Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास
SST Guide for Class 10 PSEB भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Textbook Questions and Answers
I. निम्नलिखित के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए
प्रश्न 1.
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलों के नाम बताइए।
उत्तर-
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलें हैं-चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, पटसन तथा कपास।
प्रश्न 2.
रबी के मौसम में कौन-कौन सी फसल बोई जाती हैं?
उत्तर-
रबी के मौसम में गेहूं, जौ, चना, सरसों और तोरिया आदि फ़सलें बोई जाती हैं।
प्रश्न 3.
उर्वरक क्या है ?
उत्तर-
उर्वरक भूमि को पोषक तत्त्व देने वाले रासायनिक पदार्थ होते हैं।
प्रश्न 4.
दुधारू पशु किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे पशु जिनसे हमें दूध मिलता है, दुधारू पशु कहलाते हैं।
प्रश्न 5.
परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर-
परती भूमि वह भूमि है जिसमें दो या तीन वर्षों में केवल एक ही फसल उगाई जाती है।
प्रश्न 6.
देश के कितने प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं?
उत्तर-
देश के 22.7 प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं।
प्रश्न 7.
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के कितने प्रतिशत भाग पर वन होना जरूरी है?
उत्तर-
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन होना ज़रूरी है।
प्रश्न 8.
पंजाब में वन क्षेत्रफल कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पंजाब में 5.7 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं।
प्रश्न 9.
भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
उत्तर-
भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।
प्रश्न 10.
देश में गेहूँ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक राज्य है।
प्रश्न 11.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ देश के किस राज्य से प्राप्त होता है?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ पंजाब से प्राप्त होता है।
प्रश्न 12.
चरागाह की भूमि घटने का कौन-सा प्रमुख कारण है?
उत्तर-
देश में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चरागाहों को कृषि भूमि में बदला जा रहा है।
प्रश्न 13.
चावल उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक राज्य का नाम क्या है?
उत्तर-
चावल उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।
प्रश्न 14.
पंजाब प्रति हेक्टेयर गेहं की पैदावार के हिसाब से देश में कौन-से स्थान पर है?
उत्तर-
पहले स्थान पर।
प्रश्न 15.
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है।
प्रश्न 16.
पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्र 95 हजार हेक्टेयर रह गया।
प्रश्न 17.
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या को कितने खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी ?
उत्तर-
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या (अनुमानित 160 से 170 करोड़ के बीच) को 40 करोड़ टन खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी।
प्रश्न 18.
भारतीय कृषि वर्तमान समय में तीन प्रमुख समस्याएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
भारतीय कृषि की तीन मुख्य समस्याएं हैं-
(i) भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव
(ii) कृषि भूमि का असमान वितरण
(iii) कृषकों का अनपढ़ होना।
प्रश्न 19.
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।
प्रश्न 20.
तिलहन फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तिलहन फसलें हैं-मूंगफली, सरसों, तोरिया, सूरजमुखी के बीज, बिनौला, नारियल आदि।
प्रश्न 21.
मूंगफली का उत्पादन किन दो राज्यों में अधिक होता है?
उत्तर-
मूंगफली का उत्पादन गुजरात तथा महाराष्ट्र में सबसे अधिक होता है।
प्रश्न 22.
तिलहन उत्पादन क्षेत्रफल में किस दशक में देश में सबसे तेजी से वृद्धि हुई?
उत्तर-
तिलहन उत्पादन के क्षेत्रफल में 1980 से 1990 के दशक में सबसे अधिक वृद्धि हुई।
प्रश्न 23.
देश के मुख्यता कपास उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, सीमांध्र, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु।
प्रश्न 24.
कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार कितनी है?
उत्तर-
भारत में कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार 249 किलोग्राम है।
प्रश्न 25.
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पंजाब।
प्रश्न 26.
पंजाब में प्रमख आल उत्पादक जिलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब में प्रमुख आलू उत्पादक जिले हैं-जालन्धर, होशियारपुर, पटियाला तथा लुधियाना।
प्रश्न 27.
पशुधन में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
पशुधन में पंजाब का देश में तेरहवां स्थान है।
प्रश्न 28.
पशुधन किस राज्य में सबसे अधिक पाया जाता है?
उत्तर-
देश में सबसे अधिक पशुधन उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।
प्रश्न 29.
फलों तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
प्रश्न 30.
सेब उत्पादन में दो प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश मुख्य राज्य हैं।
II. निम्न प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।
- कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
- कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
- अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।
प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —
- इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है।
- जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है।
- उर्वरकों तथा अच्छी किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि हरित क्रान्ति से कृषि तथा कृषि-उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
प्रश्न 3.
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत किन-किन चीज़ों को शामिल किया जाता है?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत फ़सलें उगाने के अतिरिक्त निम्नलिखित चीजें शामिल हैं —
- पशु पालन
- मत्स्य उद्योग
- वानिकी
- रेशम के कीड़े पालना
- मधुमक्खी पालना
- मुर्गी पालन।
प्रश्न 4.
दुधारू एवं भारवाहक पशुओं के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुधारू पशुओं से अभिप्राय उन पशुओं से है जिनसे हमें दूध मिलता है। उदाहरण के लिए गाय और भैंस दुधारू पशु हैं। इसके विपरीत भारवाही पशु जुताई, बुवाई, गहाई और कृषि उत्पादों के परिवहन में कृषकों की सहायता करते हैं। बैल, भैंसा, ऊँट आदि पशु भारवाही पशुओं के मुख्य उदाहरण हैं।
प्रश्न 5.
चालू परती एवं पुरानी परती भूमि के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कुछ भूमि ऐसी होती है जिसे केवल एक ही वर्ष के लिए खाली छोड़ा जाता है। एक वर्ष के बाद उस पर फिर से कृषि की जाती है। ऐसी भूमि को चालू परती भूमि (Current Fallow Land) कहा जाता है। शेष परती भूमि को पुरानी परती भूमि (Old Fallow Land) कहते हैं। इस पर काफ़ी समय से कृषि नहीं की गई।
प्रश्न 6.
गेहूं की फसल उगाने हेतु उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —
- गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
- गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जाती है। इसके लिए 50 सें०मी० से 75 सें.मी० की वर्षा पर्याप्त रहती है। वर्षा थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
- गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
- गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।
प्रश्न 7.
चावल उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भारत के प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र अनलिखित हैं —
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदान एवं डेल्टाई प्रदेश, उत्तर-पूर्वी भारत के मैदान तथा निचली पहाड़ियां, हिमालय की गिरिपाद पहाड़ियां, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरी आन्ध्र प्रदेश तथा सम्पूर्ण उड़ीसा।
कम वर्षा वाले क्षेत्र-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदान, हरियाणा, पंजाब तथा पंजाब-हरियाणा के साथ लगने वाले राजस्थान के कुछ जिले।
प्रश्न 8.
गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गन्ने की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां उपयुक्त रहती हैं —
- इसे गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए लगभग 21° से ग्रे० से 27° से ग्रे० तक तापमान अच्छा रहता है। गन्ने के पौधे के लिए पाला बहुत हानिकारक है।
- गन्ने को अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा 75 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होनी चाहिए।
- इसके लिए वायु में नमी अधिक होनी चाहिए।
- गन्ने की कृषि के लिए भूमि उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। यदि मिट्टी में फॉस्फोरस तथा चूने के अंश अधिक हों तो गन्ने की फसल बहुत अच्छी होती है।
- भूमि समतल होनी चाहिए ताकि सिंचाई अच्छी तरह हो सके।
प्रश्न 9.
वनों के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर-
वन एक बहुमूल्य सम्पदा है। इनके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —
- वन पारिस्थितिक सन्तुलन तथा प्राकृतिक पारितन्त्र को बनाये रखने में बहुत अधिक योगदान देते हैं।
- इनसे हमें इमारती तथा ईंधन योग्य लकड़ी मिलती है। इमारती लकड़ी से फ़र्नीचर, पैकिंग के बक्से, नावें आदि बनाई जाती हैं। इसका उपयोग भवन निर्माण कार्यों में भी होता है।
- मुलायम लकड़ी से लुग्दी बनाई जाती है जिसकी कागज़ उद्योग में भारी मांग है।
- वनों से हमें लाख, बेंत, राल, जड़ी-बूटियां, गोंद आदि उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।
- वनों से पशुओं के लिए चारा (घास) भी प्राप्त होता है।
प्रश्न 10.
भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
भारत में अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। छोटे-छोटे खेतों पर श्रम तथा पूंजी तो अधिक लगती है, परन्तु आर्थिक लाभ बहुत ही कम होता है। छोटे किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवैल का पानी तथा कृषि यन्त्र बड़े किसानों से किराए पर लेने पड़ते हैं। उन्हें महंगे उर्वरक भी बाजार से खरीदने पड़ते हैं। इससे उनकी शुद्ध बचत बहुत ही कम हो जाती है। इन्हीं कारणों से भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि कहते हैं।
प्रश्न 11.
देश में पशधन विकास के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत में पशुधन के विकास के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं-उनकी नस्ल सुधारने, उन्हें विविध प्रकार की बीमारियों से बचाने, पशु रोगों पर नियन्त्रण करने तथा बाज़ार की अधिक अच्छी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किये गये हैं। देश के प्रत्येक विकास खण्ड में कम-से-कम एक पशु चिकित्सालय खोला गया है। ग्रामीण स्तर पर भी पशुधन स्वास्थ्य केन्द्र खोले गये हैं।
प्रश्न 12.
‘हरित क्रान्ति’ को कुछ लोग ‘गेहूं-क्रान्ति’ का नाम क्यों देते हैं?
उत्तर-
गेहूं के उत्पादन में हरित-क्रान्ति के बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। भारत में हरित क्रान्ति का आरम्भ 1966-67 के वर्ष से माना जाता है। गेहूं का उत्पादन जो वर्ष 1960-61 में 1 करोड़ 10 लाख टन था, वर्ष 2004-05 में यह उत्पादन 20 करोड़ टन तक पहुंच गया। गेहूं के अतिरिक्त किसी अन्य खाद्यान्न में हरित क्रान्ति के दौरान इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई। गेहूं उत्पादन में इस अभूतपूर्व उत्पादन वृद्धि के कारण ही कई लोग ‘हरित क्रान्ति’ को ‘गेहूं-क्रान्ति’ की संज्ञा देते हैं।
प्रश्न 13.
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के क्या कारण हैं?
उत्तर-
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के दो मुख्य कारण हैं-जनसंख्या में वृद्धि तथा आर्थिक विकास। आबादी के बढ़ने से शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों का विस्तार हो रहा है। इसी प्रकार विकास कार्यों में तेजी आने से काफ़ी बड़ा क्षेत्रफल सड़कों, नहरों, औद्योगिक एवं सिंचाई परियोजनाओं तथा अन्य विकास सुविधाओं के विस्तार के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।
प्रश्न 14.
वनों का महत्त्व संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर-
वनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी —
- वनों द्वारा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण. करके वायुमण्डल के तापमान को बढ़ने से रोकते हैं।
- वन, वन्य प्राणियों के घर हैं। वे उन्हें संरक्षण देते हैं।
- वनों से वर्षण की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बार-बार सूखा नहीं पड़ता।
- वन जल का भी संरक्षण करते हैं और मिट्टी का भी। वे नदियों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ों को रोकने में समर्थ हैं।
प्रश्न 15.
आजादी के बाद खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि की उन्नति के लिए भरसक प्रयास किए गए। परिणामस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1950-51 तथा 1994-95 के मध्य चावल के उत्पादन में चार गुणा और गेहूं के उत्पादन में दस गुणा वृद्धि हुई। इस तरह कृषि के क्षेत्र में उन्नति के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि पर भी प्रभाव पड़ा। 1950 के वर्ष में यह 395 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी। 2005 में यह बढ़कर 500 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई।
प्रश्न 16.
देश में कृषि जोतों के छोटा होने के क्या कारण हैं तथा इसका भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
देश में 58% जोतों का आकार 1 हेक्टेयर से कम है। जोतों का आकार छोय होने का कारण उत्तराधिकार का नियम है। पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी भूमि उसकी सन्तान में बराबर बांट दी जाती है। अत: भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते बोझ के कारण जोतों का आकार छोटा है।
जोतें छोटी होने के कारण न तो किसान आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग ही कर सकता है और न ही आधुनिक सिंचाई के साधनों की व्यवस्था कर सकता है। उसे पानी भी किराए पर लेना पड़ता है और कृषि यन्त्र भी। परिणामस्वरूप उसकी शुद्ध बचत कम होती है और वह दिन प्रतिदिन निर्धन होता जा रहा है।
प्रश्न 17.
चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में चावल का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। वर्ष 2003-04 में यहां कुल 140 लाख टन चावल का उत्पादन किया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पंजाब एवं उड़ीसा का नम्बर आता है। इनमें से हर एक राज्य में प्रति वर्ष 60 लाख टन से अधिक चावल पैदा होता है। इनके अतिरिक्त झारखण्ड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में भी बड़ी मात्रा में चावल का उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 18.
पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
पंजाब गेहूं उत्पादन की दृष्टि से भारत में दूसरे स्थान पर आता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर गेहूं की उपज एवं केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में इस राज्य का प्रथम स्थान है। पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के अग्रलिखित कारण हैं —
- पंजाब में गेहूं की खेती बहुत ही विस्तृत आधार पर की जाती है। यहां के किसान इसे व्यावसायिक फसल के रूप में पैदा करते हैं।
- पंजाब के किसानों को अच्छी सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
- यहां उगाई जाने वाली गेहूं का झाड़ अधिक होता है।
- तेजी से हो रहे मशीनीकरण के कारण भी पंजाब से गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि हुई है।
प्रश्न 19.
दालों के उत्पादक क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —
- दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
- कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया
- बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।
प्रश्न 20.
डेयरी उद्योग के लाभ बताओ।
उत्तर-
डेयरी उद्योग से अभिप्राय दूध प्राप्त करने के लिए पशु पालने से है। वास्तव में डेरी उद्योग कृषि का ही भाग है। इस उद्योग के लाभ निम्नलिखित हैं —
- डेयरी उद्योग से सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों को रोजगार मिलता है और किसान कृषि की फसल नष्ट होने के बावजूद अच्छा गुजारा कर सकते हैं।
- डेयरी उद्योग से कृषि को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है जिससे उनकी कृषि आय में वृद्धि होती है।
- दूध के उत्पादन में वृद्धि होने के कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की वृद्धि होती है।
प्रश्न 21.
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन अभी कम क्यों है?
उत्तर-
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से कम है। आओ इस कमी का पता लगाएं —
- दालों के उत्पादन में कमी-देश में दालों के उत्पादन में कमी का मुख्य कारण दाल उत्पादन क्षेत्रों में कमी आना है। हरित क्रान्ति के पश्चात् इन क्षेत्रों पर गेहूं तथा चावल की फसलें बोई जाने लगी हैं। इस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
- तिलहन के उत्पादन में कमी-देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति दालों के विपरीत है। तिलहन उत्पादक क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है और तिलहन उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद देश में तिलहन की मांग पूरी नहीं हो पा रही। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में तिलहनों की मांग 5 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है और इसके साथ जनसंख्या की वृद्धि दर इस समस्या को गम्भीर बना रही है।”
प्रश्न 22.
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं क्या हैं ?
उत्तर-
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं अनलिखित हैं —
- वन तथा चरागाह कम होने के कारण मिट्टी का कटाव अधिक होता है।
- पंजाब के कई जिलों की मिट्टियों में अधिक लवणता पाई जाती है। अकेले फिरोजपुर जिले में एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि इससे प्रभावित है।
- अधिकतर किसान अनपढ़ होने के कारण वैज्ञानिक ढंग से फसल-चक्र नहीं अपना पाते।
- अकृषि कार्यों के लिए भूमि-उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र कम होता जा रहा है।
- अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। ऐसी जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं। महंगे कृषि औज़ारों को किराए पर लेने, महंगी रासायनिक खादें आदि खरीदने के कारण किसानों की शुद्ध बचत बहुत कम हो जाती है। पंजाब की कृषि की अन्य समस्याएं हैं-भूमिगत जल स्तर में कमी तथा मिट्टियों की उर्वरता का ह्रास।
प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में आये फसल चक्र में तेजी से आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में फसल चक्र में तेजी से परिवर्तन हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश) में कृषि उत्पादकता बढ़ गई है। परन्तु परम्परागत रूप से चावल उत्पन्न करने वाले पूर्वी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता कम हो गई है। इससे देश के कृषि विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में कृषि विकास में एक ठहराव-सा आ गया है। इन समस्याओं से निपटने के लिए भारत के विभिन्न भागों में किसान नये-नये फसल चक्र अपनाने लगे हैं। उन्होंने ऐसे फसल चक्र अपनाये हैं जो आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी हैं।
प्रश्न 24.
वे कौन-से संकेत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारतीय कृषि निर्वाह की ओर से व्यापारिक कृषि की ओर बढ़ रही है?
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान फसल बो कर अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं ही पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। निम्नलिखित तथ्य भारतीय कृषि को उसकी निर्वाह अवस्था से निकालकर व्यापारिक अवस्था में पहुंचाने में सहायक हुए —
- ज़मींदारी प्रथा का कानून द्वारा उन्मूलन हो चुका है। इस तरह सरकार और भू-स्वामियों के मध्य आने वाले बिचौलिये समाप्त हो गए हैं।
- चकबन्दी द्वारा किसानों के दूर-दूर बिखरे खेत बड़ी जोतों में बदल दिए गए हैं।
- सहकारिता आन्दोलन के अन्तर्गत किसान मिल-जुल कर स्वयं ही अपनी ऋण और उपज की बिक्री सम्बन्धी समस्याएं सुलझा रहे हैं।
- राष्ट्रीय बैंक किसानों को आसान शतों पर ऋण देने लगे हैं।
- खेतों में उपज बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम, केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, कृषि विश्वविद्यालय, डेयरी विकास बोर्ड तथा दूसरी संस्थाएं किसानों को सहायता पहुंचा रही हैं।
- कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है जिससे किसानों को किसी मज़बूरी में अपनी उपज कम कीमत पर नहीं बेचनी पड़ती।
प्रश्न 25.
कृषि विकास के लिए भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए गए हैं —
- चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
- उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
- उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि की शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
- खेती के आधुनिक साधन-खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
- सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के अधीन नदियों के पानी को रोककर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए
प्रश्न 1.
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय कृषि की अनेक समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है —
- भारतीय कृषि की सम्भवतः सबसे बड़ी समस्या भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। देश की अर्जक जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर तो करता है परन्तु वह देश की कुल आय का 29 प्रतिशत भाग ही जुटा पाता है।
- देश में अधिकांश जोतें छोटी हैं और उनका वितरण बहुत ही असामान्य है। छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से बड़ी अलाभकारी हैं।
- वनों और चरागाहों के कम होने के कारण मिट्टी के कटाव के साथ-साथ उनकी उर्वरता बनाये रखने वाले स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।
- देश के अधिकांश कृषक अनपढ़ हैं। वे वैज्ञानिक ढंग से फसल चक्र तैयार नहीं कर पाते। इससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता कम होती है। इसी तरह गहन कृषि का भी प्राकृतिक उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- देश में सिंचाई भी एक समस्या बन गई है। एक ओर जहां राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़ेबड़े राज्यों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता है, वहां पंजाब में सिंचाई साधनों की अधिकता के कारण जलसंतृप्तता (Water logging) तथा लवणता (Salinity) की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
- घटता पूंजी निवेश कृषि की एक अन्य समस्या है। 1980-81 में जहां यह निवेश 1769 करोड़ था, वहां 1990-91 में यह घटकर 1002 करोड़ रुपए रह गया। परन्तु इसके बाद से इस निवेश में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
- उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने में भी नाममात्र प्रगति हुई है।
- फसलों की किस्मों की विभिन्नता का अभाव तथा धीमी वृद्धि दर भी भारतीय कृषि की एक गम्भीर समस्या है।
सच तो यह है कि सरकार का कृषि क्षेत्र पर कड़ा नियन्त्रण है और वह कृषि उत्पादनों के मूल्यों पर भी नियन्त्रण रखती है। कृषक वर्ग को इतनी अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती जितनी कि उद्योगों तथा विभिन्न सेवाओं में लगे लोगों को प्रदान की जाती है।
प्रश्न 2.
देश में ‘हरित क्रान्ति’ पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति से अभिप्राय उस कृषि क्रांति से है जिसका आरम्भ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए किया गया। हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषता यह है कि इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है। जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है। उर्वरकों तथा अच्छी नस्ल के बीजों का प्रयोग भी होता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। भारतीय कृषि के विकास के लिए जहां अन्य विधियां अपनायी गयीं वहां अच्छे बीजों और यन्त्रों का भी प्रयोग किया गया। 1961 में इस काम के लिए देश के सात जिलों को चुना गया। पंजाब का लुधियाना ज़िला इन सात जिलों में से एक था। लुधियाना के साथ-साथ सारे पंजाब पर हरित क्रान्ति का प्रभाव पड़ा और पंजाब एक बार फिर भारत की ‘अनाज की टोकरी’ बन गया। प्रभाव-भारतीय समाज पर हरित क्रान्ति के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं —
1. आर्थिक प्रभाव —
- हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।
- कृषि निर्वाह अवस्था से निकलकर व्यापारिक अवस्था में बदल गई है।
- कृषि का मशीनीकरण हो गया है।
- हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप सिंचाई का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है।
- किसानों ने आर्थिक दृष्टि से अधिक-से-अधिक लाभकारी फसल-चक्र अपना लिया है।
2. सामाजिक प्रभाव—
- प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के परिणामस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में प्रगति हुई है। किसान अब पहले से अच्छे और पक्के मकानों में रहते हैं। उनके पास निजी वाहन हैं।
- हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप किसानों में साक्षरता बढ़ रही है, गांव-गांव में जहां स्कूल खुल रहे हैं वहां अस्पतालों की भी व्यवस्था की जा रही है।
प्रश्न 3.
देश में चावल की खेती का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
देश में चावल की खेती का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चावल भारत का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। भारत के दो-तिहाई लोगों का मुख्य आहार चावल ही है। इसकी उपज के लिए भौगोलिक परिस्थितियां, इसके उत्पादक राज्यों तथा इसके व्यापार का वर्णन इस प्रकार है —
भौगोलिक परिस्थितियां-चावल की खेती के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनकल रहती हैं —
- चावल उष्ण आर्द्र कटिबन्ध की उपज है। इसके लिए ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए तापमान 25° सेंटीग्रेड से अधिक होना चाहिए। इसे काटते समय विशेष रूप से तापमान काफ़ी ऊंचा होना चाहिए।
- चावल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें पानी में डूबी रहनी चाहिएं। इसके लिए 100 सें० मी० तक की वर्षा अच्छी मानी जाती है। इसकी सफलता मानसून पर निर्भर करती है। जिन भागों में वर्षा कम होती है वहां कृत्रिम सिंचाई का सहारा लिया जाता है।
- चावल की खेती के लिए भी सभी कार्य हाथों से करने पड़ते हैं। अत: इसकी कृषि के लिए श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस कारण इसकी कृषि प्रायः उन भागों में होती है जहां जनसंख्या अधिक हो और सस्ते श्रमिक सरलता से मिल जाएं।
चावल उत्पादक राज्य-भारत का चावल उत्पन्न करने में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में सबसे अधिक चावल पश्चिमी बंगाल में उत्पन्न होता है। दूसरा स्थान तमिलनाडु और तीसरा बिहार का है। कर्नाटक, झारखण्ड, केरल, असम, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश आदि अन्य मुख्य चावल उत्पादक राज्य हैं। पंजाब और हरियाणा में भी काफ़ी मात्रा में चावल बोया जाता है। 2001-02 में भारत में लगभग 4.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर चावल की बिजाई की गई थी। इस वर्ष चावल का कुल उत्पादन 8.20 करोड़ टन के लगभग था।
प्रश्न 4.
गेहूं की कृषि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गेहूं एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भौगोलिक परिस्थितियां-गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —
- गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
- गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जा सकती है। इसके लिए 50 सें० मी० से 75 सें० मी० तक की वर्षा पर्याप्त रहती है। परन्तु वर्षा थोड़े-थोड़े समय पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
- गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
- गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।
उत्पादक राज्य-भारत में सबसे अधिक गेहूं उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। इसके उत्पादन में दूसरा स्थान पंजाब का है। हरियाणा भी गेहूं का उत्पादन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा महाराष्ट्र में भी काफ़ी मात्रा में गेहूं पैदा होता है।
उत्पादन-हरित क्रान्ति तथा उसके बाद के वर्षों में गेहूं के उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। 1960-61 में इसका उत्पादन केवल 1 करोड़ 60 लाख टन था। 2000-01 में यह बढ़कर 6 करोड़ 87 लाख टन हो गया।
प्रश्न 5.
देश में दालों की कृषि पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
देश दालों के उत्पादन में अधिक उन्नतिशील नहीं रहा क्योंकि हमने इनके उत्पादन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। पिछले कई दशकों में दालों का उत्पादन घटता-बढ़ता रहा है।
मुख्य दालों में चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर और मटर सम्मिलित हैं। दालें भारी वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में उगाई जाती हैं। एक बात और-मूंग, उड़द और मसूर रबी तथा खरीफ़ दोनों मौसमों में उगाई जाती है।
देश में दालों के क्षेत्रफल में भी वृद्धि नहीं हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद गेहूं तथा चावल जैसी फसलों में लगा दिया गया है। वर्ष 1960-61 में दालों का उत्पादन 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर किया गया, जो 2000-01 में घटकर 2.3 करोड़ हेक्टेयर रह गया। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
देश में दालों का कुल उत्पादन 1960-61 में 1.3 करोड़ टन था जो बढ़कर 2000-01 में केवल 1.7 करोड़ टन तक ही पहुंच सका।
सच तो यह है कि दालों के न तो उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि हुई है और न ही उत्पादन में। यह एक चिन्ता का विषय है। सरकार को चाहिए कि वह अच्छे बीजों की खोज के लिए अथक एवं निरन्तर प्रयास करे।
प्रश्न 6.
तिलहन उत्पादक क्षेत्रफल में हरित क्रान्ति के बाद हुई गिरावट के कारणों पर प्रकाश डालिए तथा सरकार द्वारा तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
क्षेत्रफल में गिरावट के कारण-तिलहन ऐसी फसलें हैं जो अन्य फसलों के साथ उगाई जाती हैं और जो भूमि की उर्वरता में वृद्धि भी करती हैं। फसलों के वैज्ञानिक चक्र में तिलहन धुरी का काम करती है। इसके बावजूद ऐसे क्षेत्र में कमी आई है जिसमें तिलहन बोया जाता रहा है। हरित क्रान्ति के कारण पंजाब में तिलहन उत्पादन क्षेत्रों में कमी आई है। यहां तिलहन उत्पादक क्षेत्र जो 197576 में 3.2 लाख हेक्टेयर था, 1990-91 तक 1.00 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया। इसके बाद इसमें कुछ वृद्धि अवश्य हुई, परन्तु क्षेत्रफल अस्थिर रहा। 2000-01 में कुल उत्पादक क्षेत्रफल 2 करोड़ 13 लाख हेक्टेयर था। तिलहन उत्पादन में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
सरकारी प्रयास-तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार उन्नत किस्म के बीजों की व्यवस्था कर रही है। इसके अतिरिक्त वह कृषकों को तिलहन के अच्छे मूल्यों की गारण्टी दे रही है, ताकि किसानों की तिलहन की कृषि में रुचि बढ़े।
प्रश्न 7.
कपास उत्पादन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत कपास के पौधे का मूल स्थान है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के अध्ययन से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस समय भी कपास की पैदावार होती थी। उस काल में यहां की कपास को बेबीलोन के लोग ‘सिन्धु’ तथा यूनानी इसे ‘सिन्दों’ के नाम से पुकारते थे। कपास लंबे, मध्यम तथा छोटे रेशे वाली होती है। भारत में मुख्यतः मध्यम तथा छोटे रेशे वाली कपास उगाई जाती है। लंबे रेशे वाली कपास केवल पंजाब तथा हरियाणा में ही पैदा होती है। देश में कपास उत्पादन का वर्णन इस प्रकार है —
- कपास दक्कन के काली मिट्टी वाले शुष्क भागों में खूब उगती है। गुजरात और महाराष्ट्र दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन सबसे अधिक होता है। दूसरे स्थान पर गुजरात व तीसरे स्थान पर पंजाब का नाम आता है।
- राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु अन्य कपास उत्पादक राज्य हैं।
- पिछले वर्षों में पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र निरन्तर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप कपास के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस समय पंजाब में 17 लाख से भी अधिक कपास की गांठों का उत्पादन होता है।
- वर्ष 2000-01 में देश में 86 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की गई। इस वर्ष कुल 97 लाख कपास की गांठों का उत्पादन हुआ। इनमें से प्रत्येक गांठ का वजन 170 कि० ग्रा० था।
- कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव काफी अधिक होता है। इसका कारण फ़सलों में होने वाली बीमारियां हैं। कपास के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों से भी कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव आता रहता है।
प्रश्न 8.
भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बागवानी खेती से अभिप्राय सब्जियों, फूलों तथा फलों की गहन खेती से है। भारत का फल तथा सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में फलों का उत्पादन 3.9 करोड़ टन तथा सब्जियों का उत्पादन 6.5 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —
- हमारे देश में विभिन्न प्रकार की कृषि-जलवायु दशाएं पाई जाती हैं। इसलिए यहां पर विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, फूल, मसाले तथा अन्य बागानी फसलें उगाना सम्भव है। उच्च पहाड़ी भागों पर चाय तथा कहवा उगाया जाता है तो समुद्र तटीय भागों में नारियल के पेड़ उगाये जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि देश में विभिन्न प्रकार की बागवानी खेती की सम्भावनाएं हैं।
- केला, आम, नारियल और काजू उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इसके अतिरिक्त मौसमी, सेब, सन्तरा, किन्न, अनानास आदि के उत्पादन में भारत विश्व के दस बड़े उत्पादक देशों में से एक है। इसी प्रकार भारत गोभी के उत्पादन में प्रथम तथा आलू, टमाटर, प्याज एवं हरे मटर के उत्पादन में विश्व के दस बड़े उत्पादकों में से एक है।
- देश से होने वाले कुल कृषि निर्यातों में बागवानी उत्पादों का हिस्सा लगभग 25.0 प्रतिशत है।
- हाल के वर्षों में देश में फूलों के उत्पादन को भारी बढ़ावा मिला है। इसका मुख्य कारण फूलों के लिए बाहर के देशों की बढ़ती हुई मांग है। फूलों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 200 निर्यातमुखी इकाइयों को चुना गया है।
- भारत में सेब के उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्य के नाम सबसे ऊपर हैं। सन्तरों और केलों के उत्पादन में महाराष्ट्र, आम उत्पादन में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र तथा काजू उत्पादन में कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल प्रमुख हैं।
इस प्रकार भारत बागवानी कृषि में निरन्तर प्रगति कर रहा है।
IV. निम्नलिखित को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए :
- प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र।
- प्रमुख ज्वार-बाजरा उत्पादक क्षेत्र।
- प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र।
- प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र।
- आलू उत्पादक राज्य।
- तिलहन उत्पादक प्रमुख क्षेत्र।
- गन्ना उत्पादक क्षेत्र।
- दालों के प्रमुख उत्पादक राज्य।
- मक्का उत्पादक क्षेत्र।
उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
PSEB 10th Class Social Science Guide भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
वन बाढ़ों पर किस प्रकार नियन्त्रण करते हैं?
उत्तर-
वन वर्षा के जल को मृदा के अन्दर रिसने में सहायता करते हैं और धरातल पर जल के प्रवाह को मंद कर देते हैं।
प्रश्न 2.
वनों की वृद्धि से सूखे की समस्या पर कैसे नियन्त्रण पाया जा सकता है?
उत्तर-
वन वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।
प्रश्न 3.
बंजर भूमि का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बंजर भूमि वह भूमि है जिसका इस समय उपयोग नहीं हो रहा।
प्रश्न 4.
मनुष्य किन दो तरीकों से बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है?
उत्तर-
(i) अति चराई द्वारा।
(ii) वनों के विनाश द्वारा।
प्रश्न 5.
भारत में भूमि की मांग क्यों बढ़ती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत में भूमि की मांग बढ़ रही है।
प्रश्न 6.
भारत में मृदा की प्राकृतिक उर्वरता क्यों कम होती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
वनों तथा चरागाहों की कमी का मृदा की प्राकृतिक उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
प्रश्न 7.
भारत में जोतों को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बनाने का कोई एक उपाय बताओ।
उत्तर-
जोतों की चकबन्दी की जाए और जुताई सहकारिता के आधार पर की जाए।
प्रश्न 8.
शष्क कृषि में मेड़बन्दी और समोच्च रेखीय जुताई का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इससे मृदा में नमी बनी रहती है और मृदा का अपरदन भी नहीं होता।
प्रश्न 9.
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर-
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हरी तथा गोबर जैसी खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 10.
कृषि मूल्य आयोग का क्या कार्य है?
उत्तर-
कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है।
प्रश्न 11.
भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुओं के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में मुख्य रूप से दो कृषीय ऋतुएँ हैं-खरीफ तथा रबी।
प्रश्न 12.
डेल्टा प्रदेश चावल की कृषि के लिए उत्तम क्यों हैं?
उत्तर-
डेल्टा प्रदेशों की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है जो चावल की कृषि के अनुकूल है।
प्रश्न 13.
भारत में गेहूं उत्पादक तीन मुख्य राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
प्रश्न 14.
कोई दो दूधारू पशुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
गाय तथा बकरी।
प्रश्न 15.
भारत में दालों की कृषि का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखो।
उत्तर-
दालें भारत की शाकाहारी जनता के लिए प्रोटीन का मुख्य साधन हैं।
प्रश्न 16.
तिलहन क्या हैं?
उत्तर-
वे बीज जिन से हमें तेल प्राप्त होते हैं, तिलहन कहलाते हैं।
प्रश्न 17.
भारत में चाय के दो सर्वप्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
असम और पश्चिमी बंगाल चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
प्रश्न 18.
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य कौन-से हैं?
उत्तर-
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र हैं।
प्रश्न 19.
भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में समृद्ध मत्स्य क्षेत्र क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर-
भारत में महाद्वीपीय निमग्न तट में समुद्री धाराएं चलती हैं और यहां बड़ी-बड़ी नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं।
प्रश्न 20.
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र में मैन्ग्रोव जाति के सुन्दरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी लकड़ी से नावें और बक्से बनाए जाते हैं।
प्रश्न 21.
भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर-
भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि. मी. है।
प्रश्न 22.
जिस परती भूमि को केवल एक ही साल के लिए खाली छोड़ा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
चालू परती।
प्रश्न 23.
भारत में कुल भूमि के कितने प्रतिशत भाग पर खेती की जाती है?
उत्तर-
56 प्रतिशत।
प्रश्न 24.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
82.2 प्रतिशत।
प्रश्न 25.
देश की कुल राष्ट्रीय आय का कितने प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है?
उत्तर-
29 प्रतिशत।
प्रश्न 26.
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
उत्तर-
जनसंख्या का भारी दबाव।
प्रश्न 27.
पंजाब में मिट्टी की जल संतृप्त तथा लवणता जैसी समस्याओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर-
अधिक सिंचाई।
प्रश्न 28.
‘जायद’ की किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तरबूज़ तथा ककड़ी।
प्रश्न 29.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल कौन-सी है?
उत्तर-
चावल।
प्रश्न 30.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल।
प्रश्न 31.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फसल कौन-सी है?
उत्तर-
गेहूं।
प्रश्न 32.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन तथा केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।
प्रश्न 33.
मक्का मूल रूप से किस देश की फ़सल है?
उत्तर-
अमेरिका की।
प्रश्न 34.
संसार में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।
प्रश्न 35.
देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को किस क्रान्ति का नाम दिया जाता है?
उत्तर-
हरित क्रांति।
प्रश्न 36.
भारत की तीन रेशेदार फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कपास, जूट तथा ऊन।
प्रश्न 37.
गन्ने का मूल स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।
प्रश्न 38.
गन्ने के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।
प्रश्न 39.
कृषि पारितंत्र कैसे बनता है?
उत्तर-
कृषि पारितंत्र खेत, कृषक तथा उसके पशुओं के मेल से बनता है।
प्रश्न 40.
सेब उत्पादन में भारत के कौन-से दो राज्य सबसे आगे हैं?
उत्तर-
जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश।
प्रश्न 41.
भारत में सबसे अधिक पशुधन किस राज्य में है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश में।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- मनुष्य वनों के विनाश तथा अति चराई द्वारा ……………. भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है।
- खरीफ़ तथा ………….. भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुएं है।
- भारत में …………… और असम चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
- ……….. भारत का प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है।
- चालू परती भूमि को केवल ……………… साल के लिए खाली छोड़ा जाता है।
- देश की कुल राष्ट्रीय आय का ……………. प्रतिशत भाग कृषि से प्राप्त होता है।
- देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को ……………… कहा जाता है।
- ………………. गन्ने का मूल स्थान है।
- फलों में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में ……………. का उत्पादन सबसे अधिक है।
- ………………… राज्य में सबसे अधिक पशुधन है।
उत्तर-
- बंजर,
- रबी,
- पश्चिमी बंगाल,
- महाराष्ट्र,
- एक,
- 29,
- हरित क्रांति,
- भारत,
- सेब,
- उत्तर प्रदेश।
II. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं —
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र
(B) पंजाब तथा राजस्थान
(C) बिहार तथा गुजरात
(D) पश्चिमी बंगाल तथा महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र
प्रश्न 2.
भारत का कुल क्षेत्रफल है —
(A) 62.8 लाख वर्ग कि० मी०
(B) 42.8 लाख वर्ग कि० मी०
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०
(D) 23.8 लाख वर्ग कि० मी०।
उत्तर-
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०
प्रश्न 3.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र है —
(A) 92.2 प्रतिशत
(B) 60.2 प्रतिशत
(C) 72.2 प्रतिशत
(D) 82.2 प्रतिशत।
उत्तर-
(D) 82.2 प्रतिशत।
प्रश्न 4.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल है —
(A) गेहूं
(B) मक्का
(C) चावल
(D) बाजरा।
उत्तर-
(C) चावल
प्रश्न 5.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है —
(A) पश्चिमी बंगाल
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) पश्चिमी बंगाल
प्रश्न 6.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फ़सल है —
(A) चावल
(B) गेहूं
(C) मक्का
(D) बाजरा।
उत्तर-
(B) गेहूं
प्रश्न 7.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन में पंजाब का देश में स्थान है —
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) पहला
(D) चौथा।
उत्तर-
(C) पहला
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं
- भारत में वनों का क्षेत्रफल वैज्ञानिक आदर्श से बहुत कम है।
- भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या घनत्व का कोई प्रभाव नहीं है।
- हरित क्रांति के बाद अपनाया गया फ़सल-चक्र आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।
- गेहूं देश की पहली महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
- भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है।
उत्तर-
- (✓),
- (✗),
- (✓),
- (✗),
- (✓).
V. उचित मिलान
- वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — रबी
- चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — तिलहन
- गेहूं, जौं, चना, सरसों — खरीफ़
- मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — परती।
उत्तर-
- वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — परती,
- चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — खरीफ़,
- गेहूँ, जौं, चना, सरसों — रबी,
- मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — तिलहन।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता औसत जन-घनत्व की अपेक्षा अधिक सार्थक कैसे है?
उत्तर-
कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता से अभिप्राय यह है कि हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में औसत रूप से कितनी कृषि योग्य भूमि आती है। इसे देश की कुल कृषि योग्य भूमि को देश की कुल जनसंख्या से भाग देकर जाना जा सकता है। इस गणना के अनुसार हमारे देश में कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता 0.17 हेक्टेयर के लगभग है। यह एक अच्छा लक्षण है, क्योंकि हमारे देश में औसत जनघनत्व बहुत अधिक (382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) है। अतः हम कह सकते हैं कि यहां कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता यहां के औसत जनघनत्व से अधिक सार्थक है।
प्रश्न 2.
किसी देश के भूमि उपयोग के प्रारूप को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
किसी देश के भूमि प्रारूप को जानना निम्नलिखित बातों के कारण आवश्यक है —
- इससे भूमि के उपयोग में सन्तुलन पैदा किया जा सकता है।
- विभिन्न भूमि क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
- आवश्यकता के अनुसार भूमि-उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।
- बंजर भूमि तथा परती भूमि के उचित उपयोग की योजना बनाई जा सकती है।
प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की सबसे सन्तोषजनक विशेषता क्या है? इसकी असन्तोषजनक विशेषताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
सन्तोषजनक विशेषता-भारत में भूमि के उपयोग की सन्तोषजनक विशेषता यह है कि देश में शुद्ध बोए गए क्षेत्र का विस्तार हो रहा है। पिछले तीन दशकों में इसमें 2.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप आजकल यह क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेयर हो गया है। यह कुल कृषि का 47.7 प्रतिशत है।
असन्तोषजनक विशेषताएं-भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की निम्नलिखित दो असन्तोषजनक विशेषताएं हैं —
- भारत में वन-क्षेत्र बहुत कम है। यहां केवल 22.7 प्रतिशत भूमि पर ही वन हैं, परन्तु आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रों में वनों का होना अनिवार्य है।
- भारत में चरागाह क्षेत्र भी बहुत कम है।
प्रश्न 4.
परती भूमि तथा बंजर भूमि में अन्तर बताओ। परती भूमि से किसानों को होने वाले दो लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
परती भूमि-परती भूमि वह सीमान्त भूमि है जिसमें हर वर्ष फ़सलें पैदा नहीं की जाती। ऐसी भूमि से दो या तीन वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है। एक फसल लेने के बाद इसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इसका बहुत कुछ उपयोग अच्छी तथा समय पर होने वाली वर्षा पर निर्भर करता है। बंजर भूमि-बंजर भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जिसका उपयोग नहीं हो रहा है। इसमें मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा मरुभूमियां शामिल हैं।
परती भूमि के लाभ-
- परती भूमि अपनी खोई हुई उर्वरता फिर से प्राप्त कर लेती है।
- भूमि की उत्पादकता बढ़ जाने के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
प्रश्न 5.
किस कारण से हमें अपने वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है?
अथवा
आप कैसे कह सकते हैं कि पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए बड़ा वन क्षेत्र होना अनिवार्य है?
उत्तर-
भारत में वन क्षेत्र वैज्ञानिक आदर्श से कम हैं, परन्तु आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिक सन्तुलन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक बड़े वन-क्षेत्र का होना आवश्यक है। एक बात ध्यान देने योग्य यह कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता ग्रीन हाऊस के प्रभाव को बढ़ा देती है। इससे तापमान इतना अधिक बढ़ सकता है कि बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में समुद्र तट के निकटवर्ती क्षेत्र पानी में डूब जाएंगे। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने वन क्षेत्र को बढ़ाएं।
प्रश्न 6.
भारतीय कषि की पिछड़ी दशा के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर-
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है —
- भारतीय किसान प्राचीन ढंग से खेती करते हैं। वे आधुनिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम करते हैं।
- उनके कृषि के उपकरण पुराने ढंग के हैं।
- किसान उत्तम बीजों का प्रयोग नहीं करते हैं। इससे उत्पादन कम होता है।
- भारत का किसान निर्धन तथा निरक्षर है। यह बात कृषि की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी हुई है।
प्रश्न 7.
कृषि की उन्नति के लिए सरकार द्वारा कौन-से पाँच कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि की उन्नति के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने जो पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं, उनका वर्णन इस प्रकार है —
- किसानों को नवीन कृषि विधियों से परिचित करवाया जा रहा है।
- किसानों को सस्ती दरों पर ऋण की सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि वे नए कृषि-यन्त्र खरीद सकें।
- बांध बना कर नहरी सिंचाई का विस्तार किया जा रहा है।
- खेतों में चकबन्दी कर दी गई है ताकि खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े न होने पाएं।
- अधिक-से-अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई जा रही है ताकि फसलों की नलकूपों द्वारा सिंचाई की जा सके।
प्रश्न 8.
भारत की वर्तमान कृषि की दशा सुधारने के लिए कोई पांच उपाय सुझाइए।
उत्तर-
- भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
- कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
- खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।
- सिंचाई की सुविधाओं का विकास करना चाहिए।
- राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा किसानों को आसान शर्तों पर ऋण देने चाहिएं।
प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि और व्यापारिक कृषि में अन्तर करने के साथ प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान अपनी फ़सल से केवल अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। व्यापारिक कृषि में प्रायः एक ही फ़सल की खेती पर बल दिया जाता है और यह कृषि बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। उदाहरण: निर्वाह कृषि-भारत में गेहूँ की कृषि। व्यापारिक कृषि-भारत में चाय की कृषि।
प्रश्न 10.
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलों के नाम बताइए। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए दो उपाय लिखिए।
उत्तर-
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलें चाय तथा पटसन हैं। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं —
- कृषि का विशिष्टीकरण करना चाहिए। अर्थात् एक क्षेत्र में केवल एक ही व्यापारिक फ़सल बोनी चाहिए।
- परिवहन एवं संचार के साधनों का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहिए।
प्रश्न 11.
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो रोपण फ़सलों के नाम बताइए। गन्ने की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश में होती है। दो कारण लिखिए।
उत्तर-
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो अन्य रोपण फ़सलें गन्ना और कपास हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की अधिक खेती होने के दो कारण निम्नलिखित हैं —
- गन्ने के लिए गर्म-आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश की जलवायु इसके अनुकूल है।
- गन्ने की कृषि से सम्बन्धित अधिकतर काम हाथों से करने पड़ते हैं। अत: सस्ते श्रमिकों का मिलना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में अधिक जनसंख्या के कारण मजदूरी सस्ती है।
प्रश्न 12.
जूट (पटसन) मुख्यतः पश्चिमी बंगाल में क्यों उगाया जाता है? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
पटसन से रस्सियां, बोरियां, टाट आदि वस्तुएं बनाई जाती हैं। यह अधिकतर पश्चिमी बंगाल में पैदा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि पटसन के लिए बहुत ही उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है और पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी हर साल नई मिट्टी लाकर बिछा देती है। नदी द्वारा लाई गई मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है। दूसरे, बंगाल की जलवायु भी पटसन के लिए आदर्श है।
प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि का विकास बड़ी तेजी से हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन पहले से तीन गुना हो गया है। विभाजन के कारण जूट तथा कपास के उत्पादन में कमी आ गई थी, परन्तु अब इस कमी को पूरा कर लिया गया है। यहां प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ी है। अधिक भूमि हल के नीचे लाई गई है और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार अधिक क्षेत्र में किया गया है। कृषि के नवीन ढंग भी अपनाए गए हैं।
प्रश्न 14.
तेजी से बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में क्या-क्या सुधार किए जाने चाहिएं?
उत्तर-
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में निम्नलिखित सुधार किए जाने चाहिएं —
- भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
- कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
- खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।
प्रश्न 15.
चावल की उपज पंजाब में क्यों बढ़ रही है ? कोई चार कारण लिखो।
उत्तर-
पंजाब में चावल की उपज बढ़ने के निम्नलिखित कारण हैं —
- पंजाब का कृषक गहन कृषि करता है और वह अपने खेतों में अच्छे बीजों और अच्छी खादों का प्रयोग करता है।
- यहां सिंचाई के साधन बड़े उन्नत हैं।
- पंजाब की भूमि उपजाऊ है और यहां के किसान बड़े परिश्रमी हैं।
- यहां का कृषि विश्वविद्यालय किसानों को उपज बढ़ाने के नए-नए ढंगों से परिचित कराता रहता है।
प्रश्न 16.
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण क्या हैं?
उत्तर-
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण निम्नलिखित हैं —
- गन्ने की खेती केवल वर्षा पर ही निर्भर है, परन्तु भारत की वर्षा अनिश्चित तथा अनियमित है।
- भारत में गन्ने की उन्नत किस्म का अभाव है। इसलिए गन्ने का उत्पादन कम होता है।
- आर्द्रता कम होने के कारण गन्ने का रस सूख जाता है।
- भारत में कृषि के पुराने ढंग प्रयोग किए जाते हैं।
प्रश्न 17.
फल उत्पादन में भारत की क्या स्थिति है?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु होने के कारण भारत कई प्रकार के फल पैदा करता है। हम हर वर्ष दो करोड़ टन फल पैदा करते हैं, परन्तु हमारे देश में फलों की प्रति व्यक्ति खपत बहुत ही कम है। आम, केला, संतरा और सेब हमारे देश के मुख्य फल हैं। आम हमारे देश का सबसे बढ़िया फल माना गया है। भारत में आमों की लगभग 100 किस्में उगाई जाती हैं। विदेशों में आम की मांग प्रति वर्ष बढ़ रही है। केला दक्षिणी भारत से आता है। संतरों के लिए: नागपुर और पूना प्रसिद्ध हैं। अंगूरों की खेती का विस्तार किया जा रहा है। सेब के लिए हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर राज्य प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 18.
श्वेत क्रान्ति का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
श्वेत क्रान्ति को ऑपरेशन फ्लड भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य दूध के उत्पादन को बढ़ाना है। ग्रामीण जीवन के सामूहिक विकास के लिए श्वेत क्रान्ति की सफलता अनिवार्य है। इससे छोटे और सीमान्त किसानों को अतिरिक्त आय हो सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खाद तथा बायो गैस प्राप्त की जा सकती है। दूध व्यवसाय के विकास से अनेक परिवार निर्धनता की रेखा से ऊपर उठ सकते हैं।
प्रश्न 19.
भारत के मत्स्य उद्योग के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
हमें मछलियां तटीय भागों के साथ-साथ फैले बीस लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्राप्त हो सकती हैं। भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं। इससे सभी क्षेत्र मत्स्य क्षेत्र बन गए हैं। 1950-51 में मछली का उत्पादन 5 लाख टन था, जो 2000-01 में बढ़कर 5656 हज़ार टन (अनुमानित) हो गया। भारत में बने बांधों के पीछे झीलों में भी मछली पालने का व्यवसाय उन्नत किया जा रहा है।
प्रश्न 20.
भारत के पशुधन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारतीय किसान के लिए पशुओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत पशुओं की दृष्टि से संसार में सबसे आगे है। यहां भैंस, गाय, बैल, भेड़, बकरी, ऊंट तथा घोड़ा आदि पशु पाये जाते हैं।
महत्त्व-
- भारवाही पशु भारतीय किसान को कृषि कार्यों में सहायता देते हैं।
- दुधारू पशुओं के दूध से किसान को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
- पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र खाद का काम देते हैं।
बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में भूमि के विभिन्न उपयोगों के प्रारूप की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.7 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों में होता है —
- कृषि,
- चरागाह,
- वन,
- उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।
1. कृषि-भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 56 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। देश में 16.3 करोड़ हेक्टेयर … भूमि शुद्ध बोये गए क्षेत्र के अधीन है। 1.3 प्रतिशत भाग फलों की कृषि के अन्तर्गत आता है। पाँच प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है।
2. चरागाह-हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है। फिर भी यहां संसार में सबसे अधिक पशु पाले जाते हैं। इन्हें प्रायः पुआल, भूसा तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराये जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अन्तर्गत रखा गया है।
3. वन-हमारे देश में केवल 22.7 प्रतिशत से भी कम भूमि पर वन हैं। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रफल में वनों का होना आवश्यक है। अतः हमारे देश में वन-क्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम है। भूमि उपयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां वनों का विस्तार 6.7 करोड़ हेक्टेयर भूमि में है। परन्तु उपग्रहों द्वारा लिए गए छाया चित्रों के अनुसार यह क्षेत्र केवल 4.6 करोड़ हेक्टेयर ही है।
4. उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास-देश की शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास के लिए किया जा रहा है। परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन-स्तर के कारण मानव आवास के लिए भूमि की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप अन्य सुविधाओं के विकास के लिए भूमि का निरन्तर अभाव होता जा रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का उपयोग सन्तुलित नहीं है। अतः हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों में सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्न 2.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? कृषि की दशा को सुधारने के लिए कुछ सुझाव दो।
उत्तर-
कृषि के पिछड़ेपन के कारण-भारत की कृषि के पिछड़ेपन के अग्रलिखित कारण हैं —
- कृषि की वर्षा पर निर्भरता — भारत का किसान सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर है, परन्तु वर्षा अविश्वसनीय तथा अनिश्चित होने के कारण हमारी कृषि पिछड़ी हुई है।
- भूमि में नाइट्रोजन का अभाव — भारत की भूमि में नाइट्रोजन की कमी है। इसका कारण यह है कि हज़ारों साल से हमारी भूमि पर कृषि हो रही है। इसके कारण हमारी भूमि की उपजाऊ शक्ति काफी कम हो गई है।
- उचित श्रम का अभाव — हमारे कृषक दुर्बल हैं। परिणामस्वरूप वे इतना परिश्रम नहीं कर पाते जितना कि कृषि के लिए आवश्यक है।
- खेतों का अपघटन — हमारे देश में पिता की मृत्यु के बाद भूमि उसके बेटों में बंट जाती है। इस प्रकार खेतों के आकार छोटे होते जाते हैं जिससे उत्पादन कम हो जाता है।
- कृषि के पुराने ढंग — भारतीय किसान अभी तक पुराने ढंग से कृषि कर रहा है। इस कारण हमारी कृषि पिछड़ी
- अच्छे बीजों का प्रयोग न करना — निर्धन होने के कारण भारतीय कृषक अच्छे बीजों का प्रयोग नहीं कर पाते। अतः हमारे खेतों में उपज कम होती है।
- धन का अभाव — कृषि के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है, परन्तु भारतीय कृषक निर्धन हैं।
- दुर्बल पश — भारतीय किसान बैलों की सहायता से अपने खेतों में हल चलाता है। परन्तु हमारे यहां के अधिकतर बैल अच्छी नस्ल के नहीं हैं। ये बैल दुर्बल होते हैं। इनसे कृषि का पूरा कार्य नहीं लिया जा सकता।
- निरक्षरता — भारतीय किसान निर्धन होने के अतिरिक्त निरक्षर भी हैं। अत: वह कृषि के नए ढंग अपनाने में कठिनाई अनुभव करता है।
कृषि की दशा सुधारने के उपाय-कृषि की दशा में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए जा सकते हैं —
- सहकारी कृषि-सहकारी कृषि की प्रणाली जारी करनी चाहिए। इससे खेत बड़े हो जाएंगे और सभी सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी।
- सिंचाई की अधिक सुविधाएं-कृषि की स्थिति में सुधार लाने के लिए सिंचाई की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिएं।
- गहन खेती-हमारे देश में किसान को गहन कृषि के ढंगों को अपनाना चाहिए। इससे भूमि की शक्ति बढ़ जाती है और थोड़ी-सी भूमि से भी अधिक ऊपज प्राप्त होती है।
- अच्छे बीज और खाद-सरकार को चाहिए कि वह किसानों को सस्ते दामों पर अच्छे बीज दे। अच्छी खाद खरीदने के लिए उन्हें सरकार द्वारा सहायता मिलनी चाहिए।
- नवीन कृषि यत्रों का प्रयोग यदि कृषि के नवीन यन्त्रों का प्रयोग किया जाए तो कृषि में काफी सुधार हो सकता है। सरकार को इन औजारों को खरीदने के लिए कृषक की धन से सहायता करनी चाहिए। .
प्रश्न 3.
केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए कौन-कौन से प्रमुख कदम उठाए हैं?
उत्तर-
केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं —
- चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
- उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
- उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि में बार-बार एक ही फसल बोने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि की इस शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद भी देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
- खेती के आधुनिक साधन- खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। अब लकड़ी की जगह लोहे का हल प्रयोग किया जाता है। बड़े-बड़े खेतों में ट्रैक्टरों से जुताई की जाती है। फसल काटने तथा बोने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
- सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं में भाखडा – नंगल योजना, तुंगभद्रा योजना तथा दामोदर घाटी योजना प्रमुख हैं।
प्रश्न 4.
भारत की प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्यों के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्य —
क्र० सं० | फ़सल का नाम | उत्पादक राज्य |
1. | चावल | पश्चिमी बंगाल, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब। |
2. | गेहूं | उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, गुजरात तथा महाराष्ट्र। |
3. | ज्वार, बाजरा | ज्वार-कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान। बाजरा-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात व राजस्थान। |
4. | मक्का | उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान। |
5. | दालें | पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा। |
6. | कपास | गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु। |
7. | तिलहन | सरसों, तोरिया—उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान। मूंगफली—पश्चिमी और दक्षिणी भारत, गुजरात, महाराष्ट्र। मध्य प्रदेश तिलहन उत्पादन का मुख्य राज्य है। दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है। |
8. | गन्ना | तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, गुजरात। |
भूमि उपयोग एवं कृषि विकास PSEB 10th Class Geography Notes
- भूमि उपयोग-भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि० मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.2 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यतः चार रूपों में होता है-(1) कृषि, (2) चरागाह, (3) वन, (4) उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।
- कृषि–भारत के लगभग 51 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। इसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि दोनों सम्मिलित हैं।
- शद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि-शुद्ध बोया गया क्षेत्र वह कृषि क्षेत्र है जिस पर एक समय में फसलें उग रही होती हैं। परती भूमि वह भूमि है जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जातीं। इससे एक फसल लेने के बाद इसे एक-दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह फिर से उर्वरा शक्ति प्राप्त कर ले।
- बंजर भूमि-जिस भूमि का उपयोग नहीं हो रहा है, उसे बंजर भूमि कहा जाता है। इसमें चट्टानी प्रदेश, ऊंचे पर्वत, रेतीले मरुस्थल आदि शामिल हैं। इसे मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण आदि को रोक कर उपयोगी बनाया जा सकता है।
- वन क्षेत्र-आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक तिहाई क्षेत्रफल पर वन का होना अनिवार्य है परन्तु खेद की बात है कि भारत में केवल 22.7 प्रतिशत क्षेत्र पर वन हैं। इसलिए वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है।
- कृषि का महत्त्व-कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार रहा है। हमारी जनसंख्या के 2/3 भाग की जीविका का आधार कृषि ही है। पशुपालन, मत्स्य ग्रहण तथा वानिकी भी कृषि के ही अन्तर्गत आते हैं।
- कृषि विकास-स्वतन्त्रता के बाद भारतीय कृषि का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन तिगुना हो गया है। संसार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10-11 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है, परन्तु सौभाग्य से भारत का 51 प्रतिशत क्षेत्रफल कृषि अधीन है।
- कृषि से सम्बन्धित समस्याएं-भारतीय कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। अधिकतर जोतें छोटी हैं। वनों और चरागाहों के कम होते जाने के कारण मृदा की प्राकृतिक उर्वरता बनाए रखने के स्रोत भी सूखते जा रहे हैं।
- कृषि एक प्रगतिशील उद्योग-कृषि को इसकी निर्वाह अवस्था से हटाकर एक आत्म-निर्भर प्रगतिशील उद्योग बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं। ज़मींदारी प्रथा कानून बना कर समाप्त कर दी गई है। चकबन्दी के द्वारा दूर-दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदल दिया गया है। सहकारिता आन्दोलन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक जिले में मार्गदर्शक बैंक खोले गए हैं। राष्ट्रीय बीज निगम, भूमि उपयोग एवं कृषि विकास केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि प्रदर्शन फार्मों, डेरी विकास बोर्ड तथा ऐसी अन्य संस्थाओं का गठन भी किया गया है।
- प्रमुख फसलें-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां गेहूं, चावल, कपास, पटसन, गन्ना, चाय, कहवा, ज्वारबाजरा आदि कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।
- बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अनाज-भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करके अनाजों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
- खाद्यान्न फसलें-भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं, चावल और मक्का हैं। गेहूं मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है। चावल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा आदि हैं। मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होता है।
- रेशेदार फसलें-भारत की प्रमुख रेशेदार फसलें कपास और पटसन हैं। कपास से सूती वस्त्र बनते हैं। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में होती है। पटसन का मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।
- चाय तथा कहवा-चाय तथा कहवा मुख्य पेय पदार्थ हैं। चाय की कृषि असम, मेघालय, पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। कहवा कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में उगाया जाता है।
- पशुधन-पशुओं की संख्या में भारत संसार में सबसे आगे है। परन्तु यहां अच्छी नस्ल के पशुओं का अभाव है। अतः केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पशु धन के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं।