य पूर्व (Middle East) के 11, दक्षिणी एशिया के 5, दक्षिण-पूर्वी एशिया के 5, पूर्वी तिमोर, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस तथा बर्तानिया के कब्जे वाले क्षेत्र शामिल हैं।
प्रश्न 4.
हिंद महासागर में अलग-अलग संकरे मार्ग बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर में पड़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों में कम-से-कम 7 संकरे मार्ग आते हैं-
- मोजंबिक चैनल,
- बाब-अल-मेंडर,
- सुएज़ या स्वेज़ नदी,
- स्ट्रेट ऑफ होरमूज,
- मलाका स्ट्रेट,
- सूंदा स्ट्रेट,
- लोबोक स्ट्रेट।
निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
हिंद महासागर के नक्शे और विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर का उत्तरी क्षेत्र ऐतिहासिक और कार्य शैली के पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह पूर्वी और पश्चिमी भागों से कई सँकरे जल डमरुओं (Straits) से जुड़ा हुआ है। पश्चिम में लाल सागर और अरब की खाड़ी तथा पूर्व में मलाका जल डमरू, तिमौर सागर और अराफरा सागर इसके अंग हैं।
विशेषताएं-हिंद महासागर की अपनी अलग विलक्षण विशेषताएँ हैं-
- सुदूर दक्षिणी भाग को छोड़कर बाकी सारे महासागर का जल न केवल गर्म और शांत है, बल्कि यहाँ बहती हवाओं का वेग भी अनुमान से बहुत अधिक भटकता नहीं।
- सर्दी और गर्मी की बदलती ऋतु में हवाओं की बदलती दिशा, हवाओं के वेग द्वारा गहराई वाले सागरों में जहाज़रानी को आसान कर देती है।
- हिंद महासागर में किसी विरोधी (विपरीत) धारा का प्रवाह भी नहीं है।
- ‘रोरिंग फोर्टीज़’ नामक पश्चिमी वायु, जो 40° दक्षिण की ओर चलती है, गुड होप जल डमरू से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट तक सागरीय जहाजरानी में बहुत सहायक सिद्ध होती है।
प्रश्न 2.
हिंद महासागरों के प्राकृतिक साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
हिंद महासागर विभिन्न प्राकृतिक साधनों से भरपूर है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
1. समुद्री समूह-समुद्री समूह में रेत, बजरी और शैल (खोल) के समूह मिलते हैं, जो किसी-न-किसी रूप में निर्माण कार्यों के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ये समूह महाद्वीपीय शैल्फों पर मिलते हैं।
2. प्लेसर-प्लेसर समूहों में मिलने वाले वे खनिज हैं, जो सागरीय रेत और बजरी में मिलते हैं। ये भारी और लचकीले रासायनिक विशेषताओं वाले खनिज होते हैं, जो खनिज पदार्थों के अपरदन के कारण सागरीय जल में शामिल हो जाते हैं। इन खनिजों में सोना, टिन, प्लास्टिक, टाइटेनियम, मैग्नेटाइट (लोहा), जिरकोनियम बोरियम और रत्न आदि शामिल हैं।
3. बहु-धात्वीय गाँठे-समुद्र में ऐसी गाँठें भी मिलती हैं, जो अनेक धातुओं के मिश्रण से बनी होती हैं। हिंद महासागर में मैंगनीज़, तांबा, गिल्ट (निकल) और कोबाल्ट आदि धातुओं का मिश्रण अधिक मात्रा में पाया जाता है।
4. मैंगनीज़ गाँठे-ये धात्वीय गाँठें सबसे पहले 1872-76 के दौरान चैलेंजर की वैज्ञानिक यात्रा के दौरान खोजी गई, परंतु इनका खोज कार्य 1950 के दशक के अंत में ही आरंभ किया जा सका। संयुक्त राष्ट्र ने भारत को हिंद महासागर के डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से ही बहु धात्वीय गाँठे निकालने की अनुमति दी है। हिंद महासागर की गोद में फास्फेट, बेरीयम सल्फेट, तांबा, कोबाल्ट, कच्चा लोहा, बॉक्साइट, सल्फर आदि भी मिलता है। मैंगनीज़ की गाँठे समुद्री फर्श पर सतह से 2 से 6100 मीटर की गहराई तक मिलती हैं।
5. तेल और गैस-हिंद महासागर की महाद्वीपीय शैल्फ खनिज तेल से भरपूर है। वर्तमान समय में, कुल तेल और गैस के उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा सागरीय भंडारों से आता है और 75 से अधिक देश समुद्रों में से तेल और गैस उत्पन्न करते हैं। भारत के नज़दीकी क्षेत्र कच्छ की शैल्फ, खंबात की खाड़ी और मुंबई हाई खनिज तेल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र हैं, जबकि आंध्र प्रदेश के तट से परे समुद्र में स्थित कृष्णा-गोदावरी बेसिन प्राकृतिक गैस के बड़े स्रोत के रूप में प्रसिद्ध है। विश्व-भर में खनिज तेल और गैस के उत्पादन के लिए अरब की खाड़ी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस खाड़ी की विशेषता यह भी है कि यह सागर से थोड़ा हटकर है। कम गहरी है और आने वाली कठिनाइयाँ भी कम हैं। सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, कतार, संयुक्त अरब अमीरात (यू०ए०ई०), इरान और इराक इस खाड़ी से सबसे अधिक लाभ लेने वाले देश हैं।
प्रश्न 3.
हिंद महासागर की भू-राजनीति और समस्याएँ बताएँ।
उत्तर-
भू-राजनीति (Geo-Politics)-हिंद महासागर की भू-राजनीति कुछ प्राथमिक बिंदुओं के आस-पास घूमती है, जोकि इस प्रकार हैं-
- ऋतु परिवर्तन
- ध्रुवीकरण और उत्जीविता समीकरण
- प्राकृतिक संसाधनों का विकास
- आर्थिक विकास पर बेरोक आपूर्ति तंत्र
समस्याएँ-
- हिंद महासागर के सभी क्षेत्रों में व्यापारिक जहाज़रानी पर डकैतियाँ।
- व्यापक साधनों का विकास, विशेष रूप से खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज पदार्थों और मछलियों के रूप में फैली आर्थिकता के पक्ष।
- हिंद महासागर के निकट के तटीय क्षेत्रों में, समुद्री जल में बंदरगाहों के निर्माण पर राजनीतिक और वित्तीय परिणाम।
- क्षेत्रीय और गैर-क्षेत्रीय देशों की ओर से हिंद महासागर में जल-सेना शक्ति का प्रदर्शन।
प्रश्न 4.
चीन की ‘स्टरिंग ऑफ पर्लज’ कूटनीति का वर्णन करें।
उत्तर-
स्टरिंग ऑफ पर्लज़ (String of Pearls) वास्तव में चीन की ओर से अपने खनिज तेल के व्यापार को सुरक्षा प्रदान करने के लिए यह एक राजनीतिक युक्ति है। चीन अपने बढ़ रहे भू-राजनीतिक प्रभाव को समर्थ बनाने के लिए कूटनीति संबंधों द्वारा सुरक्षा-शक्ति को ही ताकतवर नहीं बना रहा, बल्कि अपनी बंदरगाहों और हवाई अड्डों की सुरक्षा की ओर भी विशेष ध्यान दे रहा है। चीन की यह कोशिश दक्षिण चीन सागर से स्वेज़ नदी तक प्रसार करने की है, जिसमें मलाका स्ट्रेट, स्ट्रेट ऑफ होरमूज़, अरब की खाड़ी और लाल सागर सहित सारे हिंद महासागर में अड्डे बनाना शामिल है। चीन का ‘स्टरिंग ऑफ पर्लज़’ इन व्यापारिक समुद्री भागों में से होकर गुजरता है और भविष्य में एशियाई ऊर्जा स्रोतों तक पहुँचने का सपना देखता है।
भारत ने सन् 1971 से 1999 तक मलाका स्ट्रेट पर पाबंदी लगाकर चीन और पाकिस्तान के बीच पनपते स्वतंत्र समुद्री संबंधों पर रोक लगा दी थी। ‘स्टरिंग ऑफ पर्लज़’ की नीति वास्तव में चीन की ओर से हिंद महासागर में हर . प्रकार के व्यापारिक संबंधों को बिना मानव हस्तक्षेप के और भारत के स्वतंत्र अस्तित्व’ को प्रभाव मुक्त करने के लिए अपनाई है। यद्यपि चीन का मानना है, “हम सभी का महासागर पर समान रूप से अधिकार है, इस पर किसी एक का अधिकार नहीं है। हम किसी सैनिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं करेंगे और न ही किसी ताकत का प्रदर्शन करेंगे और न ही किसी अन्य देश के साथ ईर्ष्या को बढ़ावा देंगे।”
पर्लज़ (चीनी अड्डे)
- हांगकांग (विस्तृत प्रशासकीय क्षेत्र)
- हैनान का टापू (टांगकिंग की खाड़ी)
- वूडी टापू
- स्पार्टा टापू (छ: देश-चीन, वियतनाम, ताईवान, मलेशिया, फिलीपाइन्ज़ और बरुनी के अधीन)
- कैमपोंग सोम
- कराह ईस्थमस-थाईलैंड
- म्यांमार के कोको टापू
- म्यांमार का तटीय शहर सितवें
- बांग्लादेश में चिट्टागांग
- श्रीलंका में हंबनटोटा
- मालद्वीप में हाराओ अतोल
- पाकिस्तान (बलोचिस्तान) में गवाडर
- ईराक में अल-अहदाब
- कीनिया में लामू
- सूडान में उत्तरी बंदरगाह (North Port)
प्रश्न 5.
भारत की ओर से चीन की ‘स्टरिंग ऑफ पर्लज़’ नीति का क्या जवाब दिया गया ?
उत्तर-
भारतीय जल सेना और भारतीय जल सैनिक राजनीतियों/कूटनीतियों के पक्ष को सामने रखते हुए सन् 2007 में एक दस्तावेज़ ‘इंडियन मेरीटाईम डॉक्टरिन’ जारी किया, जिसमें भारतीय जल सेना ने ‘स्ट्रेट ऑफ होरमूज़’ से ‘मलाका स्ट्रेट’ तक भारतीय जल सेना की भरपूर गतिविधियों की बात की गई। इस दस्तावेज़ में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापारिक मार्गों की पुलिस की देख-रेख और तंग समुद्री मार्गों पर पूर्ण नियंत्रण की बात की गई। पिछले दो दशकों के दौरान भारत ने अपनी विदेश नीति के अंतर्गत हिंद महासागर के आस-पास के देशों में अपने हितों का विशेष ध्यान रखते हुए मारीशस, मालदीव, सिसली और मैडगास्कर के द्वीपीय देशों और दक्षिणी अफ्रीका, तंजानिया और मोजम्बिक आदि देशों के साथ अपने संबंधों में प्रसार किया है।
भारतीय जल सेना के पास अति आधुनिक हाइड्रोग्राफिक (जल सर्वेक्षण और चित्रकारी) कैडर है, जिसमें पूरे उपकरणों से युक्त सर्वेक्षणीय समुद्री जहाज़, कई सर्वेक्षणीय किश्तियाँ, देहरादून में विश्व-स्तर के इलैक्ट्रॉनिक चार्ट तैयार करने की सुविधा और गोवा में एक हाइड्रोग्राफिक प्रशिक्षण स्कूल है। चीन की तरह ही भारत अपनी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए खनिज तेल के आयात पर निर्भर करता है। भारत का 89% के लगभग खनिज तेल समुद्री जहाज़ के मार्ग से भारत तक पहुँचता है, जो भारत की कुल ऊर्जा की ज़रूरतों की 33% पूर्ति करता है। इसलिए प्रमुख समुद्री मार्गों की सुरक्षा सबसे अहम् आर्थिक ज़रूरत बन जाती है। इतिहास साक्षी है कि भारत शुरू से ही हिंद महासागर में डकैती और आतंकी कार्रवाइयों का सदा से ही तीखा विरोधी रहा है।
प्रश्न 6.
महासागरों संबंधी बनाए गए U.N.O. के कानूनों का वर्णन करें।
उत्तर-
महासागरों संबंधी कानूनों के बारे में संयुक्त राष्ट्रीय सम्मेलन (UNCOLS)—सन् 1972 से 1982 तक सागरों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय नियमावली और कानून बनाने हेतु संयुक्त राष्ट्र की ओर से करवाए गए सम्मेलनों के दौरान तीसरे सम्मेलन के सम्मुख आए अंतर्राष्ट्रीय समझौते को समुद्री सम्मेलनों का कानून भी कह दिया जाता है। इस कानून के अंतर्गत विश्व-भर के महासागरों की पूर्ति करने हेतु राष्ट्रों के अधिकार और कर्तव्य तय कर दिए गए हैं, वित्तीय कार्यवाही के लिए नियमावली बना दी गई है और समुद्री प्राकृतिक साधनों के प्रबंध के लिए अनिवार्य आदेश जारी कर दिए गए हैं। यू० एन० कोल्ज़ (UNCOLS) सन् 1994 में लागू हुआ और इस सम्मेलन में अगस्त 2014 में, 165 देश और यूरोपीय संघ शामिल हुए। सम्मेलन के दौरान कई नियम भी लागू किए गए, जिनमें से महत्त्वपूर्ण थे-सीमा निर्धारण, जहाजरानी नियम, द्वीप समूहों के अधिकार-क्षेत्र और यातायात नियम, विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ), महाद्वीपीय शैल्फ की सीमाएँ, समुद्री फर्श पर खनन के नियम, समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा, विज्ञान अन्वेषण और झगड़ों के निपटारे संबंधी नियम। सम्मेलन के दौरान कई क्षेत्रों में सीमाएँ निर्धारित की गई हैं या परिभाषित की गईं।
1. बेस लाइन-निम्न जल रेखा या वह सीधी रेखा, जो गहरे तटीय क्षेत्रों में चट्टानी भित्तियों को जोड़ती है।
2. आंतरिक (Internal) जल-क्षेत्र-तट के निकट का वह जल-क्षेत्र जो बेस लाइन और तट के बीच हो। इस क्षेत्र के लिए संबंधित देश ही नियम तय करता है, लागू करता है और यहाँ के साधनों का प्रयोग करता है। विदेशी जहाजों और किश्तियों को किसी भी अन्य देश के आंतरिक जल-क्षेत्र में आने-जाने की आज्ञा नहीं होती।
3. क्षेत्रीय (Territorial) जल-क्षेत्र-बेस लाइन से 12 नाटीकल मील (सड़क के 22 किलोमीटर या 14 मील) तक का क्षेत्र क्षेत्रीय जल-क्षेत्र होता है जिसके बारे में तटीय देश को नियम-कानून बनाने का अधिकार होता है और वह प्राकृतिक साधनों का प्रयोग भी कर सकता है। शांतमयी ढंग से गुजरने वाले विदेशी जहाज़ों और किश्तियों को भी इस क्षेत्र में से गुज़रने की अनुमति होती है, जबकि युद्ध नीति रखने वाले महत्त्वपूर्ण स्ट्रेटों (जल-डमरुओं) में से गुजरने वाले युद्धपोतक नावों को आज्ञा लेनी पड़ती है।
4. टापू-समूह (आरकीपिलाजिक) जल-क्षेत्र-सम्मेलन के दौरान द्वीप समूही जल-क्षेत्र की परिभाषा चौथे भाग (अध्याय) में दी गई, जिसमें किसी देश को अपनी क्षेत्रीय सीमा निर्धारित करने के लिए आधार भी परिभाषित किए गए। द्वीप-समूहों में से सबसे बाहरी द्वीप के सबसे बाहरी भागों को जोड़ती एक बेस लाइन खींच ली जाती है और इस रेखा के अंदर आते जल-क्षेत्र को द्वीप-समूह जल-क्षेत्र का नाम दिया जाता है। किसी भी देश को अपने इस जल-क्षेत्र संबंधी संपूर्ण प्रभुसत्ता प्राप्त होती है।
5. निकटवर्ती (Contiguous) जल-क्षेत्र-किसी भी तट से 12 नाटीकल मील (22 किलोमीटर) की सीमा से आगे 12 नाटीकल मील की सीमा तक के जल-क्षेत्र को निकटवर्ती जल-क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में कोई भी देश चार विषयों-निर्यात शुल्क, शुल्क निर्धारण, आवास नियम और प्रदूषण संबंधी अपने नियम लागू कर
सकता है।
6. विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone)-किसी भी देश की बेस लाइन से आगे, क्षेत्रीय जल-क्षेत्र में और आगे 200 नाटीकल मील (370 किलोमीटर या 230 मील) तक का जल-क्षेत्र विशेष आर्थिक क्षेत्र होता है, जहाँ के प्राकृतिक साधनों के प्रयोग के सभी अधिकार तटीय देशों के पास सुरक्षित होते हैं।
7. महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)—महाद्वीपीय शैल्फ को किसी भी थल-क्षेत्र का प्राकृतिक विस्तार माना जाता है, जोकि भू-क्षेत्र से महाद्वीपीय तट के बाहरी सिरे तक या फिर 200 नाटीकल मील किलोमीटर) में से जो अधिक हो, तक माना जाता है। किसी स्थान पर यदि महाद्वीपीय शैल्फ कम हो तो उसका जल-क्षेत्र 200 नाटीकल मील तक माना ही जाएगा।
8. समुद्री कानून संबंधी अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल (आई० ई० एल० ओ० एस०)-यह ट्रिब्यूनल नियम-कानूनों की व्यवस्था के अतिरिक्त मछली पकड़ने संबंधी नियमों और विशेषकर समुद्री वातावरण के झगड़ों के निपटारे संबंधी कार्य करता है।
9. अंतर्राष्ट्रीय समुद्री थल अथॉरिटी (International Sea-Bed Authority – I.S.A) – missing अधिकारित जल-क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र, जोकि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री थल का क्षेत्र माना जाता है, में खनिज पदार्थों संबंधी और अन्य नियंत्रण अथवा संगठन के लिए अंतर-सरकारी टीम तैयार की गई है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री थल अथॉरिटी के नाम से जाना जाता है।