Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 7 रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 7 रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध
SST Guide for Class 10 PSEB रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ? उसके पिता का क्या नाम था?
उत्तर-
रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ। उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।
प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।
प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।
प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी वहां के शासन से तंग आ चुके थे।
प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।
प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।
प्रश्न 7.
तारा सिंह घेबा कहां का नेता था?
उत्तर-
तारा सिंह घेबा डल्लेवालिया मिसल का नेता था।
(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में दें
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह के बचपन तथा शिक्षा के बारे में लिखो।
उत्तर-
रणजीत सिंह अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। उसे बचपन में बड़े लाड-प्यार से पाला गया। पाँच वर्ष की आयु में उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुजरांवाला में भाई भागू सिंह की धर्मशाला में भेजा गया। परन्तु उसने पढ़ाई-लिखाई में कोई विशेष रुचि न ली। इसलिए वह अनपढ़ ही रहा। वह अपना अधिकतर समय शिकार खेलने, घुड़सवारी करने तथा तलवारबाजी सीखने में ही व्यतीत करता था। अतः वह बचपन में ही एक अच्छा घुड़सवार, तलवारबाज़ तथा कुशल तीरअंदाज़ बन गया था।
बचपन में ही रणजीत सिंह को चेचक के भयंकर रोग ने आ घेरा। इस रोग के कारण उसके चेहरे पर गहरे दाग पड़ गए और उसकी बाईं आँख भी जाती रही।
प्रश्न 2.
रणजीत सिंह के बचपन की बहादुरी की घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
बचपन से ही रणजीत सिंह बड़ा वीर था। वह अभी दस वर्ष का ही था जब वह सोहदरा पर आक्रमण करने के लिए अपने पिता जी के साथ गया। उसने न केवल शत्रु को बुरी तरह पराजित किया अपितु उसका गोला-बारूद आदि भी अपने अधिकार में ले लिया। एक बार रणजीत सिंह अकेला घोड़े पर सवार होकर शिकार से लौट रहा था।
उसके पिता के शत्रु हशमत खां ने उसे देख लिया। वह रणजीत सिंह को मारने के लिए झाड़ी में छुप गया। ज्योंही रणजीत सिंह उस झाड़ी के पास से गुज़रा, हशमत खां ने उस पर तलवार से प्रहार किया। वार रणजीत सिंह पर न लगकर रकाब पर पड़ा जिसके उसी समय दो टुकड़े हो गए। बस फिर क्या था, बालक रणजीत सिंह ने ऐसी सतर्कता से हशमत खां पर वार किया कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
प्रश्न 3.
रणजीत सिंह के लाहौर पर कब्जे का वर्णन करो।
उत्तर-
लाहौर विजय रणजीत सिंह की सबसे पहली विजय थी। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का आमन्त्रण भेजा। रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। आक्रमण का समाचार पाकर मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।
प्रश्न 4.
अमृतसर की जीत (महाराजा रणजीत सिंह द्वारा) का महत्त्व बतलाओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के लिए अमृतसर की जीत का निम्नलिखित महत्त्व था —
- वह सिक्खों की धार्मिक राजधानी अर्थात् सबसे बड़े तीर्थ स्थल का संरक्षक बन गया।
- अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की सैनिक शक्ति बढ़ गई। उसके लिए लोहगढ़ का किला बहुमूल्य सिद्ध हुआ। उसे तांबे तथा पीतल से बनी ज़मज़मा तोप भी प्राप्त हुई।
- महाराजा को प्रसिद्ध सैनिक अकाली फूला सिंह तथा उसके 2000 निहंग साथियों की सेवाएं प्राप्त हुईं। निहंगों के असाधारण साहस तथा वीरता के बल पर रणजीत सिंह ने शानदार विजय प्राप्त की।
- अमृतसर विजय के परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी करने वाले अनेक भारतीय वहां नौकरी छोड़ महाराजा के पास कार्य करने लगे। कई यूरोपियन सैनिक भी महाराजा की सेवा में भर्ती हो गए।
प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मित्र मिसलों पर कब तथा कैसे अधिकार किया?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक चतुर कूटनीतिज्ञ था। आरम्भ में उसने शक्तिशाली मिसलदारों से मित्रता करके कमज़ोर मिसलों पर अधिकार कर लिया। परन्तु उचित अवसर पाकर उसने मित्र मिसलों को भी जीत लिया। इन मिसलों पर महाराजा की विजय का वर्णन इस प्रकार है —
- कन्हैया मिसल-कन्हैया मिसल की बागडोर महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर के हाथ में थी। 1821 ई० में रणजीत सिंह ने वदनी को छोड़ कर इस मिसल के सभी प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया।
- रामगढ़िया मिसल-1815 ई० में रामगढ़िया मिसल के नेता जोध सिंह रामगढ़िया की मृत्यु हो गई। अतः रणजीत सिंह ने इस मिसल को अपने राज्य में विलीन कर लिया।
- आहलूवालिया मिसल-1825-26 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा फतह सिंह आहलूवालिया के सम्बन्ध बिगड़ गए। परिणामस्वरूप महाराजा ने आहलूवालिया मिसल के सतलुज के उत्तर-पश्चिम में स्थित प्रदेशों पर अधिकार जमा लिया। परन्तु 1827 ई० में रणजीत सिंह की फतह सिंह से पुनः मित्रता हो गई।
प्रश्न 6.
मुलतान की विजय (महाराजा रणजीत सिंह की) के परिणाम लिखो।
उत्तर-
मुलतान की विजय महाराजा रणजीत सिंह के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसके निम्नलिखित परिणाम निकले —
- अफ़गान शक्ति की समाप्ति-मुलतान विजय के साथ ही पंजाब में अफ़गान शक्ति का प्रभाव सदा के लिए समाप्त हो गया, क्योंकि रणजीत सिंह ने अफ़गानों की शक्ति को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था।
- व्यापारिक और सामरिक लाभ-मुलतान विजय से भारत का अफ़गानिस्तान और सिन्ध से व्यापार इसी मार्ग से होने लगा। इसके अतिरिक्त मुलतान का प्रदेश हाथ में आ जाने से रणजीत सिंह की सैन्य क्षमता में काफ़ी वृद्धि हो गई।
- आय में वृद्धि-मुलतान विजय से रणजीत सिंह की धन-सम्पत्ति में भी वृद्धि हुई। एक अनुमान के अनुसार मुलतान नगर से रणजीत सिंह को सात लाख रुपये वार्षिक आय होने लगी।
- रणजीत सिंह के यश में वृद्धि-मुलतान विजय से रणजीत सिंह का यश सारे पंजाब में फैल गया और सभी उसकी शक्ति का लोहा मानने लगे।
प्रश्न 7.
अटक की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
1813 ई० में रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त रणजीत सिंह ने फतह खां को अटक विजय में और फतह खां ने रणजीत सिंह को मुलतान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया।
दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतह खां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।
प्रश्न 8.
सिंध के प्रश्न के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिंध पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अति महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। यहां के निकटवर्ती प्रदेशों को विजित करने के पश्चात् 1830-31 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सिंध पर अधिकार करने का निर्णय किया। परन्तु भारत के गवर्नर-जनरल ने महाराजा की इस विजय पर रोक लगाने का प्रयास किया। इस सम्बन्ध में उसने अक्तूबर, 1831 ई० को महाराजा से रोपड़ में भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने कर्नल पेटिंगर (Col-Pottinger) को सिंध के अमीरों के साथ व्यापारिक संधि करने के लिए भेज दिया। जब रणजीत सिंह को इस बात का पता चला तो उसे बड़ा दुःख हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होने लगा।
प्रश्न 9.
शिकारपुर का प्रश्न क्या था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से सिंध के प्रदेश शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लेने के लिए उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे मजारी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। रणजीत सिंह ने इन आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। शीघ्र ही राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में मजारियों के प्रदेश पर अधिकार कर लिया गया। परन्तु जब महाराजा ने सिन्ध के अमीरों से संधि की शर्तों को पूरा करवाने का प्रयास किया, तो अंग्रेज़ गवर्नर जनरल आकलैंड ने उसे रोक दिया। फलस्वरूप महाराजा तथा अंग्रेजों के सम्बन्ध बिगड़ गए।
प्रश्न 10.
फिरोजपुर का मामला क्या था?
उत्तर-
फिरोजपुर नगर सतलुज तथा ब्यास के संगम पर स्थित बहुत ही महत्त्वपूर्ण नगर है। ब्रिटिश सरकार फिरोजपुर के महत्त्व से भली-भान्ति परिचित थी। यह नगर लाहौर के समीप स्थित होने के कारण अंग्रेज़ यहां से न केवल महाराजा रणजीत सिंह की गतिविधियों पर नज़र रख सकते थे अपितु विदेशी आक्रमणों की रोकथाम भी कर सकते थे। अत: अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार कर लिया और तीन वर्ष बाद इसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना दिया। अंग्रेजों की इस कार्यवाही से महाराजा गुस्से से भर उठा।
(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में दें
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह ने कमज़ोर रियासतों को कैसे जीता?
उत्तर-
रणजीत सिंह चतुर राजनीतिज्ञ था। उसने शक्तिशाली मिसलों से मित्रता कर ली। उनकी सहायता से उन्होंने कमज़ोर रियासतों को अपने अधीन कर लिया। 1800 से 1811 ई० तक उसने अग्रलिखित रियासतों पर विजय प्राप्त की-
- अकालगढ़ की विजय, 1801 ई०-अकालगढ़ के दल सिंह (रणजीत सिंह के पिता का मामा) तथा गुजरात के साहिब सिंह ने लाहौर पर आक्रमण करने की योजना बनाई। जब इस बात का पता रणजीत सिंह को चला तो उसने अकालगढ़ पर आक्रमण कर दिया और दल सिंह को बंदी बना लिया। बाद में उसे तो छोड़ दिया गया, परन्तु शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी। अत: रणजीत सिंह ने अकालगढ़ को अपने राज्य में मिला लिया।
- डल्लेवालिया मिसल पर अधिकार, 1807 ई०-डल्लेवालिया मिसल का नेता तारा सिंह घेबा था। जब तक वह जीवित रहा, महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिसल पर अधिकार जमाने का कोई प्रयास न किया। परन्तु 1807 ई० में तारा सिंह घेबा की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का समाचार मिलते ही महाराजा ने राहों पर आक्रमण कर दिया। तारा सिंह घेबा की विधवा ने रणजीत सिंह का सामना किया परन्तु वह पराजित हुई और महाराजा ने डल्लेवालिया मिसल के प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।
- करोड़सिंधिया मिसल पर अधिकार, 1809 ई०-1809 ई० में करोड़ सिंघिया मिसल के सरदार बघेल सिंह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु का समाचार मिलते ही महाराजा ने अपनी सेना करोड़सिंघिया मिसल की ओर भेज दी। बघेल सिंह की विधवाएं (राम कौर तथा राज कौर) महाराजा की सेना का अधिक देर तक सामना न कर सकीं। परिणामस्वरूप महाराजा ने इस मिसल के प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।
- नकई मिसल के प्रदेशों पर विजय, 1810 ई०-1807 ई० में महाराजा की रानी राज कौर का भतीजा काहन सिंह नकई मिसल का सरदार बना। महाराजा ने उसे कई बार अपने दरबार में उपस्थित होने के लिए संदेश भेजा। परन्तु . वह सदैव महाराजा के आदेश की अवहेलना करता रहा। अत: 1810 ई० में महाराजा ने मोहकम चंद के नेतृत्व में उसके विरुद्ध सेना भेज दी। मोहकम चन्द ने जाते ही नकई मिसल के चूनीयां, शक्करपुर, कोट कमालिया आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। काहन सिंह को निर्वाह के लिए 20,000 रु० वार्षिक आय वाली जागीर दे दी गई।
- फैजलपुरिया मिसल के इलाकों पर अधिकार, 1811 ई०-1811 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने फैजलपुरिया मिसल के सरदार बुध सिंह को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा। उसके इन्कार करने पर महाराजा ने उसके विरुद्ध अपनी सेना भेज दी। इस सेना का नेतृत्व भी मोहकम चंद ने किया। इस अभियान में फतह सिंह आहलूवालिया तथा जोध सिंह रामगढ़िया ने महाराजा का साथ दिया। बुध सिंह शत्रु का सामना न कर सका और उसने भाग कर अपनी जान बचाई। परिणामस्वरूप फैज़लपुरिया मिसल के जालन्धर, बहरामपुर, पट्टी आदि प्रदेशों पर महाराजा का अधिकार हो गया।
प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की कश्मीर की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
कश्मीर की घाटी अपनी सुन्दरता के कारण पूर्व का स्वर्ग’ कहलाती थी। महाराजा रणजीत सिंह इसे विजय करके अपने राज्य को स्वर्ग बनाना चाहता था। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने निम्नलिखित प्रयास किए
- काबुल के वजीर फतह खां से समझौता-1811-12 ई० में सिक्खों ने कश्मीर के निकट स्थित भिंबर तथा राजौरी की रियासतों पर अधिकार कर लिया। अब वे कश्मीर घाटी पर अधिकार करना चाहते थे। परन्तु इसी समय काबुल के वज़ीर फतह खां बरकज़ाई ने भी कश्मीर विजय की योजना बनाई। अंतत: 1813 ई० में रोहतास नामक स्थान पर फतह खां तथा रणजीत सिंह के मध्य यह समझौता हुआ कि दोनों पक्षों की सेनाएं मिलकर कश्मीर पर आक्रमण करेंगी। यह भी निश्चित हुआ कि कश्मीर विजय के बाद फतह खां मुलतान की विजय में महाराजा की तथा महाराजा अटक विजय में फतह खां की सहायता करेगा। समझौते के पश्चात् महाराजा ने मोहकम चंद के नेतृत्व में 12,000 सैनिक कश्मीर विजय के लिए फतह खां की सहायता के लिए भेज दिए। परन्तु फतह खां चालाकी से सिक्ख सेनाओं को पीछे ही छोड़ गया और स्वयं कश्मीर घाटी में प्रवेश कर गया। उसने कश्मीर के शासक अत्ता मुहम्मद को सिक्खों की सहायता के बिना ही पराजित कर दिया। इस प्रकार उसने महाराजा के साथ हुए समझौते को तोड़ दिया।
- कश्मीर पर आक्रमण-जून, 1814 ई० में सिक्ख सेना ने राम दयाल के नेतृत्व में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। उस समय कश्मीर का सूबेदार फतह खां का भाई आज़िम खां था। वह एक योग्य सेनापति था। जैसे ही रामदयाल की सेना ने पीर पंजाल दर्रे को पार करके कश्मीर घाटी में प्रवेश किया, आज़िम खां ने थकी हुई सिक्ख सेना पर धावा बोल दिया। फिर भी रामदयाल ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। अन्त में आज़िम खां तथा रामदयाल में समझौता हो गया।
- कश्मीर पर अधिकार-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मौका पाकर मिसर दीवान चन्द के अधीन 12,000 सैनिकों को कश्मीर भेजा। उसकी सहायता के लिए खड़क सिंह के नेतृत्व में एक अन्य सैनिक टुकड़ी भी भेजी गयी। महाराजा स्वयं भी तीसरा दस्ता लेकर वजीराबाद चला गया। मिसर दीवान चन्द ने भिंबर पहुंच कर राजौरी, पुंछ तथा पीर पंजाल पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् सिक्ख सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया। वहां के कार्यकारी सूबेदार जबर खां ने सपीन (स्पाधन) नामक स्थान पर सिक्खों का डट कर सामना किया। फिर भी सिक्ख सेना ने 5 जुलाई, 1819 ई० को कश्मीर को सिक्ख राज्य में मिला लिया। दीवान मोती राम को कश्मीर का सूबेदार नियुक्त किया गया। . महत्त्व-महाराजा के लिए कश्मीर विजय बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई-
- इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि में वृद्धि हुई।
- इस विजय से महाराजा को 36 लाख रुपए की वार्षिक आय होने लगी
- इस विजय ने अफ़गानों की शक्ति पर भयंकर प्रहार किया।
प्रश्न 3.
रणजीत सिंह की मुलतान की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
मुलतान का प्रदेश आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। इसे प्राप्त करने के लिए महाराजा ने कई आक्रमण किये जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
- पहला आक्रमण-1802 ई० में महाराजा ने मुलतान पर पहला आक्रमण किया। परन्तु वहां के शासक नवाब मुजफ्फर खां ने महाराजा को नज़राने के रूप में बड़ी राशि देकर वापस भेज दिया।
- दूसरा आक्रमण-मुलतान के नवाब ने अपने वचन के अनुसार महाराजा को वार्षिक कर न भेजा। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने 1805 ई० में पुनः मुलतान पर आक्रमण कर दिया। परन्तु मराठा सरदार जसवन्त राय होल्कर के अपनी सेना के साथ पंजाब में आने से महाराजा को वापस जाना पड़ा।
- तीसरा आक्रमण-1807 में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर तीसरी बार आक्रमण किया। सिक्ख सेना ने मुलतान के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। परन्तु बहावलपुर के नवाब ने महाराजा तथा नवाब मुजफ्फर खान में समझौता करवा दिया।
- चौथा आक्रमण-24 फरवरी, 1810 ई० को महाराजा की सेना ने मुलतान के कुछ प्रदेशों पर पुनः अपना अधिकार कर लिया। 25 फरवरी को सिक्खों ने मुलतान के किले को भी घेर लिया। परन्तु सिक्ख सैनिकों को कुछ क्षति उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त मोहकम चन्द भी बीमार हो गया। अत: महाराजा को किले का घेरा उठाना पड़ा।
- पांचवां प्रयास-1816 ई० में महाराजा ने अकाली फूला सिंह को सेना सहित मुलतान तथा बहावलपुर के शासकों से कर वसूल करने के लिए भेजा। उसने मुलतान के कुछ बाहरी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। अतः मुलतान के नवाब ने तुरन्त फूला सिंह से समझौता कर लिया।
- अन्य प्रयास-(i) 1817 ई० में भवानी दास के नेतृत्व में सिक्ख सेना ने मुलतान पर आक्रमण किया परन्तु उसे सफलता न मिली।
(ii) जनवरी, 1818 ई० में 20,000 सैनिकों के साथ मिसर दीवान चन्द ने मुलतान पर आक्रमण कर दिया। नवाब मुजफ्फर खां किले के अन्दर जा छिपा। सिक्ख सैनिकों ने नगर को जीतने के पश्चात् किले को घेर लिया। आखिर मुलतान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।
महत्त्व-- मुलतान की विजय से रणजीत सिंह के सम्मान में वृद्धि हुई
- दक्षिण पंजाब में अफ़गानों की शक्ति को आघात पहुंचा।
- डेराजात तथा बहावलपुर के दाऊद पुत्र महाराजा के अधीन हो गए।
- महाराजा के लिए आर्थिक रूप से भी यह विजय लाभदायक सिद्ध हुई। इससे राज्य के व्यापार में वृद्धि हुई।
सच तो यह है कि मुलतान विजय ने महाराजा को अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए उत्साहित किया।
प्रश्न 4.
रणजीत सिंह की पेशावर की जीत का वर्णन करो।
उत्तर-
पेशावर पंजाब के उत्तर-पश्चिम में सिंध नदी के पार स्थित था। यह नगर अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सैनिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह पेशावर के महत्त्व को समझता था। इसलिए वह इस प्रदेश को अपने राज्य में मिलाना चाहता था।
- पेशावर पर पहला आक्रमण-15 अक्तूबर 1818 को महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह तथा हरी सिंह नलवा को साथ लेकर लाहौर से पेशावर की ओर कूच किया। खटक कबीले के लोगों ने उनका विरोध किया। परन्तु सिक्खों ने उन्हें पराजित करके खैराबाद तथा जहांगीर नामक किलों पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् सिक्ख सेना पेशावर की ओर बढ़ी। उस समय पेशावर का शासक यार मुहम्मद खान था। वह पेशावर छोड़ कर भाग गया। इस प्रकार 20 नवम्बर, 1818 ई० को महाराजा ने बिना किसी विरोध के पेशावर पर अधिकार कर लिया।
- पेशावर का दूसरा आक्रमण-सिक्ख सेना के पेशावर से लाहौर जाते ही यार मुहम्मद फिर से पेशावर पर अपना अधिकार जमाने में सफल हो गया। इसकी सूचना मिलने पर महाराजा ने राजकुमार खड़क सिंह तथा मिसर दीवान चन्द के नेतृत्व में 12,000 सैनिकों की विशाल सेना पेशावर भेज दी। परन्तु यार मुहम्मद ने महाराजा की अधीनता स्वीकार कर ली।
- पेशावर पर तीसरा आक्रमण-इसी बीच काबुल के नये वज़ीर आज़िम खां ने पेशावर पर आक्रमण कर दिया। जनवरी 1823 ई० में उसने यार मुहम्मद खां को पराजित करके पेशावर पर अपना अधिकार कर लिया। इस बात की सूचना मिलते ही महाराजा ने शेर सिंह, दीवान किरपा राम, हरी सिंह नलवा तथा अतर दीवान सिंह के अधीन एक विशाल सेना पेशावर भेजी। आज़िम खान ने सिक्खों के विरुद्ध ‘जेहाद’ का नारा लगा दिया। 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा नामक स्थान पर सिक्खों तथा अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इसे ‘टिब्बा टेहरी’ का युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध में अकाली फूला सिंह मारा गया। अतः सिक्खों का उत्साह बढ़ाने के लिए महाराजा स्वयं आगे बढ़ा। शीघ्र ही सिक्खों ने आज़िम खां को पराजित कर दिया।
- सैय्यद अहमद खां को कुचलना-1827 ई० से 1831 ई० तक पेशावर तथा उसके आस-पास के प्रदेशों में सैय्यद अहमद खां नामक व्यक्ति ने विद्रोह किया। 1829 में उसने पेशावर पर आक्रमण कर दिया। यार मुहम्मद, जो महाराजा के अधीन था, उसका सामना न कर सका। उसे जून, 1830 ई० में हरी सिंह नलवा ने सिंध नदी के तट पर हराया। इसी बीच सैय्यद अहमद खां ने फिर से शक्ति प्राप्त कर ली। इस बार उसे मई, 1831 ई० में राजकुमार शेर सिंह ने बालाकोट की लड़ाई में परास्त किया।
- पेशावर का लाहौर राज्य में विलय-1831 ई० के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को लाहौर राज्य में सम्मिलित करने की योजना बनाई। इस उद्देश्य से उसने हरी सिंह नलवा तथा राजकुमार नौनिहाल सिंह के नेतृत्व में 9,000 सैनिकों को पेशावर की ओर भेजा। 6 मई, 1834 को सिक्खों ने पेशावर पर अधिकार कर लिया और महाराजा ने पेशावर की लाहौर राज्य में विलय की घोषणा कर दी। हरी सिंह नलवा को पेशावर का सूबेदार नियुक्त किया गया।
- दोस्त मुहम्मद खां का पेशावर को वापस लेने का असफल प्रयास-1834 ई० में काबुल के दोस्त मुहम्मद खां ने शाह शुजा को पराजित करके सिक्खों से पेशावर वापस लेने का निर्णय किया। उसने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर खान के नेतृत्व में 18,000 सैनिकों को सिक्खों के विरुद्ध भेजा। दोनों पक्षों में जम कर लड़ाई हुई। अन्त में सिक्ख विजयी रहे।
प्रश्न 5.
किन-किन मसलों पर रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों की आपस में न बनी?
उत्तर-
रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों में विशेष रूप से तीन मसलों ने तनाव उत्पन्न किया। ये मसले थेसिंध का प्रश्न, शिकारपुर का प्रश्न तथा फिरोजपुर का प्रश्न। इनका अलग-अलग वर्णन इस प्रकार है —
- सिन्ध का प्रश्न-सिन्ध पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अति महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। यहां के निकटवर्ती प्रदेशों को विजित करने के पश्चात् 1830-31 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्ध पर अधिकार करने का निर्णय किया। परन्तु भारत के गवर्नर-जनरल विलियम बंटिक ने महाराजा की इस विजय पर रोक लगाने का प्रयास किया। इस सम्बन्ध में उसने अक्तूबर, 1831 ई० को महाराजा से रोपड़ में भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने कर्नल पोटिंगर (Col. Pottinger) को सिन्ध के अमीरों के साथ व्यापारिक सन्धि करने के लिए भेज दिया। जब रणजीत सिंह को इस बात का पता चला तो उसे बड़ा दुःख हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होने लगा।
- शिकारपुर का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से सिंध के प्रदेश शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लेने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे मजारी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किए जाने वाले आक्रमणों से मिला। रणजीत सिंह ने इन आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। शीघ्र ही सिक्खों ने राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में मजारियों . के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। परन्तु जब महाराजा ने सिन्ध के अमीरों से संधि की शर्तों को पूरा करवाने का प्रयास , किया तो अंग्रेज़ गवर्नर जनरल ऑकलैंड ने उसे रोक दिया। फलस्वरूप महाराजा तथा अंग्रेजों के संबंध बिगड़ गए।
- फिरोजपुर का प्रश्न-फिरोजपुर नगर सतलुज तथा ब्यास के संगम पर स्थित था। वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण नगर था। ब्रिटिश सरकार फिरोजपुर के महत्त्व से भली-भान्ति परिचित थी। यह नगर लाहौर के समीप स्थित होने से अंग्रेज़ : यहां से न केवल महाराजा रणजीत सिंह की गतिविधियों की देख-रेख कर सकते थे अपितु विदेशी आक्रमणों की . रोकथाम भी कर सकते थे। अत: अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और ; तीन वर्ष बाद इसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना दिया। अंग्रेजों की इस कार्यवाही से महाराजा गुस्से से भर उठा।
PSEB 10th Class Social Science Guide रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह ने लाहौर पर विजय कब पाई?
(ii) उस समय लाहौर पर किसका अधिकार था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह ने जुलाई, 1799 ई० में लाहौर पर विजय पाई।
(ii) उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था।
प्रश्न 2.
1812 ई० से पूर्व रणजीत सिंह द्वारा जीते गए किन्हीं चार प्रदेशों के नाम बताओ।
उत्तर-
लाहौर, अमृतसर, स्यालकोट, जालन्धर।
प्रश्न 3.
रणजीत सिंह ने
(i) मुलतान
(i) कश्मीर तथा
(ii) पेशावर पर कब-कब अधिकार किया?
उत्तर-
रणजीत सिंह ने मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर पर क्रमशः
(i) 1818 ई०,
(ii) 1819 ई० तथा
(iii) 1834 ई० में अधिकार किया।
प्रश्न 4.
रणजीत सिंह की लाहौर विजय का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
लाहौर की विजय ने रणजीत सिंह को पूरे पंजाब का शासक बनाने में सहायता दी।
प्रश्न 5.
रणजीत सिंह की माता का क्या नाम था?
उत्तर-
राजकौर।
प्रश्न 6.
चेचक का रणजीत सिंह के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उसके चेहरे पर चेचक के दाग पड़ गए और उसकी बाईं आंख जाती रही।
प्रश्न 7.
बाल रणजीत सिंह ने किस चट्ठा सरदार को मार गिराया था?
उत्तर-
हशमत खां को।
प्रश्न 8.
सदा कौर कौन थी?
उत्तर-
सदा कौर रणजीत सिंह की सास थी।
प्रश्न 9.
रणजीत सिंह के बड़े बेटे का क्या नाम था?
उत्तर-
खड़क सिंह।
प्रश्न 10.
रणजीत सिंह के पिता महासिंह का देहान्त कब हुआ?
उत्तर-
1792 ई० में।
प्रश्न 11.
रणजीत सिंह ने सुकरचकिया मिसल की बागडोर कब संभाली?
उत्तर-
1797 ई० में।
प्रश्न 12.
रणजीत सिंह महाराजा कब बने?
उत्तर-
1801 ई० में।
प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सरकार को क्या नाम दिया?
उत्तर-
सरकार-ए-खालसा ।
प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
लाहौर।
प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सिक्के किसके नाम पर जारी किए?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सिक्के श्री गुरु नानक देव जी तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के नाम पर जारी किए।
प्रश्न 16.
अमृतसर की विजय के परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को कौन-सी बहुमूल्य तोप प्राप्त हुई?
उत्तर-
जम-जमा तोप।
प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह को किस विजय के परिणामस्वरूप अकाली फूला सिंह की सेवाएं – प्राप्त हुई?
उत्तर-
अमृतसर की विजय।
प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात विजय किसके नेतृत्व में प्राप्त की?
उत्तर-
फ़कीर अजीजुद्दीन के।
प्रश्न 19.
जम्मू विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने वहां का गवर्नर किसे बनाया?
उत्तर-
जमादार खुशहाल सिंह को।
प्रश्न 20.
संसार चन्द कटोच कहां का राजा था?
उत्तर-
कांगड़ा का।
प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा का गवर्नर किसे बनाया?
उत्तर-
देसा सिंह मजीठिया को।
प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की अन्तिम विजय कौन-सी थी?
उत्तर-
पेशावर की विजय।
प्रश्न 23.
किस स्थान के युद्ध को ‘टिब्बा-टेहरी’ का युद्ध कहा जाता है?
उत्तर-
नौशहरा के युद्ध को।
प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह का सेनानायक अंकाली फूला सिंह किस युद्ध में मारा गया?
उत्तर-
नौशहरा के युद्ध में।
प्रश्न 25.
हरी सिंह नलवा कौन था?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनानायक था।
प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर का सूबेदार किसे बनाया?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा को।
प्रश्न 27.
अमृतसर की संधि कब हुई?
उत्तर-
1809 ई० में।
प्रश्न 28.
अंग्रेजों, रणजीत सिंह तथा शाहशुजा के बीच त्रिपक्षीय सन्धि कब हुई?
उत्तर-
1838 ई० में।
प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह का देहान्त कब हुआ?
उत्तर-
जून, 1839 ई० में।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- रणजीत सिंह के पिता का नाम ………….. था।
- महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात विजय ………… के नेतृत्व में प्राप्त की।
- जम्मू विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने …………… को वहां का गवर्नर बनाया।
- महाराजा रणजीत सिंह ने अंतिम विजय ………… पर की थी।
- ………. के युद्ध को टिब्बा-टेहरी का युद्ध भी कहा जाता है।
- ……….. महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनानायक था।
- ……….. ई० में अमृतसर की संधि हुई।
उत्तर-
- सरदार महा सिंह,
- फ़कीर अजीजुद्दीन,
- जमादार खुशहाल सिंह,
- पेशावर,
- नौशहरा,
- हरी सिंह नलवा,
- 1809.
III. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का जन्म हुआ
उत्तर-
(A) 13 नवंबर, 1780 ई० को
(B) 23 नवंबर, 1780 ई० को
(C) 13 नवंबर, 1870 ई० कों
(D) 23 नवंबर, 1870 ई० को।
उत्तर-
(A) 13 नवंबर, 1780 ई० को
प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की पत्नी थी
(A) प्रकाश कौर
(B) सदा कौर
(C) दया कौर
(D) महताब कौर।
उत्तर-
(D) महताब कौर।
प्रश्न 3.
डल्लेवालिया मिसल का नेता था
(A) विनोद सिंह
(B) तारा सिंह घेबा
(C) अब्दुससमद
(D) नवाब कपूर सिंह।
उत्तर-
(B) तारा सिंह घेबा
प्रश्न 4.
रणजीत सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त की
(A) 1801 ई० में
(B) 1812 ई० में
(C) 1799 ई० में
(D) 1780 ई० में।
उत्तर-
(C) 1799 ई० में
प्रश्न 5.
बाल रणजीत सिंह ने किस चट्ठा सरकार को मार गिराया?
(A) चेत सिंह को
(B) हशमत खां को
(C) मोहर सिंह को
(D) मुहम्मद खां को।
उत्तर-
(B) हशमत खां को
प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी थी
(A) इस्लामाबाद
(B) अमृतसर
(C) सियालकोट
(D) लाहौर।
उत्तर-
(D) लाहौर।
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं
- महा सिंह कन्हैया मिसल का सरदार था।
- रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1792 ई० में सम्भाली।
- तारा सिंह घेबा डल्लेवालिया मिसल का नेता था।
- हरि सिंह नलवा पेशावर का सूबेदार था।
- महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिक के बीच भेंट कपूरथला में हुई।
उत्तर-
- (✗),
- (✓),
- (✓),
- (✓),
- (✗).
V. उचित मिलान
- सरकार-ए-खालसा कांगड़ा का राजा
- गुजरात (पंजाब) विजय – कांगड़ा का गवर्नर
- संसार चन्द कटोच – महाराजा रणजीत सिंह
- ढेसा सिंह मजीठिया – फ़कीर अजीजुद्दीन।
उत्तर-
- सरकार-ए-खालसा-महाराजा रणजीत सिंह,
- गुजरात (पंजाब) विजय-फकीर अजीजुद्दीन,
- संसार चन्द कटोच-कांगड़ा का राजा,
- ढेसा सिंह मजीठिया-कांगड़ा का गवर्नर।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का महाराजा बनना’ इस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
12 अप्रैल, 1801 ई० को वैशाखी के शुभ अवसर पर लाहौर में रणजीत सिंह के महाराजा बनने की रस्म बड़ी धूमधाम से मनाई गई। उसने अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ का नाम दिया। महाराजा बनने पर भी रणजीत सिंह ने ताज ग्रहण न किया। उसने अपने सिक्के गुरु नानक साहिब तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के नाम पर जारी किये। इस प्रकार से रणजीत सिंह ने खालसा को ही सर्वोच्च शक्ति माना। इमाम बख्श को लाहौर का कोतवाल नियुक्त किया गया।
प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा डेराजात की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
मुलतान तथा कश्मीर की विजयों के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खान को विजय करने का निर्णय किया। उस समय वहां का शासक ज़मान खान था। महाराजा ने जमादार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में ज़मान खान के विरुद्ध सेना भेजी। इस सेना ने ज़मान खान को परास्त करके डेरा गाज़ी खान पर अपना अधिकार कर लिया।
डेरा गाजी खां की विजय के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह डेरा इस्मायल खान तथा मानकेरा की ओर बढ़ा। उसने इन क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए 1821 ई० में मिसर दीवान चंद को भेजा। वहां के शासक अहमद खां ने महाराजा को नज़राना देकर टालना चाहा। परन्तु मिसर दीवान चंद ने नज़राना लेने से इन्कार कर दिया और आगे बढ़ कर मानकेरा पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 3.
रणजीत सिंह की किन्हीं चार आरम्भिक विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
रणजीत सिंह की चार आरम्भिक विजयों का वर्णन इस प्रकार है
- लाहौर की विजय-रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। रणजीत सिंह ने चेत सिंह को पराजित कर जुलाई, 1799 ई० में लाहौर पर अधिकार कर लिया।
- सिक्ख-मुस्लिम संघ की पराजय-रणजीत सिंह की लाहौर विजय को देख कर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासकों ने संगठित होकर उससे लड़ने का निश्चय किया। 1800 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में बिना किसी खून-खराबे के रणजीत सिंह विजयी रहा।
- अमृतसर की विजय-अमृतसर पर रणजीत सिंह के आक्रमण के समय वहां के शासन की बागडोर माई सुक्खां के हाथों में थी। माई सुक्खां ने कुछ समय तक विरोध करने के बाद हथियार डाल दिए और अमृतसर पर रणजीत सिंह का अधिकार हो गया।
- सिक्ख मिसलों पर विजय-रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों के नेताओं के साथ मित्रता स्थापित की। उनके सहयोग से उसने छोटी-छोटी मिसलों पर अधिकार कर लिया।
प्रश्न 4.
किन्हीं चार सिक्ख मिसलों पर रणजीत सिंह की विजय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
- 1802 ई० रणजीत सिंह ने अकालगढ़ के दल सिंह को पराजित करके उसके प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया।
- 1807 ई० में डल्लेवालिया मिसल के नेता सरदार तारा सिंह घेबा की मृत्यु पर रणजीत सिंह ने इस मिसल के कई प्रदेशों को जीत लिया।
- अगले ही वर्ष उसने स्यालकोट के जीवन सिंह को हरा कर उसके अधीनस्थ प्रदेशों को अपने राज्यों में मिला लिया।
- 1810 ई० में उसने नक्कई मिसल के सरदार काहन सिंह तथा गुजरात के सरदार साहिब सिंह के प्रदेशों को अपने अधिकार में ले लिया।
प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि की क्या शतें थीं?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि पर 25 अप्रैल, 1809 ई० को हस्ताक्षर हुए। इस सन्धि की प्रमुख शर्ते इस प्रकार थीं
- दोनों सरकारें एक-दूसरे के प्रति मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखेंगी।
- अंग्रेज़ सतलुज नदी के उत्तरी क्षेत्र के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे जब कि रणजीत सिंह इसके दक्षिणी क्षेत्रों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
- ब्रिटिश सरकार ने रणजीत सिंह को सबसे प्यारा राजा मान लिया। उसे विश्वास दिलाया गया कि वे उसके राज्य अथवा प्रजा से कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे। दोनों में से कोई आवश्यकता से अधिक सेना नहीं रखेगा।
- सतलुज के दक्षिण में रणजीत सिंह उतनी ही सेना रख सकेगा जितनी उस प्रदेश में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होगी।
- यदि कोई भी पक्ष इस सन्धि के विरुद्ध कोई कार्य करेगा तो सन्धि को भंग समझा जाएगा।
प्रश्न 6.
अमृतसर की सन्धि ( 1809) का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह के समस्त पंजाब पर अधिकार करने के स्वप्न को भंग कर दिया। सतलुज नदी उसके राज्य की सीमा बन कर रह गई। यही नहीं इससे रणजीत सिंह की प्रतिष्ठा को भी भारी धक्का लगा। अपने राज्य में उसका दबदबा कम होने लगा, फिर भी इस संधि से उसे कुछ लाभ भी हए। इस सन्धि के द्वारा उसने पंजाब को अंग्रेजों के आक्रमण से बचा लिया। जब तक वह जीवित रहा, अंग्रेजों ने पंजाब की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। इस प्रकार रणजीत सिंह को उत्तर-पश्चिम की ओर अपने राज्य को विस्तृत करने का समय मिला। उसने मुलतान, अटक, कश्मीर, पेशावर तथा डेराजात के प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति में खूब वृद्धि की।
प्रश्न 7.
किन्हीं चार बिन्दुओं के आधार पर नौशहरा की लड़ाई के महत्त्व को समझाए।
उत्तर-
- नौशहरा की लड़ाई में आज़िम खां पराजित हुआ था और मरने से पहले वह अपने पुत्रों को इस अपमान का बदल लेने की शपथ दिला गया। इस प्रकार अफ़गानों तथा सिक्खों के बीच चिरस्थायी शत्रुता आरम्भ हो गई।
- इस विजय से सिक्खों की वीरता की धाक जम गई। सिक्खों में आत्म-विश्वास का संचार हुआ और उन्होंने अफ़गानों के प्रति और भी उग्र नीति को अपना लिया।
- इस लड़ाई के परिणामस्वरूप सारे पंजाब में रणजीत सिंह की शक्ति का लोहा माना जाने लगा। इसके अतिरिक्त नौशहरा की लड़ाई के कारण सिन्ध तथा पेशावर के बीच स्थित अफ़गान प्रदेशों पर महाराजा रणजीत सिंह की सत्ता दृढ़ हो गई।
- इस युद्ध के पश्चात् उत्तर-पश्चिमी भारत में अफ़गानों की शक्ति पूरी तरह समाप्त हो गई।
प्रश्न 8.
अंग्रेजों, शाहशुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच होने वाली त्रिदलीय संधि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
1837 ई० में रूस, एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। इस उद्देश्य से कैप्टन बन्ज (Burnes) को काबुल भेजा गया। परन्तु वहां के शासक दोस्त मुहम्मद ने इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ उसे रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर दें। अंग्रेजों के लिए रणजीत सिंह की मित्रता भी महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने इस शर्त को न माना और अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता कर लिया। इस समझौते में रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यही समझौता त्रिदलीय संधि के नाम से प्रसिद्ध है।
बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुलतान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की प्रमुख विजयों का वर्णन करें।
उत्तर-
रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुलतान तथा कश्मीर की प्रमुख विजयों का वर्णन इस प्रकार है
- लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।
- अमृतसर की विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।
- मुलतान विजय-मुलतान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक रणजीत सिंह ने मुलतान पर छ: आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में रणजीत सिंह ने मुलतान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हज़ार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुलतान के किले पर घेरा डाल दिया। मुजफ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुलतान सिक्खों के अधिकार में आ गया।
- कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतह खां ने कश्मीर विजय के बाद रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।
प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की अमृतसर विजय का वर्णन करते हुए इसका महत्त्व बताएं।
उत्तर-
गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र गुरदित्त सिंह अमृतसर का शासक बना। उस समय वह नाबालिग. था। इसीलिए राज्य की सारी शक्ति उसकी मां माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह अमृतसर पर अपना अधिकार करने का अवसर ढूंढ रहा था।
1805 ई० को उसे यह अवसर मिल गया। उसने माई सुक्खां को संदेश भेजा कि वह जमजमा तोप उसके हवाले कर दे। उसने उससे लोहगढ़ के किले की मांग भी की। परन्तु माई सुक्खां ने महाराजा की मांगों को अस्वीकार कर दिया। महाराजा पहले ही युद्ध के लिए तैयार बैठा था। उसने तुरन्त अमृतसर पर आक्रमण करके लोहगढ़ के किले को घेर लिया। इस अभियान में सदा कौर तथा फतह सिंह आहलूवालिया ने रणजीत सिंह का साथ दिया। महाराजा विजयी रहा और उसने अमृतसर तथा लोहगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। माई सुक्खां तथा गुरदित्त सिंह को जीवन-निर्वाह के लिए जागीर दे दी गई। अमृतसर का अकाली फूला सिंह अपने 2000 निहंग साथियों के साथ रणजीत सिंह की सेना में शामिल हो गया। – अमृतसर की विजय का महत्त्व-
- अमृतसर की विजय लाहौर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका कारण यह था कि जहां लाहौर पंजाब की राजधानी था, वहीं अमृतसर अब सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन गया था।
- अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की सैनिक शक्ति बढ़ गई। उसके लिए लोहगढ़ का किला बहुमूल्य सिद्ध हुआ। उसे तांबे तथा पीतल से बनी ज़मज़मा तोप भी प्राप्त हुई।
- महाराजा को प्रसिद्ध सैनिक अकाली फूला सिंह तथा उसके 2000 निहंग साथियों की सेवाएं प्राप्त हुईं। निहंगों के असाधारण साहस तथा वीरता के बल पर रणजीत सिंह को कई शानदार विजय प्राप्त हुईं।
- अमृतसर विजयं के परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप बहुत-से भारतीय उसके राज्य में नौकरी करने के लिए आने लगे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नौकरी करने वाले अनेक भारतीय वहां की नौकरी छोड़ कर महाराजा के पास कार्य करने लगे। कई यूरोपियन सैनिक भी महाराजा की सेना में भर्ती हो गए।
रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध PSEB 10th Class History Notes
- जन्म तथा माता-पिता-रणजीत सिंह का जन्म 1780 ई० में गुजरांवाला में हुआ था। उसके पिता का नाम महा सिंह था जो शुकरचकिया मिसल का सरदार था। उसकी माता का नाम राजकौर था।
- बचपन-बचपन में चेचक के कारण रणजीत सिंह की एक आँख खराब हो गई थी। वह 10 वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ युद्ध में जाया करता था। इसलिए बहुत छोटी आयु में वह युद्ध-विद्या में कुशल हो गया था।
- विवाह-अपनी मृत्यु से पूर्व महा सिंह ने पंजाब में अपनी शक्ति काफ़ी बढ़ा ली थी। उसने रणजीत सिंह का विवाह जय सिंह कन्हैया की पोती और रानी सदा कौर की पुत्री महताब कौर के साथ किया। जब उसने शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तो यह विवाह सम्बन्ध उसकी शक्ति के उत्थान में काफ़ी सहायक सिद्ध हुआ।
- लाहौर का गवर्नर बनना-रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली। 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमां ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई।
- आरम्भिक विजय-1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पाँच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेज़ों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया।
- अमृतसर की सन्धि-1809 ई० में उसने अंग्रेज़ों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित प्रदेशों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया।
- महत्त्वपूर्ण विजयें-महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान (1818), कश्मीर (1819) और पेशावर (1834) पर अधिकार कर लिया। इस तरह रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।