Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3 जलवायु Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 3 जलवायु
SST Guide for Class 10 PSEB जलवायु Textbook Questions and Answers
I. नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए
प्रश्न 1.
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्त्वों के नाम बताएँ।
उत्तर-
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्व हैं —
- भूमध्य रेखा से दूरी,
- धरातल का स्वरूप,
- वायुदाब प्रणाली,
- मौसमी पवनें और
- हिन्द महासागर से समीपता।
प्रश्न 2.
सर्दियों के मौसम में सबसे कम और सबसे अधिक तापक्रम वाले दो-दो स्थानों के नाम बताइए।
उत्तर-
क्रमश:-मुम्बई तथा चेन्नई और अमृतसर तथा लेह।
प्रश्न 3.
गर्मियों में सबसे ठण्डे व गर्म स्थानों का वर्णन करो।
उत्तर-
सबसे ठण्डे स्थान लेह तथा शिलांग सबसे गर्म स्थान-उत्तर-पश्चिमी मैदान।
प्रश्न 4.
सबसे अधिक शुष्क व अधिक वर्षा वाले स्थानों के नाम बताओ।
उत्तर-
देश के सबसे अधिक शुष्क स्थान हैं-लेह, जोधपुर तथा दिल्ली। शिलांग, मुम्बई, कलकत्ता (कोलकाता) तथा तिरुवन्तपुरम् सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान हैं।
प्रश्न 5.
सम-जलवायु तथा कठोर जलवायु वाले दो-दो स्थानों के नाम बताओ।
उत्तर-
- सम जलवायु वाले दो स्थान मुम्बई तथा चेन्नई हैं।
- अमृतसर तथा जोधपुर में कठोर जलवायु पाई जाती है।
प्रश्न 6.
‘जेट स्ट्रीम’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
धरातल से तीन किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली ऊपरी हवा अथवा संचार चक्र (Upper Air Circulation) को जेट स्ट्रीम (Stream) कहते हैं।
प्रश्न 7.
‘मौनसून’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द मौसम (Mausam) से हुई है। जिससे तात्पर्य मौसम में बदलाव आने पर स्थानीय पवनों के तत्त्वों अर्थात् तापमान, आर्द्रता, दबाव तथा दिशा में परिवर्तन आने से है।
प्रश्न 8.
‘मौनसून का फटना’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
मानसून पवनें लगभग 1 जून को पश्चिमी तट पर पहुंचती हैं और बहुत तेजी से वर्षा करती हैं जिसे मानसनी धमाका या ‘मानसून का फटना’ (Monsoon Burst) कहते हैं।
प्रश्न 9.
लू (Loo) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु में कम दबाव का क्षेत्र पैदा होने के कारण चलने वाली धूल भरी आंधियां लू कहलाती है।
प्रश्न 10.
‘मौनसून तोड़’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वर्षा ऋतु में शुष्क अन्तराल को मानसूनी तोड़ कहते हैं।
प्रश्न 11.
‘अल नीनो’ समुद्री धारा कहां बहती है?
उत्तर-
‘अल नीनो’ (El-Nino-Current) समुद्री धारा चिली के तट के समीप प्रशान्त महासागर में बहती है।
प्रश्न 12.
काल बैसाखी’ किसे कहते हैं?
उत्तर-
बैसाख मास में पश्चिमी बंगाल में चलने वाले तूफ़ानी चक्रवातों को ‘काल बैसाखी’ कहते हैं।
प्रश्न 13.
‘आम्रवृष्टि’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली पूर्व मानसूनी वर्षा जो आमों अथवा फूलों की फसल के लिए लाभदायक होती है।
प्रश्न 14.
अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली पवनें किन स्थानों पर एक-दूसरे से मिल जाती हैं।
उत्तर-
अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली मानसून पवनें पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में आपस में मिलती हैं।
II. नीचे लिखे प्रश्नों के संक्षेप में कारण बताइए —
प्रश्न 1.
मुम्बई नागपुर की अपेक्षा ठण्डा है।
उत्तर-
मुम्बई सागर तट पर बसा है। समुद्र के प्रभाव के कारण मुम्बई की जलवायु सम रहती है और यहां सर्दी कम पड़ती है।
इसके विपरीत नागपुर समुद्र से दूर स्थित है। समुद्र के प्रभाव से मुक्त होने के कारण वहां विषम जलवायु पाई जाती है। अत: नागपुर मुम्बई की अपेक्षा ठण्डा है।
प्रश्न 2.
भारत की अधिकांश वर्षा चार महीनों में होती है।
उत्तर-
भारत में अधिकांश वर्षा मध्य जून से मध्य सितम्बर तक होती है। इन चार महीनों में समुद्र से आने वाली मानसूनी पवनें चलती हैं। नमी से युक्त होने के कारण ये पवनें भारत के अधिकांश भाग में खूब वर्षा करती हैं।
प्रश्न 3.
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून द्वारा कलकत्ता (कोलकाता) में 145 सेंटीमीटर वर्षा जबकि जैसलमेर में केवल 12 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
उत्तर-
कलकत्ता (कोलकाता) बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसून पवनों के पूर्व की ओर बढ़ते समय पहले पड़ता है। जलकणों से लदी ये पवनें यहां 145 सेंटीमीटर वर्षा करती हैं।
जैसलमेर अरावली पर्वत के प्रभाव में आता है। अरावली पर्वत अरब सागर से आने वाली पवनों के समानान्तर स्थित है और यह पवनों को रोकने में असमर्थ है। अतः पवनें बिना वर्षा किए आगे निकल जाती हैं। यही कारण है कि जैसलमेर में केवल 12 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
प्रश्न 4.
चेन्नई शहर (मद्रास) में अधिकांश वर्षा सर्दियों में होती है।
उत्तर-
चेन्नई भारत के पूर्वी तट पर स्थित है। यह उत्तर-पूर्वी मानसून पवनों के प्रभाव में आता है। ये पवनें शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। बंगाल की खाड़ी से लांघते हुए ये जलवाष्य ग्रहण कर लेती हैं। तत्पश्चात् पूर्वी घाट से टकरा कर ये चेन्नई में वर्षा करती हैं।
प्रश्न 5.
उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों में अधिक वर्षा होती है।
उत्तर-
50-60 शब्दों में उत्तर वाला प्रश्न नं० १ पढ़ें।
III. नीचे लिखे प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं निम्नलिखित हैं
- सर्दियों में हिमालय पर्वत के कारगिल क्षेत्रों में तापमान-45° सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है परन्तु उसी समय तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) महानगर में यह 20° सेन्टीग्रेड से भी अधिक होता है। इसी प्रकार गर्मियों की ऋतु में ‘ अरावली पर्वत की पश्चिमी दिशा में स्थित जैसलमेर का तापमान 50° सेन्टीग्रेड को भी पार कर जाता है, जबकि श्रीनगर में 20° सेन्टीग्रेड से कम तापमान होता है।
- खासी पर्वत श्रेणियों में स्थित माउसिनराम (Mawsynaram) में 1141 सेंटीमीटर औसतन वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। परन्तु दूसरी ओर पश्चिमी थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा का औसत 10 सेंटीमीटर से भी कम है।
- बाड़मेर और जैसलमेर में लोग बादलों के लिए तरस जाते हैं परन्तु मेघालय में सारा साल आकाश बादलों से ढका रहता है।
- मुम्बई तथा अन्य तटवर्ती नगरों में समुद्र का प्रभाव होने के कारण तापमान वर्ष भर लगभग एक जैसा ही रहता है। इसके विपरीत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में सर्दी एवं गर्मी के तापमान में भारी अन्तर पाया जाता है।
प्रश्न 2.
देश में जलवायु विभिन्नताओं के कारण बताओ।
उत्तर-
भारत के सभी भागों की जलवायु एक समान नहीं है। इसी प्रकार सारा साल भी जलवायु एक जैसी नहीं रहती। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —
- देश के उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र ऊंचाई के कारण वर्ष भर ठण्डे रहते हैं। परन्तु समुद्र तटीय प्रदेशों का तापमान वर्ष भर लगभग एक समान रहता है। दूसरी ओर, देश के भीतरी भागों में कर्क रेखा की समीपता के कारण तापमान ऊंचा रहता है।
- पवनमुखी ढालों पर स्थित स्थानों पर भारी वर्षा होती है, जबकि वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित प्रदेश सूखे रह जाते हैं।
- गर्मियों में मानसून पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं। जलवाष्प से भरपूर होने के कारण ये खूब वर्षा करती है। परन्तु आगे बढ़ते हुए इनके जलवाष्प कम होते जाते हैं। परिणामस्वरूप वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
- सर्दियों में मानसून पवनें विपरीत दिशा अपना लेती हैं। इनके जलवाष्प रहित होने के कारण देश में अधिकांश भाग शुष्क रह जाते हैं। इस ऋतु में अधिकांश वर्षा केवल देश के दक्षिण-पूर्वी तट पर ही होती है।
प्रश्न 3.
मौनसून पूर्व की वर्षा (Pre-Monsoonal Rainfall) किन कारणों से होती है?
उत्तर-
गर्मियों में भूमध्य रेखा की कम दबाव की पेटी कर्क रेखा की ओर खिसक (सरक) जाती है। इस दबाव को भरने के लिए दक्षिणी हिन्द महासागर से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलने लगती हैं। धरती की दैनिक गति के कारण ये पवनें घड़ी की सुई की दिशा में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की और मुड़ जाती है। ये 1 जून को देश के पश्चिमी तट पर पहुंचकर बहुत तेजी से वर्षा करती हैं। परन्तु 1 जून से पहले भी केरल तट के आस-पास जब समुद्री पवनें पश्चिमी तट को पार करती हैं, तब भी मध्यम स्तर की वर्षा होती है। इसी वर्षा को पूर्व मानसून (Pre-Monsoon) की वर्षा कहा जाता है। इस वर्षा का मुख्य कारण पश्चिमी घाट की पवनमुखी ढालें हैं जो इनके मार्ग में बाधा डालती हैं।
प्रश्न 4.
वर्षा ऋतु का वर्णन करो।
उत्तर-
वर्षा ऋतु को दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु भी कहते हैं। यह ऋतु जून से लेकर मध्य सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु की मुख्य विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है —
- भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में निम्न दाब का क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है।
- समुद्र से पवनें भारत में प्रवेश करती हैं और गरज के साथ घनघोर वर्षा करती हैं।
- आर्द्रता से भरी ये पवनें 30 किलोमीटर प्रति घण्टा की दर से चलती हैं और एक मास के अन्दर-अन्दर पूरे देश में फैल जाती हैं।
- भारतीय प्रायद्वीप मानसून को दो शाखाओं में विभाजित कर देता है-अरब सागर की मानसून पवनें तथा खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें।
- खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें भारत के पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर 250 में०मी० से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत इस घाट की पवनाविमुख ढालों पर केवल 50 सें०मी० वर्षा होती है। मुख्य कारण वहां की उच्च पहाड़ी श्रृंखलाएं तथा पूर्वी हिमालय हैं। दूसरी ओर उत्तरी मैदानों में पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
प्रश्न 5.
देश में अधिक वर्षा वाले स्थान कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
अधिक वर्षा वाले स्थानों में देश के वे स्थान सम्मिलित हैं जहां पर वर्षा 150 से 200 सेंटीमीटर तक होती है। इन स्थानों को तीन क्षेत्रों में बांटा जा सकता है —
- एक बहुत ही संकरी एवं तंग पट्टी 20 किलोमीटर की चौड़ाई में पश्चिमी घाट के साथ-साथ उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हुई है। यह ताप्ती नदी के मुहाने से लेकर केरल के मैदानों तक विस्तृत है।
- दूसरी पट्टी हिमालय की दक्षिणी ढलानों के साथ-साथ विस्तृत है। यह हिमाचल प्रदेश से होकर कुमाऊं हिमालय से गुज़रती हुई असम की निचली घाटी तक जा पहुंचती है।
- तीसरी पट्टी उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हुई है। इसमें त्रिपुरा, मणिपुर तथा मीकिर की पहाड़ियां शामिल हैं। इस पट्टी में लगभग 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा होती है।
प्रश्न 6.
मौनसून वर्षा की कोई तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
मानसूनी वर्षा की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं —
- अस्थिरता- भारत में मानसून भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एक-समान होती रहे। वर्षा की इसी अस्थिरता के कारण ही भुखमरी और अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
- असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
- अनिश्चितता-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंचकर भारी वर्षा करती हैं। परन्तु कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप देश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 7.
राजस्थान अरब सागर के नज़दीक होते हुए भी शुष्क क्यों रहता है?
उत्तर-
राजस्थान अरब सागर के निकट स्थित है। परन्तु फिर भी यह शुष्क रह जाता है। इसके निम्नलिखित कारण हैं —
- राजस्थान तक पहुंचते-पहुंचते मानसून पवनों में नमी की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है, जिसके कारण ये वर्षा नहीं कर पातीं।
- इस मरुस्थलीय क्षेत्र में तापमान की दशाएं मानसून पवनों को तेजी से प्रवेश नहीं करने देतीं।
- यहां के अरावली पर्वत पवनों की दिशा के समानान्तर स्थित हैं। इनकी ऊंचाई भी कम है। इसलिए ये पवनों को रोक पाने में असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप राजस्थान शुष्क रह जाता है।
प्रश्न 8.
दक्षिणी पश्चिमी व्यापारिक पवनें मौनसून बर्षा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?
उत्तर-
गर्मियों में हिन्द महासागर से आने वाली दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा से पार खिंच आती हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इनकी दिशा बदल जाती है और ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने लगती हैं। 1 जून को ये केरल के तट पर पहुंच कर एकाएक भारी वर्षा करने लगती हैं। इसे ‘मानसून का फटना’ कहा जाता है। पवनों की गति तेज़ होने के कारण ये एक ही मास में पूरे देश में फैल जाती हैं। इस प्रकार लगभग सारा भारत वर्षा के प्रभाव में आ जाता है।
IV. नीचे दिए गये हर प्रश्न का विस्तृत उत्तर दो
प्रश्न 1.
भारत की जलवायु को कौन-कौन से तत्व प्रभावित करते हैं?
उत्तर-
भारत की जलवायु विविधताओं से परिपूर्ण है। इन विविधताओं को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है —
- भूमध्य रेखा से दूरी-भारत उत्तरी गोलार्द्ध में भूमध्य रेखा के समीप स्थित है। परिणामस्वरूप पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर देश के अधिकांश क्षेत्रों में लगभग पूरे वर्ष तापमान ऊंचा रहता है। इसीलिए भारत को गर्म जलवायु वाला देश भी कहा जाता है।
- धरातल-एक ओर हिमालय पर्वत श्रेणियां देश को एशिया के मध्यवर्ती भागों से आने वाली बर्फीली व शीत पवनों से बचाती हैं तो दूसरी ओर ऊंची होने के कारण ये बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसून पवनों के रास्ते में बाधा बनती हैं और उत्तरी मैदान में वर्षा का कारण बनती हैं।
- वायु-दबाव प्रणाली-गर्मियों की ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा की ओर सीधी पड़ने लगती हैं। परिणामस्वरूप देश के उत्तरी भागों में तापमान बढ़ने लगता है और उत्तरी विशाल मैदानों में कम हवा के दबाव (994 मिलीबार) वाले केन्द्र बनने प्रारम्भ हो जाते हैं। सर्दियों में हिन्द महासागर पर कम दबाव पैदा हो जाता है।
- मौसमी पवनें-(i) देश के भीतर गर्मी तथा सर्दी के मौसम में हवा के दबाव में परिवर्तन होने के कारण गर्मियों के छ: महीने समुद्र से स्थल की ओर तथा सर्दियों के छ: महीने स्थल से समुद्र की ओर पवनें चलने लगती हैं।
(ii) धरातल पर चलने वाली इन मौसमी अथवा मानसूनी पवनों को दिशा संचार चक्र अथवा जेट स्ट्रीम भी प्रभावित करता है। इस प्रभाव के कारण ही गर्मियों के चक्रवात और भूमध्य सागरीय क्षेत्रों का मौसमी प्रभाव देश के उत्तरी भागों तक आ पहुंचता है तथा भरपूर वर्षा प्रदान करता है। - हिन्द महासागर से समीपता-(i) सम्पूर्ण देश की जलवायु पर हिन्द महासागर का प्रभाव है। हिन्द महासागर की सतह समतल है। परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा के दक्षिणी भागों से दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनें पूरे वेग से देश की ओर बढ़ती हैं। ये पवनें समुद्री भागों से लाई नमी को सारे देश में वितरित करती हैं।
(ii) प्रायद्वीपीय भाग के तीन ओर से समुद्र से घिरे होने के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में सम जलवायु मिलती है। उससे गर्मियों में कम गर्मी तथा सर्दियों में कम सर्दी पड़ती है।
सच तो यह है कि भारत में गर्म-उष्ण मानसूनी खण्ड (Tropical Monsoon Region) वाली जलवायु मिलती है। इसलिए मानसूनी पवनें भिन्न-भिन्न समय में देश के प्रत्येक भाग में गहरा प्रभाव डालती हैं।
प्रश्न 2.
मौनसून वर्षा की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में वार्षिक वर्षा की मात्रा 118 सेंटीमीटर के लगभग है। यह सारी वर्षा मानसून पवनों द्वारा ही प्राप्त होती है। इस मानसूनी वर्षा की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं हैं —
- वर्षा का समय व मात्रा-देश की अधिकांश वर्षा (87%) मानसून पवनों द्वारा गर्मी के मौसम में प्राप्त होती है। 3% वर्षा सर्दियों में और 10% मानसून आने से पहले मार्च से मई तक हो जाती है। वर्षा ऋतु जून से मध्य सितम्बर के बीच होती है।
- अस्थिरता- भारत में मानसून पवनों से प्राप्त वर्षा भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एकसमान होती रहे। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
- असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी जम्मू-कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
- अनिश्चितता–भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंच कर भारी वर्षा करती हैं। कई स्थानों पर तो बाढ़ तक आ जाती है। कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही खत्म हो जाती है कि सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है।
- शुष्क अन्तराल-कई बार गर्मियों में मानसूनी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिन या सप्ताह के अन्तराल से होती है। इसके फलस्वरूप वर्षा-चक्र टूट जाता है और वर्षा ऋतु में एक लम्बा व शुष्क काल (Long & Dry Spell) आ जाता है।
- पर्वतीय वर्षा-मानसूनी वर्षा पर्वतों के दक्षिणी ढलान और पवनोन्मुखी ढलान (Windward sides) पर अधिक होती है। पर्वतों की उत्तरी और पवनविमुखी ढलाने (Leaward sides) वर्षा-छाया क्षेत्र (Rain-Shadow Zone) में स्थित होने के कारण शुष्क रह जाती हैं।
- मूसलाधार वर्षा-मानसूनी वर्षा अत्यधिक मात्रा में और कई-कई दिनों तक लगातार होती है। इसीलिए ही यह कहावत प्रसिद्ध है कि ‘भारत में वर्षा पड़ती नहीं है बल्कि गिरती है।
सच तो यह है कि मानसूनी वर्षा अनिश्चित तथा असमान स्वभाव लिए हुए है।
प्रश्न 3.
भारत में मिलने वाली विभिन्न ऋतुओं की विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मानसून पवनों द्वारा समय-समय पर अपनी दिशा बदलने के कारण एक ऋतु चक्र का निर्माण होता है। भारतीय मौसम विभाग ने देश की जलवायु को इन पवनों के दिशा बदलने के आधार पर चार ऋतुओं में विभाजित किया है —
- सर्दी का मौसम (मध्य दिसम्बर से फरवरी तक)
- गर्मी का मौसम (मार्च से मध्य जून तक)
- वर्षा का मौसम (मध्य जून से मध्य सितम्बर तक)
- वापिस जाती हुई मानसून पवनों का मौसम (मध्य सितम्बर से मध्य दिसम्बर तक)। भारत की इन मौसमी ऋतुओं की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है
1. सर्दी की ऋतु
- तापमान-इस मौसम में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सीधा चमकता है। इसीलिए भारत के दक्षिणी भागों से उत्तर की ओर तापमान लगातार घटता जाता है।
- वायु का दबाव-सम्पूर्ण उत्तरी भारत में तापमान में गिरावट के कारण उच्च वायु दाब का क्षेत्र पाया जाता है।
कभी-कभी देश के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भागों में निम्नदाब के केन्द्र बन जाते हैं। उन्हें पश्चिमी गड़बड़ी विक्षोभ अथवा चक्रवात कहा जाता है। - पवनें-इस समय मध्य तथा पश्चिमी एशिया के क्षेत्रों में उच्चदाब का केन्द्र होता है। वहां की शुष्क तथा शीत पवनें उत्तर-पश्चिमी भागों में से देश के अन्दर प्रवेश करती हैं। इससे पूरे विशाल मैदानों का तापमान काफ़ी नीचे गिर जाता है। 3 से 5 किलोमीटर प्रति घण्टे की गति से बहने वाली इन पवनों के द्वारा शीत लहर का जन्म होता है।
- वर्षा-सर्दियों में देश के दो भागों में वर्षा होती है। देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू-कश्मीर व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत 20 से 25 सेंटीमीटर तक चक्रवातीय वर्षा होती है। हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, कुमाऊं की पहाड़ियों में हिमपात होता है। दूसरी ओर तमिलनाडु तथा केरल के तटीय भागों में उत्तर-पूर्व मानसून से पर्याप्त वर्षा होती है।
- मौसम-सर्दियों में मौसम सुहावना होता है। दिन मुख्य रूप से गर्म (सम) तथा रातें ठण्डी होती हैं। कभीकभी रात के तापमान में गिरावट आने के कारण सघन कोहरा भी पड़ता है। मैदानी भागों में शीत लहर के प्रभाव के कारण तुषार (Frost) पड़ता है।
2. गर्मी की ऋतु
- तापमान-भारत में गर्मी की ऋतु सबसे लम्बी होती है। 21 मार्च के बाद से ही देश के आन्तरिक भागों का तापमान बढ़ने लगता है। दिन का अधिकतम तापमान मार्च में नागपुर में 38° सें, अप्रैल में मध्यप्रदेश में 40° सें तथा मई-जून में उत्तर-पश्चिम भागों में 45° में से भी अधिक रहता है। रात के समय न्यूनतम तापमान 21 से 27° सें। तक बना रहता है। दक्षिणी भागों का औसत तापमान समुद्र की समीपता के कारण अपेक्षाकृत कम (25° सें०) रहता है।
- वायु का दबाव-तापमान में वृद्धि के कारण हवा के कम दबाव का क्षेत्र देश के उत्तरी भागों की ओर खिसक जाता है। मई-जून में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में कम दबाव का चक्र सबल हो जाता है तथा दक्षिणी ‘जेट’ धारा हिमालय के उत्तर की ओर सरक जाती है। धरातल के ऊपर हवा में भी कम दबाव का चक्र उत्पन्न हो जाता है। कम दबाव के ये दोनों चक्र मानसून पवनों को तेजी से अपनी ओर खींचते हैं।
- पवनें-देश के अन्दर कम दबाव के विशाल क्षेत्र स्थापित हो जाने के कारण गर्म एवं शुष्क स्थानिक (पश्चिमी) पवनें चलने लगती हैं। इसके कारण कभी-कभी तेज़ गरजदार व झखड़दार तूफ़ान आते हैं। बाद दोपहर धूल भरी आंधियां चलती हैं। ये पश्चिमी पवनें शुष्क तथा मरुस्थलीय भागों से होकर आने के कारण बहुत गर्म होती हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में ‘लू’ कहा जाता है। . उत्तर-पश्चिमी भागों से चल रही गर्म व शुष्क लू जब छोटा नागपुर के पठार के पास बंगाल की खाड़ी से आ रही गर्म तथा आर्द्र पवनों के सम्पर्क में आती है तो यह तूफ़ानी चक्रवातों की उत्पत्ति करती है। इन चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में ‘काल-बैसाखी’ कहा जाता है।
- वर्षा-गर्मी की ऋतु में भले ही उत्पन्न हुए चक्रवातों के घेरों से थोड़ी बहुत वर्षा होती है, जिससे लोगों को तेज़ गर्मी से राहत मिलती है। पश्चिमी बंगाल में तेज़ बौछारों से हुई वर्षा बसन्त ऋतु की वर्षा कहलाती है। केरल तथा दक्षिण कर्नाटक में होने वाली पूर्व-मानसूनी वर्षा को स्थानीय भाषा में ‘आम्रवृष्टि’ या ‘फूलों की वर्षा’ कहते हैं।
3. वर्षा ऋतु-वर्षा ऋतु को दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु भी कहते हैं। यह ऋतु जून से लेकर मध्य सितम्बर तक रहती है। इस ऋतु की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —
- भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में निम्न दाब का क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है।
- समुद्र से पवनें भारत में प्रवेश करती हैं और गरज के साथ-साथ घनघोर वर्षा करती हैं।
- आर्द्रता से भरी ये पवनें 30 किलोमीटर प्रति घण्टा की दर से चलती हैं और एक मास के अन्दर-अन्दर पूरे देश में फैल जाती हैं।
- भारतीय प्रायद्वीप मानसून को दो शाखाओं में विभाजित कर देता है-अरब सागर की मानसून पवनें तथा खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें।
- खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में तथा अरब सागर की पवनें पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख (पश्चिमी ढालों) पर अत्यधिक वर्षा करती हैं।
4. पीछे हटते हुए मानसून पवनों का मौसम-भारत में पीछे हटते मानसून की ऋतु अक्तूबर तथा नवम्बर के महीने में रहती है। इस ऋतु की तीन विशेषताएं निम्नलिखित हैं —
- इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता
- भारतीय भू-भागों पर मानसून का प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ने लगता है।
- पृष्ठीय पवनों की दिशा पलटनी शुरू हो जाती है। आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता नोट-विद्यार्थी एक ऋतु के लिए सर्दी या गर्मी की ऋतु का वर्णन करें।
प्रश्न 4.
गर्मी व सर्दी की ऋतु की तुलना करो।
उत्तर-
गर्मी तथा सर्दी की ऋतुएं भारतीय ऋतु चक्र के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी तुलना इस प्रकार की जा सकती है।
- अवधि-भारत में गर्मी की ऋतु मार्च से मध्य जून तक रहती है। इसके विपरीत सर्दी की ऋतु मध्य दिसम्बर से फरवरी तक रहती है।
- तापमान
- वायु का दबाव
- पवनें
- वर्षा।
नोट-इन शीर्षकों का अध्ययन पिछले प्रश्न में करें।
प्रश्न 5.
भारतीय जीवन पर मौनसून पवनों के प्रभाव का उदाहरण सहित वर्णन करो।
उत्तर-
किसी भी देश या क्षेत्र के आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक विकास में वहां की जलवायु का गहरा प्रभाव होता है। इस सम्बन्ध में भारत कोई अपवाद नहीं है। मानसून पवनें भारत की जलवायु का सर्वप्रमुख प्रभावी कारक हैं। इसलिए इनका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। भारतीय जीवन पर इन पवनों के प्रभाव का वर्णन इस प्रकार है —
- आर्थिक प्रभाव-भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। इसके विकास के लिए मानसूनी वर्षा ने एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया है। जब मानसूनी वर्षा समय पर तथा उचित मात्रा में होती है, तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है तथा चारों ओर हरियाली एवं खुशहाली छा जाती है। परन्तु इसकी असफलता से फसलें सूख जाती हैं, देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज के भण्डारों में कमी आ जाती है। इसी प्रकार यदि मानसून देरी से आए तो फसलों की बुआई समय पर नहीं हो पाती जिससे उत्पादन कम हो जाता है। इस तरह कृषि के विकास और मानसूनी वर्षा के बीच गहरा सम्बन्ध बना हुआ है। इसी बात को देखते हुए ही भारत के बजट को मानसूनी पवनों का जुआ (Gamble of Monsoon) भी कहा जाता है।
- सामाजिक प्रभाव-भारत के लोगों की वेशभूषा, खानपान तथा सामाजिक रीति-रिवाजों पर मानसून पवनों का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। मानसूनी वर्षा आरम्भ होते ही तापमान कुछ कम होने लगता है और इसके साथ ही लोगों का पहरावा बदलने लगता है। इसी प्रकार मानसून द्वारा देश में एक ऋतु-चक्र चलता रहता है, जो खान-पान तथा पहरावे में बदलाव लाता रहता है। कभी लोगों को गर्म वस्त्र पहनने पड़ते हैं, तो कभी हल्के सूती वस्त्र।
- धार्मिक प्रभाव-भारतीयों के अनेक त्योहार मानसून से जुड़े हुए हैं। कुछ का सम्बन्ध फसलों की बुआई से है तो कुछ का सम्बन्ध फसलों के पकने तथा उसकी कटाई से। पंजाब का त्योहार बैसाखी इसका उदाहरण है। इस त्योहार पर पंजाब के किसान फसल पकने की खुशी में झूम उठते हैं।
सच तो यह है कि समस्त भारतीय जन-जीवन मानसून के गिर्द ही घूमता है।
प्रश्न 6.
भारत में विशाल मौनसून एकता होते हुए भी क्षेत्रीय विभिन्नताएं क्यों मिलती हैं?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि हिमालय देश को मानसूनी एकता प्रदान करता है परन्तु इस एकता के बावजूद भारत के सभी क्षेत्रों में समान मात्रा में वर्षा नहीं होती। कुछ क्षेत्रों में तो बहुत कम वर्षा होती है। इस विभिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं —
- स्थिति-भारत के जो क्षेत्र पवनोन्मुख भागों में स्थित हैं, वहां समुद्र से आने वाली मानसून पवनें पहले पहंचती हैं और खूब वर्षा करती हैं। इसके विपरीत पवन विमुख ढालों वाले क्षेत्रों में वर्षा कम होती है। उदाहरण के लिए उत्तरपूर्वी मैदानी भागों, हिमाचल तथा पश्चिमी तटीय मैदान में अत्यधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के बहुत-से भागों तथा कश्मीर में कम वर्षा होती है।
- पर्वतों की दिशा-जो पर्वत पवनों के सम्मुख स्थित होते हैं, वे पवनों को रोकते हैं और वर्षा लाते हैं। इसके विपरीत पवनों के समानान्तर स्थित पर्वत पवनों को रोक नहीं पाते और उनके समीप स्थित क्षेत्र शुष्क रह जाते हैं। इसी कारण से राजस्थान का एक बहुत बड़ा भाग अरावली पर्वत के कारण शुष्क मरुस्थल बन कर रह गया है।
- पवनों की दिशा-मानसूनी पवनों के मार्ग में जो क्षेत्र पहले आते हैं, उनमें वर्षा अधिक होती है और जो क्षेत्र बाद में आते हैं, उनमें वर्षा क्रमशः कम होती जाती है। कोलकाता में बनारस से अधिक वर्षा होती है।
- समुद्र से दूरी-समुद्र के निकट स्थित स्थानों में अधिक वर्षा होती है। परन्तु जो स्थान समुद्र से दूर स्थित होते हैं, वहां वर्षा की मात्रा कम होती है।
सच तो यह है कि विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति तथा पवनों एवं पर्वतों की दिशा के कारण वर्षा के वितरण में क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है।
V. भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाओ:
- गर्मियों में कम दबाव के क्षेत्र व पवनों की दिशा।
- सर्दियों की वर्षा क्षेत्र व उत्तर पूर्वी मानसून पवनों की दिशा।
- मासिनराम, जैसलमेर, इलाहाबाद, मद्रास (चेन्नई)।
- कम वर्षा वाले क्षेत्र।
- 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र। उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
PSEB 10th Class Social Science Guide जलवायु Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
भारत के लिए कौन-सा भू-भाग प्रभावकारी जलवायु विभाजक का कार्य करता है?
उत्तर-
भारत के लिए विशाल हिमालय प्रभावकारी जलवायु विभाजक का कार्य करता है।
प्रश्न 2.
भारत कौन-सी पवनों के प्रभाव में आता है?
उत्तर-
भारत उपोष्ण उच्च वायुदाब से चलने वाली स्थलीय पवनों के प्रभाव में आता है।
प्रश्न 3.
वायुधाराओं तथा पवनों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
वायु धाराएं भू-पृष्ठ से बहुत ऊंचाई पर चलती हैं। जबकि पवनें भू-पृष्ठ पर ही चलती हैं।
प्रश्न 4.
उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए कौन-सा तत्त्व उत्तरदायी है?
उत्तर-
इसके लिए 15° उत्तरी अक्षांश के ऊपर विकसित पूर्वी जेट वायुधारा उत्तरदायी है।
प्रश्न 5.
भारत में अधिकतर वर्षा कब से कब तक होती है ?
उत्तर-
भारत में अधिकतर (75 से 90 प्रतिशत तक) वर्षा जून से सितम्बर तक होती है।
प्रश्न 6.
(i) भारत के किस भाग में पश्चिमी चक्रवातों के कारण वर्षा होती है?
(ii) यह वर्षा किस फसल के लिए लाभप्रद होती है?
उत्तर-
(i) पश्चिमी चक्रवातों के कारण भारत के उत्तरी भाग में वर्षा होती है।
(ii) यह वर्षा रबी की फसल विशेष रूप से गेहूं के लिए लाभप्रद होती है।
प्रश्न 7.
पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर-
इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का मर्त्त कमज़ोर पड़ जाता है तथा उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है।
अथवा इस ऋतु में पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्तूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है।
प्रश्न 8.
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की कौन-कौन सी शाखाएं हैं?
उत्तर-
भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की दो मुख्य शाखाएं हैं-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा।
प्रश्न 9.
ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ (मार्च मास) में देश के किस भू-भाग पर तापमान सबसे अधिक होता है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ में दक्कन के पठार पर तापमान सबसे अधिक होता है।
प्रश्न 10.
संसार की सबसे अधिक वर्षा कहां होती है?
उत्तर-
संसार की सबसे अधिक वर्षा मासिनराम (Mawsynram) नामक स्थान पर होती है।
प्रश्न 11.
भारत के किस तट पर सर्दियों में वर्षा होती है?
उत्तर-
कोरोमण्डल।
प्रश्न 12.
भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में किस प्रकार की जलवायु मिलती है?
उत्तर-
सम।
प्रश्न 13.
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हई है?
उत्तर-
मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसम शब्द से हुई है।
प्रश्न 14.
भारत की वार्षिक औसत वर्षा कितनी है?
उत्तर-
118 सें० मी०।
प्रश्न 15.
किस भाग में तापमान लगभग सारा साल ऊंचे रहते हैं?
उत्तर-
दक्षिणी भाग में।
प्रश्न 16.
तूफानी चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में क्या कहा जाता है?
उत्तर-
काल बैसाखी।
प्रश्न 17.
दक्षिणी भारत के केरल व दक्षिणी कर्नाटक में समुद्री पवनों के आ जाने के कारण मोटी-मोटी बूंदों वाली पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है। इसे स्थानीय भाषा में कहा जाता है?
उत्तर-
फूलों की वर्षा।
प्रश्न 18.
देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली धूल भरी स्थानीय पवन का क्या नाम है?
उत्तर-
लू।
प्रश्न 19.
देश की सबसे अधिक वर्षा कौन-सी पहाड़ियों में होती है?
उत्तर-
मेघालय की पहाड़ियों में।
प्रश्न 20.
माउसिनराम की वार्षिक वर्षा की मात्रा कितनी है?
उत्तर-
1141 से० मी०।
प्रश्न 21.
तिरुवन्नतपुरम् की जलवायु सम क्यों है?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि तिरुवन्नतपुरम् सागरीय जलवायु के प्रभाव में रहता है।
प्रश्न 22.
भारत की शीत ऋतु की एक विशेषता बताइए।
उत्तर-
भारत में शीत ऋतु दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी के महीने में होती है। यह ऋतु बड़ी सुहावनी तथा आनन्दप्रद होती है। दिन के समय शीतल मन्द समीर चलती है।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित के नाम लिखिए —
- दक्षिण-पश्चिमी मानसून की अरब सागर वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
- दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित दो स्थान।
- दोनों से प्रभावित दो स्थान।
उत्तर-
- पश्चिमी घाट की पवनाविमुख ढाल, पश्चिमी तटीय मैदान।
- माउसिनराम (मेघालय), चेरापूंजी।
- धर्मशाला, मंडी (हिमाचल प्रदेश)।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- भारत में अधिकतर (75 से 90 प्रतिशत तक) वर्षा जून से …………. तक होती है।
- भारत में पश्चिमी चक्रवातों से होने वाली वर्षा ………….. की फ़सल के लिए लाभप्रद होती है।
- आम्रवृष्टि ……………… की फ़सल के लिए लाभदायक होती है।
- भारत के ………….. तट पर सर्दियों में वर्षा होती है।
- भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में ……………… जलवायु मिलती है।
उत्तर-
- सितम्बर,
- रबी,
- फूलों,
- कोरोमण्डल,
- सम।
III. बहुविकल्पीय
प्रश्न 1.
भारत के दक्षिणी भागों में कौन-सी ऋतु नहीं होती?
(A) गर्मी
(B) वर्षा
(C) सर्दी
(D) बसन्त।
उत्तर-
(C) सर्दी
प्रश्न 2.
तूफानी चक्रवातों को पश्चिमी बंगाल में कहा जाता है —
(A) काल बैसाखी
(B) मानसून
(C) लू
(D) सुनामी।
उत्तर-
(A) काल बैसाखी
प्रश्न 3.
देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली धूल भरी स्थानीय पवन को कहा जाता है —
(A) सुनामी
(B) मानसून
(C) काल वैसाखी
(D) लू।
उत्तर-
(D) लू।
प्रश्न 4.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी वाली शाखा के द्वारा सर्वाधिक प्रभावित है —
(A) चेन्नई
(B) अमृतसर
(C) माउसिनराम
(D) शिमला।
उत्तर-
(C) माउसिनराम
प्रश्न 5.
लौटती हुई तथा पूर्वी मानसून से प्रभावित स्थान है —
(A) चेन्नई
(B) अमृतसर
(C) दिल्ली
(D) शिमला।
उत्तर-
(A) चेन्नई
प्रश्न 6.
सम्पूर्ण भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो महीने हैं —
(A) जून तथा जुलाई ।
(B) जुलाई तथा अगस्त
(C) अगस्त तथा सितम्बर
(D) जून और अगस्त।
उत्तर-
(B) जुलाई तथा अगस्त
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं —
- भारत गर्म जलवायु वाला देश है।
- भारत की जलवायु पर मानसून पवनों का गहरा प्रभाव है।
- भारत के सभी भागों में वर्षा का वितरण एक समान है।
- मानसूनी वर्षा की यह विशेषता है कि इसमें कोई शुष्ककाल नहीं आता।
- भारत में गर्मी का मौसम सबसे लम्बा होता है।
उत्तर-
- (✓),
- (✓),
- (✗),
- (✗),
- (✓).
V. उचित मिलान
- पश्चिमी बंगाल के तूफानी चक्रवात — वर्षा ऋतु
- दिसम्बर से फरवरी तक की ऋतु — लू
- जून से मध्य सितम्बर तक की ऋतु — काल बैसाखी
- देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन — शीत ऋतु
उत्तर-
- पश्चिमी बंगाल के तूफानी चक्रवात — काल बैसाखी,
- दिसम्बर से फरवरी तक की ऋतु — शीत ऋतु
- जून से मध्य सितम्बर तक की ऋतु — वर्षा ऋतु,
- देश के उत्तरी मैदानों में गर्मियों में चलने वाली स्थानीय पवन — लू।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत भारत के लिए किस प्रकार जलवायु विभाजक’ का कार्य करता है?
उत्तर-
हिमालय पर्वत की उच्च श्रृंखला उत्तरी पवनों के सामने एक दीवार की भान्ति खड़ी है। उत्तरी ध्रुव वृत्त के निकट उत्पन्न होने वाली ये ठण्डी और बर्फीली पवनें हिमालय को पार कर के भारत में प्रवेश नहीं कर सकतीं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण उत्तर भारत में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है। अतः स्पष्ट है कि हिमालय पर्वत की श्रृंखला भारत के लिए जलवायु विभाजक का कार्य करती है।
प्रश्न 2.
भारत की स्थिति को स्पष्ट करते हुए देश की जलवायु पर इसके प्रभाव को समझाइए। (कोई तीन बिन्दु)।
उत्तर-
- भारत 8° उत्तर से 37° अक्षांशों के बीच स्थित है। इसके मध्य से कर्क वृत्त गुज़रता है। इसके कारण देश का दक्षिणी आधा भाग उष्ण कटिबन्ध में आता है, जबकि उत्तरी आधा भाग उपोष्ण कटिबन्ध में आता है।
- भारत के उत्तर में हिमालय की ऊंची-ऊंची अटूट पर्वत मालाएं हैं। देश के दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है। इस सुगठित भौतिक विन्यास ने देश की जलवायु को मोटे तौर पर समान बना दिया है।
- देश के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर की स्थिति का भारतीय उप-महाद्वीप की जलवायु पर समताकारी प्रभाव पड़ता है। ये देश में वर्षा के लिए अनिवार्य आर्द्रता भी जुटाते हैं।
प्रश्न 3.
मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण क्या है?
उत्तर-
मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण है-स्थल तथा जल पर विपरीत वायुदाब क्षेत्रों का विकसित होना। ऐसा वायु के तापमान के कारण होता है। हम जानते हैं कि स्थल और जल असमान रूप से गर्म होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग अधिक गर्म हो जाता है। परिणामस्वरूप स्थल भाग के आन्तरिक क्षेत्रों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है जबकि समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है। शीत ऋतु में स्थिति इसके विपरीत होती है। मानसून पवनों की उत्पत्ति तथा दिशा परिवर्तन का मूल कारण यही है।
प्रश्न 4.
पश्चिमी जेट वायुधारा तथा पूर्वी जेट वायुधारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी जेट वायुधारा–यह वायुधारा शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर समताप मण्डल में स्थित होती है। जून मास में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है। तब इसकी स्थिति मध्य एशिया में स्थिति तियेनशान पर्वत श्रेणी के उत्तर में हो जाती है।
पूर्वी जेट वायुधारा-यह वायुधारा पश्चिमी जेट वायुधारा से 15° उत्तर अक्षांश के ऊपर विकसित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए यही वायुधारा उत्तरदायी है।
प्रश्न 5.
उत्तरी भारत में मानसून के ‘फटने’ का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
उत्तरी भारत में मानसून के फटने का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है —
- इसके शीतकारी प्रभाव से देश के इस भाग में पहले से ही उमड़ते-घुमड़ते बादल वर्षण के लिए बाध्य हो जाते
- आकाश में प्राय: 9 किलोमीटर से 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक कपासी मेघ छा जाते हैं।
- आठ-दस दिन के अन्दर सारे भारत में आंधी-तूफान चलने लगते हैं और बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। इससे मानसून के प्रसार का आभास हो जाता है।
प्रश्न 6.
देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में मई मास में आने वाले प्रचण्ड तूफ़ानों का क्या कारण है?
उत्तर-
मई मास में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में लम्बा संकरा निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। कभीकभी निकटवर्ती क्षेत्रों से आर्द्रता से लदी पवनें इस वायुदाब में खिंच आती हैं। इस प्रकार शुष्क तथा आर्द्र वायु राशियों का सम्पर्क होता है जिसके परिणामस्वरूप प्रचण्ड तूफ़ान आते हैं। इन तूफानों के समय तेज़ पवनें चलती हैं तथा मूसलाधार वर्षा होती है। कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं।
प्रश्न 7.
केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व होने वाली वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में ग्रीष्म ऋतु के अन्त में मानसून से पूर्व ही वर्षा होती है। परन्तु इस वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका कारण यह है कि इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब की पेटी का विस्तार रहता है।
प्रश्न 8.
क्या कारण है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा भारत के भू-भाग पर पहुँचते ही बदल जाती है?
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशा भारत के भू-भाग पर पहुंचते ही बदल जाती है। ऐसा उच्चावच तथा उत्तर-पश्चिमी भागों में स्थित निम्न वायुदाब क्षेत्र के प्रभाव के कारण होता है। वास्तव में, भारतीय प्रायद्वीप के कारण इस मानसून की दो शाखाएं हो जाती हैं। इनमें से एक अरब सागर की शाखा और दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा कहलाती है। पहली शाखा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम की ओर आगे बढ़ती है, जबकि दूसरी शाखा दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पूर्व में पहुंचती है।
प्रश्न 9.
भारत की जलवायु किस प्रकार की होती, यदि अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिमालय पर्वत न होते? तापमान तथा वर्षण (वृष्टि) के सन्दर्भ में समझाइए।
उत्तर-
- यदि अरब सागर न होता तो पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग पर अधिक वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त पश्चिमी तटीय भागों के तापमान में विषमता आ जाती।
- यदि बंगाल की खाड़ी न होती तो देश के पूर्वी तट (तमिलनाडु आदि) पर सर्दियों की वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त यहां के तापमान में भी विषमता आ जाती।
- यदि हिमालय पर्वत न होता तो भारत मानसूनी वर्षा से वंचित रह जाता। यहां ठण्ड भी अत्यधिक होती।
प्रश्न 10.
क्या कारण है कि मानसूनी वर्षा लगातार नहीं होती है?
उत्तर-
मानसूनी वर्षा के लगातार न होने का मुख्य कारण है-बंगाल की खाड़ी के शीर्ष क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले चक्रवात तथा भारत की मुख्य भूमि पर उनका प्रवेश। ये चक्रवात प्रायः गंगा के मैदान में स्थित निम्न वायुदाब के गर्त के अक्ष की ओर चलते हैं। परन्तु वायुदाब का यह गर्त उत्तर-दक्षिण की ओर खिसकता रहता है। इसके साथ-साथ वर्षा का क्षेत्र भी बदलता रहता है।
प्रश्न 11.
मानसून की स्वेच्छाचारिता तथा अनिश्चितता को चार उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मानसून की स्वेच्छाचारिता तथा अनिश्चितता से अभिप्राय यह है कि भारत में न तो मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित है और न ही इसके आगमन का समय। उदाहरण के लिए
- यहां बिना वर्षा वाले तथा वर्षा वाले दिनों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है।
- किसी वर्ष भारी वर्षा होती है तो कभी हल्की। परिणामस्वरूप कभी बाढ़ आती है तो किसी वर्ष सूखा पड़ जाता है।
- मानसून का आगमन और वापसी भी अनियमित तथा अनिश्चित है।
- इसी प्रकार कुछ क्षेत्र भारी वर्षा प्राप्त करते हैं, तो कुछ क्षेत्र बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं।
प्रश्न 12.
“भारत एक शुष्क भूमि या रेगिस्तान होता यदि मानसून न होता।” इस कथन को चार बिन्दुओं में समझाइए।
उत्तर-
- भारत की अधिकांश वर्षा उत्तर पश्चिमी मानसून से प्राप्त होती है। इसके अभाव में पूरा उत्तरी मैदान शुष्क भूमि होता।
- पश्चिमी तटीय मैदान वर्षा विहीन होकर शुष्क प्रदेश बन जाते।
- उत्तर-पूर्वी मानसून के अभाव में तमिलनाडु शुष्क प्रदेश में बदल जाता।
- मध्य तथा पूर्वी भारत भी शुष्क प्रदेश बनकर रह जाते।
प्रश्न 13.
“मानसून का निम्न वायुदाब गर्त” से क्या अभिप्राय है? भारत में इसका विस्तार कहा तक होता है?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु में देश के आधे उत्तरी भाग में तापमान बढ़ जाने के कारण वायुदाब कम हो जाता है। परिणामस्वरूप मई के अन्त तक लम्बा संकरा निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। इसी वायुदाब क्षेत्र को ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। इस निम्न वायुदाब गर्त के चारों ओर वायु परिसंचरण होता रहता है।
हमारे देश में इस गर्त का विस्तार उत्तर-पश्चिम में थार मरुस्थल से लेकर दक्षिण-पूर्व में पटना तथा छोटा नागपुर के पठार तक होता है।
प्रश्न 14.
‘आम्रवृष्टि’ और ‘काल बैसाखी’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आम्रवृष्टि-ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा का यह स्थानीय नाम इसलिए पड़ा है क्योंकि यह आम के फलों को शीघ्र पकाने में सहायता करती है।
काल बैसाखी-ग्रीष्म ऋतु में बंगाल तथा असम में भी उत्तरी-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज़ बौछारें पड़ती हैं। यह वर्षा प्रायः सायंकाल में होती है। इसी वर्षा को ‘काल बैसाखी’ कहते हैं। इसका अर्थ है-बैसाख मास का काल।
प्रश्न 15.
दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा पर उच्चावच का गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 250 सें. मी० से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत इस घाट की पवनविमुख ढालों पर केवल 50 सें मी० वर्षा होती है। इसी प्रकार देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिमालय की उच्च पर्वत श्रृंखलाओं तथा इसके पूर्वी विस्तार के कारण भारी वर्षा होती है। परन्तु उत्तरी मैदानों में पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हए वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
प्रश्न 16.
उत्तरी भारत में शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा उत्पन्न मौसमी दशाएं उत्तर-पूर्वी पवनों से किस प्रकार भिन्न हैं? कारणों सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभों के द्वारा शीत बढ़ जाती है तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है। उत्तरी-पूर्वी मानसून पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इनमें जलकण नहीं होते। अत: यह वर्षा नहीं करतीं। केवल खाड़ी बंगाल को लांघने वाली उत्तरी-पूर्वी पवनें जल कण सोख लेती हैं और दक्षिण-पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं।
प्रश्न 17.
कारण सहित बताइए कि राजस्थान और दक्कन पठार के भीतरी भागों में वर्षा कम क्यों होती है?
उत्तर-
राजस्थान में अरावली पर्वत के समानान्तर दिशा में स्थित होने के कारण अरब सागर से आने वाली मानसून पवनें बिना रोक-टोक गुज़र जाती हैं जिससे राजस्थान शुष्क रह जाता है। दक्कन पठार का भीतरी भाग वृष्टिछाया में स्थित है। यहां पहुंचते-पहुंचते पवनें जल कणों से रिक्त हो जाती हैं। इसलिए ये पवनें वर्षा करने में असमर्थ होती हैं।
प्रश्न 18.
भारत में पीछे हटते हुए मानसून ऋतु की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में पीछे हटते मानसून की ऋतु अक्तूबर तथा नवम्बर के महीने में रहती है। इस ऋतु की तीन विशेषताएं निम्नलिखित हैं
- इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और उसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है।
- भारतीय भू-भागों पर मानसून का प्रभाव क्षेत्र सिकुड़ने लगता है।
- पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है।
प्रश्न 19.
भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
कम वर्षा वाले क्षेत्रों से अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है, जहां 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।
- पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्र।
- सह्याद्रि के पूर्व में फैले दक्कन के पठार के आन्तरिक भाग।
- कश्मीर में लेह के आस-पास का प्रदेश।
प्रश्न 20.
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) में अरब सागर की मानसून शाखा तथा शिलांग में खाड़ी बंगाल की मानसून शाखा द्वारा वर्षा होती है। ये शाखाएं इन स्थानों पर जून मास में सक्रिय हो जाती हैं तथा जुलाई के आते-आते आगे बढ़ जाती हैं। इसी कारण इन दोनों स्थानों पर जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा होती है।
प्रश्न 21.
जुलाई में त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम् ) की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) तथा मुम्बई (बम्बई) में अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा वर्षा होती है। ये पवनें जून में सक्रिय होती हैं और धीरे-धीरे आगे बढ़ती जाती हैं क्योंकि त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) इनके मार्ग में मुम्बई से पहले आता है। इसलिए ये पवनें जून मास में त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) में तथा जुलाई मास में मुम्बई में अधिक वर्षा करती हैं।
प्रश्न 22.
शीतकाल में तमिलनाडु में अधिक वर्षा क्यों होती है?
उत्तर-
तमिलनाडु में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में बहुत कम वर्षा होती है। वहां अधिकतर वर्षा शीतकाल की उत्तरी-पूर्वी मानसून द्वारा होती है। ये पवनें यूं तो शुष्क होती हैं, परन्तु खाड़ी बंगाल के ऊपर से गुजरते समय ये पर्याप्त आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं और पूर्वी घाट से टकराकर पूर्वी तट पर स्थित तमिलनाडु में काफ़ी वर्षा करती हैं। इस प्रकार तमिलनाडु में शीतकाल में अधिक वर्षा होती है।
प्रश्न 23.
दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम् ) और शिलांग में वर्ष के नौ महीनों तक वर्षा होती है। क्यों?
उत्तर-
दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा केवल आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में होती है। इन नगरों में इस ऋतु की अवधि केवल तीन मास की होती है। इसके विपरीत त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) एक तटीय प्रदेश है तथा शिलांग एक पर्वतीय प्रदेश। इन प्रदेशों में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु के साथ-साथ पीछे हटते मानसून की ऋतु तथा ग्रीष्म ऋतु के अन्त में भी पर्याप्त वर्षा होती है। इस प्रकार इन स्थानों पर वर्षा की अवधि लगभग 9 मास होती है।
प्रश्न 24.
भारत में वर्षण के वार्षिक वितरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वर्षण से अभिप्राय वर्षा, हिमपात तथा आर्द्रता के अन्य रूपों से है। भारत में वर्षण का वितरण बहुत ही असमान है। भारत के पश्चिमी तट तथा उत्तर पूर्वी भागों में 300 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सें० मी० से भी कम है। इसी प्रकार दक्कन के पठार के आन्तरिक भागों तथा लेह (कश्मीर) के आसपास के प्रदेशों में भी बहुत कम वर्षा होती है। देश के शेष भागों में साधारण वर्षा होती है। हिमपात हिमालय के उच्च क्षेत्रों तक सीमित रहता है।
जलवायु PSEB 10th Class Geography Notes
- भारत में जलवायु की दशाएं- भारत में जलवायु की विविध दशाएं पाई जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी मरुस्थल में इतनी गर्मी पड़ती है कि तापमान 550 से० तक पहुंच जाता है। इसके विपरीत शीत ऋतु में लेह के आसपास इतनी अधिक ठण्ड पड़ती है कि तापमान हिमांक से भी 45° सें० नीचे चला जाता है। ऐसा ही अन्तर वर्षण में भी देखने को मिलता है।
- जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक-हमारी जलवायु को मुख्य रूप से चार कारक प्रभावित करते हैं-स्थिति, उच्चावच, पृष्ठीय पवनें तथा उपरितन वायु धाराएं। देश के उत्तर में ऊंचीऊंची अटूट पर्वत मालाएं हैं तथा दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है। इस संगठित भौतिक विन्यास ने देश की जलवायु को मोटे तौर पर समान बना दिया है।
- पृष्ठीय पवनें तथा जेट वायु धाराएं-पृष्ठीय पवनें भू-पृष्ठ पर चलती हैं। परन्तु जेट वायु धाराएं ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तेज़ गति से चलने वाली पवनें होती हैं। ये बहुत ही संकरी पट्टी में चलती हैं। भारत की जलवायु पर इन जलधाराओं का गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मानसून का अर्थ-‘मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है-ऋतु। इस प्रकार मानसून से अभिप्राय एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह उलट जाती है।
- मानसून प्रणाली-मानसून की रचना उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग पर वायुदाब की विपरीत स्थिति के कारण होती है। वायुदाब की यह स्थिति बदलती भी रहती है। इसके कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति बदल जाती है। इस प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं। इसके अतिरिक्त जेट वायुधाराएं भी मानसून के रचनातन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- भारत की ऋतुएं-भारत के वार्षिक ऋतु चक्र में चार प्रमुख ऋतुएं होती हैं-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, आगे बढ़ते मानसून की ऋतु तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु।
- शीत ऋतु-लगभग सारे देश में दिसम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में देश के ऊपर उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं। इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर तापमान घटता जाता है। कुछ ऊंचे स्थानों पर पाला पड़ता है। शीत ऋतु में चलने वाली उत्तरी पूर्वी पवनों द्वारा केवल तमिलनाडु राज्य को लाभ पहुंचता है। ये पवनें खाड़ी बंगाल से गुजरने के बाद वहां पर्याप्त वर्षा करती हैं।
- ग्रीष्म ऋतु-यह ऋतु मार्च से मई तक रहती है। मार्च मास में सबसे अधिक तापमान (लगभग 38° सें०) दक्कन के पठार पर होता है। धीरे-धीरे ऊष्मा की यह पेटी उत्तर की ओर खिसकने लगती है और उत्तरी भाग में तापमान बढ़ता जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा संकरा निम्न वायु दाब क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिसे ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में चलने वाली गर्म-शुष्क पवनें (लू), केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली ‘आम्रवृष्टि’ और बंगाल तथा असम की ‘काल बैसाखी’ ग्रीष्म ऋतु की अन्य मुख्य विशेषताएं हैं।
- आगे बढ़ते मानसून की ऋतु-यह ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है। देश में दक्षिण-पश्चिमी मानसून चलती है जो दो शाखाओं में भारत में प्रवेश करती है-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा। ये पवनें देश में पर्याप्त वर्षा करती हैं। उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा होती है, जबकि देश के कुछ उत्तरी-पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं। जुलाई तथा अगस्त के महीनों में देश की 75 से 90 प्रतिशत तक वार्षिक वर्षा हो जाती है। गारो तथा खासी की पहाड़ियों की दक्षिणी श्रेणी के शीर्ष पर स्थित मसीनरम में संसार भर में सबसे अधिक वर्षा होती है। दूसरा स्थान यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित चेरापूंजी को प्राप्त है। दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा भारी वर्षा होती है।
- पीछे हटते मानसून की ऋतु-अक्तूबर तथा नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे हटने लगता है। क्षीण हो जाने के कारण इसका प्रभाव कम हो जाता है। पृष्ठीय पवनों की दिशा भी उलटने लगती है। आकाश साफ़ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है। उच्च तापमान तथा भूमि की आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इसे क्वार की उमस’ कहते हैं। इस ऋतु में दक्षिणी प्रायद्वीप के तटों पर उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भारी वर्षा करते – हैं। इस प्रकार ये बहुत ही विनाशकारी सिद्ध होते हैं।
- वर्षण का वितरण-भारत में सबसे अधिक वर्षा पश्चिमी तटों तथा उत्तरी पूर्वी भागों में होती (300 सें. मी० से भी अधिक) है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। देश के उच्च भागों (हिमालय क्षेत्र) में हिमपात होता है। वर्षण की यह मात्रा प्रति वर्ष घटती बढ़ती रहती है। मानसून की स्वेच्छाचारिता के कारण कहीं तो भयंकर बाढ़ें आ जाती हैं और कहीं सूखा पड़ जाता है।