PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में मानवीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए किये गए प्रबन्धों का विस्तारपूर्वक वर्णन करो। (Write the arrangements made for the Protection of Human Rights in India in detail.)
अथवा
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा सम्बन्धी कौन-से कदम उठाए गए हैं ? (What arrangements have been made in India for the Protection of Human Rights ?)
अथवा
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए उठाये गए कोई छः कदमों का वर्णन कीजिए। (Describe any six steps taken in India for the protection of Human Rights.)
उत्तर-
मानवधिकारों का अर्थ-मानवाधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियां हैं जिनमें रहकर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके। मानवाधिकारों की व्याख्या अत्यन्त विशाल है। इसमें मानव जीवन पर प्रभाव डालने वाले व्यापक वातावरण को शामिल किया जाता है। मानव अधिकारों के बिना कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। मानव अधिकारों से हमारा तात्पर्य चार प्रकार के अधिकरों से है-(1) ऐसे अधिकार जो प्रत्येक मानव में जन्म-जात होते हैं और उसके जीवन का अभिन्न अंग होते हैं। (2) ऐसे अधिकार जो मानव जीवन और उसके विकास के लिए आधारभूत होते हैं। (3) ऐसे अधिकार जिनके उपभोग के लिए उचित सामाजिक दशाओं का होना एक पूर्व शर्त है। (4) ऐसे अधिकार जिन्हें मानव की प्राथमिक आवश्यकता और मांगों के रूप में प्रत्येक राज्य को अपने संविधान तथा कानूनों में सम्मिलित कर लेना चाहिए।

भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए किए गए प्रबन्ध-व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास, सम्मान, गौरव व समस्त मानवता के कल्याण के लिए मानवाधिकारों का होना अत्यावश्यक है। मानवाधिकार का अस्तित्व एवं रक्षा उपाय किसी सभ्यता के उत्थान अथवा पतन को इंगित करते हैं। सहिष्णुता, अहिंसा, प्रेम, बंधुत्व, स्वतन्त्रता और सर्वधर्म स्वभाव भारतीय सभ्यता के अटूट अंग रहे हैं। परन्तु समय-समय पर विदेशी आक्रांताओं ने भारतीयों के अधिकारों का हनन किया है। औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीयों का दमन किया गया और मानवाधिकार नाम की कोई चीज़ नहीं रह गई थी। परन्तु स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान ही प्रबुद्ध भारतीयों का पश्चिमी देशों के साथ सम्पर्क हुआ और भारत में भी मानवाधिकारों के प्रति एक नई समझ-बूझ पैदा हुई। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान धार्मिक नेताओं, सामाजिक सुधारकों व शिक्षा शास्त्रियों ने स्वतन्त्रता व अधिकारों का जोर-शोर से प्रचार किया। ब्रिटिश दमनकारी नीतियों ने बच्चों, स्त्रियों पुरुषों, श्रमिकों, किसानों इत्यादि पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बहुत अधिक प्रभाव डाला। भारत में पहली बार 1928 में ‘सर्व दलीय बैठक’ में मानवाधिकारों की मांग की गई, परन्तु ब्रिटिश सरकार द्वारा इसे ठुकरा दिया गया। 1935 में भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत भी इस मांग को ठुकरा दिया गया।

भारतीय संविधान निर्माता मानवाधिकारों के प्रति सचेत थे और इनका महत्त्व समझते थे। इसीलिए संविधान सभा के सदस्यों, जो मानवाधिकारों के प्रमुख समर्थक थे, ने नए संविधान में जान-बूझ कर नागरिकों के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की। संविधान निर्माताओं का यह विचार था कि यदि संविधान में मौलिक अधिकारों को स्थान न दिया गया तो वह पंगु रहेगा और विश्व की प्रेरणाओं का स्रोत नहीं बन पाएगा।

भारतीय संविधान भाग-III में अनुच्छेद 14 से 32 तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। ये अधिकार हैं
(1) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18), (2) स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22), (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24), (4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28), (5) सांस्कृतिक व शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद 29-30), (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) । संविधान द्वारा बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को समान रूप से मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। इन अधिकारों द्वारा राज्य की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाया गया है। विशेष रूप से कमजोर वर्गों, महिलाओं, बच्चों, अल्पसंख्यकों आदि के मानवाधिकारों के लिए विशेष कदम उठाने के प्रबन्ध भी किए गए हैं। इसके अतिरिक्त संविधान के भाग-IV में निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राज्य अपनी नीति का निर्धारण इस प्रकार से करेगा कि सामाजिकआर्थिक न्याय की प्राप्ति हो सके।

भारत में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए उठाये गए कदम- भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं

  1. मौलिक अधिकारों की व्यवस्था- भारत के संविधान में छः मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं। मौलिक अधिकारों की अवहेलना पर नागरिकों को न्यायालय में पांच प्रकार की याचिकाएं (Writs) दायर करने का अधिकार दिया गया है।
  2. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना- भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई हैं।
  3. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग-मानव अधिकारों की रक्षा के लिए भारत में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गई है।
  4. राष्ट्रीय महिला आयोग- भारत में महिला अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है।
  5. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग- भारत में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई है।
  6. स्वतन्त्र न्यायपालिका-भारत में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है। न्यायपालिका मानव अधिकारों की प्रहरी के रूप में कार्य करती है।

निःशस्त्रीकरण का अर्थ एवं आवश्यकता
(Meaning and Need of Disarmament)

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

प्रश्न 2.
निःशस्त्रीकरण से आप क्या समझते हो ? आधुनिक युग में इसकी क्या आवश्यकता है ?
(What do you mean by Disarmament ? Discuss the necessity of Disarmament in Present World.)
उत्तर-
नि:शस्त्रीकरण आज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की ज्वलंत समस्या है जो कि निरन्तर विचार-विमर्श के बावजूद भी गम्भीर बनी हुई है। क्योंकि 20वीं शताब्दी में शस्त्रों के उत्पादन ने बड़ा भयानक रूप धारण कर लिया है, जिसके कारण मानव सभ्यता अपने आपको बारूद के ढेर पर बैठी हुई अनुभव करती है जो कि किसी भी क्षण सम्पूर्ण मानव सभ्यता को नष्ट कर सकती है। शस्त्रों की दौड़, खासतौर पर आण्विक शस्त्रों की दौड़ इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इसके कारण ‘पागलपन’ (Madness) की स्थिति पैदा हो गई है। इसीलिए आज विश्व समुदाय निःशस्त्रीकरण के ऊपर ज़ोर दे रहा है और यही समय की मांग है।

निःशस्त्रीकरण का अर्थ (Meaning of Disarmament)-साधारण शब्दों में नि:शस्त्रीकरण से हमारा अभिप्राय: “शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों के उन्मूलन से है।” यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य हथियारों के अस्तित्व और उनकी प्रकृति से उत्पन्न कुछ खास खतरों को कम करना है। इससे हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियन्त्रण करने या उन्हें कम करने का विचार प्रकट होता है। निःशस्त्रीकरण का लक्ष्य आवश्यक रूप से निरस्त्र कर देना नहीं है। इसका लक्ष्य तो यह है कि जो भी हथियार इस समय उपस्थित हैं, उनके

(1) मॉरगेंथो (Morgenthau) के शब्दों में, “निःशस्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करता है ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अन्त हो।”
(2) वी० वी० डायक (V.V. Dyke) के मतानुसार, “सैनिक शक्ति से सम्बन्धित किसी भी तरह के नियन्त्रण अथवा प्रतिबन्ध लगाने के कार्य को नि:शस्त्रीकरण कहा जाता है।”
(3) वेस्ले डब्ल्यू ० पोस्वार (Wesley W. Posvar) ने अपने एक लेख “The New Meaning of Arms Control’ में लिखा है कि, “निःशस्त्रीकरण से हमारा अभिप्रायः सेनाओं और शस्त्रों को घटा देने या समाप्त कर देने से है जबकि शस्त्र-नियन्त्रण में वे सभी उपाय शामिल हैं जिनका उद्देश्य युद्ध के संभावित और विनाशकारी परिणामों को रोकना है। इसमें सेनाओं तथा शस्त्रों के घटाने या न घटाने को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है।”

निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता (NECESSITY OF DISARMAMENT):
निम्न कारणों से निःशस्त्रीकरण को आवश्यक माना जाता है-
1. विश्व शान्ति व सुरक्षा के लिए-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शान्ति व सुरक्षा की स्थापना सम्भव है।

2. निःशस्त्रीकरण आर्थिक विकास में सहायक-विश्व के अधिकांश विकसित व अविकसित राष्ट्र अपने धन यदि विकासशील देश निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हुए निःशस्त्रीकरण के रास्ते पर चलें तो इसके कारण इन देशों का बहुत आर्थिक विकास हो सकता है क्योंकि ये देश जितना धन अपनी रक्षा पर खर्च करते हैं वही धन ये अपने आर्थिक विकास पर खर्च करें तो शीघ्र ही यह आर्थिक शक्ति बन सकते हैं।

3. निःशस्त्रीकरण अंतर्राष्ट्रीय तनाव को कम करता है-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में कमी आती है क्योंकि शस्त्रों की होड़ के कारण प्रत्येक राष्ट्र अधिक-से-अधिक हथियार एकत्रित करने की सोचता है। हैडली बुल के अनुसार शस्त्रों की होड़ स्वयं तनाव की सूचक है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय तनाव को कम करने व आपसी सहयोग की वृद्धि के लिए आवश्यक है कि नि:शस्त्रीकरण पर बल दिया जाए।

4. निःशस्त्रीकरण उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का अन्त करने में सहायक है-जब एक देश के पास बड़ी मात्रा में हथियार जमा होने लगते हैं तो वह इनका प्रयोग अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने में करने लगता है। इसके कारण ही उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद की बुराइयां पैदा हो जाती हैं क्योंकि साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद शक्ति बढ़ाने के ही दूसरे रूप हैं। यदि राष्ट्र निःशस्त्रीकरण पर बल देंगे तो शक्तिशाली राष्ट्र कभी भी अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की नहीं सोचेंगे जिसके कारण उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का अन्त होगा तथा राष्ट्रों के मध्य आपसी सहयोग व शान्ति का वातावरण बनेगा।

5. लोक-कल्याण को बढ़ावा-सभी राष्ट्र चाहे वह विकसित हों या विकासशील शस्त्रों पर धन व्यय करते हैं। यदि विकासशील देश निःशस्त्रीकरण की नीति पर चलें तो वह प्रति वर्ष अपने करोड़ों डालर बचा कर उन्हें लोककल्याण के कार्यों पर खर्च कर सकते हैं।

6. विदेशी इस्तक्षेय को रोकता है-जब बड़े शष्ट्र शास्त्रों का भारी मात्रा में निर्माण कर लेते है तो इन्हें दूसरे देशों व अविकसित देशों में बेचते हैं। कुछ अविकसित देश इन देशों से नवीन तकनीक के सैन्य उपकरणों का आयात करते हैं। इसके कारण वह उन विकासशील देशों के आंतरिक मामलों में दखल-अंदाज़ी करते हैं। अत: विकासशील देशों में महाशक्तियों के बढ़ते हुए हस्तक्षेप को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि यह देश मिलकर निःशस्त्रीकरण पर बल दें।

7. सैनिकीकरण को रोकता है-प्रायः देखा जाता है कि शस्त्रों की होड़ सैनिकीकरण को जन्म देती है। आज प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए लाखों की सेना एकत्रित करता है। अतः बढ़ते हुए सैनिकीकरण को रोकने के लिए नि:शस्त्रीकरण बहुत आवश्यक है।

8. सैनिक गठबन्धनों को रोकता है-निःशस्त्रीकरण सैनिक गठबन्धनों को रोकता है। द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद शस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इसके दौरान कई सैनिक गठबन्धन हुए जिनमें नाटो, सीटो, सेंटो, एंजुस गठबन्धन अमेरिका के द्वारा किए गए। परन्तु जैसे ही 1985 के बाद गोर्बोच्योव-रीगन के मध्य वार्ता आरम्भ हुई तो इसमें निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई और धीरे-धीरे नाटो को छोड़कर सभी सैनिक गठबन्धन समाप्त हो गए हैं। अतः स्पष्ट है कि नि:शस्त्रीकरण सैनिक गठबन्धनों को रोकता है।

9. परमाणु युद्ध से बचाव के लिए आवश्यक-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 7 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने नागासाकी पर और 9 अगस्त, 1945 को हिरोशीमा पर परमाणु बम गिराए। इसके कारण भयंकर नरसंहार हुआ। इसके पश्चात् 1949 में सोवियत संघ ने, 1954 में ब्रिटेन ने, 1959 में फ्रांस ने तथा 1963 में चीन ने परमाणु बम का आविष्कार किया। इन देशों ने मिलकर ‘परमाणु क्लब’ बना लिया और परमाणु क्षमता पर अपना एकाधिकार जमाए रखा। इसका मुख्य कारण था कि परमाणु शक्ति का प्रसार न हो। परन्तु धीरे-धीरे भारत, इज़राइल, ब्राज़ील, दक्षिणी अफ्रीका, ईराक, पाकिस्तान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों ने भी परमाणु क्षमता प्राप्त कर ली जिसके कारण परमाणु युद्ध होने के आसार बढ़ गए। इसके कारण परमाणु क्लब के सदस्य राष्ट्रों को चिंता हुई और उन्होंने परमाणु युद्ध को रोकने के लिए नि:शस्त्रीकरण पर बल दिया। इस दिशा में व्यापक परमाणु प्रसार निषेध सन्धि (C.T.B.T.) उल्लेखनीय है। 1985 में गोर्बोच्योव-रीगन के मध्य शान्ति वार्ता आरम्भ हुई और इसके कारण निःशस्त्रीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई और परमाणु युद्ध का भय टल गया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

प्रश्न 3.
भूमण्डलीय निःशस्त्रीकरण के उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में भारत की भूमिका.का वर्णन कीजिए। (Describe the role played by India in achieving the objective of Global Disarmament.)
अथवा
भारत द्वारा निःशस्त्रीकरण की दिशा में उठाए गए कदमों का वर्णन करें। (Explain steps taken by India towards Disarmaments.)
उत्तर-
भारत शान्तिप्रिय देश है। भारत की विदेश नीति का मूल उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा कायम रखना तथा उसे प्रोत्साहित करना है। भारत की मूल नीति यह है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व-शान्ति को बनाए रखा जा सकता है और अणुशक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए ही होना चाहिए। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार ने अणु बमों के बनाने और उनके परीक्षणों का घोर विरोध किया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में सदैव महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र में अणु बम तथा परमाणु शस्त्र बनाने के विरुद्ध सदैव आवाज़ उठायी है और उन प्रस्तावों का समर्थन किया है जो इनके परीक्षण पर रोक लगाते हैं। 14 जुलाई, 1966 को मास्को में भाषण देते हुए प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि, “परमाणु शस्त्रीकरण का वास्तविक उत्तर पूर्ण निःशस्त्रीकरण है। इस विश्व-व्यापी समस्या का समाधान अविलंब किया जाना है।”

संयुक्त राष्ट्र निःशस्त्रीकरण सम्मेलन (1978)–मई-जून, 1978 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा के नि:शस्त्रीकरण से सम्बन्धित अधिवेशन में भारत के प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने पूर्ण निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया। प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने 9 जून, 1978 में घोषणा की कि-“हमने अपने आप से संकल्प लिया है कि हम परमाणु हथियारों का निर्माण नहीं करेंगे और न ही इन्हें कहीं से प्राप्त करेंगे।”

संयुक्त राष्ट्र निःशस्त्रीकरण सम्मेलन (1982)-जून, 1982 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में निःशस्त्रीकरण की समस्या पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने परमाणु अस्त्रों पर रोक लगाने के बारे में एक पाँच सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसकी संयुक्त राष्ट्र में बहुत प्रशंसा की गई।

निःशस्त्रीकरण पर विश्व सम्मेलन-भारत ने अगस्त, 1987 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा न्यूयार्क में आयोजित, नि शत्रीकरण पर आयोजित विश्व सम्मेलन में भाग लिया। भारत के विदेश राज्य मन्त्री नटवर सिंह ने अपने भाषण के दौरान सैन्य प्रतिस्पर्धा को समाप्त करके विश्व को विनाश से बचाने की अपील की।

प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के निःशस्त्रीकरण के लिए किए गए प्रयास-प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने कई बार स्पष्ट शब्दों में कहा कि नि:शस्त्रीकरण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वे सामूहिक विध्वंस करने वाले परमाणु हथियारों पर पाबंदी लगाने के पक्ष में थे। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने अक्तूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में बोलते हुए पुन: परमाण्विक निःशस्त्रीकरण की अपील की और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परमाणु आयुध सम्पन्न सभी राष्ट्र अपने समस्त आयुधों और उन्हें फेंकने के उपकरणों को नष्ट कर दें और भविष्य में उन्हें न बनाने का आश्वासन दें। भारत ने 29 अक्तूबर, 1987 को महासभा की नि:शस्त्रीकरण मामलों की समिति में प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा परमाणु हथियार वाले सभी देशों को इन हथियारों का प्रसार रोकने के लिए सहमत कराये। जून, 1988 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने नि:शस्त्रीकरण पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे विश्व सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए आगामी 22 वर्ष के भीतर विश्व के सभी तरह के परमाणु हथियार हटाने के लिए तीन चरण में समयबद्ध कार्यक्रम योजना का सुझाव दिया तथा संयुक्त राष्ट्र से इस योजना को तत्काल एक कार्यक्रम के रूप में आरंभ करने का आग्रह किया।

गुट-निरपेक्ष देशों का 11वाँ शिखर सम्मेलन-1995 में गुट-निरपेक्ष देशों.के 11वें शिखर सम्मेलन में भारत ने विश्व से पूर्ण परमाणु निःशस्त्रीकरण के पक्ष में सहयोग देने की बात कही। भारत पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के पक्ष में है। परन्तु भारत ने 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध सन्धि पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। ये सन्धि समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन करती है क्योंकि ये सन्धि परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों और परमाणु शक्ति विहीन देशों में भेदभाव करती है। भारत परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाने के पक्ष में है परन्तु साथ में भारत ये भी चाहता है कि जिन देशों के पास परमाणु हथियार हैं, वे उन्हें समयबद्ध कार्यक्रम के आधार पर नष्ट करें। अतः भारत पूर्ण नि:शस्त्रीकरण का महान् समर्थक है।

भारत ने सन् 1998 में पांच परमाणु परीक्षण किये तथा साथ यह घोषणा कि वह परमाणु विहीन राष्ट्रों पर परमाणु हमला नहीं करेगा। वर्तमान समय में भी भारत निःशस्त्रीकरण के लिए निरन्तर कदम उठा रहा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में वैश्वीकरण (संसारीकरण ) की चार विशेषताओं का वर्णन करें। (What do you mean by Globalisation ? Explain four features of Globalisation in India.)
उत्तर-
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में संचार क्रान्ति ने समूचे विश्व की दूरियां कम कर दी और समस्त संसार को ‘सार्वभौमिक ग्राम’ (Global Village) में परिवर्तित कर दिया। इस युग में एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ जिसे वैश्वीकरण (Globalisation) कहा जाता है। यद्यपि भारत दगा विचारधारा से अनभिज्ञ नहीं है क्योंकि हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ को मान्यता प्रदान करती है, लेकिन आधुनिक युग में वैश्वीकरण का विशेष महत्त्व है। अध्ययनों से यह स्पष्ट हो जाता है वैश्वीकरण तुलनात्मक लागत-लाभ (Comparative Cost) के सिद्धान्त का आधुनिक संस्करण है। इसका प्रतिपादन प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया था ताकि ग्रेट ब्रिटेन को पिछड़े देशों और अपने उप-निवेशों में निर्बाध रूप से वस्तुओं के निर्यात-आयात का सैद्धान्तिक आधार मिल सके। इसके पीछे यह तर्क दिया गया कि विशेषीकरण के परिणामस्वरूप आपस में व्यापार सम्बन्ध रखने वाले सभी देशों को लाभ होगा। यही तर्क अब

वैश्वीकरण के समर्थक दे रहे हैं। – वैश्वीकरण की परिभाषा एवं अर्थ-वैश्वीकरण की अवधारणा को विचारकों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है

(1) ऐन्थनी गिडंस (Anthony Giddens) के मतानुसार वैश्वीकरण की अवधारणा को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है
(i) वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्वव्यापी सम्बन्धों के प्रबलीकरण से है।
(ii) वैश्वीकरण एक ऐसी अवधारणा है जो दूरस्थ प्रदेशों को इस प्रकार जोड़ देती है कि स्थानीय घटनाक्रम का प्रभाव मीलों दूर स्थित प्रदेशों की व्यवस्थाओं एवं घटनाओं पर पड़ता है।
(2) रोबर्टसन (Robertson) के अनुसार वैश्वीकरण, विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।
(3) वैश्वीकरण से आशय है “व्यापार, पूंजी एवं टेक्नालॉजी के प्रवाहों के माध्यम से घरेलू अर्थव्यवस्था का शेष संसार के साथ एकीकरण एवं समन्वय।”

साधारण शब्दों में वैश्वीकरण से अभिप्राय किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक संपदा का एक देश से दूसरे के साथ अप्रतिबन्धित आदान-प्रदान है। वैश्वीकरण की अवधारणा के कारण विश्व के देश एक-दूसरे के निकट आए हैं तथा यह एक विश्व, एक राज्य, एक इकाई एवं विश्व शान्ति की ओर प्रभावी कदम है। वैश्वीकरण की अवधारणा के कारण विश्व की समस्याओं को सुलझाना आसान हो गया है।

वैश्वीकरण की विशेषताएं (Features of Globalisation)—वैश्वीकरण की अवधारणा की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण की प्रक्रिया की विशेषता ही नहीं, अपितु इसका परिणाम भी है।
  • विश्वव्यापी संगठनों का उद्भव वैश्वीकरण की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता है। इस प्रक्रिया के चलते विश्व व्यापार संगठन (W.T.O) 1 जनवरी, 1995 को अस्तित्व में आया।
  • सूचना एवं संचार के क्षेत्र में क्रान्ति वैश्वीकरण की प्रक्रिया की विशेषता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा के लिए विकसित अन्तर्राष्ट्रीय कानून वैश्वीकरण की अवधारणा का ही एक अंग है।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक लक्षण हैं।
  • भौगोलिक सीमाओं के महत्त्व का विघटन भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया की एक विशेषता है एवं यह इस प्रक्रिया का परिणाम भी है।
  • विदेशी निवेश में वृद्धि भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया का लक्षण है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बढ़ावा वैश्वीकरण की प्रक्रिया की विशेषता है।
  • विकसित तकनीक वैश्वीकरण की एक विशेषता है।
  • वैश्वीकरण की अन्य विशेषता प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था है।
    अतः वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने आज संसार का नक्शा ही बदल दिया है और विश्व के सभी समुदायों को निकट ला विश्व समाज की स्थापना की है।

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प्रश्न 5.
वैश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत ने वैश्वीकरण की नीति क्यों अपनाई है ? (What do you mean by Globalisation ? Why India adopted the Policy of Globalisation?)
उत्तर-
वैश्वीकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं0 4 देखें। भारत ने वैश्वीकरण की नीति क्यों अपनाई ?–भारत ने निम्नलिखित कारणों से वैश्वीकरण की नीति अपनाई है-

  • वैश्वीकरण की नीति अपनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रतियोगी बन जायेगी।
  • वैश्वीकरण की नीति अपनाने से भारत में विदेशी धन एवं तकनीक का आयात हो सकेगा, जो भारत के विकास के लिए सहायक सिद्ध होगा।
  • वैश्वीकरण के कारण विभिन्न उत्पादों में प्रतियोगिता होगी, जिससे, उपभोक्ताओं को ऊंची गुणवत्ता वाले उत्पादन कम मूल्य में मिल सकेंगे।
  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया अपनाने से भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ जायेगी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
  • वैश्वीकरण की नीति अपनाने से भारत में औद्योगिक विकास होगा।
  • वैश्वीकरण की नीति अपनाने से भारत में अधिक रोज़गारों का सृजन होगा।

प्रश्न 6.
भारत द्वारा अपनाई गई भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण की नीति के गुण व दोष लिखें। (Write down the Merits and Demerits of the Policy of Globalisation Adopted by India.)
उत्तर-
भारत द्वारा सन् 1991 में वैश्वीकरण की नीति को अपनाया गया। इसके गुण एवं दोषों का वर्णन इस प्रकार हैं।
गुण (Merits)-

  • वैश्वीकरण की नीति अपनाने से भारतीय अर्थ व्यवस्था प्रतियोगी बन गई है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में रोज़गार के अवसर बढ़े हैं।”
  • वैश्वीकरण के कारण भारत ने नई-नई विदेशी तकनीकों का आगमन हुआ है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में विदेशी निवेश बढ़ा है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में प्रतियोगिता बढ़ी है, जिससे उपभोक्ताओं को सस्ते दामों पर उचित वस्तु प्राप्त हो रही है।
  • वैश्वीकरण से भारत में उद्योगों का विकास हुआ है।

अवगुण (Demerits)

  • वैश्वीकरण की प्रक्रिया अपनाने से रोज़गार के अवसर बढ़ने की अपेक्षा कम हुए हैं तथा भारत में बेरोज़गारी बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारतीय मज़दूरों का शोषण हो रहा है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में आर्थिक असमानता बढ़ी है।
  • वैश्वीकरण के कारण विदेशी कम्पनियों ने भारतीय संसाधनों का अनावश्यक रूप से दोहन किया है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र को नुकसान हुआ है।
  • वैश्वीकरण के कारण भारत में लघु एवं कुटीर उद्योग बंद हो गए हैं।
  • आलोचकों का कहना है कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया अपनाने से भारत आर्थिक रूप से विदेशी राज्यों का गुलाम बन जायेगा।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
विश्व की प्रमुख समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर-
विश्व की अनेक समस्याएं हैं, जिनमें मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-

  • निःशस्त्रीकरण-विशेषकर परमाणु निःशस्त्रीकरण विश्व की एक मुख्य समस्या है। विश्व शान्ति के लिए सम्पूर्ण निःशस्त्रीकरण अति आवश्यक है।
  • सामाजिक और आर्थिक जीवन का विकास विश्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या है। आर्थिक असमानता को कम करना नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा विश्व की अन्य महत्त्वपूर्ण समस्या है। सुरक्षा सभी देशों और व्यक्तियों की व्यापक प्रवृत्ति है तथा शान्ति के लिए आवश्यक ह
  • विश्व की एक महत्त्वपूर्ण समस्या मानव अधिकार है। मानव अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता।
    ये चारों विश्व समस्याएं एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं और इनके हल के द्वारा ही विश्व शान्ति, विश्व कल्याण और विश्व समृद्धि सम्भव है।

प्रश्न 2.
निःशस्त्रीकरण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में नि:शस्त्रीकरण से हमारा अभिप्राय शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों के उन्मूलन से है। यह एक ऐसा कार्यक्रम है-जिसका उद्देश्य हथियारों के अस्तित्व और उनकी प्रकृति से उत्पन्न कुछ खास खतरों को कम करना है। इससे हथियारों की सीमा निश्चित करने या उन पर नियन्त्रण करने या उन्हें कम करने का विचार प्रकट होता है। नि:शस्त्रीकरण का लक्ष्य आवश्यक रूप से निरस्त्र कर देना नहीं है। इसका लक्ष्य तो यह है कि जो भी हथियार इस समय उपस्थित हैं, उनके प्रभाव को घटा दिया जाए।

  • मॉरगेंथो (Morgenthau) के शब्दों में, “निःशस्त्रीकरण कुछ या सब शस्त्रों में कटौती या उनको समाप्त करता है ताकि शस्त्रीकरण की दौड़ का अन्त हो।”
  • वी० वी० डायक (V.V. Dyke) के मतानुसार, “सैनिक शक्ति से सम्बन्धित किसी भी तरह के नियन्त्रण अथवा प्रतिबन्ध लगाने के कार्य को नि:शस्त्रीकरण कहा जाता है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 23 विश्व के प्रमुख विषयों के प्रति भारत का दृष्टिकोण

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की रचना लिखो।
उत्तर-
मानव अधिकार सुरक्षा अधिनियम के अधीन गठित राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल किए गए हैं

  • इस आयोग की अध्यक्षता भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश करेगा।
  • एक वह सदस्य जो कि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या वह रह चुका हो।
  • एक सदस्य वह जो कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या रह चुका हो।
  • मानव अधिकारों से सम्बन्धित विशेष ज्ञान रखने वाले दो व्यक्ति।
  • इन सदस्यों के अलावा कुछ विशेष कार्यों के लिए अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities), अनुसूचित जाति व जन-जातियों से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोग व महिलाओं से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्षों की कुछ समय के लिए मानव अधिकार आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की जा सकती है।

इस तरह यह स्पष्ट है कि मानव अधिकार आयोग में एक अध्यक्ष के अलावा चार अन्य स्थाई सदस्य होते हैं। अस्थायी सदस्यों के रूप में मानव अधिकार आयोग में अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति व जन-जातियों तथा महिला आयोगों के अध्यक्षों की कुछ समय के लिए किसी विशेष कार्य हेतु नियुक्ति की जा सकती है। इस आयोग में एक सचिव (Secretary General) भी होता है। जिसको आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief executive officer) कहा जाता है। इसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा मानव अधिकार आयोग के लिए की जाती है।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वैश्वीकरण (Globalisation) से अभिप्राय है किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक सम्पदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ निर्बाध रूप से आदान-प्रदान। वैश्वीकरण के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संचालन निर्बाध रूप से होता है जो एक सर्वसहमत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है।

  1. रोबर्टसन के अनुसार, “वैश्वीकरण विश्व एकीकरण की चेतना के प्रबलीकरण से सम्बन्धित अवधारणा है।”
  2. गाय ब्रायंबंटी के अनुसार, “वैश्वीकरण की प्रक्रिया केवल विश्व व्यापार की खुली व्यवस्था, संचार के आधुनिकतम तरीकों के विकास, वित्तीय बाज़ार के अन्तर्राष्ट्रीयकरण, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बढ़ते महत्त्व, जनसंख्या देशान्तरगमन तथा विशेषतः लोगों, वस्तुओं, पूंजी, आंकड़ों तथा विचारों के गतिशीलन से ही सम्बन्धित नहीं है, बल्कि संक्रामक रोगों तथा प्रदूषण का प्रसार भी इसमें शामिल है।”

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प्रश्न 5.
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के चार मुख्य कार्य लिखो।
अथवा
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चार मुख्य कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानव अधिकार आयोग निम्नलिखित कार्य करता है-

  • भारत के किसी भी क्षेत्र में मानव अधिकारों की अवहेलना होने पर उनकी जांच-पड़ताल मानव अधिकार । आयोग पीड़ित व्यक्ति की प्रार्थना पर करता है।
  • आयोग लोक-कल्याणकारी अधिकारी द्वारा मानव अधिकारों के उल्लंघन को रोकने में की गई ढील की जांचपड़ताल करता है।
  • आयोग मानव अधिकारों के क्षेत्र में गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा उठाए जा रहे कदमों को प्रोत्साहित करता है।
  • आयोग संविधान व राष्ट्रीय कानूनों में वर्णित मानव अधिकारों से सम्बन्धित व्यवस्था पर विचार करता है और उन्हें प्रभावशाली ढंग से लागू करने की सिफ़ारिश करता है।

प्रश्न 6.
निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में भारत का क्या दृष्टिकोण है ?
अथवा
भारत का निशस्त्रीकरण के प्रति क्या दृष्टिकोण है ?
उत्तर-
भारत एक शान्तिप्रिय देश है। भारत की यही नीति रही है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शान्ति को बनाए रखा जा सकता है। प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने कई बार स्पष्ट शब्दों में कहा था कि नि:शस्त्रीकरण समय की मांग है। प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी ने अक्तूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में बोलते हुए निःशस्त्रीकरण की अपील की और इस बात पर बल दिया कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न सभी राष्ट्र अपने सभी आयुद्धों और उन्हें फेंकने के उपकरणों को नष्ट कर दें और उन्हें भविष्य में फिर न बनाने की गारण्टी दें। भारत ने 29 अक्तूबर, 1987 को महासभा की नि:शस्त्रीकरण मामलों की समिति में प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र महसभा परमाणु हथियार वाले सभी देशों को इन हथियारों का प्रसार करने से रोकने के लिए सहमत कराए। जून, 1986 में प्रधानमन्त्री राजीव गान्धी ने निःशस्त्रीकरण पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे विशेष सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए आगामी 22 वर्षों के भीतर विश्व के सभी तरह के परमाणु हथियार हटाने के लिए तीन चरण में समयबद्ध कार्यक्रम का सुझाव दिया। इसके अलावा भारत सरकार अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंचों से नि:शस्त्रीकरण के लिए. आवाज़ उठाती रही है।

मई, 1998 में भारत में परमाणु परीक्षण किए। लेकिन इसके साथ ही भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसका परमाणु कार्यक्रम शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। वह किसी भी देश पर आक्रमण के समय परमाणु हथियार गिराने की पहल नहीं करेगा।

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प्रश्न 7.
भारत का वैश्वीकरण के प्रति क्या दृष्टिकोण है ?
उत्तर-
भारत ने 1980 के प्रारम्भिक दौर में ही तकनीकी विकास के लिए वैश्वीकरण की प्रक्रिया के प्रति अपना सकारात्मक दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया था। दिवंगत प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी देश में वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी तकनीक के पक्षधर थे। जैसे-जैसे विश्व व्यवस्था में बदलाव आता गया भारत ने भी स्वयं को उदारीकरण और वैश्वीकरण के साथ जोड़ लिया। 1991 में भारत ने नई आर्थिक नीति अपनाई जो इस बात का प्रमाण है कि भारत वैश्वीकरण की प्रक्रिया से अलग नहीं हो सकता। नई आर्थिक नीति भारत के उदारीकरण और वैश्वीकरण के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
निःशस्त्रीकरण की क्या आवश्यकता है ? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-

  • विश्व शान्ति व सुरक्षा के लिए-नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व-शान्ति व सुरक्षा की स्थापना सम्भव है।
  • निःशस्त्रीकरण आर्थिक विकास में सहायक-यदि विकासशील देश नि:शस्त्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हुए नि:शस्त्रीकरण के रास्ते पर चलें तो इसके कारण इन देशों का बहुत आर्थिक विकास हो सकता है।

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वैश्वीकरण (Globalisation) से अभिप्राय है किसी वस्तु, सेवा, पूंजी, एवं बौद्धिक सम्पदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ निर्बाध रूप से आदान-प्रदान। वैश्वीकरण के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संचालन निर्बाध रूप से होता है जो एक सर्वसहमत अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करता है।

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प्रश्न 3.
वैश्वीकरण की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण की प्रक्रिया की विशेषता ही नहीं, अपितु इसका परिणाम भी है।
  • विश्वव्यापी संगठनों का उद्भव वैश्वीकरण की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता है। इस प्रक्रिया के चलते विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) 1 जनवरी, 1995 को अस्तित्व में आया।

प्रश्न 4.
भारत को वैश्वीकरण से होने वाली दो हानियां लिखिए।
उत्तर-

  1. वैश्वीकरण के कुप्रभावों के कारण भारत में बेरोज़गारी बढ़ी है।
  2. वैश्वीकरण के कारण भारत में आर्थिक असमानता बढ़ी है।

प्रश्न 5.
कोई चार मानव अधिकारों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. जीवन का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. आजीविका कमाने का अधिकार
  4. परिवार बनाने का अधिकार।

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प्रश्न 6.
वैश्वीकरण के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-

  1. वैश्वीकरण के कारण रोज़गार के अवसर पैदा हुए हैं।
  2. वैश्वीकरण के कारण वस्तुओं के दामों में कमी आई है।

प्रश्न 7.
भारत ने कौन-सी दो परमाणु सन्धियों पर हस्ताक्षर करने से इन्कार किया था ?
उत्तर-
भारत ने एन०पी०टी० (N.P.T.) तथा सी०टी०बी०टी० (C.T.B.T.) पर हस्ताक्षर करने से इन्कार किया था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
आंशिक परीक्षण रोक सन्धि कब हुई ?
उत्तर-
आंशिक परीक्षण रोक सन्धि सन् 1963 में हुई।

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प्रश्न 2.
परमाणु अप्रसार सन्धि (NPT) कब लागू की गई ?
उत्तर-
परमाणु अप्रसार सन्धि 5 मार्च, 1970 को लागू की गई।

प्रश्न 3.
व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि को संक्षिप्त रूप में क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
सी० टी० बी० टी०।

प्रश्न 4.
निःशस्त्रीकरण के पक्ष में कोई एक तर्क दें ?
उत्तर-
नि:शस्त्रीकरण शान्ति की ओर ले जाता है।

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प्रश्न 5.
भारत का निःशस्त्रीकरण के प्रति क्या दृष्टिकोण है ?
उत्तर-
भारत निःशस्त्रीकरण का समर्थक है।

प्रश्न 6.
मानव अधिकार दिवस हर साल कब मनाया जाता है ? .
उत्तर-
मानव अधिकार दिवस 10 दिसम्बर को मनाया जाता है।

प्रश्न 7.
विश्व व्यापार संगठन (W.T.0.) की स्थापना कब की गई ?
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना 1 जनवरी, 1995 को हुई।

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प्रश्न 8.
कोई एक सन्धि बताएं, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए ?
उत्तर-
व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (C.T.B.T.) पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किए।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों की कब घोषणा की ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों की घोषणा 10 दिसम्बर, 1948 को की।

प्रश्न 10.
निःशस्त्रीकरण का क्या अर्थ है ? .
अथवा
निःशस्त्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निःशस्त्रीकरण का अर्थ शारीरिक हिंसा के प्रयोग के समस्त भौतिक तथा मानवीय साधनों के उन्मूलन से

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प्रश्न 11.
मानव अधिकार आयोग के दो कार्य लिखें।
उत्तर-

  1. मानव अधिकार की अवहेलना की जांच-पड़ताल करना।
  2. मानव अधिकारों को प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए सिफारिश करना।

प्रश्न 12.
वैश्वीकरण का अर्थ लिखिए।
उत्तर-
वैश्वीकरण (Globalisation) से अभिप्राय है किसी वस्तु, सेवा, पूंजी एवं बौद्धिक सम्पदा का एक देश से दूसरे देशों के साथ निर्बाध रूप से आदान-प्रदान।

प्रश्न 13.
विश्व व्यापार संगठन का निर्माण क्यों हुआ ?
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन का निर्माण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को नियमित करने के लिए हुआ।

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प्रश्न 14.
निःशस्त्रीकरण की क्या जरूरत है ?
उत्तर-
विश्व शान्ति एवं मानवता के बचाव के लिए निशस्त्रीकरण की ज़रूरत है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. आतंकवाद विश्व की एक प्रमुख ………… है।।
2. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना …………. को हुई।
3. नाटो एक ……………. संगठन है।
4. आंशिक परीक्षण रोक संधि सन् …………. में हुई।
उत्तर-

  1. समस्या
  2. 12 अक्तूबर, 1993
  3. सैनिक
  4. 1963.

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. भारत ने प्रथम परीक्षण 1974 में तथा दूसरी बार परमाणु परीक्षण 1998 में किया।
2. अमेरिका का रक्षा व्यय अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है।
3. नि:शस्त्रीकरण का अर्थ हथियारों (शस्त्रों) की पूरी तरह से समाप्ति है।
4. स्टॉकहोम सम्मेलन 1972 में हुआ, जिसका मुख्य विषय पर्यावरण था।
5. सन् 2001 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में हुआ, इसे पृथ्वी सम्मेलन भी कहा जाता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत ।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्तमान समय में निम्नलिखित विचारधारा विश्व में पाई जाती है-
(क) नाजीवादी
(ख) फ़ासीवादी
(ग) वैश्वीकरण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) वैश्वीकरण

प्रश्न 2.
वैश्वीकरण का प्रभाव भारत में-
(क) पाया जाता है
(ख) नहीं पाया जाता
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) पाया जाता है

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प्रश्न 3.
भारत में वैश्वीकरण का आरम्भ कब से माना जाता है ?
(क) 1995
(ख) 1991
(ग) 1989
(घ) 1987.
उत्तर-
(ख) 1991

प्रश्न 4.
भारत में वैश्वीकरण का समय-समय पर किसने विरोध किया है ?
(क) वामपन्थियों ने
(ख) स्वयंसेवी संगठनों ने
(ग) पर्यावरणवादियों ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में-
(क) मतभेद नहीं पाए जाते
(ख) मतभेद पाए जाते हैं
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) मतभेद पाए जाते हैं

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Softball Game History
The name “Softball” dates back to 1926. The name was coined by Walter Hakanson of the YMCA at a meeting of the National Recreation Congress (In addition to ‘indoor baseball” name for the game included, “kitten ball”, “diamond ball”, “mush ball” and “pumpkin ball”. The game softball had spread across the United States by 1930. By the 1930s, similar sports with different rules and name were being played all over the United States and Canada.

By 1936 the Joint Rules Committee on Softball has standardized the rules and naming throughout the United States. The first British women’s softball league was established in 1953. The 1996 Olympic also marked a key era in the introduction of technology in softball. The 10C funded a land mark biomechanical study on pitching during the games. The 117th meeting of the International Olympic Committee held in Singapore in July 2005, voted to drop softball and baseball as Olympic sports for the 2012 summer Olympic games.

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Softball Game Important Points

  • Distance from home plate to first base: 60feet
  • Distance from first base to second base: 60feet
  • Distance from second base to third base: 60feet
  • Distance from third base to home plate: 60feet
  • Width of each base line: 3inch
  • Distance from base to third base: 34’10feet
  • Distance from home plate to second base: 2410 feet
  • L.ength and width of base: 15x15mches
  • Thickness of the base: 3 to 5 inches
  • Length of the batter bax: 7feet
  • Width of the batter box: 3feet
  • Length of catcher’s box: l0 feet
  • Width of catcher’s box: 8.5 feet
  • Length and width of home plate: 12×2.5×2.5 feet
  • Length and width of pitching nibber: 24x6incbes
  • Radius of Pitcher’s circle: 2feet
  • Weight of hail: 6’Ií4gm
  • Circumference of the ball: 12’1/4
  • Length of bat (Slugger): 34 inches
  • Weight of the bat: 38 ownce
  • Number of officials: 07
  • Total players: 16 to 18 (9 playing members)
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The Game:

  • There are 9 players in a softball team.
  • The playing field is divided into the infield and outfield.
  • The lines between the base are 60′ apart and when joined they form a diamond, inside the baseline is known as the infield.
  • Outside the baseline but inside the playing field is called the outfield.

Any ball going outside the 1st or 3rd base line is a foul ball (runners cannot advance and the batter gets another try unless the ball was caught in the air, which translates to an out) A official game is 7 innings (an inning is when both teams have had their turn to bat).
The visiting team bats in the first half of half of each inning, called the “top of the inning”, the home team bats in the second half of each inning, called the “bottom of the inning”. There is no set time that an inning lasts; each half of the inning continues until the defence accumulates three outs, if the game is tied after the last inning, the game goes into “extra inning”, and continues until one team holds a lead at the end of an inning.

Softball Game Key Rules
1. The pitcher’s delivery is made underarm and must begin with both feet in contact with the pitching rubber and the ball held with both hands in front of the body. The pitch itself begins when one hand is taken off the ball.

2. A pivot foot is used to maintain contact with the rubber or to push off from it for a delivery to be legal, the ball must be pitched into the strike zone. This is the space over any part of the home plate no higher than the home plate, no higher than the batters arm pit and no lower than his knee when he assumes his natural batting stance. If the ball deviates from the strike zone it is aro-ball (called a “ball”.)

3. A batter has three chances to strike the ball. He becomes a batter-runner as soon as he hits a fair ball, a legally batted ball. The ball must keep within the angle between first and third base (fair territory). It may pass out of the playing field and up to the outfield fence as long as it remains with this angle. The batter may also run after four balls.

4. The other runners in the field may advance to their next base as soon as the ball leaves the pitcher’s hand and while it continues to be in play, they must return to the base they legally occupied at the time the ball was pitched if the ball is caught, if it is batted illegally or if interference occurs on either side.

5. There are several ways in which a batter can be out. He is caught out if a fielder catches the ball after it has been struck and before it touches the ground (a fly ball). He is run out if the ball reaches the base he is running towards before he gets there. (The fielder receiving the ball must have at least one foot on the base.)

6. A strike occurs when the ball is pitched into the strike zone but the batter does not attempt to hit it or does make the attempt and misses. A player is allowed three after which he is out. A player is also out if he is touched with the ball before he touches first base, or while off any base during a live ball, he is touched with the ball.

7. Runners are declared out if they are touched with the ball in the hand of a fielder while they are not in contact with a base, if they deviate too much from the direct line between base in order to avoid being touched by a fielder in possession of the ball, if they overtake the runner in front of them, if they are hit by a fair ball or if the ball reaches the fielder at the base ahead of them before they do, i.e. run out. A ‘force out’ to advance due to the batter becoming a runner.

8. Violations by a player, any from of unsportsman-like conduct,are penalized with removal of the offender from the game.

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Pitching:

  • The pitcher must have both feet on the pitcher’s rubber and can only take one step forward while pitching.
  • The ball must be thrown underhand.
  • Both hands must be on the ball at start of the pitch.

Batting:

  • Batters must follow the same order throughout the whole game.
  • The batter is out if and when :
    • three strikes have been called.
    • a fly ball is caught.
    • the batter does not stand in the batter’s box.

Base Running:

  • Runners must touch each base in order.
  • Runners may over-run 1st base only, all other base the runner may be tagged and called out if they are off the base.
  • Runners can not lead off a base, they must be on base until the ball as left the pitcher’s hand.
  • After a fly ball has been caught the base runner must tag the occupied base before.
  • Advancing to the next base.
  • One base runner cannot pass another base runner that is ahead of them.
  • Stealing base is not permitted.
  • A runner is out if :
    • they are tagged with the ball before reaching base.
    • the ball gets to 1st base before the runner.
    • they run more than 3 feet out of the base line to avoid being tagged playing position.

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Outfielders (CF, RF, and LF):
Positioned beyond the infield, they catch and field “fly balls,’’ line drive, and ground balls hit into the outfield.

Rover (or Buck short):
Plays 10-20 feet outside the infield on the “Pull” side of the hitter, for example, a deep short stop for a right handed batter.

Second Basemen (2B):
Plays in the gap between the bag at second and the first baseman. Receives throws from fielders attempting to make outs at 2nd base and field ‘ ‘grounders” and “pop ups” hit to this side of the infield.

Short stop (SS):
Fields the balls hit to the infield between second and third base. She or he covers second base (along with second baseman) and is often involved in force plays and “double plays” with the second baseman.

Pitcher (P):
Throws the softball from the center of the diamond (pitcher’s mound) to the catcher. The pitcher uses an underarm motion to pitch the ball toward the “strike zone.” After making a pitch, the pitcher gets ready to field balls hit up the middle.

Third Basemen (3B):
Plays to the left of third base and covers any plays there. Receives throws from other fielders attempting to make outs at 3rd base.

First Basemen (B):
Positioned just to the left of the first base, their main role is to make fielding plays on balls hit toward first base.

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Catcher (C):
Plays in a semi- crouched position behind home plate and receives pitches thrown by the pitcher. Also receives throw from fielders attempting to make outs at home plate.

Scoring Runs:
A “run” is scored when a player has touched all four bases in order, proceeding counterclockwise around them. They need not be touched on the same play; a batter may remain safely on a base while play proceeds and attempt to advance on a later play. A run is not scored if the last out is a force out or occurs during the same play that the runner crosses home plate. For instance, if a runner is on third base prior to a hit, and he or she crosses home plate after an out is made, either on the batter or another runner, the run is not counted.

Ending The Game:
The team with the most runs after seven innings wins the game. The last (bottom) half of the seventh inning or any remaining part of the seventh inning is not played if the team batting second is leading. If the game is tied, play usually continues until a decision is reached, by using the international tie-breaker rule or if time is expired the score would be just tied. Starting in the top of the last inning, the batting team starts with a base-runner on second base, which is the player who is the last available to bat (in other words, the batter who last took their position m the batter’s box; regardless whether they were the last out or another runner was put out).

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Softball Game Important Questions

Question 1.
What is the name of playfied in softball?
Answer:
Softball Kite.

Question 2.
When did the name softball originated?
Answer:
In the year 1926.

Question 3.
How many playing members are there in the team?
Answer:
9 players.

Question 4.
Write down the dimensions of bat box.
Answer:
3’ x T 1 x 2.30 m.

Question 5.
In which year the rules of the games were published?
Answer:
In the year 1936.

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Question 6.
The sixteen inches softball was called ……….?
Answer:
Cabbage ball.

Question 7.
When did the British women’s softball league was established?
Answer:
In the year 1953.

Question 8.
Write down the dimension of catcher box.
Answer:
10′ x 8.5”, 9.15 x7.45 m.

Question 9.
What is the length of bat?
Answer:
34”.

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Question 10.
What should be the maximum width of bat?
Answer:
2 1/2.

Question 11.
What is the distance between the bases?
Answer:
60′.

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Swimming Game History
Swimming was an ancient game and found on the rock painting at Egypt and Babylonion caves. In India, swimming pool was found in Mohenjodaro’s palace. Swimming became a competitive sport in the early 1800s. It came into prominence when Matthew Webb crossed English Channel. He became the first person to swim across the English Channel. Swimming was one of the events in First Modem Olympic Games held in Athens in 1896.

In the inaugural Modem Olympics men competed in four swimming events and women first participated in the year 1912 Summer Olympics at Stockholm. FINA (International Swimming Federation) was established on 19 July 1908. Swimming Federation of India was formed in 1948.
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Swimming Game Important Points

  • Length of the Swimming Pool:50 m
  • Width of the Swimming Pool:25 m
  • Number of Lane:08
  • Width of the Lane:2.5 m
  • Depth of the Swimming Pool:1.80 m
  • Height of the Platform from Water:0.5 to 0.75 m
  • Temperature of Water:24° C
  • Total Referees:06 to 07
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Fundamental Skills:
1. Free Style:
Free style, often called the “crawl,” is the most flexible in its rules, and it is typically the fastest stroke. Freestyle is swum face-down with alternating arm strokes; side-breathing; and rapid, alternating up-and-down kicks.

2. Back Stroke:
Backstroke is often thought of as “upside-down freestyle.” As in freestyle, backstroke is swum with alternating arm strokes and rapid, alternating, up-and-down kicks. Unlike freestyle, the swimmer must be on his/her back, facing the sky.

3. Breast Stroke:
Breaststroke is often thought of as the “frog stroke,” as the kick is reminiscent of a frog’s kick. A breaststroke swimmer’s arms and legs must move simultaneously, on the same horizontal plane, and identically to each other. The arms and legs stay mostly underwater, but a swimmer’s head must break the surface every stroke. So-called scissor kicks are not allowed. The arm stroke begins and ends in streamline position. The hands scoop water out to the sides, before sweeping in toward the middle of the body and then shooting forward. Swimmers are not allowed to pull their hands down past their hips, and must keep their elbows in the water when their hands are shooting forward.

4. Butterfly Stroke:
Butterfly is swum with an undulating, dolphin-like movement at the surface of the water. The arms pull underwater simultaneously, and recover over the water, also simultaneously. Both hands must come out of the water at the same time on every stroke. During each arm pull, swimmers perform two dolphin kicks, one when the hands enter the water, and the other when the hands exit the water. A swimmer’s feet must kick up and down together, ideally with the feet kept close together.

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Events in swimming:
The following events are conducted in swimming:

Category Events for Men Events for Women
1. Free Style 50, 100, 200, 400, 800 and

1500 metres 1500 metres

50, 100, 200, 400, 800 and
2. Back Stroke 100 and 200 metres 50, 100 and 200 metres
3. Breast Stroke 50, 100 and 200 metres 50, 100 and 200 metres
4. Butterfly 50, 100 and 200 metres 50, 100 and 200 metres
5. Individual Medley 100, 200 and 400 metres 100, 200 and 400 metres
6. Freestyle Relays 4 x 100 and 4 x 200 metres 4 x 100 and 4 x 200 metres
7. Medley Relay 4 x 100 metres 4 x 100 metres
8. Mixed Relays 4 x 100 metres free style and

4 x 100 metres medley

4 x 100 metres free style and

4 x 100 metres medley

Rules In Swimming:
There are few rules as follow:
The four competitive strokes are
1. Free Style
2. Back Stroke
3. Breast Stroke
4. Butterfly.
Events are held in all of the competitive strokes at varying distances depending on the age- group of the swimmer. In addition, there is a combination of the strokes swum by one swimmer called the individual medley (IM). Other swimming events include relays, which are a group of four swimmers who either all swim freestyle (freestyle relay) or each swim one of the competitive strokes in the order of backstroke, breaststroke, butterfly and freestyle (medley relay).

1. Free Style:
In freestyle events, the competitor may swim any stroke. The stroke most commonly used is sometimes called the crawl, which is characterized by the alternate stroking of the arms over the water surface and an alternating (up- and-down) flutter kick. On turns and finishes, some part of the swimmer must touch the wall. Most swimmers do a flip turn.
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2. Back Stroke:
The backstroke consists of an alternating motion of the arms with a flutter kick while on the hack. On turns, swimmers may rotate to the stomach and perform a flip turn and some pari of the swimmer must touch the wall. The swimmer must finish on the back.
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3. Breast Stroke:
The breaststroke requires simultaneous movements of the arms on the same horizontal plane. The hands are pressed out from in front of the breast in a heart shaped pattern and recovered under or
on the surface of the water. The kick is a simultaneous somewhat circular motion similar to the action of a frog. On turns and at the finish, the swimmer must touch the wall with both hands simultaneously at, above or below the water surface.
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4. Butterfly:
The butterfly features a simultaneous recovery of the arms over the water combined with an undulating dolphin kick. In the kick, the swimmer must keep both legs together and may not flutter, scissors or use the breaststroke kick. Both hands must touch the wall simultaneously on the turns and the finish,
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5. Individual Medley:
Commonly referred to as the I.M., features all four strokes. In the EM. the swimmer begins with the butterfly, then changes after one-fourth of the race to backstroke, then breaststroke and finally freestyle.

6. Starts:
The swimmers are not allowed a false start. If they jump the start and the starter thinks they are trying to get an advantage, they will be taken out of the race. This is not like the Olympics where they are allowed two false starts.

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Turns And Finishes:
Technical rule violations for each stroke may include:
1. Free Style:
Feet have to touch the wall.

  • Walking on the bottom.
  • Pulling on the lane rope.
  • Not touching the wall on a turn.
  • Not completing the distance.

2. Back Stroke:
Swimmers have to be on their back when they touch the wall. After he/she touches, he/she can then turn around, but he/she must push off on their back. At the finish a swimmer must finish on his/her back. A swimmer may not roll over and grab the wall until they have first touched it.

  • Turning past the vertical onto the stomach and gliding or kicking into the wall on the turn.
  • Pushing off the wall on the stomach after a turn.
  • Not remaining on back while swimming.
  • Turning onto stomach before the finish.

3. Breast Stroke and Butterfly:

  • Swimmers have to touch with both hands at the same time.
  • A swimmer may not freestyle kick off the wall in either breaststroke or butterfly.
  • When swimming butterfly, both arms must move at the same time.

Breast Stroke:

  • Using either a flutter, dolphin, or scissor kick instead of the breaststroke kick.
  • Shoulders not at level.
  • Alternating movements of the arms.
  • Head not coming out of the water for each stroke including one pull and kick.
  • Touching with one hand at the turns or at the finish.

Butterfly:

  • Alternating movements of the arms or legs.
  • Pushing the arms forward under instead of over the surface of the water.
  • Using a breaststroke style kick.
  • Touching with only one hand at the turns or at the finish.

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Swimming Game Important Terminologies
1. Lane Line:
In swimming, a specific lane is assigned to swimmer. These lanes often are numbered. The assigned lane is your designated swimming area. The lanes are separated by lane lines, or floating markers attached to cables.

2. Flag:
Rags are triangular banners featuring two or more colors and hanging down over the lanes on lines. Backstroke flags are placed at the end of each lane to let the swimmers performing backstroke, who have limited visibility, know that they are approaching the wall.

3. Deck and Lap:
The pool is surrounded by a hard surface called a deck. When an athlete swim from one end of a pool to the other, the distance is commonly called a lap, although a lap also can be used to mean the down-and-back distance that is twice the length of the pool.

4. Back Stroke:
Breast Stroke and Freestyle. The backstroke, is performed lying on the back. The breaststroke, in which a swimmer keep his body on his breast. The freestyle, or crawl, is the most common stroke, which is performed on stomach while alternating your arms and using a flutter kick.

5. Diving and Relay: Other common terms include diving, a method of entering the water by jumping in head first.

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Swimming Game Important Tournaments

International Level

  1. Olympics Games
  2. Common Wealth Games
  3. Asian Games
  4. World Cup
  5. World University

National Level:

  1. Senior National Championship
  2. All India Intervarsity Championship.
  3. Junior National Championship.

Arjuna Award Winners

  1. Banjari Bharagava, Khajan Singh, Shikha Tondon-2006
  2. J. Banjari Dass-1961
  3. Reema Dutta-1966
  4. Arun Shah-1967
  5. VaidNath-1969
  6. Bhanwar Singh-1971
  7. Dhanvir-1973
  8. Avinash Narang & Majari Bhargav-1974
  9. M.M. Sunita Desai, M.M. Rana & Persis Meidan-1975
  10. Anita Sood-1983
  11. Tara Nath-1985
  12. Wilson Chorian-1988
  13. NishaMilate-2000
  14. Sabischares & J. Abhijeet-2001

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Swimming Game Important Questions

Question 1.
What is the length of the swimming pool?
Answer:
The length of the swimming pool is 50 m.

Question 2.
What is the breadth of the swimming pool?
Answer:
The breadth of the swimming pool is 25 m.

Question 3.
What will he the depth of the pool?
Answer:
The depth of the pool is 1.80 m

Question 4.
How many lanes are in the swimming pool?
Answer:
Total numbers of the lane are 08 in the pool.

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Question 5.
What will be the width of each lane?
Answer:
The width of each lane is 2.5 m.

Question 6.
What is the height of the platform from water?
Answer:
The height of the platform from water is 0.5 to 0.75 m.

Question 7.
What will be the temperature of the water?
Answer:
The temperature of the water is 24°C.

Question 8.
How many officials perform duty in swimming competition?
Answer:
There are 6 to 7 officials performing duties during competition.

Question 9.
How many types of events are there in free style?
Answer:
There are 6 types of events played in freestyle. For example 50,100,200,400,800, and 1500 m.

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Question 10.
What kind of strokes are used in swimming during competition?
Answer:
There are four main styles used in swimming competition i.e. free style, back stroke, breast stroke and butterfly stroke.

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PSEB 12th Class Physical Education Practical Badminton

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Badminton Game History
The word ‘Badminton’ originated from the name of city “Badminton”, an estate in Gloucestershire (England). In 1873, the first Badminton club came into existence at England. However, it is believed that similar type of ‘battedore’ named game was a part of China before modem era.

The game was further developed in India by army officials and called ‘Poona’ after the name of the city Pune. The Badminton Association of England was formed in 1893. The International Badminton Federation was formed in 1934. In India the game became popular after Second World War The Badminton Association of India was formed in 1935. However, first National Badminton Championship was held in 1936. Badminton was a part of 1972 Munich Olympics and 1988 Seoul Olympics as a demonstration sport. It became a medal sport in 1992 Olympic Games at Barcelona.
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Badminton Game Important Points

  • Size of Badminton Court for Doubles:13.40 x 6.10 m or 44′ x 20′ feet
  • Size of Badminton Court for Single’s:13.40 x 5.18 m or 44′ x 17′ feet
  • The width of the Net: 760 mm (76 cm)
  • Height of the Net at the Centre:1.524 m
  • Height of the Net at Posts:1.550 m
  • Shape of the Court:Rectangular
  • Size of Racket:Length 680 mm x Width 230 mm
  • Weight of the Shuttle:4.73 gm to 5.50 gm
  • Number of Feathers of Shuttle:14 to 16
  • The length of the Feathers:62 mm to 70 mm
  • Width of Back Gallery:2′ – 6″ (.76 mm)
  • Width of Side Gallery:1′ – 6″ (.46 mm)
  • Short service lines from the Centre:6′ – 6″ (1.98 m)
  • Number of Officials:Umpire – 1, Service Umpire – 1, Referee – 1, Linemen – 10.
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Badminton Game Rules And Regulations

Toss: A toss shall be conducted before the start of game and winning side has the choice to serve or receive first.

Scoring:

  • A match consists of best of three games.
  • A game is won by the side which first score 21 points.
  • The side winning a game serves first in the next game only.
  • The side winning a rally shall add a point.

Change of Ends: The ends change at the end of first game, second game and in third game after 11 points.

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Service Rules:

  • It is not permitted to cause undue delay to serve once server and receiver are ready.
  • The server and receiver shall stand in diagonally opposite court during the service.
  • Some part of both feet of server and receiver must remain in contact with the surface of court in a stationary position.
  • During service die racket of the server shall initially hit the base of the shuttle.
  • The shuttle shall be below the waist level initially while serving.
  • In doubles, the partner may take up any position within their courts.
  • If the server misses the shuttle while attempting to serve, it is termed as fault.

Fault:

  • It is not permitted to cause undue delay to serve once server and receiver are ready. .
  • If service is not correct serve than it is fault.
  • If the shuttle fails to cross the net or passes through or under the net.
  • If it touches by the person, player or any other object.
  • When any player invades an opponent’s court through net with racket or any other obstruction by shouting or gestures etc.
  • If the shuttle is hit twice in succession by the same player or side.
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Let Rule:
‘Let’ is a term called by umpire to halt the play.

  • If a shuttle is caught on the net and remains suspended on or over the net it shall be a ‘let’ except during service.
  • If during service, the receiver and server commits foul simultaneously, it shall be a ‘let’.
  • A let may be called if a service court error occurs during play.
  • If the shuttle during play disintegrates completely, it shall be a ‘let’.

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Badminton Game Important Terminologies

  • Let: A let is a term used by an umpire to halt the game as a result of unforeseen situations. In this case, the last service shall not be considered and the player who served shall serve again.
  • Rally. A sequence of one or more strokes starting with the service, until the shuttle ceases to be in play.
  • Serve: The stroke used to put the shuttle cock into play at the start of each rally. Wood Shot. A legal shot in which the shuttle hits the frame of the racket.
  • Fault: A violation or infringement of playing rules, either during service, receiving or during play.
  • Short Service Line: The line at distance of 1.98 m feet from the net, to which a serve must cross to be a legal serve.
  • Deuce: It is a term used when a score reaches 20 – 20. In case of deuce a lead by 2 points must be scored in order to win the game.
  • Smash: It is an overhead attacking stroke hit hard which forces shuttle to fall sharply downwards.

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Dimensions of Play Field / Court or Equipment:
1. The Court:
The size of badminton court is rectangular court with the length of 13,4 metres (44 feet) both for singles and doubles. The width of court is 6.1 metres (20 feet) for doubles and reduced to 5.18 metres (17 feet) for singles. The court is marked with 40 mm wide lines.

2. Posts:
The posts are 1.55 m high from the surface of the court. The posts are fixed on the doubles side lines irrespective of singles or doubles is being played.

3. Net:
The net shall be made of fine cord or cable. It must be dark coloured with a mesh from 3/4″ to 1″. The width of the net shall be 2′ – 6″ The height of the net is 5 feet from the ground at centre and 5 feet

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4. Racket:
The frame of the racket must be attached with the help of shaft. The racket mainly have three parts head, shaft and throat. The head shall not exceed 280 mm in length and 220 mm in width. The total length of the racket should be 680 mm and width 230 mm.
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5. Shuttle:
The shuttle may be made from natural or synthetic material. The base of the shuttle i.e. cork must have diameter between 25 to 28 mm. The total length of feather shall be between 62 to 70 mm. The shuttle must weight 4.74 to 5.50 gm.
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Fundamentai Skills
1. Holding the Racket:
The most important and basic skill in the game is to hold the racket or grip. The wrist while holding the racket should not be stiff. There are mainly two styles of gripping the racket i.e. frying pan grip and back hand grip.

2. Service:
The stroke use to put the shuttle into play at the start of each rally is called service. There are mainly two types of service i.e. high service and low service. In high service, the server tries to place the shuttle deep on the back of the court. On the other hand, low service, is just to clear the net and place the shuttle few inches away from the short service line.

3. Strokes:
The contact between the shuttle and racket is termed as stroke. The different strokes can be categorized mainly into three categories:
(a) Forehand Stroke
(b) Backhand Stroke
(c) overhead stroke.

(a) Forehand Stroke :
This is used most often in the game, this stroke is performed when a shuttle falls in front of active side of tire receiver. Its easy to direct the shuttle to any point of the opponent’s court.

(b) Backhand Stroke:
It is normally difficult shot as the shuttle falls towards non playing side arm of the player. It is difficult to return this shot strongly or forcefully.

(c) Overhead Stroke : The action of hitting a shuttle approaching above the head.

4. Drop Shot:
The drop shots are delicate badminton shots w’hich is mainly executed with a deceptive move to win a point. The purpose of this shot is to force an opponent to make weak return.

5. Lob Shot:
Shuttle hit high and deep to the base line of opponent. In this the high serve played at full stretch with a lunge.

6. Smash: It is an overhead attacking stroke hit hard which forces shuttle to fall sharply downwards in opponent’s court.

7. Hair Pin Shot:
In this shot, the shuttle is returned sharply from very close to the net. The movement of the shuttle is just like a hair pin falling very close to the other side of net.

Badminton Game Important Tournaments
International Level

  1. Thomas Cup
  2. World Cup
  3. Wills World Cup
  4. China Cup
  5. Uber Cup
  6. Shaji Qureshi Cup
  7. Olympic Games
  8. Common Wealth Games
  9. Asian Games
  10. Alba World Cup
  11. All England Championship
  12. Yonex Cup

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National Level

  1. Senior National Championship
  2. Aggarwal Cup
  3. Amrit Diwan Cup
  4. All India Intervarsity Championship.

Arjuna Award Winners

  1. Nandu Natekar-1961
  2. Meena Shah-1962
  3. Dinesh Khanna-1965
  4. Suresh Goel-1967
  5. Dipu Ghosh-1969
  6. D.V. Tambay-1970
  7. Moorthy-1971
  8. Prakash Padukone-1972
  9. Raman Ghosh-1974
  10. Davinder Ahuja-1975
  11. Ami Ghia-1974
  12. Ms. K.T. Singh-1977-78
  13. Syed Modi-1980-81
  14. P. Ganguli, Madhumita Bisht-1982
  15. Rajeev Bagga-1991
  16. George Thomas-1999
  17. Pullela, Gopichand-2000
  18. Madasu Srinivas Rao (Physically Challenged)-2003
  19. Abhinn Shayam Gupta-2004
  20. Apama Popat-2005
  21. Chetan Anand-2003
  22. Rohit Bhakar (Physically Challenged-2006
  23. Anup Sridhar- 2008
  24. Saina Nehwal-2009
  25. Ashwani Ponappa, Parupali Kashyap-2012
  26. P.V.Sandhu-2013
  27. V.Diju-2014
  28. K. Siriknath-2015

Dronacharya Award Winners

  1. S. M. Arif
  2. Pullela Gopichand

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Badminton Game Important Questions

Question 1.
When did the International Badminton Federation came into existence?
Answer:
In the year 1934.

Question 2.
When was badminton considered as a medal sport in Olympic games?
Answer:
It became a medal sport in 1992 Olympic Games Barcelona.

Question 3.
What are the dimensions of badminton court for doubles?
Answer:
13.40 x 6.10 m or 44′ x 20′ feet.

Question 4.
What is the width of net?
Answer:
760 mm (76 cm).

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Question 5.
Give the number of feathers in a shuttle.
Answer:
14 to 16 feathers.

Question 6.
How many officials are required for badminton match?
Answer:
1 Umpire, 1 Service Umpire, 1 Referee and 10 Linemen.

Question 7.
What do you know about toss in badminton?
Answer:
A toss shall be conducted before the start of the game and winning side has the choice either to serve or receive first.

Question 8.
What is the distance of short service line from the centre?
Answer:
6′ -6″ (1.98 m).

Question 9.
What is meant by the term deuce?
Answer:
It is a term used when score reaches 20-20. In case of deuce a lead by 2 points must be scored in order to win the game.

Question 10.
What is the height of posts?
Answer:
The posts are 1.55 m high from the surface of the court.

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Question 11.
Name important International level tournaments in badminton.
Answer:
Thomas Cup, World Cup, Wills World Cup, China Cup, Uber Cup, Olympic Games, Asian Games, Common Wealth Games, All England Championship, Yonex Cup.

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PSEB 12th Class Physical Education Practical Wrestling Free Style and Greeco Roman

PSEB 12th Class Physical Education Practical Wrestling Free Style and Greeco Roman

Wrestling Free Style And Greeco Roman Game History
Wrestling is a barehanded combat game in which two opponents try to throw each other down and pin their shoulders to the ground using holds and techniques. This is one of the oldest forms of combat sports wrestling was an integral part of military trainning in ancient Greece and it was played in the ancient Olympics for the first time in 776 B.C. In 15th century, wrestling reappeared in England, France and Japan. It was on the programme of the first modem Olympics in 1896 in Athens. Today there are two forms-Free style arid Greeco- Roman style. The International Federation of Women Wrestling was established in 1987. Asian wrestlers are good at world competitions. Mr. Jadav of India had got Bronze medal in 1952 Olympics. Indian wrestlers are also good. Russian wrestlers are world famous for then- latest techniques. Indian has also produced many good wrestlers like Dara Singh, Kartar Singh and Pappu Yadav.

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Wrestling Free Style And Greeco Roman Game Important Points

  • Shape of the mat of Wrestling:Round
  • Size of mat:4.5 m Radius
  • Colour of Round:Red
  • Height of Mats from Platform:1.10 Meter
  • Colour of the comer:Red and Blue
  • Duration of Bout:6 Minutes, 3-3 Min (2 half)
  • Total weight for men:9
  • Total weight for women:7
  • Total weight for junior:10
  • Officials for wrestling:One mat chairman, Two Referees, Three judges
  • Rest after bout:30 seconds
  • Undisturb area around the mat:1.50 Metre

Wrestling Weight Categories:
Age Group

  • School Boys:14-15 years
  • Cadet:16-17 years
  • Junior:18-20 years
  • Senior:19-20 years

PSEB 12th Class Physical Education Practical Wrestling Free Style and Greeco Roman

Above 20 Years-

Senior Men Senior Women
First Group 48-54 K.G. 41-46 KG.
Second Group 58 KG. 51 KG.
Third Group 63 K.G. 56 KG.
Fourth Group 69 K.G. 62 KG.
Fifth Group 76 K.G. 68 KG.
Sixth Group 85 K.G. 68-75’KG.
Seventh Group 97 K.G.
Eighth Group 97-130 K.G.

From 17 years to 20 years old:

Junior Boys Junior Girls
First Group 46-49 KG. 40-43 KG.
Second Group 52 KG. 46 KG.
Third Group 56 KG. 50 KG.
Fourth Group 60 KG. 54 KG.
Fifth Group 65 K.G. 58 KG.
Sixth Group 70 KG. 63 KG.
Seventh Group 76 KG. 68 KG.
Eighth Group 83 KG. 68-75 KG.
Ninth Group 90 KG.
Tenth Group 90-115 KG.

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From 15 years to 16 years old:

Sub Junior Boys Sub Junior Girls
First Group 39-42 K.G. 36-38 KG.
Second Group 45 KG. 40 KG.
Third Group 48 K.G. 43 KG.
Fourth Group 52 K.G. 46 KG.
Fifth Group 57 KG. 49 KG.
Sixth Group 63 KG. 52 KG.
Seventh Group 69 KG 56 KG.
Eighth Group 76 KG. 60 KG.
Ninth Group 83 KG. 65 KG.
Tenth Group 83-95 KG. 65-75 KG.

From 13 years to 14 years old:

Sub Junior Boys Sub Junior Girls
First Group 29-32 KG. 20-30 KG.
Second Group 35 KG. 32 KG.
Third Group 38 KG. 34 KG.
Fourth Group 42 KG. 37 KG.
Fifth Group 48 KG. 40 KG.
Sixth Group 54 KG. 44 KG.
Seventh Group 58 KG. 48 KG.
Eighth Group 66 KG. 52 KG.
Ninth Group 71 KG 57 KG.
Tenth Group 71-85 KG 57-62 KG.

Every participants will take part according to his own body weight.

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Free Style Wrestling:
In Free Style Wrestling, wrestler can hold from any part of his body. He can use his legs and apply any kind of Technique but he cannot hold Ears, Hairs and Patba of an opponent.

Greeco-Roman Wrestling:
In Greeco-Roman Wrestling, Wrestler can not use his legs. Any type of Technique can be applied without legs from the upper part of his waist line, even in Greeco Roman Wrestling, wrestler cannot hold ears, Hairs and Patba of an opponent.
Every competitor can participate in his own weight group as listed above.

Weighing of the Competitors:

  • Weighing of competitors shall begin two or four hours before the wrestling competition begins.
  • The competitors shall be weighed without clothes. They shall be medically examined by a doctor before they are weighed. The doctor will remove any player suffering from any contagious disease.
  • Each contestant can participate in wrestling with a player belonging to his weight-group.
  • The competitors should be in a perfect physical condition. Their nails should be well pared. They shall be checked at the time of medical examination.
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  • Weighing shall start at least two hours before the competition and must conclude an hour before the first wrestling bout.
  • Before the completion of weighing, a contestant may stand any time on the weighing machine for recording his weight, but he should not be out of turn.

Costume:
The wrestlers shall enter the arena in a one-piece jersey, banian or ‘jangia’ (red or blue) beneath which they shall wear a jock strap. They will wear costumes which fit their body very well, and is not loose. They will wear sports shoes firmly closing the anklets. The use of light knee guards is allowed. A contestant shall be closely shaved or with a beard of many months growth.

1. The contestants cannot use oil or any other greasy substance on their bodies. 2. Their bodies should not be wet with perspiration. 3. The use of rings, bracelets, shoes with buttons and any other such thing which may harm or hurt a player is prohibited.

Mat:
The mat at all international matches should be 9 metres in circle (with a radius of 4.50 m.), and from its other ring a ring of 50 cms. is drawn. This place is marked with red colour. It should be fixed on a platform, 1.10. metre in height. The ends of the mat should have red or blue comers, and there should be a circle of 1 metre in the middle.

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Start of Wresriinq Bout And its Duration:

  •  The bout shall continue until a player falls down, otherwise it shall continue for 6 minutes.
  • If a player does not enter the mat after five minutes of call, he shall be considered defeated and turned out of the competition.
  • The wrestling bout shall start, interrupt or end on the whistle of the referee.

End of the Bout:
The end of the bout is indicated by the ringing of gong by the time keeper. The referee, too, blows his whistle as a signal for the end of the bout. The winner’s arm is raised by the referee.

Foul-holds:
The following fouls are taken into consideration-

  • Pulling of hair, ears, dress, private organs, etc.
  • Twisting of fingers, grasping of the throat and other holds which may be life-endangering.
  • Holding in such a manner as may put the opponent’s life in danger, or may hurt any of his body part, or cause him pain so that the opponent helplessly leaves the bout.
  • Treading on the feet of the rival.
  • Touching the face of the opponent (from the eye-brows to the chin).
  • Grasping the opponent by the throat.
  • Lifting the rival when he is in bridge position, and then throwing him on the mat.
  • Breaking the bridge by giving a push from the head.
  • Twisting the opponent’s arm at above 90° angle.
  • Grasping the opponent’s head with both hands.
  • Thrusting the elbow or knee into the abdomen or stomach of the rival.
  • Turning the opponent’s arm to the back and pressing it.
  • Grasping the opponent’s head in any manner.
  • Applying leg-scissors on the body or head.
  • Holding on to the mat.
  • Talking to each other and making dangerous assault.

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Cautions:
Precautions may.be taken in the following conditions:
(a) Permanent obstacles
(b) Foul holds
(c) Indiscipline at the time of bout
(d) Breach of rules.

  • These precautions shall be taken into account along with other fouls of the bout.
  • A player may be declared defeated after he has been warned thrice.
  • A player, in case of major offence, may be removed from the bout.

Obstacles:

  • Lying in abdomen position.
  • Going out of the mat knowingly.
  • Holding of both the hands of the opponent so that he may not play.
  • A player may be given warning if he goes out of the mat.

Stoppage of Bout:
A bout may be suspended for five minutes at most because of a bleeding nose, headlong fall or any other acceptable reason. This obstacle in one or two bouts may be of maximum 5 minutes for each contestant.

Score:
1. One Point:

  • to a player who throws a rival on the mat and maintains control over him,
  • to that player who rises from beneath and maintains his hold on his opponent,
  • a player who makes a good grasp and does not allow his opponent’s head and shoulder to touch the mat,
  • for one precaution the opponent gets one point.

2. Two Points:

  • to that player who keeps good hold on his opponent and maintains his hold on him for some time
  • to that player whose opponent immediately falls or falteringly falls.

3. Three Points:

  • to a player who keeps his opponent in danger (when shoulders make an angle of less than 90° from the mat) for five seconds,
  • bridge position for three seconds or fall takes five seconds.

Decision:
When there is a difference of less than one point in the score of the opposite players, the match ends in a draw. Again, if no contestant scores any point, or the points are equal, the match ends in a draw. If the difference is more than one point, a player with more points is declared the winner.

Fall:

  • For full fall it is sufficient if the shoulder of the wrestler touches the mat.
  • The fall shall be considered if the referee raises no objection.
  • For proper fall on the edge of the mat the head and shoulders of the contestant shall touch the limits of mat.

Winning by Points:
If there is no foul within six minutes, the decision is made by points. The player scoring higher points shall be the winner.

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Rules for Final:

  • The final match is played among three wrestlers.
  • The players, who have scored 6 penalty marks, cannot take part in the final match.
  • When the three players with less than 6 penalty marks reach the final, the points scored by them are nullified.
  • If those players have already competed, the former penalty marks are counted in the final.
  • The penalty marks of the contestants in the final must be kept in view.
  • If each of the three contestants has already scored 6 points, they will forfeit their points as mentioned above.
  • If the three contestants of the final have already scored 6 points each, he shall be awarded the third position and the remaining two shall wrestle for first position.
  • The player, who scores minimum penalty point in the last three bouts, shall be the winner.
  • If the penalty points of the finalists are equal, the decision is made keeping in views the following:
    • The victory scored on points.
    • The number of points being equal.
    • The number of fouls.
    • In case of tie, the player with minimum warnings is declared the winner.
    • If there is still a tie, both the players are declared equal.

Officials:
There are three officials in all types of wrestling matches:

  • Mat Chairman
  • Referee
  • Judge
  • No official can be changed during the wrestling.

Arjuna Award Winners

  1. Udey Chand-1961
  2. Malwa-1962
  3. G. Andalkar-1963
  4. Bishamber Singh-1964
  5. Bhim Singh-1966
  6. Mukhtiar Singh-1967
  7. Master Chandgi Ram (Indian Style)-1969
  8. Sudesh Kumar-1970
  9. Prem Nath-1972
  10. Jagroop Singh-1973
  11. Satpal-1974
  12. Rajinder Singh-1978-79
  13. Jagminder Singh-1980-81
  14. Kartar Singh-1982
  15. Mahabir Singh-1985
  16. Subhash-1987
  17. Rajesh Kumar-1988
  18. Satywan-1989
  19. Ombir Singh-1990
  20. PappuYadav-1992
  21. Ashok Kumar-1993 .
  22. Kaka Pawar, Rohtas Singh Dahiya-1999
  23. Palvinder Cheema-2002

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Wrestling Free Style and Greeco-Roman Game Important Tournaments

  1. Olympic Games
  2. Asian Games
  3. Commonwealth Games
  4. International Wrestling Championship
  5. National Level (Junior & Senior)
  6. Championship.

Wrestling Free Style and Greeco-Roman Game Important Questions

Question 1.
What is the duration of bout?
Answer:
6 minutes (Two rounds of 3-3 min).

Question 2.
Number of weight categories for men.
Answer: 9.

Question 3.
What is the colour of the corner for the bout?
Answer:
Red and Blue.

Question 4.
In which year International Wrestling Federation was formed?
Answer:
In 1987.

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Question 5.
What is the dimension of undisturbed area around the mat?
Answer:
1.50 metres.

Question 6.
Enlish various styles of wrestling.
Answer:
Free Style Wrestling, Greeco Roman Wrestling.

Question 7.
How many official are there in wrestling bout?
Answer:
Three officials.

Question 8.
What indication referee gives for the declaration of winner?
Answer:
He raises the winner’s arm to declare winner of the bout.

Question 9.
What is the purpose of whistle in the wrestling contest?
Answer:
The wrestling bout shall start, interrupt or end on the whistle of the referee.

Question 10.
Is it permissible to use greasy substance on the body before wrestling contest?
Answer:
No.

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Question 11.
What is the radius of circle in wrestling mat
Answer:
4.50 metre.

Punjab State Board PSEB 12th Class Physical Education Book Solutions 12th Class Physical Education Practical Wrestling Free Style and Greeco Roman Important Notes, Questions and Answers.

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 जनजातीय समाज

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है ?
(क) संथाल
(ख) भील
(ग) मुण्डा
(घ) गौंड।
उत्तर-
(क) संथाल।

प्रश्न 2.
‘ट्राइब’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
(क) यूनानी
(ख) लातीनी
(ग) यूनानी व लातीनी
(घ) लातीनी व जर्मनी।
उत्तर-
(ख) लातीनी।

प्रश्न 3.
जाति पर आधारित रिज़ले का वर्गीकरण नहीं है ?
(क) इण्डो -आर्यन
(ख) पहाड़ी कृषि
(ग) मंगोलयड
(घ) साइथो-द्राविड़।
उत्तर-
(ख) पहाड़ी कृषि।।

प्रश्न 4.
भील जनजाति कौन सी बोली बोलती है ?
(क) उरिया
(ख) छत्तीसगढ़ी
(ग) भीली
(घ) गोंडी।
उत्तर-
(ग) भीली।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 5.
पर्यावरण की विकृति (पतन) का क्या कारण है ?
(क) आवास
(ख) गैसें
(ग) विस्थापन
(घ) वन कटाव।
उत्तर-
(ख) गैसें।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. रोमनों द्वारा जनजाति की पहचान ………… इकाई है।
2. भारत के संविधान ने………….शब्द के प्रयोग को स्वीकृति प्रदान की है।
3. ………. तथा ………… जनजातीय समाज का सांस्कृतिक वर्गीकरण है।
4. स्थानांतरित कृषि को ………. कृषि भी कहा जाता है।
5. …………… तथा ……….. वन कटाव के मुख्य कारण हैं।
6. ………… तथा ………… जनजातीय समाज के दो मुख्य मुद्दे हैं।
उत्तर-

  1. राजनीतिक,
  2. अनुसूचित जनजाति,
  3. द्राविड़, इण्डो आर्यन,
  4. झूम,
  5. नगरीकरण, औद्योगीकरण,
  6. जंगलों का कटाव, विस्थापित करना।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. भारत जनजातीय जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है।
2. डॉ० जी० एस० घूर्ये ने जनजातियों को गिरिजन कहा है।
3. मुण्डा जनजाति मुण्डारी बोली बोलता है।
4. जनजातियों का जीववाद तथा टोटमवाद में विश्वास होता है।
5. वन कटाव का जलवायु तथा जैव विविधता पर कोई प्रभाव नहीं है।
6. भूमि अधिग्रहण तथा बाँध इमारतें विस्थापन के कारण हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत
  6. सही।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
मुंदारी — सर हरबर्ट रिज़ले
लकड़ी की खाने — विक्रय द्वारा विवाह
मंगोलियड — मुण्डा
बाँध निर्माण — वन कटाव
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — विस्थापन
उत्तर
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
मुंदारी — विक्रय द्वारा विवाह
मंगोलियड — मुण्डा
बाँध निर्माण — वन कटाव
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — सर हरबर्ट रिज़ले
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — विक्रय द्वारा विवाह

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1. भारत में जनजातियों का कुल प्रतिशत कितना है ?
उत्तर-8.2%.

प्रश्न 2. स्काइथिन तथा द्राविड़ों में मिश्रण क्या कहलाता है ?
उत्तर-स्काइथिन-द्राविड़।

प्रश्न 3. शिकार संग्रह व मछली पकड़ने पर आधारित जनजातियां क्या कहलाती हैं ?
उत्तर-जंगल-शिकारी।

प्रश्न 4. भोजन समस्या, स्वास्थ्य मुद्दे, जैव विभिन्नता की हानि तथा जलवायु परिवर्तन आदि किसके कारण हैं ?
उत्तर-जंगलों के कटाव।

प्रश्न 5. उद्योग, खान, बाँध निर्माण, भूमि अधिग्रहण किसके मुख्य कारण हैं ?
उत्तर-विस्थापन के।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 6. जनजातीय समाज से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-वह समाज जो हमारी सभ्यता से दूर जंगलों, पहाड़ों व घाटियों में रहते हैं तथा जिनका विशेष भौगोलिक क्षेत्र, भाषा, संस्कृति व धर्म होता है।

प्रश्न 7. भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय कौन-सा है ?
उत्तर- भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय संथाल है जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड तथा ओडिशा में पाया जाता है।

प्रश्न 8. ‘ट्राइब’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-शब्द जनजाति अंग्रेजी भाषा के शब्द Tribe का हिन्दी रूपांतर है जो लातीनी भाषा के शब्द ‘tribuz’ से निकला है जिसका अर्थ है एक तिहाई (One third)।

प्रश्न 9. भारतीय संदर्भ में जनजातियों को अनुसूचित जनजातियां किसने कहा है ?
उत्तर- भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के प्रधान डॉ० बी० आर० अम्बेडकर ने जनजातियों को अनुसूचित जनजातियां कहा था।

प्रश्न 10: भील जनजाति कौन-सी बोली बोलता है ?
उत्तर- भील जनजाति भीली भाषा बोलती है।

प्रश्न 11. जनजातीय समाज का नस्लीय विभाजन किसने किया ?
उत्तर-जनजातीय समाज का नस्लीय वर्गीकरण सर हरबर्ट रिज़ले ने दिया था।

प्रश्न 12. सोहरई किस जनजाति का फसल कटाई उत्सव (त्योहार) है ?
उत्तर-सोहरई संथाल जनजाति का फसल कटाई त्योहार है।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज की तीन विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. प्रत्येक जनजातीय समाज एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है।
  2. जनजाति कुछेक परिवारों का समूह होता है जो आपस में रक्त सम्बन्धी होते हैं।
  3. प्रत्येक जनजाति का एक विशेष नाम होता है जैसे कि गारो, खासी, नागा इत्यादि।

प्रश्न 2.
मुखियापन से आप क्या समझते हैं ? ।
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति की अपनी राजनीतिक व्यवस्था होती है जिसमें मुखिया को आयु अथवा शारीरिक शक्ति के आधार पर चुना जाता है। मुखिया के पास पूर्ण सत्ता होती है तथा जनजाति के सभी सदस्य उसके निर्णय को पूर्ण महत्त्व देते हैं। अन्तिम शक्ति उसके हाथों में होती है।

प्रश्न 3.
जीविका आर्थिकता क्या है ?
उत्तर-
जनजातियाँ जीविका आर्थिकता वाली होती हैं जो शिकार एकत्र करने, मछलियां पकड़ने अथवा जंगलों से वस्तुएं एकत्र करने पर निर्भर होती हैं। यहाँ लेन-देन की व्यवस्था होती है। उनकी आर्थिकता मुनाफे पर नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने पर निर्भर होती है।

प्रश्न 4.
इण्डो-आर्यन प्रकार की जनजाति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार की जनजातियां पंजाब, राजस्थान तथा कश्मीर में होती हैं। शारीरिक दृष्टि से यह लोग लंबे होते हैं। इनका रंग साफ होता है, काली आंखें, शरीर तथा चेहरे पर अधिक बाल तथा लंबी नाक होती है।

प्रश्न 5.
मंगोलियड जनजाति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मंगोल प्रकार की जनजाति हिमालय क्षेत्र की बैल्ट में मिलते हैं विशेषतया उत्तर-पूर्वी सीमा, नेपाल तथा बर्मा में। उनकी मुख्य विशेषताएं हैं चौड़ा सिर, सांवला रंग तथा चेहरे पर कम बाल। उनका कद छोटा होता है।

प्रश्न 6.
संथाल जनजाति क्या है ?
उत्तर-
संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है जो बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड तथा ओडिशा में पाई जाती है। यह संथाली, बंगाली, उड़िया तथा हिंदी बोलते हैं। उनका प्रमुख त्योहार सोहराई है तथा यह सूर्य भगवान् की पूजा करते हैं। कन्या मूल्य प्रथा यहां पर प्रचलित है।

प्रश्न 7.
वन कटाव क्या है ?
उत्तर-
वातावरण के पतन का मुख्य कारण वन कटाव है। वनों के कटाव का अर्थ है पेड़ों को काटना। जंगलों के कटाव का मुख्य कारण कृषि की भूमि का विस्तार है। परन्तु जनसंख्या तथा तकनीक के बढ़ने के कारण लोगों ने जंगलों का कटाव शुरू किया। इसके साथ औद्योगीकरण ने भी जंगलों के कटाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 8.
विस्थापन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी को उसके वास्तविक स्थान से दूर किसी स्थान पर ले जाकर बसाने को विस्थापन कहते हैं। यह जनजातियों की प्रमुख समस्या है। किसी को उसके घर से विस्थापित करना उसके लिए काफ़ी दुखदायक है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत-सी वस्तुएं मिलती हैं जिस कारण उन्हें विस्थापित किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
जनजातीय समाज।
उत्तर-जनजाति एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम व प्राचीन अवस्था में रहता है। इन जनजातियों में मिलने वाले समाज को जनजातीय समाज कहा जाता है। यह वर्गहीन समाज होता है जहाँ किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। इन समाजों की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों या जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वैः निर्भर होते हैं जिनका स्वयं पर नियंत्रण होता है तथा यह किसी अन्य के नियंत्रण से दूर होते हैं। इनकी संरचना नगरीय व ग्रामीण समाजों से बिल्कुल ही अलग होती है।

प्रश्न 2.
जनजातीय समाज का सांस्कृतिक वर्गीकरण करें।
उत्तर-
मजूमदार तथा मदान ने जनजातियों को सांस्कृतिक आधार पर विभाजित किया है-

  • वे जनजातियां जो नगरीय या ग्रामीण समुदायों से सांस्कृतिक दृष्टि से दूर या पीछे हैं अर्थात् वे जनजातियां जो विकसित समुदायों के नज़दीक नहीं पहुंच सकी हैं।
  • वे जनजातियां जो ग्रामीण-नगरीय समुदायों की संस्कृति से प्रभावित हुई हैं। इन जनजातियों में ग्रामीण नगरीय प्रभाव के कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  • वे जनजातियां जो ग्रामीण व नगरीय समुदायों के पूर्णतया सम्पर्क में आ चुकी हैं तथा इस कारण उन्हें किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 3.
जनजातीय समाज का नस्लीय वर्गीकरण करें।
उत्तर-
सर हरबर्ट रिज़ले ने जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है-

  • इण्डो आर्यन।
  • द्राविड़।
  • मंगोल।
  • आर्यो-द्राविड़ (हिंदुस्तानी)।
  • मंगोल-द्राविड़ (बंगाली)।
  • साईथो-द्राविड़।
  • टर्को-ईरानी।

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प्रश्न 4.
जनजातीय समाज का भाषीय वर्गीकरण करें।
उत्तर-
भारत में मिलने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • इण्डो युरोपियन अथवा आर्यन भाषा-इस भाग में साधारणतया पंजाबी, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, उडिया इत्यादि भाषाएं आती हैं। ___(ii) द्राविड़ भाषा परिवार-यह भाषा परिवार मध्य तथा पूर्व भारत में पाया जाता है। इसमें तेलुगु, मलयालम, तामिल, कन्नड़ इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • आस्ट्रिक भाषा परिवार-यह भाषा परिवार मध्य तथा पूर्व भारत में मिलता है। इस भाषा परिवार में भुण्डा तथा कोल इत्यादि भाषाएं आती हैं। (iv) चीनी तिब्बती भाषाएं-भारत की कुछ जनजातियां इन भाषाओं का भी प्रयोग करती हैं।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज का एकीकृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
एल० पी० विद्यार्थी तथा बी० के० राय के अनुसार यह चार प्रकार के होते हैं-

  • जनजातीय समुदाय-वे जनजातियां जो अभी भी अपने वास्तविक स्थान पर रहती हैं तथा अपने विशेष ढंग से जीवन जीती हैं।
  • अर्द्ध-जनजातीय समुदाय-उन जनजातियों के लोग जो कम या अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बस चुके हैं तथा जिन्होंने कृषि या अन्य संबंधित पेशों को अपना लिया है।
  • संक्रमित जनजातीय समुदाय-वे जनजातीय समुदाय जो नगरीय या अर्द्ध-नगरीय क्षेत्रों की तरफ प्रवास कर गए हैं तथा आधुनिक पेशों को अपना लिया है जैसे कि उद्योगों में कार्य करना। इन्होंने नगरीय विशेषताओं को भी अपना लिया है।
  • पूर्ण समावेशी जनजातीय समुदाय-यह वे जनजातीय समुदाय हैं जिन्होंने पूर्णतया हिंदू धर्म को अपना लिया

प्रश्न 6.
गोंड तथा भील जनजाति में अंतर बताएं।
उत्तर-
गोंड जनजाति-गोंड जनजाति देश की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। यह माना जाता है कि यह द्राविड़ समूह से संबंधित है। यह लोग मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा इत्यादि राज्यों में मिलते हैं। यह लोग गोंडी या छत्तीसगढ़ी भाषाएं बोलते हैं। यह कृषि-जंगलों पर आधारित अर्थव्यवस्था में रहते हैं तथा कुछेक समूह अभी भी स्थानांतरित कृषि करते हैं।

भील जनजाति-यह भी देश की बड़ी जनजातियों में से एक है। इसे भीलाला भी कहते हैं। यह मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, त्रिपुरा इत्यादि में रहते हैं। यह भीली भाषा बोलते हैं। इनके जीवन जीने का मुख्य स्रोत कृषि है। होली इनका महत्त्वपूर्ण त्योहार है।

प्रश्न 7.
वन कटाव के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  • कृषि के लिए-जनजातीय लोग काफी समय से स्थानांतरित कृषि करते आ रहे हैं। वह जंगलों को काटकर या आग लगाकर भूमि साफ करते व कृषि करते हैं।
  • लकड़ी के लिए-बढ़ती जनसंख्या की लकड़ी की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए वनों को काटा जाता है ताकि घरों का फर्नीचर बन सके।
  • नगरीकरण-बढ़ती जनसंख्या को रहने के लिए घर चाहिए तथा इस कारण नगर बड़े होने शुरू हो गए। लोगों ने वनों को काटकर घर बनाने शुरू कर दिए।

प्रश्न 8.
विस्थापन हेतु उत्तरदायी तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • भूमि अधिग्रहण-सरकार को सड़कें बनाने या नैशनल पार्क बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता होती है। इस कारण वह भूमि पर कब्जा कर लेती है। जो लोग वहाँ पर रहते हैं उन्हें वहाँ से विस्थापित कर दिया जाता है।
  • बाँध बनाना-सरकार बाढ़ को रोकने तथा बिजली बनाने के लिए बाँध बनाती है। इस कारण जनजातीय या अन्य लोगों को उनके घरों से विस्थापित करके अन्य स्थानों पर बसाया जाता है।
  • उद्योग-उद्योग लगाने के लिए काफ़ी भूमि की आवश्यकता होती है तथा वह भूमि सरकार जनता से छीनकर अपने कब्जे में ले लेती है। इस कारण लोगों को विस्थापित करना पड़ता है।

प्रश्न 9.
जनजातीय समाज में हुए किन्हीं पाँच सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
जनजातीय समाज में सामाजिक परिवर्तन के तीन कारण लिखो।
उत्तर-

  • जनजातीय समाजों की सामाजिक संरचना में परिवर्तन आ रहा है। उनके रहन-सहन, खाने-पीने, शिक्षा तथा राजनीतिक जीवन में बहुत-से परिवर्तन आ रहे हैं।
  • अब जनजातीय समाजों के लोग धीरे-धीरे अपने परम्परागत पेशों को छोड़ कर अन्य पेशों को अपना रहे हैं। वे उद्योगों में मजदूरी कर रहे हैं, खानों में कार्य कर रहे हैं तथा अन्य पेशों को अपना रहे हैं।
  • विश्वव्यापीकरण के समय में ये लोग अलग नहीं रह सकते। इस कारण ये लोग अपने क्षेत्रों को छोड़कर नज़दीक के ग्रामीण या नगरीय क्षेत्रों में जा रहे हैं।
  • अब ये लोग देश की मुख्य धारा में मिल रहे हैं तथा देश की राजनीतिक व्यवस्था में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे
  • इन लोगों को संविधान ने आरक्षण का लाभ भी दिया है। ये लोग इस नीति का फायदा उठा कर धीरे-धीरे प्रगति कर रहे हैं।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज से आपका क्या तात्पर्य है ? इसकी विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
जनजातीय समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में एक सभ्यता ऐसी भी है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहती है। इस सभ्यता को कबीला, आदिवासी, जनजाति इत्यादि जैसे नामों से पुकारा जाता है। भारतीय संविधान में इन्हें पट्टीदार जनजाति भी कहा गया है। जनजातीय समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था। जनजातीय समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। ये लोग सम्पूर्ण भारत में पाए जाते हैं।

ये समाज साधारणतया स्वः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियन्त्रण होता है तथा ये किसी के भी नियन्त्रण से दूर होते हैं। जनजातीय समाज शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं। इन्हें हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं-शिकार करने वाले, मछली पकड़ने वाले तथा कन्दमूल इकट्ठा करने वाले, स्थानान्तरित तथा झूम कृषि करने वाले, स्थानीय रूप से कृषि करने वाले। ये लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

जनजाति की परिभाषाएं (Definitions of Tribe)

1. इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया (Imperial Gazeteer of India) के अनुसार, “जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं अथवा अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अन्तर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

2. डी० एन० मजूमदार (D. N. Majumdar) के अनुसार, “एक जनजाति परिवार अथवा परिवार समूहों का एक ऐसा समूह एकत्र होता है जिसका एक नाम होता है। इसके सदस्य एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं तथा उन्होंने आपसी आदान-प्रदान तथा फर्जी की पारस्परिकता की एक अच्छी तरह जांची हुई व्यवस्था विकसित कर ली है।”

3. गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “जनजातियां स्थानीय कुलों तथा वंशों की एक व्यवस्था है जो एक समान भू-भाग में रहते हैं, समान भाषा बोलते हैं तथा एक जैसी ही संस्कृति का अनुसरण करते हैं।” ।
इस तरह इन अलग-अलग परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कबीले छोटे समाजों के रूप में एक सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग-अलग तथा स्वतन्त्र होते हैं। हरेक जनजाति की अलग ही भाषा, संस्कृति, परम्पराएं तथा खाने-पीने इत्यादि के ढंग होते हैं। इनमें एकता की भावना होती है क्योंकि ये एक निश्चित भू-भाग में मिलजुल कर रहते हैं। ये बहुतसे परिवारों का एकत्र समूह होता है जिसमें काफ़ी पहले अन्तर्विवाह भी होता था। आजकल इन जनजातीय लोगों को भारत सरकार तथा संविधान ने सुरक्षा तथा विकास के लिए बहुत-सी सुविधाएं जैसे कि आरक्षण इत्यादि दिए हैं तथा धीरे-धीरे ये लोग मुख्य धारा में आ रहे हैं।

जनजाति की विशेषताएं (Characteristics of a Tribe)-

1. परिवारों का समूह (Collection of Families)-जनजाति बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिनमें साझा उत्पादन होता है। वे जितना भी उत्पादन करते हैं उससे अपनी ज़रूरतें पूर्ण कर लेते हैं। वे कुछ भी इकट्ठा नहीं करते हैं जिस कारण उनमें सम्पत्ति की भावना नहीं होती है। इस कारण ही इन परिवारों में एकता बनी रहती है।

2. साझा भौगोलिक क्षेत्र (Common Territory)-जनजाति में लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। ये बाकी समाज की पहुँच से बाहर होते हैं क्योंकि इनकी अपनी ही अलग संस्कृति होती है तथा ये किसी बाहर वाले का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते इसलिए ये बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पायी जाती है क्योंकि ये साझे भू-भाग में रहते हैं।

3. साझी भाषा तथा साझा नाम (Common Language and Common Name)-प्रत्येक जनजाति की एक अलग ही भाषा होती है जिस कारण ये एक-दूसरे से अलग होते हैं। हमारे देश में जनजातियों की संख्या के अनुसार ही उनकी भाषाएं पायी जाती हैं। प्रत्येक जनजाति का अपना एक अलग नाम होता है तथा उस नाम से ही वह जनजाति जाना जाता है।

4. खण्डात्मक समाज (Segmentary Society)-प्रत्येक जनजातीय समाज दुसरे जनजातीय समाज से कई आधारों जैसे कि खाने-पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। ये कई आधारों पर अलग होने के कारण एक-दूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता। इस कारण इन्हें खण्डात्मक समूह भी कहते हैं।

5. साझी संस्कृति (Common Culture)- प्रत्येक जनजाति के रहने-सहने के ढंग, धर्म, भाषा, टैबु इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं। परन्तु ये सभी एक ही जनजाति में समान होते हैं। इस तरह सभी कुछ अलग होने के कारण एक ही जनजाति के अन्दर सभी व्यक्तियों की संस्कृति भी समान ही होती है।

6. आर्थिक संरचना (Economic Structure)-प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वे अधिकतर स्थानान्तरित कृषि ही करते हैं। वे केवल अपनी ज़रूरतों को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वे चीज़ों को एकत्र नहीं करते जिस कारण उनमें सम्पत्ति को एकत्र करने की भावना नहीं होती है। इस कारण ही जनजातीय समाज में वर्ग नहीं होते। प्रत्येक वस्तु पर सभी का समान अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई भी उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

7. आपसी सहयोग (Mutual Cooperation)-जनजाति का प्रत्येक सदस्य जनजाति के अन्य सदस्यों को अपना पूर्ण सहयोग देता है ताकि जनजाति की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके। जनजाति में प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा भी प्राप्त होती है। अगर जनजाति के किसी सदस्य के साथ किसी अन्य जनजाति के सदस्य लड़ाई करते हैं तो पहली जनजाति के अन्य सदस्य अपने साथी से मिलकर दूसरी जनजाति से संघर्ष करने के लिए तैयार रहते हैं। प्रत्येक जनजाति के मुखिया का यह फर्ज होता है कि वह अपनी जनजाति का मान सम्मान रखे। जनजाति के मुखिया के निर्णय को सम्पूर्ण जनजाति द्वारा मानना ही पड़ता है तथा वे मुखिया के निर्णय का सम्मान भी इसी कारण ही करते हैं। जनजाति के सभी सदस्य जनजाति के प्रति वफ़ादार रहते हैं।

8. राजनीतिक संगठन (Political Organization)-जनजातियों में गांव एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है तथा 10-12 गांव मिलकर एक राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं। ये बहुत से संगठन अपनी एक कौंसिल बना लेते हैं तथा प्रत्येक कौंसिल का एक मुखिया होता है। प्रत्येक कबाइली समाज इस कौंसिल के अन्दर ही कार्य करता है। कौंसिल का वातावरण लोकतान्त्रिक होता है। जनजाति का प्रत्येक सदस्य जनजाति के प्रति वफ़ादार होता है।

9. श्रम विभाजन (Division of Labour)-जनजातीय समाज में बहुत ही सीमित श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है। लोगों में अंतर के कई आधार होते हैं जैसे कि उम्र, लिंग, रिश्तेदारी इत्यादि। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य अथवा भूमिकाएं विशेष भी होती हैं जैसे कि एक मुखिया तथा एक पुजारी होता है। साथ में एक वैद्य भी होता है जो बीमारी के समय दवा देने का कार्य भी करता है।

10. स्तरीकरण (Stratification)-जनजातीय समाजों में वैसे तो स्तरीकरण होता ही नहीं है, अगर होता भी है तो वह भी सीमित ही होता है क्योंकि इन समाजों में न तो कोई वर्ग होता है तथा न ही कोई जाति व्यवस्था होती है। केवल लिंग अथवा रिश्तेदारी के आधार पर ही थोड़ा-बहुत स्तरीकरण पाया जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 2.
जनजातीय समाज के वर्गीकरण पर विस्तृत लेख लिखें।
अथवा
जनजातीय समाज के आर्थिक वर्गीकरण को लिखें।
उत्तर-
जनजातियां भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग हैं। भारतीय जनजातियों को प्रजाति, आर्थिक व एकीकरण के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. भारतीय जनजातियों का प्रजातीय वर्गीकरण-सर हरबर्ट रिज़ले ने भारतीय लोगों को वैज्ञानिक आधार पर वर्गीकृत किया है। उनके अनुसार भारत में तीन प्रकार की प्रजातियां द्राविड़, इण्डो-आर्यन तथा मंगोल लोग रहते हैं तथा ये एक-दूसरे में मिश्रित भी हैं। इस कारण भारतीय लोगों के रंग में अंतर होता है। इसलिए रिज़ले ने इन्हें सात प्रकार में विभाजित किया है

  • इण्डो आर्यन-इस प्रकार का जनजातीय समुदाय राजस्थान व कश्मीर में मिलता है। इसके सदस्यों में कश्मीरी, ब्राह्मण, क्षत्रिय व जाट आते हैं। शारीरिक दृष्टि से ये लंबे होते हैं, रंग साफ होता है, काली आँखें तथा चेहरे व शरीर
  • द्राविड़-ये लोग सिलॉन (Ceylon) से लेकर पश्चिमी बंगाल की गंगा घाटी तक फैले हुए हैं जिसमें चेन्नई, हैदराबाद, मध्य भारत व छोटा नागपुर शामिल है। इन्हें भारत के वास्तविक निवासी भी कहा जाता है। ये काले रंग के होते हैं। काली आंखें, लंबा सिर तथा चौड़ा नाक इनकी शारीरिक विशेषताएं हैं।
  • मंगोल-मंगोल जनजातियां हिमालय के नज़दीक के क्षेत्रों में मिलती हैं जिनमें उत्तर पूर्व सीमा के नज़दीक, नेपाल व बर्मा शामिल हैं। उनकी मुख्य शारीरिक विशेषताएं हैं-चौड़ा सिर, काला रंग व पीलापन तथा चेहरे पर कम बाल। उनका कद औसत से कम होता है।
  • आर्य-द्राविड़ (हिन्दुस्तानी)-इस प्रकार की जनजाति आर्य व द्राविड़ लोगों के मिश्रण के कारण सामने आई है। ये लोग उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ भागों तथा बिहार में मिलते हैं। इनका रंग हल्के भूरे से काले रंग तक का होता है। नाक मध्यम से चौड़ा तथा कद आर्य-द्राविड़ लोगों से छोटा होता है।
  • मंगोल-द्राविड (बंगाली)-इस प्रकार की जनजाति द्राविड़ तथा मंगोल लोगों के मिश्रण के कारण सामने आयी है। यह बंगाल व ओडीशा में मिलते हैं। इनके सिर चौड़े, रंग काला, चेहरे पर अधिक बाल तथा मध्यम कद होता
  • साईथो-द्राविड़-यह प्रकार साइथो तथा द्राविड़ लोगों का मिश्रण है। यह भारत के पश्चिमी भाग, गुजरात से लेकर कुर्ग तक में मिलते हैं। इनमें मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के लोग भी शामिल होते हैं। इनका कद मध्यम, साफ रंग, चौड़ा सिर व पतला नाक होता है।
  • तुर्की-ईरानी-ये लोग अफगानिस्तान, ब्लुचिस्तान तथा North-Western Frontier Province (पाकिस्तान) में मिलते हैं। शायद ये लोग तुर्की तथा पारसी तत्वों के मिश्रण से बने हैं।

2. भारतीय जनजातियों का आर्थिक वर्गीकरण-भारतीय जनजातियों को उनकी आर्थिकता के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है। प्रकृति, मनुष्य तथा आत्माएं सभी जनजातियों के लिए कई प्रकार के कार्य करते हैं। इस कारण इन्हें छः प्रकारों में विभाजित कर सकते हैं

(i) भोजन इकट्ठा करने वाले तथा शिकारी (Food gatherers and Hunters)-बहुत-से कबीले दूर-दूर के जंगलों तथा पहाड़ों पर रहते हैं। चाहे यातायात के साधनों के कारण बहुत-से कबीले मुख्य धारा में आकर मिल गए हैं तथा उन्होंने कृषि के कार्य को अपना लिया है। परन्तु फिर भी कुछ कबीले ऐसे हैं जो अभी भी भोजन इकट्ठा करके तथा शिकार करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे जड़ें, फल, शहद इत्यादि इकट्ठा करते हैं तथा छोटे-छोटे जानवरों का शिकार भी करते हैं। कुछ कबीले कई चीज़ों का लेन-देन भी करते हैं। इस तरह कृषि के न होने की सूरत में वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

जो कबीले इस प्रकार से अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं उनको प्राचीन कबीले कहा जाता है। ये लोग शिकार करने के साथ-साथ जंगलों से फल, शहद, जड़ें इत्यादि भी इकट्ठा करते हैं। इस तरह वे कृषि के बिना भी अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं। जिस प्रकार से वे जानवरों का शिकार करते हैं उससे उनकी संस्कृति के बारे में भी पता चल जाता है। उनके समाजों में औज़ारों तथा साधनों की कमी होती है जिस कारण ही वे. प्राचीन कबीलों के प्रतिरूप होते हैं। उनके समाजों में अतिरिक्त उत्पादन की धारणा नहीं होती है। इसका कारण यह है कि वे न तो अतिरिक्त उत्पादन को सम्भाल सकते हैं तथा न ही अतिरिक्त चीजें पैदा कर सकते हैं। वे तो टपरीवास अथवा घुमन्तु जीवन व्यतीत करते हैं। चेंचु, कटकारी, कमर, बैजा, खरिया, कुछ, पलियन इत्यादि कबीले साधारणतया इस प्रकार का जीवन जीते हैं।

(ii) स्थानान्तरित अथवा झूम कृषि करने वाले (Shifting Agriculturists)-झूम अथवा स्थानान्तरित प्रकार की कृषि कबीलों में काफ़ी प्राचीन समय से प्रचलित है। इस तरह की कृषि में कोई कबीला पहले तो जंगल के एक हिस्से को आग लगाकर अथवा काट कर साफ करता है। फिर उसके ऊपर वे कृषि करना प्रारम्भ कर देते हैं। कृषि के प्राचीन साधन होने के कारण उनको उत्पादन कम प्राप्त होता है। जब उत्पादन मिलना बन्द हो जाता है अथवा बहुत कम हो जाता है तो वे उस भूमि के हिस्से को छोड़कर किसी और हिस्से पर इस प्रकार से ही कृषि करते हैं। कृषि में इस प्रकार की बहुत आलोचना हुई है। लोहरा, नागा, खासी, कुकी, साऊरा, कोरवा इत्यादि कबीले इस प्रकार की कृषि करते हैं। इस प्रकार की कृषि से उत्पादन बहुत ही कम होता है जिस कारण कबीले वालों की स्थिति काफ़ी दयनीय होती है।

इस तरह की कृषि से क्योंकि उत्पादन बहुत ही कम होता है इसलिए इस प्रकार की कृषि को बंद करने की कोशिशें की जा रही हैं। अगर इस प्रकार की कृषि को बन्द न किया गया तो धीरे-धीरे जंगल खत्म हो जाएंगे तथा उन कबीलों की आर्थिक स्थिति और भी निम्न हो जाएगी। जंगलों के कटने से भूमि के खिसकने (Land erosion) का खतरा भी पैदा हो जाता है। चाहे देश के कई भागों में इस प्रकार की कृषि पर पाबन्दी लगा दी गई है परन्तु फिर भी देश के कई भागों में स्थानान्तरित कृषि अभी भी बदस्तूर चल रही है। इस तरह की कृषि को बंद करने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकार इन कबीलों को आर्थिक मदद अथवा इनके रोज़गार का प्रबन्ध करे ताकि इस कृषि के बन्द होने से उनकी रोजीरोटी का साधन ही खत्म न हो जाए।

(iii) चरवाहे (Pastoralists)-चरवाहा अर्थव्यवस्था जनजातीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पशुओं को पालते हैं जैसे कि दूध लेने के लिए, मीट के लिए, ऊन के लिए, भार ढोने के लिए इत्यादि। भारत में रहने वाले चरवाहे कबीले स्थायी जीवन व्यतीत करते हैं तथा मौसम के अनुसार ही चलते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कबीले अधिक सर्दी के समय मैदानी क्षेत्रों में अपने पशुओं के साथ चले जाते हैं तथा गर्मियों में वापस अपने क्षेत्रों में चले आते हैं। भारतीय कबीलों में प्रमुख चरवाहा कबीला हिमाचल प्रदेश में रहने वाला गुज्जर कबीला है जो व्यापार के उद्देश्य से गाय तथा भेड़ों को पालता है। इसके साथ-साथ तमिलनाडु के टोडस कबीले में भी यह प्रथा प्रचलित है। यह कबीला जानवरों को पालता है तथा उनसे दूध प्राप्त करता है। दूध को या तो विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है या फिर अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारतीय कबीलों में चरवाहे साधारणतया स्थापित जीवन व्यतीत करते हैं तथा उनसे कई प्रकार की चीजें जैसे कि दूध, ऊन, मांस इत्यादि प्राप्त करते हैं। वे पशुओं जैसे कि भेड़ों, बकरियों इत्यादि का व्यापार भी करते हैं।

(iv) किसान (Cultivators) बहुत से कबीले हल की सहायता से कृषि करते हैं। पुरुष तथा स्त्रियां दोनों ही इस प्रकार की कृषि में बराबर रूप से हिस्सेदार होते हैं। जिन कबीलों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है उनकी कृषि करने की तकनीक में भी बढ़ोत्तरी हो गयी है। मिजो, अपातालिस, ऊराओं, हो, थारो, गौंड कबीले इत्यादि इस प्रकार की कृषि करते हैं।

(v) दस्तकार (Artisons)-वैसे तो आमतौर पर सभी ही कबीले दस्तकारी का कार्य करते हैं परन्तु उनमें से कुछ कबीले ऐसे भी हैं जो केवल दस्तकारी के आधार पर अपना गुजारा करते हैं। कई कबीले अपनी आय बढ़ाने के लिए अपने अतिरिक्त समय में दस्तकारी का कार्य करते हैं। कबीले टोकरियां बनाकर, बुनकर, धातु के कार्य करके, सूत को कात कर अपना गुजारा करते हैं। वे बांस की चीजें बनाते हैं। चीनी के बर्तन, औज़ार बनाकर, बढ़ई का कार्य करके भी वे दस्तकारी का कार्य करते हैं। कबीलों के लोग मिट्टी तथा धातु के खिलौने बनाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

(vi) औद्योगिक मजदूरी (Industrial Labour) यातायात तथा संचार के साधनों का विकास होने से तथा जंगलों के कम होने से कबीले मुख्य धारा के नज़दीक आ रहे हैं। जंगलों के कम होने से उनके परम्परागत गुज़ारे के ढंग कम हो रहे हैं जिस कारण उनको गुज़ारा करने के लिए तथा पैसे कमाने के लिए नए तरीके ढूंढ़ने पड़ रहे हैं। इसी के बीच एक नई चीज़ औद्योगिक मज़दूरी सामने आयी है। औद्योगिक मज़दूरी के लिए या तो वह औद्योगिक क्षेत्रों में जाते हैं या फिर उनके क्षेत्रों में ही उद्योग लग जाते हैं। बहुत-से जनजातीय लोगों ने असम के चाय के बागानों, उद्योगों इत्यादि में नौकरी कर ली है। मध्य प्रदेश, बिहार तथा झारखण्ड के कबीलों के लोग वहां की खानों तथा उद्योगों में कार्य करने लग गए हैं। बहुत-से कबाइली लोग शहरों में गैर-विशेषज्ञ मज़दूरी (Non-Specialized Labour) का कार्य भी करते हैं।

3. एकीकरण के स्तर के आधार पर भारतीय जनजातियों का वर्गीकरण-जनजातियां भारतीय जनसंख्या का एक आवश्यक अंग हैं। इन्होंने अपनी अलग पहचान को बरकरार रखा है। उन्होंने गैर-जनजातीय लोगों के साथ भी अच्छा तालमेल बना लिया है जो उनके सम्पर्क में आए हैं। एल० पी० विद्यार्थी, बी० के० राए इत्यादि ने जनजातियों को चार भागों में विभाजित किया है-

  • जनजातीय समुदाय-वह जनजातियां जो अभी भी अपने वास्तविक स्थान पर रहती हैं तथा अपने विशेष ढंग से जीवन जीती हैं।
  • अर्द्ध-जनजातीय समुदाय-उन जनजातियों के लोग जो कम या अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बस चुके हैं तथा जिन्होंने कृषि या संबंधित पेशों को अपना लिया है।
  • संक्रमित जनजातीय समुदाय-वह जनजातीय समुदाय जो नगरीय या अर्द्ध-नगरीय क्षेत्रों की तरफ प्रवास कर रहे हैं तथा आधुनिक पेशों को अपना रहे हैं जैसे कि उद्योगों में कार्य करने वाले। इन्होंने नगरीय लक्षणों का अपना लिया
  • पूर्ण समावेशी जनजातीय समुदाय-यह वह जनजातीय समुदाय हैं जिन्होंने पूर्णतया हिन्दू धर्म को अपना लिया है।

प्रश्न 3.
वन कटाव क्या है ? वन कटाव हेतु उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालें।
अथवा
वन कटाव क्या है ? वन कटाव के लिए जिम्मेवार कारणों की चर्चा कीजिए।
अथवा
वन कटाव क्या है? वन कटाव के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वातावरण के पतन के प्रमुख कारणों में से एक वनों का कटाव है। इसका अर्थ है वृक्षों का काटा जाना। वृक्षों के कटने के अतिरिक्त कृषि वाले क्षेत्र का बढ़ना तथा चरागाहों के कारण भी वनों का कटाव बढ़ता है। पुराने समय में जनजातियों के लोग अपना गुजारा कर लेते थे क्योंकि उनके पास वन तथा अन्य प्राकृतिक स्रोत मौजूद थे। वह अपना गज़ारा करने के लिए वनों पर निर्भर थे। परन्तु औद्योगीकरण, नगरीकरण, कृषि, जनसंख्या के बढ़ने, लकड़ी की आवश्यकता बढ़ने के कारण वनों का कटाव बढ़ गया है जिसका जनजातियों के गुजारे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। जंगलों के कम होने का वातावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है।

वनों के कटाव के कारण (Causes of Deforestation)-

(i) कृषि के लिए-जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि की भूमि की कमी हो गई। इस कारण वनों को काटा गया ताकि कृषि के अन्तर्गत भूमि को बढ़ाया जा सके। वह किसान जिनके पास भूमि नहीं होती, वह जंगलों को काट देते हैं ताकि वह अपनी आजीविका कमा सकें। बहुत से आदिवासी स्थानांतरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को काटते हैं।

(ii) लकड़ी के लिए वनों को काटना-बहुत से उद्योगों में लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जिस कारण वनों को काटा जाता है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ घरों के लिए तथा फर्नीचर के लिए लकड़ी की लगातार आवश्यकता पड़ती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद तो लकड़ी की माँग काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस कारण लकड़ी को भारत में जंगलों से हासिल किया गया क्योंकि यह लकड़ी बढ़िया होती थी तथा मज़दूरी भी सस्ती होती थी।

(iii) भोजन बनाने के लिए वनों को काटना-चाहे खाना बनाने के लिए वनों से लकड़ी एकत्र करके वनों की कमी नहीं होती परन्तु फिर भी लकड़ी को जलाया जाता है ताकि खाना बनाया जा सके व गर्मी प्राप्त की जा सके। इस कारण जनजातीय लोग पेड़ काटते हैं, लकड़ी एकत्र करके रखते हैं तथा उससे कोयला बनाते हैं।

(iv) औद्योगीकरण व नगरीकरण-उद्योगों को बनाने के लिए व नगरों को बसाने के लिए भूमि की आवश्यकता थी। इस कारण वनों को काटकर भूमि को साफ किया गया। इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा तथा वनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। इस कारण जनजातीय लोगों को भी अपने घर बार छोड़ने पड़े।

(v) चरागाहों को बढ़ाने के लिए-बढ़ते जानवरों की खाने की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए चरागाहों को बढ़ाया गया। इस वजह से वनों को साफ किया गया तथा घास को उगाया गया। इस प्रकार वनों को काटा गया।

(vi) कागज़ उद्योग के लिए-लकड़ी को कागज़ के रूप में बदला जाता है जोकि पढ़ाई-लिखाई, व्यापार तथा अन्य बहुत से क्षेत्रों में काम आता है। पिछले कुछ दशकों से कागज़ की खपत सम्पूर्ण संसार में काफी बढ़ गई है। लकडी का गुदा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कागज़ के बनने के कारण वनों की कटाई बढ़ गई।

(vii) व्यापारिक कार्यों के लिए-बहुत सी कम्पनियां लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करती हैं जिस कारण वह विशेष प्रकार के पेड़ लगाने पर बल देती हैं। इस प्रकार जो पेड़ वह लगाते हैं उन्हें जल्दी ही काट दिया जाता है। इस कारण वनों की कटाई में बढ़ौतरी होती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 4.
विस्थापन क्या है ? इसका विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
विस्थापन के लिए भूमि अधिग्रहण तथा बाँध निर्माण उत्तरदायी कारण हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
किसी को उसके रहने के वास्तविक स्थान से उजाड़ कर अन्य स्थान पर लेकर जाने को विस्थापन कहते हैं। यह उन समस्याओं में से एक है जिनका सामना जनजातीय लोग कर रहे हैं। लोगों को उनके वास्तविक स्थान से विस्थापित करने से उन्हें बहुत-सी मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जनजातीय जनता औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के प्रभावों को झेल रही है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत से प्राकृतिक स्रोत होते हैं तथा उन स्रोतों का कच्चे माल, शक्ति तथा बाँध (Dam) बनाने के लिए शोषण किया जाता हैं। इस प्रकार जनजातीय लोगों को उनकी भूमि से हटा दिया जाता है तथा मुआवजे के रूप में थोड़े बहुत पैसे दे दिए जाते है। वह उस पैसे को नशा करने या अन्य फालतू कार्यों पर खर्च कर देते हैं। इस प्रकार उनके पास न तो भूमि रहती है व न ही पैसा। उन्हें गुज़ारा करने के लिए उद्योगों में मजदूरों के रूप में कार्य करना पड़ता है। चाहे औद्योगीकरण के कारण जनजातीय लोगों को रोजगार मिल जाता है परन्तु अनपढ़ता के कारण वे शिक्षित या अर्द्ध शिक्षित नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते।

कई विद्वानों का कहना है कि मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में स्टील के कारखाने लगने के कारण बहुत से जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से उजाड़ा गया। उनमें से बहुत ही कम लोग सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ उठा सके हैं। उन लोगों को जो भूमि दी गई वहां पर सिंचाई का प्रबन्ध नहीं था जिस कारण वह भूमि उनके लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हो पाई।

उन्हें भूमि के बदले जो पैसा दिया जाता है उसे ठीक ढंग से प्रयोग नहीं किया जाता। इसे उस समय तक जीवन जीने के लिए प्रयोग किया जाता है जब तक कोई अन्य कार्य नहीं मिल जाता। इसके अतिरिक्त उद्योगों की तरफ से अथवा नगर बसाने वालों की तरफ से कोई अन्य स्थान नहीं दिया जाता। उद्योगों के मालिक जनजातीय लोगों का लाभ करने के स्थान पर अपने उद्योग स्थापित करने तथा मुनाफा कमाने की तरफ ही ध्यान देते हैं। जनजातीय लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता जिस कारण वह छोटे-छोटे कच्चे घर बनाकर शहरों के बाहर बस्तियां बना कर रहते हैं ये बस्तियां गंदी बस्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। इससे उन्हें बहुत सी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज में हुए सामाजिक परिवर्तनों का विवेचन करें।
उत्तर-
1. सामाजिक संरचना में आ रहे परिवर्तन (Changes in Social Structure)—सभी जनजातियों के सामाजिक जीवन का मुख्य आधार रिश्तेदारी अथवा नातेदारी तथा परिवार हैं। अलग-अलग जनजातियों में इन सामाजिक संस्थाओं तथा उन संस्थाओं में सम्बन्ध परिवर्तित हो रहे हैं। जनजातियों के संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं तथा केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आ रहे हैं। पितृवंशी जनजातियों जैसे कि हो, गौंड, भील इत्यादि में इस प्रकार का परिवर्तन आ रहा है। परन्तु मातृवंशी कबीलों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आ रहा है। इन जनजातियों के परिवार अभी भी मातृस्थानीय तथा मातृ प्रधान हैं। परिवार में निर्णय लेने का अधिकार अभी भी परिवार के मुखिया के हाथों में हैं। कई जनजातियों जैसे कि भील, गौंड, नागा, बोंगा इत्यादि में पहले बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी। परन्तु आधुनिकीकरण के कारण इन जनजातियों में एकविवाही परिवार अस्तित्व में आ रहे हैं। जनजातियों की सामाजिक व्यवस्था में कुल (Clan) व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब तक जनजातियों के लोग एक निश्चित इलाके में रहते थे तब कुल बहुत ही शक्तिशाली हुआ करते थे। परन्तु जब से जनजातीय लोग काम की तलाश में जनजातियों से बाहर उद्योगों की तरफ जाना शुरू हो गए हैं, व्यक्ति पर कुलों का नियन्त्रण कम हो गया है। अब कुल नियन्त्रण का साधन नहीं रहे। अब तो कुलों का महत्त्व केवल विवाह के समय ही देखने को मिलता है।

चाहे जनजातियों की नातेदारी व्यवस्था में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आए हैं परन्तु यातायात के साधनों के विकसित होने के कारण नातेदारी का क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया है। भील, संथाल इत्यादि जनजातियों अपने बच्चों का विवाह बहुत दूर-दूर के क्षेत्रों में करते हैं। यातायात के साधनों के कारण वह एक-दूसरे के पास बहुत ही आसानी से जा सकते हैं। इस कारण अब नातेदारी छोटे क्षेत्र से बढ़ कर बड़े क्षेत्र में फैल गई है।

जनजातीय समाज की विवाह की प्रथा में भी बहुत परिवर्तन आए हैं। कई जनजातियों में बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे जोकि अब कम होते जा रहे हैं तथा एक विवाह करने की प्रथा आगे आ रही है। जनजातियों में विवाह करने के ढंग भी बदलते जा रहे हैं। अपहरण विवाह तो बिल्कुल ही खत्म हो गए हैं क्योंकि कानूनन अपहरण करना एक अपराध माना गया है। इसी तरह गौंड तथा बोंगा जनजातियों में प्रचलित सेवा विवाह की प्रथा भी कम हो रही है। विवाह करने की परम्परागत प्रथाएं खत्म हो रही हैं तथा एक विवाह करने की व्यवस्था को अपनाया जा रहा है। जनजातियों के लोग हिन्दू समाज के नज़दीक होने के कारण, हिन्दू समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं को अपना रहे हैं।

जनजातियों में धर्म को जीववाद (Animism) की श्रेणी में रखा जाता है। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार के आने के कारण उनके धर्म में कई परिवर्तन आने शुरू हो गए हैं। इसका कारण यह है कि वह दूसरे समूहों के सम्पर्क में आना शुरू हो गए हैं जिससे उनका सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ है। उनमें धर्म परिवर्तन होना भी शुरू हो गया है। कुछ लोगों ने तो हिन्दू धर्म को अपना लिया है तथा कुछ लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है। इन्होंने जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय होने वाले संस्कार भी हिन्दू धर्म अपना लिए हैं। अब सभी जनजातीय मरे हुए व्यक्ति का दाह संस्कार करते हैं। वह विवाह के समय हवन करते हैं तथा अग्नि के इर्द-गिर्द फेरे भी लेते हैं। अब वह हिन्दुओं के त्योहारों को भी धूमधाम से मनाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जनजातीय हिन्दू सामाजिक व्यवस्था का अंग बन गए हैं। ईसाई मिशनरियों ने जनजातियों की भलाई के लिए काफ़ी कार्य किया जिस कारण बहुत से कबाइली लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है।

2. शिक्षा के कारण परिवर्तन (Changes due to Education)-भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् जनजातियों में शिक्षा लेने के सम्बन्धी विचारधारा में बहुत परिवर्तन आए हैं तथा शिक्षा का बहुत अधिक प्रसार हुआ है। आंकड़े कहते हैं कि बहुत-से जनजातीय लोग प्राइमरी तक या मिडिल तक ही पढ़ते हैं। परन्तु अगर वह कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के स्तर तक पहुंच जाते हैं तो उनको नौकरी आसानी से मिल जाती है क्योंकि उनके लिए सीटें आरक्षित होती हैं । चौहान के अनुसार राजस्थान के जनजातियों में बच्चे प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त करते हैं परन्तु इसके बाद उनकी संख्या कम होती जाती है। अगर उनमें से कोई उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो वह उच्च श्रेणी में पहुंच जाता है। नायक के अनुसार जो भील लोग शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं, उनकी सामाजिक स्थिति काफ़ी उच्च हो जाती है। नायक के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के बाद भील लोग केन्द्रीय परिवार ही पसन्द करते हैं तथा कृषि और परम्परागत पेशों को छोड़ कर और कोई पेशा अपना रहे हैं। शिक्षा के कारण उनमें राजनीतिक चेतना भी आई है। भील लोगों के कई सुधारवादी आन्दोलन भी चले जिनमें पढ़े-लिखे लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

3. अर्थव्यवस्था में परिवर्तन (Change in Economy)-प्राचीन समय में जनजातीय लोग सिर्फ अपनी ज़रूरतों के लिए (Subsistence) उत्पादन किया करते थे। वह आवश्यकता से अधिक उत्पादन नहीं करते थे। आधुनिकीकरण के कारण उनकी आर्थिकता भी बदल रही है। यातायात तथा संचार के साधनों के विकास होने के कारण वह अब दूरदूर के इलाकों से जुड़ गए हैं। अब उनकी अर्थव्यवस्था निर्वाह (Subsistence) से मण्डी की आर्थिकता की तरफ बदल गई है। इस कारण अब वह जल्दी बिकने वाली फसलें अधिक उगाते हैं। अब वह आवश्यकता से अधिक पैदा करते हैं तथा अधिक उत्पादन को मण्डियों में बेचते हैं। सरकार की तरफ से जनजातियों को दी गई आर्थिक सुरक्षा तथा पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यक्रमों के कारण अब उनकी आर्थिकता देश की आर्थिकता में मिलती जा रही है। परन्तु इससे उनकी आर्थिक व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है। उनकी प्रति व्यक्ति आय देश की आय की तुलना में काफ़ी कम है।

अब जनजातियों के लोगों को जायदाद रखने के अधिकार प्रदान किए गए हैं क्योंकि संविधान में भारत के सभी नागरिकों को जायदाद रखने का अधिकार दिया है। अब जनजातियों के लोग अपनी मर्जी से कोई भी पेशा अपना सकते हैं। वह सरकारी बैंकों से कर्जा भी ले सकते हैं।

अब जनजातीय लोग शहरों में जाकर उद्योगों में कार्य करने लग गए हैं तथा शहरों में रहकर ही कोई कार्य करने लग गए हैं। अब उनके लिए रोजी-रोटी कमाने के लिए और साधन भी पैदा हो गए हैं। जो जनजातीय लोग अधिक पैसा कमा रहे हैं उनकी सामाजिक स्थिति भी ऊंची हो रही है। यह लोग आर्थिक तौर पर ऊंचे होने के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी जनजातियों के नेता बन गए हैं तथा पंचायतों या और लोकतान्त्रिक संस्थाओं में चुने जा रहे हैं। यह लोग अब उच्च वर्ग में पहुंच गए हैं। अमीर लोग अधिक अमीर हो रहे हैं तथा गरीब लोग अधिक गरीब हो रहे हैं। अमीर तथा गरीब के बीच का अन्तर बढ़ता जा रहा है।

एफ० जी० बेली (F. G. Bailey) के अनुसार गौंड जनजातीय के लोग उड़ीसा में देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में आ गए हैं तथा इस तरह ही वह राजनीतिक क्षेत्र में आ गए हैं। इस प्रकार जनजातियों के लोग देश की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बन गए हैं।

मण्डी अर्थव्यवस्था से जनजातियों के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हो गया है। उनकी आवश्यकताएं तथा इच्छाएं बहुत ही बढ़ गई हैं। अब वह हाथ से कार्य करने की जगह सफेदपोश नौकरियां करनी पसन्द करते हैं। कबाइली उच्च वर्ग ने निम्न वर्ग का शोषण करना भी शुरू कर दिया है।

4. राजनीतिक परिवर्तन (Political Change)-प्राचीन समय में जनजातियों के राजनीतिक कार्य कुलों (Clans) द्वारा चलते थे जिस कारण जनजातीय क्षेत्रों में हमेशा संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी। इसका कारण यह है कि अलग-अलग कुल राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते रहते थे। देश की स्वतन्त्रता के बाद कबीलों के राजनीतिक जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। अब उनकी राजनीति में कुल अथवा नातेदारी का कोई महत्त्व नहीं है। अब सम्पूर्ण देश में एक जैसी राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हो गई है। इस कारण जनजातियों की परम्परागत राजनीतिक व्यवस्था तो बिल्कुल ही खत्म हो गई है। कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार अब परम्परागत जनजातीय राजनीतिक व्यवस्था की जगह नई प्रजातान्त्रिक व्यवस्था स्थापित हो गई है। इस कारण जनजातियों की नेतृत्व की प्रकृति भी बदल गई है। अब नेतृत्व रिश्तेदारी पर आधारित नहीं होता है। अब परम्परागत राजनीतिक संघ कमजोर पड़ गए हैं तथा उनके कार्य सरकारी प्रशासन कर रहा है। अब अगर कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसका फैसला अदालत में होता है जनजातीय पंचायत में नहीं। इस कारण जनजातीय पंचायतों का महत्त्व काफ़ी कम हो गया है चाहे सिविल मामलों के फैसले अब भी वह ही करती हैं।

5. सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन (Socio-Cultural Change)-सांस्कृतिक पक्ष से भी जनजातियों के लोगों के परम्परागत रीति-रिवाज बदल रहे हैं। यह परिवर्तन सात्मीकरण की प्रक्रिया के कारण आ रहे हैं। बहुत से जनजातियों के लोग ईसाई प्रभाव के अन्तर्गत रहन-सहन के पश्चिमी ढंग अपना रहे हैं। इन लोगों पर हिन्दू धर्म के रस्मों-रिवाजों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। इनकी भाषा, खाने-पीने के ढंग, कपड़े पहनने के ढंग भी बदल रहे हैं। आधुनिक शिक्षा के प्रसार ने भी इनकी संस्कृति में काफ़ी परिवर्तन ला दिया है। __बहुत से जनजातीय जो पहले हिन्दू धर्म के संस्कारों में विश्वास नही रखते थे अब वह जीवन के कई अवसरों जैसे कि जन्म, विवाह, मृत्यु, इत्यादि के समय ब्राह्मणों को बुलाने लग गए हैं। जनजातियों के लोगों ने दूसरे समूहों के लोगों के परिमापों तथा मूल्यों को भी अपनाना शुरू कर दिया है। इन परिवर्तनों के कारण ही अब वह हिन्दू समाज से जुड़ना शुरू हो गए हैं तथा उनका अलगपन भी लगभग खत्म होता जा रहा है।

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प्रश्न 6.
वन कटाव तथा विस्थापन में अन्तर बताएं।
उत्तर-
वातावरण के पतन के प्रमुख कारणों में से एक वनों का कटाव है। इसका अर्थ है वृक्षों का काटा जाना। वृक्षों के कटने के अतिरिक्त कृषि वाले क्षेत्र का बढ़ना तथा चरागाहों के कारण भी वनों का कटाव बढ़ता है। पुराने समय में जनजातियों के लोग अपना गुजारा कर लेते थे क्योंकि उनके पास वन तथा अन्य प्राकृतिक स्रोत मौजूद थे। वह अपना गज़ारा करने के लिए वनों पर निर्भर थे। परन्तु औद्योगीकरण, नगरीकरण, कृषि, जनसंख्या के बढ़ने, लकड़ी की आवश्यकता बढ़ने के कारण वनों का कटाव बढ़ गया है जिसका जनजातियों के गुजारे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। जंगलों के कम होने का वातावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है।

वनों के कटाव के कारण (Causes of Deforestation)-

(i) कृषि के लिए-जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि की भूमि की कमी हो गई। इस कारण वनों को काटा गया ताकि कृषि के अन्तर्गत भूमि को बढ़ाया जा सके। वह किसान जिनके पास भूमि नहीं होती, वह जंगलों को काट देते हैं ताकि वह अपनी आजीविका कमा सकें। बहुत से आदिवासी स्थानांतरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को काटते हैं।

(ii) लकड़ी के लिए वनों को काटना-बहुत से उद्योगों में लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जिस कारण वनों को काटा जाता है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ घरों के लिए तथा फर्नीचर के लिए लकड़ी की लगातार आवश्यकता पड़ती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद तो लकड़ी की माँग काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस कारण लकड़ी को भारत में जंगलों से हासिल किया गया क्योंकि यह लकड़ी बढ़िया होती थी तथा मज़दूरी भी सस्ती होती थी।

(iii) भोजन बनाने के लिए वनों को काटना-चाहे खाना बनाने के लिए वनों से लकड़ी एकत्र करके वनों की कमी नहीं होती परन्तु फिर भी लकड़ी को जलाया जाता है ताकि खाना बनाया जा सके व गर्मी प्राप्त की जा सके। इस कारण जनजातीय लोग पेड़ काटते हैं, लकड़ी एकत्र करके रखते हैं तथा उससे कोयला बनाते हैं।

(iv) औद्योगीकरण व नगरीकरण-उद्योगों को बनाने के लिए व नगरों को बसाने के लिए भूमि की आवश्यकता थी। इस कारण वनों को काटकर भूमि को साफ किया गया। इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा तथा वनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। इस कारण जनजातीय लोगों को भी अपने घर बार छोड़ने पड़े।

(v) चरागाहों को बढ़ाने के लिए-बढ़ते जानवरों की खाने की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए चरागाहों को बढ़ाया गया। इस वजह से वनों को साफ किया गया तथा घास को उगाया गया। इस प्रकार वनों को काटा गया।

(vi) कागज़ उद्योग के लिए-लकड़ी को कागज़ के रूप में बदला जाता है जोकि पढ़ाई-लिखाई, व्यापार तथा अन्य बहुत से क्षेत्रों में काम आता है। पिछले कुछ दशकों से कागज़ की खपत सम्पूर्ण संसार में काफी बढ़ गई है। लकडी का गुदा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कागज़ के बनने के कारण वनों की कटाई बढ़ गई।

(vii) व्यापारिक कार्यों के लिए-बहुत सी कम्पनियां लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करती हैं जिस कारण वह विशेष प्रकार के पेड़ लगाने पर बल देती हैं। इस प्रकार जो पेड़ वह लगाते हैं उन्हें जल्दी ही काट दिया जाता है। इस कारण वनों की कटाई में बढ़ौतरी होती है।

किसी को उसके रहने के वास्तविक स्थान से उजाड़ कर अन्य स्थान पर लेकर जाने को विस्थापन कहते हैं। यह उन समस्याओं में से एक है जिनका सामना जनजातीय लोग कर रहे हैं। लोगों को उनके वास्तविक स्थान से विस्थापित करने से उन्हें बहुत-सी मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जनजातीय जनता औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के प्रभावों को झेल रही है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत से प्राकृतिक स्रोत होते हैं तथा उन स्रोतों का कच्चे माल, शक्ति तथा बाँध (Dam) बनाने के लिए शोषण किया जाता हैं। इस प्रकार जनजातीय लोगों को उनकी भूमि से हटा दिया जाता है तथा मुआवजे के रूप में थोड़े बहुत पैसे दे दिए जाते है। वह उस पैसे को नशा करने या अन्य फालतू कार्यों पर खर्च कर देते हैं। इस प्रकार उनके पास न तो भूमि रहती है व न ही पैसा। उन्हें गुज़ारा करने के लिए उद्योगों में मजदूरों के रूप में कार्य करना पड़ता है। चाहे औद्योगीकरण के कारण जनजातीय लोगों को रोजगार मिल जाता है परन्तु अनपढ़ता के कारण वे शिक्षित या अर्द्ध शिक्षित नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते।

कई विद्वानों का कहना है कि मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में स्टील के कारखाने लगने के कारण बहुत से जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से उजाड़ा गया। उनमें से बहुत ही कम लोग सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ उठा सके हैं। उन लोगों को जो भूमि दी गई वहां पर सिंचाई का प्रबन्ध नहीं था जिस कारण वह भूमि उनके लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हो पाई।

उन्हें भूमि के बदले जो पैसा दिया जाता है उसे ठीक ढंग से प्रयोग नहीं किया जाता। इसे उस समय तक जीवन जीने के लिए प्रयोग किया जाता है जब तक कोई अन्य कार्य नहीं मिल जाता। इसके अतिरिक्त उद्योगों की तरफ से अथवा नगर बसाने वालों की तरफ से कोई अन्य स्थान नहीं दिया जाता। उद्योगों के मालिक जनजातीय लोगों का लाभ करने के स्थान पर अपने उद्योग स्थापित करने तथा मुनाफा कमाने की तरफ ही ध्यान देते हैं। जनजातीय लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता जिस कारण वह छोटे-छोटे कच्चे घर बनाकर शहरों के बाहर बस्तियां बना कर रहते हैं ये बस्तियां गंदी बस्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। इससे उन्हें बहुत सी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनजातियों के लोग कहाँ पर रहते हैं ?
(क) जंगलों में
(ख) पहाड़ों में
(ग) घाटियों में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से जनजातियों के लोगों को किस अन्य नाम से पुकारा जाता है ?
(क) वनवासी
(ख) आदिम जाति
(ग) अनुसूचित जनजाति
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने जनजातियों को क्या नाम दिया था ?
(क) पहाड़ी
(ख) अनुसूचित जनजातीय
(ग) आदिवासी
(घ) वनवासी।
उत्तर-
(ख) अनुसूचित जनजातीय।

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प्रश्न 4.
देश की जनसंख्या में जनजातियों की जनसंख्या का प्रतिशत कितना है ?
(क) 8.2%
(ख) 9.2%
(ग) 7.2%
(घ) 10.2%
उत्तर-
(क) 8.2%.

प्रश्न 5.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है ?
(क) संथाल
(ख) नागा
(ग) भील
(घ) मुण्डा ।
उत्तर-
(क) संथाल।

प्रश्न 6.
जनजातियों का नस्लीय वर्गीकरण किसने दिया था ?
(क) मजूमदार
(ख) मदान
(ग) सर हरबर्ट रिज़ले
(घ) नदीम हसनैन।
उत्तर-
(ग) सर हरबर्ट रिज़ले।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति की एक स्थिति से दूसरी स्थिति में गति की क्रिया क्या कहलाती है ?
(क) विस्थापन
(ख) गतिशीलता
(ग) भूमि अधिग्रहण
(घ) वन कटाव।
उत्तर-
(ख) गतिशीलता।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. गौंड जनजाति……… समूह से संबंध रखती है।
2. भील लोगों में जीवन जीने का मुख्य पेशा ………… है।
3. कन्या मूल्य प्रथा ……….. जनजाति में प्रचलित है।
4. ……………. के कारण जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से निकाला जा रहा है।
5. …………. प्रकार के परिवार में सत्ता माता के हाथों में होती है।
उत्तर-

  1. द्राविड़
  2. कृषि
  3. संथाल
  4. विस्थापन
  5. मातृसत्तात्मक।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. झूम कृषि जनजातियों के लोग करते हैं।
2. गौंड जनजाति पंजाब में मिलती है।
3. भारत में सात जनजातियां हैं जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है।
4. सत्ता के आधार पर परिवार के दो प्रकार होते हैं।
5. रहने के स्थान के आधार पर चार प्रकार के परिवार होते हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. भारत के किस भाग में सबसे अधिक जनजातियां रहती हैं ?
उत्तर-मध्य भारत तथा उत्तर पश्चिमी हिस्से में देश की सबसे अधिक जनजातियां रहती हैं।

प्रश्न 2. जनजातियों के लोग कहाँ रहते है ?
उत्तर-जनजातियों के लोग हमारी सभ्यता से दूर जंगलों, पहाड़ों तथा घाटियों में रहते हैं।

प्रश्न 3. जनजातियों को किन अन्य नामों से जाना जाता है ?
उत्तर-उन्हें वन्यजाति, वनवासी, पहाड़ी, आदिम जाति, आदिवासी, जनजाति तथा अनुसूचित जनजाति जैसे नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 4. संविधान में जनजातियों को किस नाम से जाना जाता है।
उत्तर-संविधान में जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों के नाम से जाना जाता है ?

प्रश्न 5. किसने जनजातियों को आदिवासी के स्थान पर अनुसूचित जनजाति का नाम दिया ?
उत्तर-डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने उन्हें अनुसूचित जनजाति का नाम दिया था।

प्रश्न 6. शब्द जनजाति कहाँ से निकला है ?
उत्तर-शब्द जनजाति लातीनी भाषा के शब्द Tribuz से बना है जिसका अर्थ है एक तिहाई।

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प्रश्न 7. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में अनुसूचित जनजातियों का नाम दर्ज है ?
उत्तर-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियों का नाम दर्ज है।

प्रश्न 8. नागा, खासी तथा टोडा जनजातियां कहां रहती हैं ?
उत्तर-नागा लोग नागालैंड में, खासी लोग असम में तथा टोडा लोग नीलगिरी पहाड़ियों में रहते हैं।

प्रश्न 9. गोंड तथा भील लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-गोंड लोग गोंडी भाषा तथा भील लोग भीली भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 10. संथाल तथा मुण्डा जनजाति कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-संथाल लोग संथाली भाषा तथा मुण्डा लोग मुण्डारी भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 11. भारतीय जनसंख्या का कितना प्रतिशत जनजातियां हैं ?
उत्तर-2011 में जनजातियों का प्रतिशत 8.2% था।

प्रश्न 12. भारत के कौन-से राज्यों में जनजातियों की जनसंख्या सबसे अधिक तथा कम है ?
उत्तर-मिज़ोरम में जनजातियों की जनसंख्या का प्रतिशत सबसे अधिक तथा गोवा में सबसे कम है।

प्रश्न 13. भारत के कौन-से केंद्र शासित प्रदेशों में जनजातियों की जनसंख्या अधिक तथा कम है ?
उत्तर-लक्षद्वीप में इनकी जनसंख्या सबसे अधिक तथा अण्डेमान व निकोबार में सबसे कम है।

प्रश्न 14. भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है तथा यह कहाँ मिलती है ?
उत्तर-संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है तथा यह पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड तथा ओडिशा में मिलती है।

प्रश्न 15. जनजातीय समाज में श्रम विभाजन किस आधार पर होता है ?
उत्तर-जनजातीय समाज में श्रम विभाजन आयु तथा लिंग के आधार पर होता है।

प्रश्न 16. जनजातीय समाज में किस प्रकार की आर्थिकता होती है ?
उत्तर-जनजातीय समाजों में निर्वाह व्यवस्था के साथ-साथ लेन-देन की व्यवस्था मौजूद होती है।

प्रश्न 17. किसने भारतीय जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है ?
उत्तर-सर हरबर्ट रिज़ले ने भारतीय जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है।

प्रश्न 18. झूम कृषि के अलग-अलग नाम बताएं।
उत्तर-झूम कृषि को भारत में झूमिंग, मैक्सिको में मिलपा, ब्राज़ील में रोका तथा मलेशिया में लडांण्ग के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19. भारत की उन सात जनजातियों के नाम बताएं जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है ?
उत्तर-गोंड, भील, संथाल, मीना, उराओं, मुण्डा तथा खौंड।

प्रश्न 20. गोंड जनजाति कहाँ मिलती है ?
उत्तर-गोंड जनजाति मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा में मिलता है।

प्रश्न 21. गोंड जनजाति कौन-सी भाषा बोलती है ?
उत्तर-गोंड जनजाति गौंडी तथा छतीसगड़ी भाषा बोलती है।

प्रश्न 22. भील जनजाति कहाँ पर मिलती है ?
उत्तर-भील जनजाति मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, त्रिपुरा इत्यादि में मिलती है।

प्रश्न 23. भील लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं तथा उनका महत्त्वपूर्ण त्योहार बताएं।
उत्तर- भील लोग भीली भाषा बोलते हैं तथा होली उनका प्रमुख त्योहार है।

प्रश्न 24. संथाल जनजाति कहाँ मिलती है ?
उत्तर-संथाल जनजाति बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड तथा ओडिशा में मिलती है।

प्रश्न 25. संथाल लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-संथाल लोग संथाली, उड़िया, बांग्ला तथा बिहार वाली हिंदी बोलते हैं।

प्रश्न 26. सत्ता के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-सत्ता के आधार पर दो प्रकार की जनजातियां मिलती हैं-पितृ सत्तात्मक तथा मातृसत्तात्मक।

प्रश्न 27. रहने के स्थान के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-चार प्रकार की-पितृ स्थानीय, मातृ-स्थानीय, द्वि-स्थानीय व नवस्थानीय जनजातियां।

प्रश्न 28. वंश के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-तीन प्रकार के-पितृ वंशी, मातृवंशी व द्विवंशी जनजातियां।

प्रश्न 29. जनजातीय समाजों में विवाह के कितने प्रकार मिलते हैं ?
उत्तर-जनजातीय समाजों में विवाह करने के नौ प्रकार मिलते हैं।

प्रश्न 30. केन्द्रीय भारत में कौन-सी जनजातियाँ निवास करती हैं?
उत्तर-गोंड, भील, संथाल, ओरायोन्स जैसी जनजातियाँ केन्द्रीय भारत में निवास करती है।

प्रश्न 31. जी०एस० घूर्ये ने जनजातियों को क्या नाम दिया था?
उत्तर-जी०एस० घूर्ये ने जनजातियों को पिछड़े हिन्दू का नाम दिया था।

प्रश्न 32. भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है तथा यह कहाँ पाई जाती है?
उत्तर-संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है तथा यह पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड व ओडिशा में पाई जाती

प्रश्न 33. जनजातीय समाज की एक विशेषता बताए।
उत्तर-एक जनजाति परिवारों का एकत्र है जो एक साझे क्षेत्र में रहती है तथा जिसका एक साझा नाम व भाषा होती है।

प्रश्न 34. किन्हीं दो मातृवंशीय जनजातियों के नाम बताएँ।
उत्तर-गारो तथा खासी मातृवंशीय जनजातियां है।

प्रश्न 35. जनजातियों की आर्थिकता की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-जनजातियों की अर्थव्यवस्था छोटे पैमाने पर जीविकोपार्जन तथा सामान्य तकनीक के प्रयोग से उनकी परिस्थितियाँ के अनुरूप होती है।

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III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किन जनजातियों को अनुसूचित जनजाति कहा जाता है ?
उत्तर-
हमारे देश भारत में बहुत सी जनजातियां अलग-अलग क्षेत्रों में रहती हैं। जिन जनजातियों के नाम संविधान की अनुसूची में दर्ज है तथा जो अपनी जनजातीय स्थिति को बना कर रख रहे हैं, उन्हें अनुसूचित जनजातियां कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जनजाति क्या होती है ?
उत्तर-
जनजाति एक सामाजिक समूह होता है जो एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में प्राकृतिक स्थितियों में रहता है तथा जिसके लोगों के बीच सांस्कृतिक समानता तथा एकीकृत सामाजिक संगठन होता है। इनकी अपनी ही भाषा तथा धर्म होता है।

प्रश्न 3.
अलग-अलग विद्वानों ने जनजातियों को कौन-सा नाम दिया है ?
उत्तर-
वैसे तो जनजातियों को आदिवासी कहा जाता है। परन्तु जी० एस० घूर्ये ने इन्हें पिछड़े हिंदू कहा है। महात्मा गांधी ने इन्हें गिरीजन कहा है। जे० एच० हट्टन ने इन्हें आदिम जनजाति तथा भारतीय संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति कहा गया है

प्रश्न 4.
संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-

  • आदिम विशेषताएं
  • भौगोलिक अलगपन
  • विशेष संस्कृति
  • नज़दीक के समूहों से सम्पर्क करने में शर्म
  • आर्थिक रूप से पिछड़े हुए।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • जनजातीय समाज एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसे हम परिवारों का समूह भी कह सकते हैं।
  • प्रत्येक जनजाति की अपनी ही एक विशेष संस्कृति, भाषा तथा धर्म होता है। वह किसी को भी अपने मामले में दखल नहीं देने देते।

प्रश्न 6.
मुखियापन का क्या अर्थ है ?
उत्तर–
प्रत्येक जनजाति की अपनी एक राजनीतिक व्यवस्था होती है जिसका मुखिया शारीरिक शक्ति, आयु अथवा तजुर्बे के आधार पर चुना जाता है। मुखिया के पास निरकुंश शक्तियां होती हैं तथा उसका निर्णय अन्तिम होता है। जनजाति के सभी सदस्य उसके निर्णय को मानते हैं।

प्रश्न 7.
निर्वाह अर्थव्यवस्था क्या होती है ? .
उत्तर-
जनजातियों की अर्थव्यवस्था निर्वाह पर आधारित होती है तथा वहाँ के उत्पादन के साधन शिकार, मछली पकड़ना, एकत्र करना व जंगली उत्पाद होते हैं। वह कुछ भी बचा कर नहीं रखते तथा जो कुछ भी एकत्र करते हैं, खत्म कर देते हैं। परन्तु पिछले कुछ समय से उनकी अर्थव्यवस्था परिवर्तित हो रही है।

प्रश्न 8.
जनजातियों में श्रम विभाजन किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
जनजातीय समाजों में श्रम विभाजन आयु तथा लिंग के आधार पर होता है। इन समाजों में विशेषीकरण नहीं पाया जाता जैसे कि आजकल के आधुनिक समाजों में मिलता है। सभी इकट्ठे मिलकर शिकार करते हैं तथा चीजें एकत्र करते हैं। स्त्रियां घरों की देखभाल करती है।

प्रश्न 9.
द्राविड़ प्रकार की जनजातियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
इस प्रकार की जनजातियां पश्चिम बंगाल की गंगा घाटी से लेकर श्रीलंका तक फैली हुई हैं जिसमें चेन्नई, हैदराबाद, मध्य भारत तथा छोटा नागपुर के इलाके शामिल हैं। इन्हें भारत के मूल निवासी भी कहा जाता है। इनका रंग काला, काली आँखें, लंबा सिर तथा चौड़ा नाक होता है।

प्रश्न 10.
बी० के० राए ने जनजातियों का क्या वर्गीकरण दिया है ?
उत्तर-

  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था में शामिल हो चुके हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था की तरफ सकारात्मक झुकाव रखती हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था की तरफ नकारात्मक झुकाव रखती हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था से बिल्कुल ही अलग हैं।

प्रश्न 11.
पितृसत्तात्मक जनजाति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वह परिवार जिसमें पिता की सत्ता चलती है तथा परिवार पिता की आज्ञा मानता है। वंश पिता के नाम से चलता है तथा पिता की सम्पत्ति पुत्रों को मिलती है। घर का मुखिया पिता होता है तथा यह एक विवाही परिवार होता है। पिता की प्रधानता के कारण इसे पितृसत्तात्मक कहा जाता है।

प्रश्न 12.
मातृसत्तात्मक जनजाति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वह जनजाति जिसमें माता की सत्ता चलती है तथा परिवार माता के अनुसार चलता है। वंश माता के नाम से चलता है तथा सम्पत्ति माता से पुत्री को प्राप्त होती है। घर की मुखिया माता होती है। माता की प्रधानता के कारण इसे मातृसत्तात्मक कहते हैं।

प्रश्न 13.
जनजातीय समाजों में आजकल कौन-से मुद्दे प्रमुख हैं ?
उत्तर-
इन समाजों में आजकल दो प्रमुख मुद्दे हैं-वनों का कटाव व विस्थापन। वनों को काटा जा रहा है जिस वजह से इनके रोज़गार के साधन खत्म हो रहे हैं। दूसरा है इन्हें इनके मूल स्थानों से उजाड़ कर नए स्थानों पर बसाया जा रहा है।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कबीला अथवा जनजाति।
उत्तर-
कबीला अथवा जनजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। यह समूह एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसकी अपनी ही अलग भाषा, अपनी संस्कृति, अपना ही धर्म होता है। यह समूह अन्तर्वैवाहिक समूह होते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं। यह लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं। अलग-अलग कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति इत्यादि जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं।

प्रश्न 2.
कबाइली समाज।
अथवा
जनजाति समाज।
उत्तर-
जनजाति एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। इन कबीलों में पाए जाने वाले समाज को कबाइली समाज कहा जाता है। जनजातीय समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में जनजातीय को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था। जनजातीय समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वैः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियन्त्रण होता है तथा यह किसी के भी नियन्त्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज, शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 3.
जनजाति की दो परिभाषाएं।
उत्तर-
(i) इम्पीरियल गजेटियर आफ इंडिया (Imperial Gazeteer of India) के अनुसार, “जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं या अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अन्तर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

(ii) डी० एन० मजूमदार (D. N. Majumdar) के अनुसार, “एक जनजाति, परिवार अथवा परिवार समूहों का एक ऐसा समूह एकत्र होता है जिसका एक नाम होता है। इसके सदस्य एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं तथा उन्होंने आपसी आदान-प्रदान तथा फर्जी की पारस्परिकता की एक अच्छी तरह जांच की हुई व्यवस्था विकसित कर ली है।”

प्रश्न 4.
जनजातीय समाज की चार विशेषताएं।
उत्तर-

  • कबीला बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिसमें साझा उत्पादन होता है तथा उस उत्पादन से वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं।
  • जनजातियों के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं तथा एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते तथा रहते हैं।
  • प्रत्येक जनजातीय की साझी भाषा तथा अलग-अलग नाम होता है जिस कारण यह एक-दूसरे से अलग होते
  • प्रत्येक जनजातीय के रहने-सहने के ढंग, धर्म, भाषा, टैबू इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं जिस कारण इनकी संस्कृति ही अलग-अलग होती है। ..

प्रश्न 5.
कबीला एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहता है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनजातीय के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। यह और समाज की पहुंच से बाहर होते हैं। क्योंकि इनकी अलग संस्कृति होती है तथा यह किसी बाहर वाले का दखल पसन्द नहीं करते। इसलिए यह बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते हैं। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पाई जाती है क्योंकि यह साझे भू-भाग में रहते हैं।

प्रश्न 6.
जनजाति एक खण्डात्मक समाज होता है। कैसे ?
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति समाज दूसरे जनजातीय समाज से कई आधारों पर जैसे कि खाने पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। यह कई आधारों पर एक-दूसरे से अलग होने के कारण एकदूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का दखल भी पसन्द नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता है। इस कारण इनको खण्डात्मक समाज भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
जनजातीय समाजों की आर्थिक संरचना के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वह अधिकतर झूम कृषि तथा स्थानान्तरित कृषि करते हैं। वह केवल अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वह चीज़ों को इकट्ठा नहीं करते जिस कारण उनमें सम्पत्ति इकट्ठी करने की भावना नहीं होती है। इस कारण ही जनजातीय समाज में कोई वर्ग नहीं होते हैं। प्रत्येक वस्तु पर सभी का बराबर अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

प्रश्न 8.
जनजातीय समाज के सामाजिक जीवन के बारे में बताएं।
उत्तर-
जनजातीय समाजों में जीवन बहुत ही साधारण तथा एकता से भरपूर होता है। यह आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक अथवा मनोरंजक भागों में नहीं बंटा हुआ होता जोकि आधुनिक समाजों
में प्रत्येक व्यक्ति को कई भूमिकाएं निभाने के लिए बाध्य करता है। जनजातीय समाजों में सामाजिक अन्तक्रिया प्राथमिक समूहों वाली होती है। समाज की व्यवस्था परम्पराओं तथा रूढ़ियों पर निर्भर करती है न कि जनजातीय नेताओं की शक्ति पर सज़ा देने का ढंग साधारणतया समूह से निकाल देना होता है न कि शारीरिक सज़ा देना। बच्चों का समाजीकरण परिवार में रोज़ाना जीवन की आपसी अन्तक्रियाओं से हो जाता है। यह समाज आकार में छोटे तथा अन्तर्वैवाहिक होते हैं।

प्रश्न 9.
प्रजातीय आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
मजूमदार तथा मदान के अनुसार भारत के जनजातियों को भौगोलिक विस्तार के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है तथा वे हैं-

  • उत्तर पूर्वोत्तर क्षेत्र
  • मध्यवर्तीय क्षेत्र
  • दक्षिणी क्षेत्र । इन तीन क्षेत्रों में तीन विशेष प्रकार के प्रजातीय तत्त्व मिलते हैं चाहे इनका कोई कठोर विभाजन नहीं किया जा सकता। ये तीन प्रजातीय हैं
    (i) मंगोल (Mangoloid) (ii) आदि आग्नेय (Proto-Austroloid) (iii) नीग्रिटो (Negrito)।

प्रश्न 10.
भौगोलिक आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
डॉ० वी० एस० गुहा (Dr. V.S. Guha) ने भारतीय जनजातियों को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा है-

  • उत्तर तथा उत्तर पूर्वी क्षेत्र-यह क्षेत्र लेह तथा शिमला के पूर्व मेलुशाई पर्वत तक फैला है जिसे हिमाचल, पूर्वी पंजाब, उत्तर प्रदेश, पूर्वी कश्मीर, असम के पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं। इनमें प्रमुख जनजातियां गद्दी, नागा, कूकी, खासी, थारू, भूटिया इत्यादि हैं।
  • मध्यवर्तीय क्षेत्र-इस क्षेत्र में गंगा के दक्षिण तथा कृष्णा नदी के उत्तर के बीच का विंध्याचल, सतपुडा के प्राचीन पठारों तथा पहाड़ों की पट्टी का क्षेत्र है। इसमें मुण्डा, भील, संथाल, हो, चंचु इत्यादि जनजातीय आते हैं।
  • दक्षिणी क्षेत्र-इसमें कृष्णा नदी के दक्षिण की तरफ का सम्पूर्ण क्षेत्र आता है। पुलयन, मलायन, चेंचु, टोडा, कोटा इत्यादि जनजातियां इस क्षेत्र में होती हैं।

प्रश्न 11.
भाषा के आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
भारत में मिलने वाली भाषाओं को चार मुख्य हिस्सों में बांटा जा सकता है :

  • इण्डो यूरोपियन अथवा आर्यन भाषाएं-पंजाबी, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, उड़िया इत्यादि भाषाएं इसमें आती हैं।
  • द्रविड़ भाषा परिवार-इसमें तेलुगू, मलयालम, तमिल, कन्नड़ इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • आस्ट्रिक भाषा परिवार-इसमें भुण्डा, कोल इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • चीनी-तिब्बती भाषाएं (Tibeto-Chinese Languages)—भारत के कुछ जनजातीय लोग इन भाषाओं का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 12.
बहुपत्नी विवाह।
उत्तर-
जब एक पुरुष का विवाह दो अथवा अधिक स्त्रियों से होता है तो इस प्रकार के विवाह को बहुपत्नी विवाह कहते हैं। इस प्रकार के विवाह को प्राचीन समय में समाज में मान्यता प्राप्त थी। लुशाई, टोडा, गोंड, नागा इत्यादि जनजातियों में यह विवाह प्रचलित था। यह दो प्रकार का होता है। प्रतिबन्धित बहुपत्नी विवाह में व्यक्ति सीमित संख्या में ही पत्नियां रख सकता है तथा वह उस सीमा से आगे नहीं बढ़ सकता है। अप्रतिबन्धित बहुपत्नी विवाह में वह जितना चाहे मर्जी पत्नियां रख सकता है। उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।

प्रश्न 13.
बहुपति विवाह।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि इस प्रकार के विवाह में एक पत्नी के कई पति होते हैं जैसे कि महाभारत में द्रोपदी के पांच पति थे। खस, टोडा, कोट इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह पाया जाता है। कपाड़िया के अनुसार, “बहुपति विवाह एक ऐसी संस्था है, जिसमें एक स्त्री के एक ही समय में एक से अधिक पति होते हैं अथवा इस प्रथा के अनुसार सभी भाइयों की सामूहिक रूप से एक पत्नी अथवा कई पत्नियां होती हैं।” यह दो प्रकार का होता है-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह।

प्रश्न 14.
भ्रातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
विवाह की इस प्रथा के अनुसार एक स्त्री के कई पति होते हैं तथा वह आपस में भाई होते हैं। बड़ा भाई बच्चों का पिता समझा जाता है तथा छोटे भाई बड़े भाई की आज्ञा के बिना अपनी पत्नी से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकते। खस जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है यदि कोई और भाई कहीं और विवाह करवाता है तो उसकी पत्नी भी सभी भाइयों की पत्नी होती है। यदि विवाह के बाद कोई भाई जन्म लेता है तो उसको भी उस स्त्री का पति समझा जाता है।

प्रश्न 15.
गैर भ्रातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में स्त्री के सभी पति आपस में भाई नहीं होते बल्कि एक-दूसरे से दूर अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। पत्नी एक निश्चित समय के लिए अलग-अलग पतियों के पास जाकर रहती है। उस निश्चित समय के दौरान कोई और पति पत्नी से सम्बन्ध कायम नहीं कर सकता है। पत्नी के गर्भवती होने के समय यदि कोई पति उसे तीर कमान भेंट करता है तो उसको बच्चे का पिता समझा जाता है।

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प्रश्न 16.
खरीद द्वारा विवाह।
उत्तर-
बहुत-से जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इस प्रकार के विवाह में दुल्हन का मूल्य पैसे अथवा फसल के रूप में दिया जाता है। चाहे इस प्रकार के विवाह में दुल्हन को खरीदा जाता है परन्तु इसको खरीद फ़रोख्त का साधन नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसमें तो एक प्रकार से लड़की के माता-पिता को लड़की को पालने तथा बड़ा करने का मुआवजा दिया जाता है। संथाल, हो, नागा, मुण्डा, ऊराओं इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 17.
विनिमय द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार का विवाह दुल्हन के मूल्य को देने से बचने के लिए सामने आया था। कई जनजातियों में दुल्हन का मूल्य इतना अधिक होता है कि व्यक्ति उस मूल्य को दे नहीं सकता है। इस कारण दो घर आपस में स्त्रियों का लेनदेन (Exchange) कर लेते हैं। व्यक्ति पत्नी के लिए अपनी बहन अथवा घर की किसी स्त्री को विनिमय के रूप में दे देता है। भारतीय हिन्दू समाज में भी इस प्रकार का विवाह प्रचलित था।

प्रश्न 18.
अपहरण द्वारा विवाह।
उत्तर-
कई जनजातीय समाजों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। पहले तो यह नियम प्रचलित होता था कि विवाह के लिए माता-पिता सहमति दे देते थे परन्तु समय के साथ-साथ विचार बदल रहे हैं। यदि विवाह के लिए मातापिता सहमति नहीं देते हैं तो लड़की को अपहरण करने का ढंग ही बच जाता है। बाद में दोनों घरों के बुजुर्ग उनके विवाह के लिए मान जाते हैं। ऊँचा दुल्हन मूल्य भी इस प्रकार के विवाह का एक कारण है।

प्रश्न 19.
सेवा द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह को खरीद विवाह का ही एक रूप कह सकते हैं। कई बार निर्धन व्यक्ति दुल्हन का मूल्य नहीं दे सकते परन्तु वह विवाह भी करवाना चाहते हैं। इसलिए लड़का-लड़की के माता-पिता के पास कुछ समय के लिए नौकरी करता है तथा कुछ समय बाद लड़की के माता-पिता दोनों के विवाह को स्वीकृति दे देता है। लड़के को ही पुत्र के सारे उत्तरदायित्व पूर्ण करने पड़ते हैं। लड़की का पिता ही लड़के के रहने-सहने तथा खाने-पीने का प्रबन्ध करता है। मुण्डा, ऊराओं, बोंगा इत्यादि जनजातियों में यह विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 20.
आज़माइश विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह का मुख्य उद्देश्य लड़के लड़की को आपस में एक-दूसरे को समझने का पूर्ण मौका प्रदान करना है। इस प्रकार के विवाह में लड़का लड़की के घर जाकर रहता है तथा लड़का-लड़की को आपस में मिलने तथा बात करने की आज्ञा होती है। यदि कुछ दिन लड़की के घर रहने के बाद अर्थात् आज़माइश करने के बाद लड़के को यह लगता है कि दोनों का स्वभाव मिलता है तो दोनों का विवाह हो जाता है नहीं तो लड़का लड़की के पिता को मुआवजे के रूप में कुछ पैसा देकर चला जाता है। कुकी जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 21.
अयोग्य दखल द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में लड़की प्यार की शरण लेती है। लड़की किसी ऐसे जवान व्यक्ति से विवाह करने की इच्छा रखती है जो विवाह के लिए राजी नहीं होता है। इसलिए लड़की की बेइज्जती होती है। उसको कठोर व्यवहार तथा तानों का सामना करना पड़ता है। उसको पीटा जाता है, खाना नहीं दिया जाता तथा बाहर भी रखा जाता है। परन्तु यदि फिर भी लड़की अपना इरादा नहीं बदलती तो उसका विवाह उस व्यक्ति से करना ही पड़ता है।

प्रश्न 22.
आपसी सहमति द्वारा विवाह।
उत्तर-
कई जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इसको राजी खुशी का विवाह भी करते हैं। लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ घर से भाग जाती है तथा जब तक माता-पिता उनके विवाह को मान्यता नहीं दे देते हैं, वह वापिस नहीं आती है। इस प्रकार का विवाह सभी समाजों में प्रचलित है।

प्रश्न 23.
परख द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में लड़के तथा लड़की को कुछ समय तक लड़की के घर इकट्ठा रहने की आज्ञा मिल जाती है। यदि वह एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो उनके माता-पिता उनका विवाह कर देते हैं। परन्तु यदि उनको एक-दूसरे का स्वभाव ठीक नहीं लगता है तो वह अलग हो जाते हैं परन्तु लड़के को लड़की के पिता को कुछ मुआवज़ा देना पड़ता है।

प्रश्न 24.
टोटम बहिर्विवाह।
उत्तर-
टोटम बहिर्विवाह के नियम के अनुसार एक टोटम की पूजा करने वाले आपस में विवाह नहीं करवा सकते हैं। टोटम का अर्थ है कि लोग किसी पौधे अथवा जानवर को अपना देवता मान लेते हैं। इस प्रकार का नियम भारत के जनजातीय समाजों में पाया जाता है जिसमें व्यक्ति अपने टोटम से बाहर विवाह करवाता है।

प्रश्न 25.
पितृ स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में लड़की विवाह के उपरान्त अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है और पति के माता-पिता व पति के साथ वहीं घर बसाती है। इस प्रकार के परिवार आमतौर पर प्रत्येक समाज में मिल जाते हैं।

प्रश्न 26.
नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार पहली दोनों किस्मों से भिन्न हैं। इसमें पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के पिता के घर जाकर नहीं रहते, बल्कि वह किसी और स्थान पर जाकर नया घर बसाते हैं। इसलिए इसको नव स्थानीय परिवार कहते हैं। आजकल के औद्योगिक समाज में इस तरह के परिवार आम पाए जाते हैं।

प्रश्न 27.
पितृसत्तात्मक व्यवस्था।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के सम्पूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्त्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियन्त्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है व पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस प्रकार के परिवार मिलते हैं।

प्रश्न 28.
मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ में ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। सम्पत्ति का वारिस पुत्र नहीं बल्कि मां का भाई या भान्जा होता है। परिवार मां के नाम से चलता है। इस प्रकार के परिवार भारत में कुछ जनजातियों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाते हैं। ।

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प्रश्न 29.
कन्या मूल्य अथवा दुल्हन मूल्य।।
उत्तर-
इस प्रकार का विवाह जनजातीय समाजों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति को किसी लड़की को अपनी पत्नी बनाने के लिए उसका मूल्य उसके पिता को देना पड़ता है क्योंकि उन्होंने उसका पालन-पोषण करके उसे बड़ा किया है। दुल्हन का मूल्य लड़की के पिता की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति पर निर्भर होता है। यदि एक व्यक्ति कन्या का मूल्य नहीं चुका सकता तो कई व्यक्ति मिलकर उसका मूल्य चुकाते हैं। इस कारण वह लड़की उन सभी व्यक्तियों की पत्नी होती है।

प्रश्न 30.
मुखिया।
उत्तर-
प्राचीन राजनीतिक प्रशासन में सबसे ऊँचा पद होता है मुखिया का। यह पैतृक भी हो सकता है तथा किसी प्रकार से भी प्राप्त हो सकता है। कई बार यह लोगों द्वारा चुना जाता है। कई जनजातीय समाजों में दो मुखिया होते हैंपहला शान्ति से सम्बन्धित मुखिया (Peace Chief) तथा दूसरा होता है लड़ाई से सम्बन्धित मुखिया (War Chief)। शान्ति से सम्बन्धित मुखिया जनजातीय कौंसिल का भी सरदार होता है जो आन्तरिक सम्बन्धों को नियमित भी करता है। यह अपराध से सम्बन्धित कुछ मामलों का भी निपटारा करता है। कई जनजातियों में यह निश्चित समय के लिए
भी चुना जाता है। लड़ाई से सम्बन्धित मुखिया लड़ाई के समय दिशा-निर्देश देता है। यह स्थिति किसी भी ऐसे व्यक्ति · को दी जा सकती है जिसमें लड़ाई से सम्बन्धित मामले निपटाने की दक्षता हो।

प्रश्न 31.
Headman.
उत्तर-
जनजातीय समाजों के राजनीतिक संगठन में सबसे प्राचीन पद Headman का होता है। Headman का पद साधारणतया पैतृक, सम्मानदायक तथा प्रभावशाली होता है। वह अपने समूह से सम्बन्धित सभी मामलों का ध्यान रखता है तथा प्रत्येक मौके पर दिशा-निर्देश देता है। कई समाजों में तो वह शिकार के समय भी नेतृत्व करता है। वह सभी प्रकार के मसलों को निपटाता है तथा उसके निर्णय का सम्मान किया जाता है। कई बार वह निरंकुश (despot) हो जाता है परन्तु साधारणतया वह एक लोकतान्त्रिक प्रशासक होता है।

प्रश्न 32.
कौंसिल।
उत्तर-
जनजातीय समाजों के राजनीतिक प्रशासन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बुजुर्गों की कौंसिल होता है। यह सभी प्रकार के जनजातीय समाजों में पायी जाती है क्योंकि किसी भी जनजातीय समाज में जनजातियों प्रशासन को एक व्यक्ति नहीं चला सकता है। यहां तक कि निरंकुश राजा को भी सलाहकारों की मदद की ज़रूरत पड़ती है। कई जनजातियों में तो यह कौंसिल मुखिया अथवा राजा की मृत्यु के पश्चात् नए मुखिया अथवा राजा का भी चुनाव करती है। कौंसिल के अधिकतर सदस्य समाज के बड़े बुजुर्ग होते हैं। कौंसिल में सभी निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं।

कौंसिल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जटिल मामलों में मुखिया को सलाह देने का होता है। कौंसिल को गांव, जनजातीय अथवा गोत्र के आधार पर निर्मित किया जाता है। गोत्र की कौंसिल में प्रत्येक उप-समूह के प्रतिनिधि को लिया जाता है। दूसरी कौंसिलें भी इसी प्रकार ही चुनी जाती हैं। कई जनजातियों में कौंसिल के सदस्य चुने जाते हैं।

प्रश्न 33.
जनजातीय अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
जनजातीय अर्थव्यवस्था अभी अपनी आरम्भिक अवस्था में ही है। प्रत्येक समाज में लोगों की आवश्यकताएं बढ़ती रहती हैं परन्तु जनजातीय अर्थव्यवस्था में लोगों की आवश्यकता सीमित ही होती है। इन आवश्यकताओं के सीमित होने के कारण यह लोग अपनी आवश्यकताएं अपने इर्द-गिर्द से ही पूर्ण कर लेते हैं। जनजातीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता निजी परिश्रम है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। यह लोग शिकार करके, भोजन इकट्ठा करके तथा कृषि करके अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं। इस प्रकार जनजातीय अर्थव्यवस्था आरम्भिक अवस्था में ही है।

प्रश्न 34.
मजूमदार द्वारा जनजातीय अर्थव्यवस्था का किया गया विभाजन।
उत्तर-
मजूमदार ने जनजातीय अर्थव्यवस्था को पेशों के आधार पर 8 भागों में बांटा है :(i) जंगलों में रहने वाली श्रेणी। (ii) पहाड़ों पर कृषि करने वाली श्रेणी। (iii) समतल भूमि पर कृषि करने वाली श्रेणी। (iv) कारीगर वर्ग। (v) पशुपालक श्रेणी। (vi) लोक कलाकार श्रेणी। (vii) किसान श्रेणी। (viii) नौकरी पेशा श्रेणी।

प्रश्न 35.
भोजन इकट्ठा करने वाले तथा शिकारी कबीले।
उत्तर-
बहुत-से जनजातीय दूर-दूर के जंगलों तथा पहाड़ों में रहते हैं। चाहे यातायात के साधनों के कारण बहुत से जनजातीय मुख्य धारा में आ मिले हैं तथा उन्होंने कृषि के कार्यों को अपना लिया है परन्तु बहुत-से कबीले ऐसे भी हैं जो अभी भी भोजन इकट्ठा करके तथा शिकार करके ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वह जड़ें, फल, शहद इत्यादि इकट्ठा करते हैं तथा छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। कुछ जनजातीय कई चीज़ों का विनिमय भी करते हैं। इस प्रकार वह कृषि के न होते हुए भी अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

प्रश्न 36.
झूम कृषि अथवा स्थानान्तरित कृषि।
उत्तर-
झूम नाम की कृषि करने का ढंग प्राचीन समय से ही जनजातियों में प्रचलित है। इस प्रकार की कृषि में कोई जनजातीय पहले तो जंगल में एक टुकड़े को आग लगाकर या काट कर साफ कर देता है। फिर उस जगह पर वह कृषि करना शुरू कर देता है। कृषि के प्राचीन साधन होने के कारण उनको काफ़ी कम उत्पादन प्राप्त होता है। जब उत्पादन मिलना बन्द हो जाता है अथवा काफ़ी कम हो जाता है तो वह उस भूमि के टुकड़े को छोड़ देते हैं तथा कृषि करने के लिए किसी और टुकड़े को तैयार करते हैं। लोहटा, नागा, खासी, कुकी, साऊदा कोखा इत्यादि कबीले इस प्रकार की कृषि करते हैं। इस प्रकार की कृषि से उत्पादन बहुत कम होता है जिस कारण जनजातीय वालों की स्थिति काफी दयनीय होती है।

प्रश्न 37.
चरवाहे।
उत्तर-
जनजातीय अर्थव्यवस्था में चरवाहे एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। जनजातीय लोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पशुओं को पालते हैं जैसे कि दूध लेने के लिए, मीट के लिए, ऊन के लिए, भार ढोने के लिए इत्यादि। भारत में रहने वाले चरवाहे जनजातीय स्थायी जीवन व्यतीत करते हैं तथा मौसम के अनुसार ही चलते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर कबीले अधिक सर्दी के समय पहाड़ी इलाकों में अपने पशुओं के साथ चले जाते हैं तथा गर्मियों में अपने क्षेत्रों में वापिस चले जाते हैं। भारतीय जनजातियों में प्रमुख चरवाहा जनजातीय हिमाचल प्रदेश में रहने वाला गुजर जनजातीय है जो व्यापार के उद्देश्य के लिए गाएं तथा भेड़ें पालता है।

प्रश्न 38.
दस्तकार।
उत्तर-
वैसे तो साधारणतया सभी जनजातीय दस्तकारी का कार्य करते हैं परन्तु उनमें से कुछ जनजातीय ऐसे भी हैं जो केवल दस्तकारी के आधार पर अपना गुजारा करते हैं। जनजातीय टोकरियां बनाकर, बुनकर, धातु के कार्य करके, सूत को कात कर, चीनी के बर्तन, औज़ार इत्यादि बनाकर भी दस्तकारी का कार्य करते हैं। जनजातियों के लोग मिट्टी तथा धातु के खिलौने बनाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 39.
जंगलों से सम्बन्धित समस्या।
उत्तर-
जनजातीय साधारणतया आम जनसंख्या से दूर जंगलों में रहते हैं। यह जंगलों पर अपना अधिकार समझते हैं। वह जंगलों से ही खाने-पीने का सामान इकट्ठा करते हैं, शिकार करते हैं, जंगलों के पेड़ काटकर लकड़ी को बेचते हैं या फिर जंगल साफ़ करके अपना गुजारा करते हैं परन्तु अब जंगलों के सम्बन्ध में कानून बनने से तथा जंगलों को ठेके पर देने से उन्हें काफ़ी समस्या पैदा हो गई है। जंगलों के ठेकेदार न तो लकड़ी काटने देते हैं, न ही कुछ इकट्ठा करने देते हैं तथा न ही कृषि के लिए जंगलों को साफ करने देते हैं। इस प्रकार उनका गुजारा काफ़ी मुश्किल से हो रहा है।

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प्रश्न 40.
जनजातीय समाज में परिवर्तन आने के कारण।
उत्तर-

  • ईसाई मिशनरियों के प्रभाव से जनजातीय समाजों में परिवर्तन आ रहे हैं।
  • यातायात तथा संचार के साधनों के विकास के कारण उन्होंने अपने क्षेत्रों को छोड़ कर दूसरे क्षेत्रों में जाना शुरू कर दिया है।
  • अब उनकी आर्थिकता निर्वाह आर्थिकता से बदल कर मण्डी आर्थिकता की हो गई है। वह अधिक उत्पादन करके मण्डी में बेचने के लिए उत्पादन करते हैं।
  • संविधान में जनजातियों को ऊँचा उठाने के लिए कई प्रकार के संवैधानिक उपबन्ध किए गए हैं जिससे उनकी स्थिति में परिवर्तन आने शुरू हो गए हैं।
  • उनके क्षेत्रों में शिक्षण संस्थाओं के खुलने से आधुनिक शिक्षा का प्रसार हो रहा है जिससे उनकी स्थिति ऊँची हो रही है।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
देश की पाँच प्रमुख जनजातियों का वर्णन करें जिनकी जनसंख्या १ लाख या उससे अधिक है।
उत्तर-
1. मुण्डा (Mundas)-मुण्डा जनजाति साधारणतया मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल इत्यादि प्रदेशों में पाई जाती है। मुण्डा जनजाति की लगभग 62% जनसंख्या बिहार में रहती है। उनके रोज़गार का मुख्य साधन कृषि है। इस जनजाति को प्राचीन जनजातियों में से एक माना जाता है। मुण्डा जनजाति में थोड़ी बहुत शिक्षा का प्रसार हुआ है जिस कारण उनको सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी नौकरियां मिल गयी हैं। यह लोग सिंगबोंगा देवता में विश्वास करते हैं। यह लोग अपने पूर्वजों की आत्माओं की भी पूजा करते हैं ताकि अच्छी फसल ली जा सके तथा बीमारियों से मुक्ति मिल सके। मुण्डा जनजाति के लगभग 19% लोग पढ़े-लिखे हैं। वैसे तो उनकी मुख्य भाषा मुण्डरी है परन्तु यह हिन्दी के साथ-साथ सम्बन्धित राज्य की भाषा भी बोलते हैं। इनकी जनसंख्या 20 लाख के करीब है।
मुण्डा लोगों का मुख्य पेशा कृषि है तथा वह अपना गुजारा कृषि के साधनों की मदद से करते हैं। उनमें निरक्षरता बहुत अधिक है। चाहे शिक्षा के बढ़ने से 19% के लगभग जनसंख्या पढ़-लिख गयी है तथा इन पढ़े-लिखे लोगों में से बहुत-से सरकारी तथा गैर-सरकारी नौकरियां भी कर रहे हैं क्योंकि इनके लिए कुछ स्थान आरक्षित भी हैं। यह लोग धर्म में बहुत विश्वास रखते हैं। सिंगबोंगा देवता की पूजा करने के साथ-साथ यह अपने पूर्वजों की आत्माओं की पूजा भी करते हैं ताकि यह आत्माएं उनकी हरेक प्रकार की मुसीबत से रक्षा कर सकें।

2. खौंड (Khonds)-खोंड जनजाति मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल इत्यादि प्रदेशों में पाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में इनको कौंड तथा मध्य प्रदेश में इनको खौंड ही कहा जाता है। यह भी एक प्राचीन जनजाति है तथा प्राचीन समय में यह लोग मनुष्यों की बलि भी देते थे। यह सामाजिक तथा धार्मिक पक्ष से बहुत ही मज़बूत हैं। चाहे अंग्रेज़ों के दबाव के कारण इन लोगों ने मनुष्यों की बलि देना बन्द कर दिया था परन्तु फिर भी यह लोग आत्माओं में बहुत विश्वास रखते हैं। यह लोग बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। चाहे वह कोंढ़ी उपभाषा बोलते हैं परन्तु उनको उड़िया भाषा भी आती है। यह लोग फलों तथा जड़ों की मदद से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। शुरू में यह लोग घुमन्तुओं (Wanderers) का जीवन व्यतीत करते थे परन्तु अब यह मैदानों तथा पहाड़ों पर एक ही जगह पर रहने लग गए हैं। उनका आर्थिक जीवन जंगलों पर आधारित है। वह कृषि भी करते हैं चाहे कृषि करने के ढंग पुराने हैं। इन लोगों में वैसे तो एक विवाह की रस्म प्रचलित है परन्तु इनमें से कुछ लोग बहुविवाह भी करते

यह जनजातीय साधारणतया उड़ीसा के कोरापुट, कालाहांडी जिलों में मिलता है। इनका जीवन बहुत ही साधारण होता है तथा यह लोग फलों तथा जड़ों की मदद से अपना गुजारा करते हैं। पहले तो यह लोग घुमन्तु जीवन व्यतीत करते थे परन्तु अब यह अलग-अलग स्थानों पर पक्के तौर पर रहने लग गए हैं। यह लोग क्योंकि एक जगह पर रहने लग गए हैं इसलिए यह कृषि भी करने लग गए हैं। परन्तु उनके कृषि करने के ढंग बहुत ही प्राचीन तथा परिश्रम करने वाले हैं परन्तु इनका आर्थिक जीवन जंगलों पर ही आधारित होता है।

3. गोंडस (Gonds)-देश की सबसे बड़ी जनजाति गोंडस है तथा यह कहा जाता है कि यह द्राविड़ प्रजाति से सम्बन्ध रखती है। 1991 में इनकी जनसंख्या 75 लाख के लगभग थी। यह कबीला मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल इत्यादि में पाया जाता है। यह लोग एक केन्द्रीय क्षेत्र में इकट्ठे रहते हैं। सम्पूर्ण कबीलों की जनसंख्या का लगभग 15% लोग गोंडस ही हैं। यह लोग कृषि तथा जंगलों पर ही निर्भर करते हैं। इन का मुख्य पेशा कृषि ही है। यह लोग शिकार करके, मछली पकड़कर तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा चलाते हैं। इन लोगों में पढ़ाई का चलन कम है जिस कारण सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी नौकरियों में ये लोग बहुत ही कम हैं। वैसे तो इनका अपना धर्म गौंड ही होता है परन्तु अंग्रेजों के प्रभाव से कुछ लोग ईसाई बन गए। ये लोग गोंडी भाषा बोलते हैं। ये पिता प्रधान समाज से सम्बन्ध रखते हैं जिसमें ज़मीन जायदाद का अधिकार लड़के को प्राप्त होता है। उनके अपने ही कानून होते हैं तथा इनकी अपनी पंचायत ही इनके मामले हल करती है।

ये लोग एक क्षेत्र को केन्द्र मान कर उस केन्द्रीय क्षेत्र के इर्द-गिर्द भारी मात्रा में रहते हैं। इस कारण ही नर्मदा घाटी, सतपुड़ा के पठार, नागपुर के मैदानों में इनकी संख्या बहुत अधिक है। वैसे तो इनका धर्म गोंड है परन्तु अंग्रेजी राज्य में इन के क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म का काफ़ी प्रचार किया गया जिस कारण इन में से कई लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया। इन लोगों का आर्थिक जीवन जंगलों तथा कृषि पर निर्भर करता है। बहुत से लोग कृषि करते हैं परन्तु आजकल कई लोगों ने काश्तकारी के कार्य को अपना लिया है। यह मछलियां भी पकड़ते हैं, जंगलों से फल तथा जड़ें भी इकट्ठी करते हैं तथा शिकार भी करते हैं जिससे इनका गुज़ारा हो जाता है। इन लोगों के अपने ही कानून होते हैं तथा अपने मामले निपटाने के लिए इनकी पंचायतें ही महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती हैं।

4. भील (Bhils)-भारत की दूसरी बड़ी जनजाति भील है जिसकी 1981 में जनसंख्या 53 लाख के लगभग थी। यह जनजाति मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, त्रिपुरा इत्यादि में पाई जाती है। साधारणतया यह जनजाति पश्चिमी मध्य प्रदेश के कई जिलों में पाई जाती है। इनकी भाषा भीली उपभाषा है। इनका आर्थिक जीवन मुख्य तौर पर कृषि पर निर्भर करता है। कुछ लोग जंगलों पर भी निर्भर करते हैं तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करते हैं। यह लोग शिकार भी करते हैं। इनकी संस्कृति तथा धर्म बहुत ही प्राचीन है तथा धर्म तथा जादू इनकी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह लोग अपने कबीले में ही विवाह करते हैं। कबीले की व्यवस्था कायम रखने में पंचायत की सबसे बड़ी भूमिका होती है।

वैसे तो बहुत-से भील लोग अपने गुज़ारे के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं परन्तु उनमें से कई लोग जंगलों से फल, जड़ों इत्यादि को इकट्ठा करके अपना गुजारा करते हैं। यह लोग शिकार भी करते हैं परन्तु उनके शिकार करने तथा कृषि करने के ढंग प्राचीन हैं। इन लोगों में पढ़ने-लिखने का रिवाज काफ़ी कम है तथा इनमें से बहुत ही कम लोग पढ़े-लिखे हैं। निरक्षरता के कारण ही इन लोगों का मुख्य धारा के लोगों की तरफ से शोषण होता है। वैसे तो सभी जनजातियों में एक ही प्रथा प्रचलित है परन्तु फिर भी कई लोग, विशेषतया मुखिया, बहुविवाह भी करवाते हैं।

5. संथाल (Santhals)-भारत का तीसरी सबसे बड़ा जनजातीय संथाल है। यह जनजातीय बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में पाई जाती है। इनकी मुख्य भाषा संथाली है। संथाली भाषा के अतिरिक्त यह उडिया, बंगाली. हिन्दी इत्यादि भी बोलते हैं। प्राचीन समय में यह लोग शिकार करके, मछली पकड़ कर तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा करते थे परन्तु अब यह कृषि करके अपना गुजारा करते हैं। उनके समाजों में समस्याओं का हल उनकी पंचायतें ही करती हैं। संथाल लोगों में दुल्हन का मूल्य लेने की भी रस्म है तथा औरतों को भी सम्पत्ति में से हिस्सा लेने का अधिकार है। यह लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं तथा अपने देवताओं को खुश करने के लिए पशुओं की बलि भी देते हैं।

इन लोगों में विवाह का अर्थ यौन सम्बन्धों की नियमितता अथवा परिवार को आगे बढ़ाना नहीं है बल्कि उनके अनुसार विवाह का अर्थ है दो परिवारों में मेल। उनके समाजों में प्रेम विवाह भी होते हैं। संथाल स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का भी अधिकार होता है तथा विवाह के समय लड़की पिता की सम्पत्ति में से हिस्सा भी लेकर जाती है। दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी प्रचलित है। वैसे तो पहले वह शिकार तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा करते थे परन्तु समय के साथ-साथ उनकी इन प्रथाओं में भी परिवर्तन आ गया है तथा अब वह स्थायी कृषि कर रहे हैं।

6. मिनास (Minas)-मिनास जनजाति राजस्थान तथा मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पाई जाती है। राजस्थान की कुल जनसंख्या के 50% लोग मिनास जनजाति से सम्बन्ध रखते हैं। यह जनजाति भारत की 5 प्रमुख जनजातियों में से एक है। इस जनजाति का मुख्य कार्य कृषि करना है। भूमि के मालिक अलग-अलग होते हैं। सगोत्र विवाह तथा विधवा विवाह भी इस कबीले में होते हैं। यह लोग अपने आपको हिन्दू समझते हैं तथा जीवन के बहुत-से उत्सवों जैसे कि जन्म, विवाह, मृत्यु इत्यादि के समय ब्राह्मणों की सेवा लेते हैं। इस जनजाति में पढ़ाई का स्तर काफ़ी निम्न है तथा 1981 में केवल 14% लोग ही पढ़े-लिखे थे। यह लोग खायी उपभाषा बोलते हैं चाहे वह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा बोलते हैं।

मिनास जनजाति में साधारणतया सगोत्र विवाह होते हैं। विधवा स्त्री को भी दोबारा विवाह करने की आज्ञा है। यह लोग अपने आपको हिन्दुओं से सम्बन्धित कहते हैं तथा जीवन के कई मौकों पर ब्राह्मणों को भी बुलाते हैं। इन लोगों का मुख्य पेशा कृषि है। शिक्षा की दर और जनजातियों की तरह बहुत ही निम्न है चाहे कुछ लोग पढ़-लिख कर सरकारी नौकरियों तक भी पहुंच गए हैं।

7. ऊराओं (Oraons)-ऊराओं जनजाति साधारणतया मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा इत्यादि प्रदेशों में पाई जाती है। यह लोग साधारणतया कृषि पर निर्भर करते हैं परन्तु वह जंगलों पर भी निर्भर करते हैं। ऊराओं जनजातीय के लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं। यह लोग जादू तथा मन्त्रों में भी विश्वास रखते हैं। विवाह के लिए लड़के तथा लड़की की सहमति आवश्यक होती है। दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी प्रचलित है। यह लोग कुज़ख भाषा बोलते हैं। बीमारी के समय ओझा सभी का इलाज करता है तथा वह ओझा ही पुजारी का भी कार्य करता है।

प्रश्न 2.
जनजातियों में विवाह के लिए साथी प्राप्त करने के कौन-कौन से ढंग प्रचलित हैं ?
अथवा
जनजातीय समाज में जीवन साथी के चयन के तरीकों की व्यवस्था को लिखो।
उत्तर-
विवाह की संस्था सभी समाजों में समान रूप से प्रचलित है परन्तु हिन्दू समाजों तथा जनजातीय समाजों में विवाह की संस्था एक-दूसरे से अलग है। जनजातियों में विवाह का उद्देश्य है लैंगिक सम्बन्धों का आनन्द, बच्चे पैदा करना तथा साथ निभाना है जबकि हिन्दू समाज में विवाह का अर्थ एक धार्मिक संस्कार है। इस तरह जनजातीय समाज में विवाह के लिए साथी प्राप्त करने के तरीके भी अलग हैं जैसे कि खरीद कर विवाह, विनिमय द्वारा विवाह, खराब करने के द्वारा विवाह, अयोग्य दखल, आज़माइश, आपसी सहमति तथा परख द्वारा विवाह । इन सभी का वर्णन इस प्रकार है-

1. खरीद द्वारा विवाह (Marriage by Purchase)-बहुत से जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इस तरह के विवाह में लड़की का मूल्य पैसे अथवा फसल के रूप में दिया जाता है। चाहे इस तरह के विवाह में दुल्हन को खरीदा जाता है परन्तु उसे खरीद फरोख्त का साधन नहीं समझा जाना चाहिए। बल्कि इसमें तो लड़की के मां-बाप को लड़की को पालने तथा बड़ा करने का मुआवजा दिया जाता है। संथाल, हो, नागा, मुण्डा इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

2. विनिमय द्वारा विवाह (Marriage by Exchange)-इस प्रकार का विवाह दुल्हन के मूल्य को देने से बचने के लिए सामने आया। कई जनजातियों में दुल्हन का मूल्य इतना अधिक होता है कि व्यक्ति उसका मूल्य नहीं दे सकता है। इस कारण दो घर आपस में ही स्त्रियों का लेन-देन कर लेते हैं। व्यक्ति पत्नी के लिए अपनी बहन अथवा घर की किसी स्त्री को विनिमय के रूप में दे देता है। भारतीय हिन्दू समाज में भी इस प्रकार का विवाह प्रचलित था।

3. खराब करने के द्वारा विवाह अथवा अपहरण विवाह (Marriage by Capture)-कई जनजातीय समाजों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। पहले यह नियम प्रचलित होता था कि विवाह के लिए माता-पिता सहमति दे देते थे परन्तु समय के साथ-साथ बच्चों के विचार बदल रहे हैं। अगर विवाह के लिए माता-पिता सहमति नहीं देते हैं तो लड़की का अपहरण करने के अतिरिक्त कोई तरीका नहीं बचता है। बाद में दोनों घरों के बुजुर्ग उनके विवाह के लिए मान जाते हैं। उच्च दुल्हन मूल्य भी इस विवाह का कारण है। हिमाचल तथा छोटा नागपुर के जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

4. सेवा द्वारा विवाह (Marriage by Service)-इस प्रकार के विवाह को खरीद विवाह का ही एक रूप कह सकते हैं। कई बार ग़रीब लोग दुल्हन का मूल्य नहीं दे सकते परन्तु वह विवाह भी करना चाहते हैं। इसलिए लड़का लड़की के माता-पिता के घर कुछ समय के लिए नौकरी करता है। कुछ समय के बाद लड़की के माता-पिता दोनों के विवाह की स्वीकृति दे देते हैं तथा वह विवाह करके अपना नया घर बसा लेते हैं। पुरम तथा गौंड जनजातीय में लड़के को लड़की के घर 3 साल कार्य करना पड़ता है तथा पुत्र के सभी उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना पड़ता है। लड़की का पिता ही लड़के के रहने तथा खाने-पीने का प्रबन्ध करता है। कई जनजातियों में तो ससुर जमाई को दुल्हन का मूल्य देने के लिए पैसे उधार देता है तथा जमाई धीरे-धीरे उस पैसे को वापिस कर देता है। मुण्डा, बोंगा इत्यादि जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित है।

5. आज़माइश विवाह (Probationary Marriage)-इस प्रकार के विवाह का मुख्य उद्देश्य लड़के-लड़की को एक-दूसरे को समझने का पूरा मौका प्रदान करना होता है। इस तरह के विवाह में लड़का-लड़की के घर जाकर रहता है तथा लड़का-लड़की को आपस में मिलने तथा बातचीत करने की आज्ञा होती है। अगर कुछ दिन लड़की के घर रहने के बाद लड़के को लगता है कि दोनों का स्वभाव मिलता है तो दोनों का विवाह हो जाता है नहीं तो लड़कालड़की के पिता को मुआवजे के रूप में कुछ पैसे देकर चला जाता है। कुकी जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित

6. अयोग्य दखल द्वारा विवाह (Anader or Intrusion Marriage)-इस प्रकार के विवाह में लड़की सहारा लेती है प्यार का। लड़की किसी ऐसे जवान व्यक्ति से विवाह करने की इच्छा रखती है जो विवाह के लिए राजी नहीं होता है। इसलिए लडकी का अपमान भी होता है। उसको कठोर व्यवहार तथा अपमान का सामना भी करना पड़ता है। उसको पीटा जाता है, खाना नहीं दिया जाता तथा घर से बाहर भी रखा जाता है। परन्तु फिर भी अगर लड़की अपना इरादा नहीं छोड़ती तो उसका विवाह उस व्यक्ति से करना ही पड़ता है।

7. आपसी सहमति द्वारा विवाह (Marriage by Mutual Consent)-कई जनजातियों में इस प्रकार का विवाह भी प्रचलित है। इसको राजी खुशी विवाह भी कहते हैं। लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ घर से भाग जाती है तथा उस समय तक वापस नहीं आती है जब तक उसके माता-पिता विवाह को मान्यता नहीं दे देते। इस प्रकार का विवाह सभी समाजों में प्रचलित है।

8. परख द्वारा विवाह (Marriage by Trial)-इस प्रकार के विवाह में लड़का तथा लड़की को लड़की के घर कुछ समय इकट्ठे रहने की आज्ञा मिल जाती है। अगर वह एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो उनके बुजुर्ग उनका विवाह कर देते हैं। परन्तु अगर उन दोनों को एक-दूसरे का स्वभाव ठीक नहीं लगता है तो वह अलग हो जाते हैं। परन्तु लड़के को लड़की के पिता को कुछ मुआवज़ा देना पड़ता है। यदि इस दौरान लड़की गर्भवती हो जाए तो दोनों को विवाह करवाना ही पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 3.
जनजातीय समाज में क्या समस्याएं पाई जाती हैं ? उनको दूर करने के तरीके बताओ।
उत्तर-
जनजातीय समाज हमारी संस्कृति तथा सभ्यता से काफ़ी दूर जंगलों, पड़ाड़ों, घाटियों में रहता है जोकि हमारी पहंच से काफ़ी दूर है। वह न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने मामले में हस्तक्षेप करने देते हैं। चाहे वह अब धीरे-धीरे मुख्य धारा में आ रहे हैं जिस कारण अब हमें उनकी समस्याओं के बारे में धीरे-धीरे पता चलता जा रहा है। उनकी सिर्फ एक-दो समस्याएं नहीं हैं। बल्कि बहुत-सी समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. आर्थिक समस्याएं ( Economic Problems)-जनजातियों को बहुत सी आर्थिक समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है-

(i) ऋण की समस्या (Problem of Debt)-जनजातियों के लोग साधारणतया भोले भाले होते हैं। उनके इस भोलेपन, अज्ञानता तथा निर्धनता का लाभ अनेकों महाजन तथा साहूकार उठा रहे हैं। वह इन जनजातियों के लोगों को ऋण दे देते हैं तथा तमाम उम्र उन से ऋण वसूल करते रहते हैं। इस ऋण का भार उन पर इतना अधिक होता है कि एक तरफ तो वह तमाम आयु ऋण वापिस करने में लगे रहते हैं तथा दूसरी तरफ निर्धन होते रहते हैं।

(ii) कृषि की समस्या (Problem of Agriculture)-जनजातियों के लोग झूम अथवा स्थानान्तरित कृषि करते हैं तथा इनका कृषि करने का तरीका बहुत पुराना है। उनके कृषि करने के प्राचीन ढंगों के कारण उनका उत्पादन भी बहुत कम होता है। पहले वह जंगलों को आग लगा कर साफ़ कर देते हैं तथा फिर उस पर कृषि करते हैं। उत्पादन कम होने के कारण वह दो वक्त की रोटी भी नहीं कमा सकते जिस कारण उनको मजूदरी अथवा नौकरी भी करनी पड़ती है।

(iii) भूमि से सम्बन्धित समस्या (Land Related Problem)-जनजातियों के लोग स्थानान्तरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को अपनी इच्छा के अनुसार आग लगाकर साफ़ कर देते हैं तथा भूमि को कृषि के लिए तैयार कर लेते हैं। उस भूमि पर वह अपना अधिकार समझते हैं। परन्तु अब भूमि से सम्बन्धित कानून बन गए हैं तथा उनसे यह अधिकार ले लिया गया है। इसके अतिरिक्त उनकी भूमि हमेशा साहूकारों के पास गिरवी पड़ी रहती है तथा वह इसका लाभ नहीं उठा सकते।

(iv) जंगलों से सम्बन्धित समस्याएं (Problems related to Forests)-जनजातीय साधारणतया आबादी से दूर जंगलों में रहते हैं तथा जंगलों पर अपना अधिकार समझते हैं। वह जंगलों से ही खाने-पीने का सामान इकट्ठा करते हैं, जंगलों के पेड़ काटकर लकड़ी बेचते हैं या फिर जंगल साफ़ करके उन पर कृषि करके अपना गुजारा करते हैं। परन्तु अब जंगलों से सम्बन्धित कानून बनने से तथा जंगलों को ठेके पर देने से बहुत ही मुश्किलें आ रही हैं। जंगलों के ठेकेदार न तो उन्हें लकड़ी काटने देते हैं न ही कुछ इकट्ठा करने देते हैं तथा न ही कृषि के लिए जंगल साफ़ करने देते हैं। इस तरह उनके लिए गुजारा करना बहुत मुश्किल हो गया है।

(v) वह जहां कहीं भी नौकरी अथवा मजदूरी करते हैं उनसे बेगार करवाई जाती है, उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाता है तथा मज़दूरी भी कम दी जाती है जोकि उनके लिए बहुत बड़ी समस्या है।

2. सामाजिक समस्याएं (Social Problems)-जनजाति समाज में बहुत-सी सामाजिक समस्याएं मिलती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

(i) वेश्यावृत्ति (Prostitution)-जनजातियों के लोग साधारणतया निर्धन होते हैं। उनकी इस निर्धनता का लाभ ठेकेदार, साहूकार इत्यादि नाजायज़ तरीके से उठाते हैं। वह उनको पैसों का लालच दिखाकर उनकी स्त्रियां से नाजायज़ सम्बन्ध कायम कर लेते हैं। इस तरह उनकी स्त्रियां धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति की तरफ बढ़ रही हैं जिस कारण उनमें कई गुप्त बीमारियां बढ़ रही हैं।

(ii) दुल्हन की कीमत (Price of Bride)-हिन्दुओं की कई जातियों में तो प्राचीन विवाह के ढंगों के अनुसार दुल्हन का मूल्य लड़के को लड़की के माता-पिता को अदा करना पड़ता है। अब जनजातीय धीरे-धीरे हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ रहे हैं जिस कारण अब वह भी दुल्हन की कीमत मांगते हैं तथा धीरे-धीरे उसकी कीमत भी बढ़ रही है। किसी भी जनजातीय का आम व्यक्ति इतना मूल्य नहीं दे सकता। अब उनमें अपने बच्चों का विवाह करना मुश्किल हो रहा है।

(iii) बाल विवाह (Child Marriage)-धीरे-धीरे अब जनजातीय हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ रहे हैं। हिन्दुओं में शुरू से ही बाल विवाह प्रचलित रहे हैं, चाहे वह अब काफ़ी कम हो रहे हैं। परन्तु जनजातियों ने हिन्दू धर्म के प्रभाव के अन्तर्गत अपने बच्चों के विवाह छोटी उम्र में ही करने शुरू कर दिए हैं जिस कारण उन्हें बहुत-सी मुश्किलें आ रही हैं।

3. सांस्कृतिक समस्याएं (Cultural Problems)-जनजातियाँ अब अन्य संस्कृतियों तथा सभ्यताओं के सम्पर्क में आ रही हैं। इस कारण उनमें कई प्रकार की सांस्कृतिक समस्याएं आ रही हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है
(i) भाषा की समस्या (Problem related to Language)-अब जनजातीय बाहर की संस्कृतियों के सम्पर्क में आ रहे हैं। उनके सम्पर्क में आने से तथा उनसे अन्तक्रिया करने के लिए जनजातियों के लोगों को दूसरे लोगों की भाषाएं सीखनी पड़ रही हैं। अब वह अन्य भाषाएं बोलने लग गए हैं। यहां तक कि उनकी आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा के प्रति पूरी तरह उदासीन है तथा वह अपनी भाषा को या तो भुला चुके हैं या भूल रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनमें अपनी भाषा से सम्बन्धित करें-कीमतें तथा संस्कृति के आदर्श धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।

(ii) कलाओं का खात्मा (End of Fine Arts)–जनजातियों के लोग अपनी ललित कलाओं जैसे बर्तन, चित्रकारी, लकड़ी की कारीगरी इत्यादि के लिए मशहूर होते हैं। परन्तु अब वह और संस्कृतियों के प्रभाव के अन्तर्गत अपनी कलाओं को भूलते जा रहे हैं तथा और कार्य करते जा रहे हैं। इस कारण उनकी अनमोल संस्कृति का धीरे-धीरे पतन हो रहा है।

(iii) सांस्कृतिक भिन्नता (Cultural differences) यह आवश्यक नहीं है कि सभी ही जनजातियों के लोग हिन्दू धर्म को ही अपना रहे हैं। बहुत-से ऐसे जनजातीय ऐसे भी हैं जो ईसाई अथवा बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। इस तरह एक ही जनजातीय में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्म सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से अलग होते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि उनमें आपस में ही बहुत-सी सांस्कृतिक समस्याएं खड़ी हो रही हैं। इसके साथ-साथ वह जाति प्रथा को भी अपना रहे हैं। इस सभी का परिणाम यह निकला है कि वह न तो अपनी संस्कृति के रहे तथा न ही और संस्कृतियों को पूरी तरह अपना सके। इस तरह उनमें बहुत-सी सांस्कृतिक समस्याएं पैदा हो गई हैं।

4. शिक्षा की समस्याएं (Educational Problems)—साधारणतया जनजातियों के लोग निर्धन हैं तथा उनकी निर्धनता का सबसे बड़ा कारण उनकी अनपढ़ता है। चाहे अब वह सरकारी शिक्षा के प्रभाव के अन्तर्गत अथवा ईसाईयों के सम्पर्क में आने से धीरे-धीरे पढ़ते जा रहे हैं तथा अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त करते जा रहे हैं। परन्तु इससे भी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। एक तो वह अपने मूल धन्धे शिक्षा के कारण छोड़ रहे हैं जिस कारण वह अपने सांस्कृतिक तत्त्वों से दूर हो रहे हैं। दूसरी तरफ शिक्षा प्राप्त करके उन्हें नौकरी नहीं मिलती तथा वह बेरोज़गार होते जा रहे हैं। इस तरह शिक्षा लेने से उनकी समस्याएं बढ़ रही हैं।

5. स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं (Health Related Problems) क्योंकि यह कबीले आम आदमी से दूर रहते हैं जिस कारण उनमें स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएं भी बढ़ रही हैं। उनके इलाकों में बहुत-सी भयंकर बीमारियां फैल जाती हैं जैसे चेचक, हैजा, इत्यादि जिससे बहुत से व्यक्ति मर जाते हैं। इसके साथ वेश्यावृत्ति के कारण तथा गलत यौन सम्बन्धों. के कारण कई प्रकार की गुप्त बीमारियां फैल जाती हैं। जनजातीय लोग उद्योगों में कार्य कर रहे हैं जिस कारण उद्योगों से सम्बन्धित बीमारियां भी बढ़ रही हैं। उनके इलाकों में डॉक्टरों, अस्पतालों, डिस्पैंसरियों का सही प्रबन्ध नहीं है जिस कारण उनके इलाकों में इलाज की व्यवस्था भी बहुत कम है और अन्य संस्कृतियों के सम्पर्क में आने से वह शराब, अफीम इत्यादि चीजों का सेवन कर रहे हैं जिनसे बीमारियां बढ़ रही हैं परन्तु उनका इलाज करने वाला कोई नहीं है।

समस्याओं को दूर करने के उपाय (Ways of Eradicating Problems)-
अगर कोई समस्या होती है तो उसका कोई न कोई हल भी जरूर होता है। इस तरह अगर जनजातियों की कुछ समस्याएं हैं तो उनका हल भी हो सकता है। अगर अच्छे तरीके से योजना बनाई जाए तो उनका हल आसानी से निकाला जा सकता है। उनकी समस्याओं का हल इस प्रकार है

  • उनके समाजों में वेश्यावृत्ति रोकनी चाहिए ताकि नैतिकता का पतन न हो। इसलिए उनको आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
  • उनके इलाकों में बाल विवाह रोकने के लिए कानून बनाए जाने चाहिएं।
  • दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी खत्म होनी चाहिए ताकि उनके इलाकों में विवाह हो सकें तथा अनैतिक कार्य कम हो जाएं।
  • जनजातियों के लोगों को स्थानान्तरित कृषि को छोड़कर साधारण कृषि के लिए भूमि देनी चाहिए ताकि वह एक जगह पर रहकर कृषि कर सकें।
  • कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए उनको आधुनिक तकनीकों के बारे में शिक्षा देनी चाहिए। इसके साथ-साथ उनको स्थानान्तरित कृषि कम करने की सलाह भी देनी चाहिए।
  • जंगलों से सम्बन्धित ऐसे कानून बनाए जाने चाहिएं जिससे उनका भी अधिक-से-अधिक फायदा हो सके।
  • उनके इलाकों में घरेलू उद्योग लगाए जाने चाहिएं ताकि वह अपना कार्य कर सकें। इसके लिए उन्हें कर्जे तथा ग्रांटें देनी चाहिएं।
  • उनको उनकी भाषा में ही शिक्षा देनी चाहिए ताकि उनकी भाषा लुप्त ही न हो जाए।
  • उनको दस्तकारी तथा और पेशों से सम्बन्धित शिक्षा देनी चाहिए ताकि पढ़ने-लिखने के बाद अपना ही कोई कार्य कर सकें।
  • उनके इलाकों में शिक्षा की दर बढ़ाने के लिए स्कूल खोले जाने चाहिएं।
  • जनजातीय इलाकों में अस्पतालों का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • जनजातीय लोगों को कम्पाऊंडरी की शिक्षा देनी चाहिए ताकि समय पड़ने पर वह कुछ तो अपना इलाज कर सकें।

प्रश्न 4.
जनजातीय अर्थव्यवस्था क्या होती है ? इसके स्वरूप का वर्णन करो।
उत्तर-
बहुत-से समाजशास्त्रियों ने मनुष्य के आर्थिक जीवन को कई पड़ावों में विभाजित किया है जैसे कि मनुष्य शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने के रूप में, चरागाह स्तर, कृषि स्तर तथा तकनीकी स्तर। यह माना जाता है कि आज के मनुष्य का आर्थिक जीवन इन स्तरों में से होकर गुज़रा है। इन स्तरों में से गुजरने के बाद ही मनुष्य आज के तकनीकी स्तर पर पहुंचा है। परन्तु अगर हम जनजातीय समाज की आर्थिक व्यवस्था की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि यह अभी भी आर्थिक जीवन की शुरुआत की अवस्था में ही हैं अर्थात् शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने के रूप में ही है। प्रत्येक समाज अपने सदस्यों की आवश्यकताएं पूर्ण करने की कोशिश करता रहता है तथा लोगों की आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं। परन्तु जनजातीय समाज के लोगों की आर्थिक आवश्यकताएं सीमित ही होती हैं। इन आवश्यकताओं के सीमित होने के कारण यह लोग अपनी आवश्यकताएं अपने इर्द-गिर्द के क्षेत्र में ही पूर्ण कर लेते हैं। जनजातीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता निजी परिश्रम है अर्थात् व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए स्वयं परिश्रम करना ही पड़ेगा। कई समाजशास्त्रियों ने जनजातीय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दी है जोकि इस प्रकार है :-

1. लूसी मेयर (Lucy Mayor) के अनुसार, “जनजातीय अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध उन गतिविधियों से है जिससे लोग अपने भौतिक तथा अभौतिक वातावरण दोनों की व्यवस्था करते हैं तथा उन के अलग-अलग उपयोगों में से कुछ को चुनते हैं ताकि विरोधी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सीमित साधनों का निर्धारण किया जा सके।”

2. पिडिंगटन (Pidington) के अनुसार, “आर्थिक व्यवस्था लोगों की भौतिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए उत्पादन की व्यवस्था, विभाजन तथा नियन्त्रण और समुदाय में स्वामित्व के अधिकार के दावों को निर्धारित करती है।”
इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था की मदद से जनजातीय समाज के लोग अपनी ज़रूरतों तथा आर्थिक उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं। जब तक हम जनजातीय समाज के साधारण स्वरूप को न समझ लें हम जनजातीय अर्थव्यवस्था को नहीं समझ सकते। जनजातीय अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्तियों तथा दोनों लिंगों का बराबर महत्त्व होता है। सभी व्यक्ति, जवान, स्त्रियां, बच्चे इत्यादि रोटी कमाने में लगे होते हैं। इनकी आर्थिक व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति किसी के ऊपर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं होता है। अगर किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है तो भी वह रोटी कमाने की प्रक्रिया में हिस्सा लेती है ताकि उसका तथा उसके बच्चों का जीवन अच्छी तरह से चल सके। जनजातीय अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों की आवश्यकताएं बहुत ही सीमित होती हैं तथा वह अपने इर्द-गिर्द से ही अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

जनजातीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप (Nature of Tribal Economy)-चाहे आजकल का सभ्य समाज सम्पूर्ण रूप से तकनीक पर निर्भर करता है तथा आर्थिक तौर पर काफ़ी आगे निकल चुका है परन्तु जनजातीय अर्थव्यवस्था अभी भी अपने शुरुआती दौर में है। जनजातीय समाज प्रकृति पर निर्भर करता है। उनके जीवन जीने के मुख्य स्रोत जंगल, पहाड़ तथा भूमि हैं। कई समाजशास्त्रियों ने मनुष्यों के समाज के आर्थिक जीवन के अलग-अलग स्तरों का वर्णन किया है। इन स्तरों को देखने के बाद यह पता चलता है कि जनजातीय समाज का आर्थिक जीवन अभी भी अपने पहले स्तर पर ही है। इसके स्वरूप के मुख्य पहलू इस प्रकार हैं :-

  • जनजातीय समाज में तकनीक का अस्तित्व नहीं होता है। इस कारण ही उन्हें सारा कार्य अपने हाथों से करना पड़ता है। इस कारण ही उनकी आर्थिक आवश्यकताएं बहुत ही कम होती हैं।
  • जनजातीय के लोगों के बीच आर्थिक सम्बन्ध लेन-देन तथा विनिमय दर ही आधारित होते हैं। पैसे की चीज़ों के लेन-देन के लिए व्यापक तौर पर प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • जनजातीय अर्थव्यवस्था एक, दो अथवा कुछ व्यक्तियों की कोशिशों का परिणाम नहीं है बल्कि सम्पूर्ण समूह की कोशिशों का परिणाम है।
  • जनजातीय लोगों के व्यापार में लाभ कमाने की भावना नहीं पायी जाती है। व्यापार में हिस्सेदारी, एकता की भावना तथा अपनी ज़रूरतों की पूर्ति की भावना ज़रूर होती है।
  • उनके समाज में नियमित मण्डी नहीं होती है। उनके क्षेत्र के नज़दीक के क्षेत्र में जहां कहीं भी साप्ताहिक मण्डी लगती है वह वहीं पर जाकर अपना माल बेचते हैं। उनकी आर्थिक व्यवस्था में प्रतियोगिता तथा पैसा इकट्ठा करने की प्रवृत्ति नहीं होती है।
  • उनके समाज में किसी आविष्कार को करने की प्रवृत्ति भी नहीं होती है जिस कारण उनकी उन्नति भी कम होती है। उनकी आर्थिक व्यवस्था स्थिर है जोकि अपनी ज़रूरतें पूर्ण करने पर ही आधारित होती है।
  • प्राचीन समय में चीज़ों का उत्पादन बेचने अथवा इकट्ठा करने के लिए नहीं बल्कि खपत करने के लिए होता था। इस तरह जनजातीय समाज में उत्पादन खपत करने के लिए होता है न कि बेचने के लिए। चाहे अब इसमें धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है परन्तु फिर भी उनके समाज में उत्पादन मुख्य तौर पर खपत के लिए ही होता है।
  • जनजातीय समाज में तकनीक की कमी होती है जिस कारण तकनीकी योग्यता पर आधारित विशेषीकरण की कमी होती है। लिंग पर आधारित श्रम विभाजन मौजूद होता है।
  • जनजातीय समाज में लोग धन जमा करने की अपेक्षा खर्च करने पर अधिक विश्वास रखते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज में कौन-से कारणों के कारण परिवर्तन आ रहे हैं ? उनका वर्णन करो।
उत्तर-
1. ईसाई मिशनरियों का प्रभाव (Effect of Christian Missionaries) अंग्रेज़ों ने भारत पर कब्जा करने के पश्चात् सबसे पहला कार्य यह किया कि ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की आज्ञा दे दी। ईसाई मिशनरियों ने देश के अलग-अलग भागों में जाकर ईसाई धर्म का प्रचार किया। उनके प्रभाव के अन्तर्गत बहुत से भारतीय ईसाई बन गए। यह मिशनरी जनजातियों के सम्पर्क में आए। इन्होंने देखा कि इन जनजातियों का अपना ही धर्म होता है तथा यह हिन्दू धर्म अथवा किसी और धर्म के प्रभाव के अन्तर्गत नहीं आते हैं। इसलिए इन मिशनरियों ने जनजातीय क्षेत्रों में जोर-शोर से धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। जनजातीय लोगों को कई प्रकार के लालच दिए गए। उनके क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्र, शिक्षा केन्द्र इत्यादि जैसे कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गईं। इस तरह जनजातीय लोग मिशनरियों के प्रभाव के कारण अपना धर्म छोड़कर ईसाई बनने लग गए। ईसाई बनने से उन्होंने ईसाई धर्म के तौर तरीके, रीति-रिवाज अपनाने शुरू कर दिए जिससे उनके जीवन में बहुत-से परिवर्तन आ गए।

2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास (Development in means of Transport and Communication)-जब अंग्रेज़ भारत में आए तो उन्होंने देखा कि यहां यातायात के साधन बहुत ही प्राचीन हैं इसलिए उन्होंने भारत में यातायात तथा संचार के साधनों का विकास करना शुरू कर दिया। उन्होंने ही 1853 में पहली रेलगाड़ी चलाई तथा डाकतार विभाग की भी स्थापना भी की। चाहे उन्होंने यातायात के साधनों का विकास अपनी सुविधा के लिए किया परन्तु इसके अधिक लाभ भारतीयों को हुए। लोग दूर-दूर क्षेत्रों में पहुंचने लग गए। वह जनजातीय क्षेत्रों तक भी पहुंच गए तथा उन्होंने उन्हें मुख्य धारा में आने के लिए मनाना शुरू कर दिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् तो तेजी से यातायात के साधनों का विकास होना शुरू हो गया जिस कारण जनजातीय लोग अपने जनजातीय से दूर-दूर रहते लोगों तक पहुंचना शुरू हो गए। अपनी जनजाति से बाहर निकलने के कारण वह दूसरे समूहों के सम्पर्क में आए तथा धीरे-धीरे उनमें परिवर्तन आने शुरू हो गए।

3. मण्डी आर्थिकता (Market Economy)-प्राचीन समय में जनजातियों की आर्थिकता निर्वाह आर्थिकता होती थी। उनकी आवश्यकताएं बहुत ही सीमित थीं। वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए उत्पादन किया करते थे। वह जंगलों से फल, जड़ें तथा शिकार इत्यादि इकट्ठा किया करते थे। उनके समाजों में अतिरिक्त उत्पादन की प्रथा नहीं थी। वह मण्डियों से तो बिल्कुल ही अनजान थे। परन्तु जैसे-जैसे वह और समूहों के नजदीक आते चले गए तथा यातायात के साधनों के विकास के कारण वह दूर-दूर के क्षेत्रों में जाने लग गए तो उनको मण्डी आर्थिकता के बारे में पता चलना शुरू हो गया। उनको पता चल गया कि थोड़ा सा अधिक उत्पादन करके उसको बेचा जा सकता है। इसके बाद उन्होंने अधिक परिश्रम करके अधिक उत्पादन करना शुरू कर दिया तथा अतिरिक्त उत्पादन को मण्डी में बेचना शुरू कर दिया। इससे उन्हें पैसे प्राप्त होने लग गए तथा उनका जीवन आसान होना शुरू हो गया। इस तरह मण्डी आर्थिकता ने उनके जीवन को बदलना शुरू कर दिया।

4. संवैधानिक उपबन्ध (Constitutional Provision)-भारतीय संविधान में यह लिखा है कि किसी भी भारतीय नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, भाषा अथवा रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही संविधान में यह व्यवस्था की गई कि समाज के कमजोर वर्गों जैसे अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष रियायतें दी जाएं। इन रियायतों में शैक्षिक संस्थाओं, सरकारी नौकरियों, संसद् तथा विधानसभाओं में इनके लिए कुछ स्थान आरक्षित रखना शामिल था। संविधान ने राज्यों के राज्यपालों को यह अधिकार भी दिया कि वह जनजातियों के सम्बन्ध में एक सलाहकार कौंसिल बनाए जो जनजातियों की भूमि तथा लेन-देन के बारे में नियम बनाए ताकि उन्हें साहूकारों के शोषण से बचाया जा सके। इसके साथ ही जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए भी संविधान में सरकार को विशेष निर्देश दिए गए हैं। प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान ने कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं ताकि वह अपना जीवन अच्छी तरह जी सकें। यह अधिकार जनजातीय लोगों को भी प्राप्त हैं। इस तरह संविधान में रखे गए उपबन्धों के कारण इनके इलाकों में विकास होना शुरू हो गया तथा इनका जीवन बदलना शुरू हो गया।

5. सरकारी प्रयास (Governmental Efforts) भारत की स्वतन्त्रता के समय इन जनजातियों की स्थिति काफ़ी कमज़ोर थी। इस कारण संविधान में इनके विकास के लिए कई प्रकार की सुविधाएं रखी गई हैं। इन संवैधानिक उपबन्धों के अनुसार सरकार ने इनके विकास करने के प्रयास करने शुरू कर दिए। इनके क्षेत्रों तक सड़कें बनाई गईं। इनके क्षेत्रों में शिक्षण संस्थान खोले गए, स्वास्थ्य केन्द्र, अस्पताल इत्यादि खोले गए ताकि वह बीमारी के समय अपना इलाज करवा सकें। उनको पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया। समाज सेवी संस्थाओं को इनके क्षेत्रों में कार्य करने के लिए विशेष सहायता दी गई। इनको साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए कानून बनाए गए। इनको मुख्य धारा में लाने की कोशिशें की गईं। इस तरह सरकारी प्रयासों से यह लोग मुख्य धारा के नजदीक आ गए तथा उनका जीवन परिवर्तित होना शुरू हो गया।

6. आधुनिक शिक्षा का प्रसार (Spread of Modern Education) स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने शिक्षा के प्रसार पर विशेष जोर दिया। दूर-दूर के क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज खोले गए तथा उन्हें बड़े-बड़े कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से जोड़ा गया। उन लोगों को आधुनिक शिक्षा देने के प्रयास किए गए, उनको शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया गया। उनके लिए संविधान में शैक्षिक संस्थाओं तथा नौकरियों में स्थान आरक्षित रखने का प्रावधान रखा गया। समाज सेवी संस्थाओं ने उन्हें शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। इस तरह सम्पूर्ण समाज के प्रयासों से उन्होंने शिक्षा लेनी शुरू कर दी। वैसे तो वह मिडिल से ऊपर शिक्षा ग्रहण नहीं करते परन्तु जो लोग उच्च शिक्षा के स्तर तक पहुंच गए हैं उनको सीटें आरक्षित. होने के कारण नौकरियां आसानी से प्राप्त होने लग गई हैं। नौकरियां मिलने से उनकी आय अच्छी होने लग गई तथा उनका जीवन स्तर ऊंचा होने लग गया। उनकी सामाजिक स्थिति ऊंची हो गई। उनकी ऊंची स्थिति देख कर दूसरे जनजातियों के लोगों ने शिक्षा प्राप्त करनी शुरू कर दी। इस तरह शिक्षा के प्रसार से उनका जीवन परिवर्तित होना शुरू हो गया।

7. जंगलों का कम होना (Decreasing Forests)-जंगलों के कम होने से जनजातीय लोगों के जीवन में भी परिवर्तन आया। पहले जनजातीय लोगों की आर्थिकता जंगलों पर ही आधारित थी। वह जंगलों में ही रहते थे, जंगलों में कृषि करते थे, जंगलों से ही फल, जड़ें इत्यादि इकट्ठी किया करते थे तथा जंगलों में ही शिकार किया करते थे। परन्तु समय के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ने लग गई। जनसंख्या बढ़ने से उनकी रहने की समस्या शुरू हुई। इसलिए जंगल कटने शुरू हो गए। जंगल कटने से जंगल घटने शुरू हो गए। जनजातीय लोगों की रोजी-रोटी का साधन खत्म होना शुरू हो गया। इस कारण वह लोग जंगलों को छोड़कर कार्य की तलाश में शहरों की तरफ आने शुरू हो गए। शहरों में आकर उन्होंने अपने परम्परागत पेशे छोड़कर और पेशे अपनाने शुरू कर दिए जिस कारण उनका जीवन बदलना शुरू हो गया।

इसके साथ ही सरकार ने जंगलों को काटने का कार्य ठेकेदारों को देना शुरू कर दिया। जनजातियों के लोग लकड़ी को जंगल में से काटकर उन्हें बेचते थे तथा चीजें इकट्ठी करके उन्हें बेचते थे। ठेकेदारों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इस तरह ही उनकी रोजी रोटी का साधन खत्म हो गया तथा उन्होंने अपने परम्परागत पेशे छोड़ कर अन्य कार्यों को अपनाना शुरू कर दिया।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

जनजातीय समाज PSEB 12th Class Sociology Notes

  • भारतीय जनजातीय विरासत काफ़ी समृद्ध तथा आदिम है। यहां अलग-अलग प्रजातीय तथा भाषायी जनजातियां रहती हैं जो आर्थिक व तकनीकी रूप से अलग अलग स्तरों पर हैं।
  • चाहे भारतीय जनजातियों में बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं परन्तु फिर भी यह पिछड़े हुए हैं तथा सरकार इनकी प्रगति की तरफ विशेष ध्यान दे रही है।
  • भारत में जनजातियों को आदिवासी, पिछड़े हुए हिन्दू, गिरीजन, प्राचीन जनजातियां तथा अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है।
  • जनजाति वास्तव में एक ऐसा अन्तर्वैवाहिक समूह होता है जो एक विशेष क्षेत्र में रहता है, जिसकी अपनी एक विशेष भाषा व संस्कृति होती है। तकनीकी रूप से यह प्राचीन अवस्था में रहते हैं। इनकी आर्थिकता निर्वाह करने वाली तथा लेन-देन के ऊपर निर्भर करती है।
  • जनजातियों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया जाता है। सर हरबर्ट रिजले ने इन्हें प्रजाति के आधार
    पर विभाजित किया है। इन्हें आर्थिक आधार पर तथा देश की मुख्य धारा में शामिल होने के आधार पर भी विभाजित किया जाता है।
  • वैसे तो देश में बहुत-सी जनजातियाँ पाई जाती हैं परन्तु सात मुख्य जनजातियाँ हैं-गौंड, भील, संथाल, मीना,
    ऊराओं, मुण्डा तथा खौंड जिनकी जनसंख्या एक लाख या उससे अधिक है।
  • जनजातीय समाजों में सत्ता, रहने के स्थान तथा वंश के आधार पर कई प्रकार के परिवार पाए जाते हैं। इसके
    साथ-साथ इन लोगों में विवाह करने के भी कई ढंग प्रचलित हैं।
  • जनजातीय समाजों को बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है जंगलों
    की कटाई तथा विस्थापित करना। जंगलों के कटने के कारण जनजातीय लोगों को उनके घरों से विस्थापित करके नए स्थानों पर बसाया जाता है जिस कारण उन्हें काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • जनजातीय समाजों में बहुत-से परिवर्तन आ रहे हैं। वह देश की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं, वह अपने नज़दीक
    के समाजों के तौर-तरीकों को अपना रहे हैं, वह अपने पेशों को छोड़ कर अन्य पेशों को अपना रहे हैं तथा अपने क्षेत्रों को छोड़ कर नए क्षेत्रों में रहने जा रहे हैं।
  • साधारण श्रम विभाजन (Simple Division of Labour)-जनजातीय समाजों में समाज साधारण श्रम विभाजन पर आधारित होता है जिसमें आयु तथा लिंग प्रमुख हैं।
  • जीववाद (Animism)-जीववाद आत्मा में विश्वास है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा मौजूद है। यह सिद्धान्त टाईलर (Tylor) ने दिया था।
  • टोटमवाद (Totemism)-जब किसी पत्थर, पेड़, जानवर अथवा किसी अन्य वस्तु को जनजाति द्वारा पवित्र मान लिया जाता है तो उसे टोटम कहते हैं। टोटम में विश्वास को टोटमवाद कहा जाता है। उस पवित्र वस्तु को मारा या खाया नहीं जाता। उसकी पूजा की जाती है कि उसमें कोई दैवीय शक्ति मौजूद है।
  • निर्वाह अर्थव्यवस्था (Subsistence Economy)-निर्वाह अर्थव्यवस्था का अर्थ है वह अर्थव्यवस्था जिसमें लोग केवल अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं। जनजातीय समाज साधारण प्रकृति के होते हैं तथा वह शिकार करके, एकत्र करके, मछली पकड़ के तथा जंगलों से वस्तुएं एकत्र करके गुजारा करते हैं। इसके साथ-साथ वहाँ लेन-देन की प्रक्रिया भी प्रचलित है। उनकी आर्थिकता मुनाफे नहीं बल्कि गुज़ारे पर आधारित होती है।
  • स्थानांतरित कृषि (Shifting Cultivation) यह जनजातीय लोगों में कृषि करने का एक तरीका है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे झूम अथवा ग्रामीण कृषि भी कहा जाता है। इस तरीके में पहले जंगल को काट कर साफ कर दिया जाता है, कटे हुए पेड़ों को आग लगा दी जाती है तथा खाली भूमि में बीज बो दिए जाते हैं। बीजों को वर्षा ऋतु से पहले बोया जाता है। वर्षा के बाद फसल तैयार हो जाती है। इसके बाद दोबारा कृषि के लिए नए भूमि के टुकड़े पर तैयारी की जाती है तथा यह प्रक्रिया दोबारा की जाती है।

PSEB 12th Class Physical Education Practical Kho-Kho

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Kho Kho Game History
The existence of the game can be traced long back in the state of Maharashtra. It was one of the most popular traditional sport in India.
Earlier during prehistoric period it was played on ‘raths’ or ‘chariots’ and was called Rathera. The basic idea of the game was to ‘Run and Chase.’ The first National Kho- Kho Championship was organized in the year 1960. The Kho-Kho Federation of India (KKFI) came into existence in 1960. Kho- Kho was a part of Berlin Olympic Games in 1936 as a demonstration sport.

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PSEB 12th Class Physical Education Practical Kho-Kho

Kho Kho Game Important Points

  • Type of Sport: Team Sport
  • Size of Field: 27 m (length) x 16 m (Width)
  • Height of the Posts: 1.2Ocm-1.25cm
  • Circumference of Post: 30-40 cm
  • Number of Cross Lane: 08
  • Measurement of Cross Lane: 16m x 30cm
  • Length and Width of Centre Lane:23.50 m x 30 cm
  • Number of Innings:02
  • Duration of each Inning 7-2-7 (5) 7-2-7 (Sub Junior)9-5-9 (9) 9-5-9 (Senior & Junior),
  • Number of Players Total = 12 (9 + 3): 9 on the field (3 Extra)
  • Distance from Pole to Endline: 1.50m

Kho Kho Game Rules And Regulations
1. An inning consists of nine minutes chasing and nine minutes for defending. Eight members of chasing team sit on the squares facing in an alternating direction.
2. The ninth member called chaser or active chaser shall stand at either posts to start the chase.
3. The defender or runner try to avoid being touched by the chaser for maximum duration within the play field.
4. In order to catch the runner or defender, the chasing team member, continue to tap on the back of sitting member with hand and saying “kho” loudly.
5. The team taking lesser time to catch maximum members of opponent team shall be declared winner of the game.
6. It is mendatory to give loud and clear ‘kho’ to a sitting chaser.
7. Once an active chaser has taken a direction towards one pole, he shall not move to opposite direction, unless he turns or touches the posts or posts line.


8. 1f the points of chasing teams exceeds the points of opponent’s team by six or more the chasing team may call for “follow on”.
9. Substitution for the chasing team is done by re free on the request of coach.
10. The substitution for runner is allowed only before the start of defence.

Kho Kho Game Important Tourminalogies

  • Runner: The defenders moving within the field’s boundaries to avoid being touched by chaser are called runners.
  • Chaser: The eight members of the team sitting in a crouch position in the squares at central lane of the field are called chasers.
  • Innings: An inning consists of chasing and running turns of 9 minute duration for each team.
  • Cross Lane: Each rectangle having measurement of 35 cm in width, that intersects the central line at 90c angle is called cross lane.
  • Follow On: If alter completing first inning, the points of chasing team exceeds by six or more, the former side shall have the option for later side to follow on.
  • Active Chaser: An active chaser is the ninth member taking a hold of either posts to knock out an opponent.
  • Diving: The dive is a horizontal flight or jump by an active chaser to catch a runner at his closest proximity.

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Skills:
1. Running Skills:
Running skills requires lots of endurance, speed and agility to spend maximum time on the field. It includes long steps running. agility zig-zag running skills etc.

2. Chasing Skills:
Chasing skills includes the way of giving ‘kho’ to the player sitting in blocks with loud and clear voice. It includes running with long steps for a runner at a distance and continuous kho for a runner is a close priority. Further, it can be explained as follow:

(i) Diving: If a chaser feels that the runner is very close to him, can be caught with the horizontal flight. It is mainly a horizontal jump towards runner.

(ii) Thrning at Pole:
It needs a specific training to learn this skill, to turn around the pole. In this one hand is used to hold the pole and another hand is extented over the pole to catch the runner.

3. Dodging: Dodging is particularly a movement that is least expected by the catcher. It is the sudden change of the direction by the runner

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Kho Kho Game Important Tournaments

  1. National Championship: First National held at Vijayawada in 1960.
  2. Federation Cup
  3. Nehru Gold Cup
  4. All India Intervarsity Championship
  5. National School Championship.

Arjuna Award Winners:

  1. S.B. Parab-1970
  2. A. Suberao Devre-1971
  3. B.H. Parekh-1973
  4. N. C. Sarolkar-1974
  5. RJ. Inamdar, Usha Vasant Nagarkar-1975
  6. SR. Dharwardkar-1976
  7. H.M. Takalkar, Ms. Sushma Soalkar-1981
  8. Veena Narayan Parab-1983
  9. S. Prakash-1984
  10. S.B. Kulkarni, Surekha-1985
  11. Shobha Narayana-1999

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Kho Kho Game Important Questions

Question 1.
What is the dimension of Kho-Kho field?
Answer:
The length of a kho-kho field is 29 m and width is 16 m.

Question 2.
What is the total number of squares in kho-kho field?
Answer:
There are 8 squares of 30 cm x 30 cm in the kho-kho field.

Question 3.
What do you mean by cross lane?
Answer:
This is the exact place where the chaser sits in a crouch position.

Question 4.
What is follow on in kho-kho?
Answer:
If after competing first inning, the points of chasing team exceeds by six or more, the former side shall have the option for later side to follow on.

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Question 5.
What is an inning?
Answer:
An inning consists of chasing and running turns of 9 minutes duration for each team.

Question 6.
What is the circumference of post?
Answer:
The circumference of post is 30-40 cm.

Question 7.
How many players consists a kho-kho team?
Answer:
Nine players on the field and 3 substitutes.

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Question 8.
What is the distance from pole to end line?
Answer:
1.50 m.

Punjab State Board PSEB 12th Class Physical Education Book Solutions 12th Class Physical Education Practical Kho-Kho Important Notes, Questions and Answers.

PSEB 12th Class Physical Education Practical Hockey

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Hockey Game History
Historical records show that the roots of the game originated in Europe. It is evident that a form of game was played with stick and ball during that era. But, the beginning of the modem field hockey emerged in 18th century in England, The first set of rules were presented by First Hockey Association in 1876. The game was included in London Olympic Games in the year 1908. In India the game was highly popularized by the British Empire rule in the late 19th century. The first Hockey Club in India was formed in Kolkata (Calcutta) in the year 1885. The India Hockey Federation was established in the year 1925. In 1924 (FIH) International Hockey Federation was formed. India could take part in 1928 Amsterdam Olympic Games.

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Hockey Game Imporant Points

  • Length of Hockey field:91.40 m
  • Width of Hockey field:55.0 m
  • Team Members:18 (including two Goal keeper)
  • Duration of Game:15-2-15 (10) 15-2-15
  • Dimensions of Goal post:
    • Height = 2.14 m (7 feet)
    • Width = 3.66 m (12 feet)
    • Depth = 1.20 m (4 feet)
    • Height of backboard = 460 mm
  • Weight of Ball:156 gm to 163 gm
  • Weight of Hockey Stick:737 gm maximum
  • Circumference of Ball:224 to 235 mm
  • Card:Green-2 minutes suspension,Yellow-5 to 10 minutes suspension, Red-permanent suspension
  • Circumference of Shooting Circle ‘D’:14.63 m (16 yards)
  • No. of Officials:04 (Two field Umpires, one Record keeper, one Time keeper)
  • Distance of Penalty Spot (from goal post):6.40 m

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Dimensions of Playfield & Equipment:
1. Play Field:
(Rectangular in shape) The hockey field now-a-days is marked on the playing surface of astro turf with the length of 299 feet, 10 inches (91.4 in) and width of 180 feet 5 inches i.e. 55.0 m.

The (22.9 m) 25 yards line is marked across the field both side parallel to the back line of the goal post.

2. Goal Post:
The height of the goal post in the field hockey is 2.14 m (7 feet) and width is 3.66 m (12 feet). The depth of the goal post is 1.20 m (4 feet) as per FIH rules.

3. Striking Circle D:
The striking circle (two quarters) is marked measuring 3.66 m from ‘D’ to having a radius of 14.63 m inside the field. These quarters are joined with a straight line.

4. Penalty Spot: This point is marked at a distance of 6,475 m from the base line,

5. Hockey Stick: The stick is made up of wood, carbon, fibre, fibre glass or combination of these fibres. The weight of the- stick must not exceed 737 gm.

6. Ball:
The game is played with the plastic ball, white in colour. The weight of the ball must not exceed 5.5 to 5.7 ounces or 156 – 163 gm. The circumference of ball must range from 224 to 235 mm.

7. Goal Keeping Kit:
A goal keeper wears a different colour shirt and full protective equipment including head gear, leg guards and kickers etc.

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Hockey Game Rules And Regulations

  • Players shall hit the ball with the face of the stick i.e. flat side of the stick.
  • No player other than goal keeper can touch the ball with foot, hand or any other body part while ball in play. However, deliberately lying over the ball is not permitted in any case.
  • Only two players from the opposing team can tackle for the ball, no interference by the third party or player is permitted.
  • When the ball crosses the sidelines, then sideline hit shall be awarded to the player of opposite team.
  • While taking free hit, everyone must be 5 metres away from the ball.
  • The player with the ball in possession may not be allowed to use his body to push a defender deliberately out of his way.
  • It is not permitted to hit the ball above the knee level. But in some skills like scoop and flick it is considerable, where it is not dangerous to other players. However, the velocity of the ball is not defined anywhere in the rules.

Hockey Game Important Terminologies

1. Free Hit:
It is given when a foul has occured outside the scoring circle. In this condition the defender must be 5 m away from the player.

2. Penalty Corner:

The penalty comer is awarded to the attacking team if a defensive player commits foul inside the striking circle or within 25 yards of the goal area. While taking penalty comer only five defensive players including the goal keeper stands behind the backline of goal post.

3. Penalty Stroke:
When a defensive player commits a foul inside the circle to prevent a goal or if a player takes early run during penalty corner from the backline, the penalty stroke is given to the opposite team.

4. Flick:
Its a kind of shot above the recommended heights, but its not dangerous in terms of injury’ to an opponent e.g. drag flick during shot at goal.

5. Sudden Death:
If a tie persists after the completion of extra time the tie will be ended only if one team has scored a goal, during penalty stroke till the tie is over. This is termed as sudden death.

6. Scoop: This technique is used as an overhead pass to defeat defenders on the field.

7. Attackers: The players having ball in their possession are termed as attackers.

8. Defenders: The players without the ball are called defenders.

9. Substitution:
The players may be substituted unlimited number of times. It is termed as rolling substitution, except in two situations i.e. award and end of a penalty comer.

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Basic Skills:
1. Hitting:
For hitting the ball a player holds the stick with both hands and takes a back swing at recommended level to strike the ball with the flat surface of the stick.

2. Dribbling:
This is the best way to move forward in order to make an attack into opposition’s field. It is used to beat the defenders at the same time passing the ball to the other teammates. It needs lots of control over the ball while moving the stick by using the top hand grip.

3. Dodging:
This skill is used to leave the defender side of the ball. It is the least expected move by the attacker, to leave the defender far behind the ball.

4. Stopping Ball:
In this a player takes the control of the ball with the help of lace or blade of the stick. During penalty comer stopping the ball needs a skillful tactics, in which players sometimes needs to flatten the stick on the ground to completely stop the ball.

5. Goal Keeping:
A goal keeper inside the circle is allowed to stop or deflect the ball with the use of stick, feet, leg guards or any other body part. It must not be in a dangerous manner to other players. However, lying on the ball is not permitted in any case.

6. Reverse Shot:
For the reverse flick hold the stick with both hands at the top. The hook of the stick should be turned in clockwise direction with flat side facing upward.

7. Pushing the Ball:
The push pass or pushing the ball is the basic skill in hockey. This pass is mainly used for passing the bail for short distance. It does not involve any sound while hitting the ball. During push pass one hand grip should be in the middle of the stick.

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Hockey Game Important Tournaments

International Level:
1. The FIH (International Hockey Federation) is responsible for organizing Olympic Games, World Cup, World League, Champions Trophy, Junior World Cup, Asia Cup.

National Level:
2. Federation Cup, Indira Gandhi Gold Cup, Junior Nehru Hockey Trophy, Abaidullah Gold Cup, Agha Khan Cup, Bombay Gold Cup.

Arjuna Award Winners

  1. Prithipal Singh, Ann Lumsden-1961
  2. Charanjit Singh-1963
  3. S. Laxman-1964
  4. Udham Singh. E. Britoo-1965
  5. VJ. Peter, Sunita Puri, Gurbaksh Singh-1966
  6. Harbinder Singh, Mohinder Lai-1967
  7. Balbir Singh Kullar-1968
  8. Ajit Pal Singh-1970
  9. P. Krishnamurthy-1971
  10. Michael Kindo-1972
  11. M.P. Ganesh, O. Mascarenhas-1973
  12. Ashok Kumar, A. Kaur-1974
  13. B.P. Govinda, R. Saini 1975
  14. Capt. Harcharan Singh, L.L. Fernandes-1977-78
  15. Vasudevan Baskaran, R.B. Mundphan-1979-80
  16. Mohammed Shahid, Eliza Nelson-1980-81
  17. Versha Soni-1981
  18. Zafar Iqbal-1983
  19. Rajbir Kaur-1984
  20. S. Mancy-1984-85
  21. Prem Maya Senior, M.M. Somaya-1985
  22. J.M. Carvalho-1986
  23. M.P. Singh-1988
  24. Pargat Singh-1989
  25. Jagbir Singh-1990
  26. Mervyn Fernandes-1992
  27. Jude Felix Sabastain-1994
  28. Dhanraj Pile-1995
  29. Mukesh Kumar-1995
  30. A.B. Subbaiah, Ashish Kumar Balal-1996
  31. Harmik Singh, Surinder Singh Sodhi, Rajinder Singh-1997
    S. Surjit Singh, Pritam Rani Siwach, B.S. Dhillon, S. Omana Kumari,
    Lt, Col. Mohd. Ryaz. Baldev Singh, Maharaj Krishna Kaushik,
    Haripal Kaushal, Ramandeep Singh, V.J. Phillips-1998
  32. Balbir Singh Kuliar-1999
  33. Baljit Singh Saini, Tingonleima Chanu, Group Capt., R.S. Bhola,
    Balkishan Singh, Jalaluddin Rizvi, Madhu Yadav-2000
  34. Dilip Tirkey, Gagan Ajit Singh, Mamta Kharab-2002
  35. Devesh Chauhan, Suraj Lata Devi-2003
  36. Deepak Thakur, Innocent Helen Mary-2004
  37. Viren Rasquinha-2005
  38. Jyoti Sunita Kullu-2006
  39. Prabhjot Singh-2008
  40. Surinder Kaur, Ignace Tirkey-2009
  41. Sandeep Singh, Jasjeet Kaur-2011
  42. Sardar Singh-2012
  43. Sava Anjum Kreen-2013
  44. Sarijesh Ravindran-2015

Dronacharya Award Winners

  1. Gudial Singh Bhangu-2000
  2. M.K. Kaushik-2002
  3. Rajinder Singh-2003
  4. Baldev Singh-2009
  5. Harender Singh (2012). Narender Singh Saini-2013

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Hockey Game Important Questions

Question 1.
What is the length of hockey play ground?
Answer:
The length of hockey playground is 91.40 rat (100 yards).

Question 2.
What is the circumference of the ball?
Answer:
The circumference of the ball is 224-235 mm.

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Question 3.
What is the duration of hockey match?
Answer:
There are four quarters of 15 minutes each with an interval of 10 minutes.

Question 4.
How many officials are required for hockey match?
Answer:
A total number of four officials are required for hockey match.

Question 5.
How many players are required in a hockey team?
Answer:
A total number of of 18 players including two goal keepers are required in a team are required in a team.

Question 6.
What is the width of goal post?
Answer:
The width of goal post is 3.66 m.

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Question 7.
What is dodging in hockey?
Answer:
This skill is required to leave the defender side of the ball. It is the least expected move hv the attacker to leave the defender far behind the bail

Question 8.
What should he the maximum weight of hockey stick?
Answer:
Not more than 737 gm.

Question 9.
What is the weight of hockey bail?
Answer:
156-163 gm.

Question 10.
What is a scoop in hockey?
Answer:
This technique is used as an overhead pass to defeat defenders on the field.

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Question 11.
W hat is the height of backboard in the goal post?
Answer:
The height of backboard in the goal post in 460 mm

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PSEB 12th Class Physical Education Practical Lawn Tennis

PSEB 12th Class Physical Education Practical Lawn Tennis

Lawn Tennis Game History
Lawn tennis was started in France in 12th century and was known as paume. This word means ‘Palm of hand’. (Robin Hood) Tennis is an Olympic sport and it is played by all societies world wide. The Lawn Tennis was invented by French monk around 11-12th century 7 and was known as “Paume” that time. It is developed and shaped up into Modern game in 1872 and First Tennis Club was started named as Hoa Pereira.In the 19th century tennis started to spread throughout English colonies. The first amateur championship was played at court called Wimbledon. The first men’s official championship was played in 1877 and women’s championship in 1884. 1900, was the year when Davis cup started. Tennis has been an Olympic Sport since 1988. In India, first National Championship was held in 1946 at Kolkata.
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Lawn Tennis Game Important Points

  • Length of the Court:23.77 m
  • Breadth of the Court:8.23 m (singles), 10.97m (doubles)
  • Height of Posts:1.7 m
  • Distance of the Centre of the Post:0.91 m (in centre)
  • Diameter of the Posts:15 cm
  • Height of the Net:0.91 m
  • Width of the Strap:5 cm
  • Distance of Service Lines:6.40 m
  • Width of the Court Service Line:5 cm
  • Weight of Racket:395 gm
  • Length of the Racket:27 inches
  • Weight of the Ball:56.7 to 58.5 gm
  • Diameter of the Ball:6.35 to 6.67 cm
  • Maximum Number of Set of a Game in Single:5 (men) 3(women)
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1. Tennis Racket:
The size and weight of tennis racket is not mentioned in the rule however most of the rackets are 21″ long. Mostly men j choose a racket that weigh about 395 gms. Whereas women choose that weigh about I 365 gms. Die modem tennis rackets are made of fibre glass and graphite.
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2. Tennis Ball:
The tennis ball is made of rubber and is covered with fabric wool. Its diameter is 6.35 cm to 6.67 cm. It must weigh between 56.7 to 58.5 gms. The colour of the ball is yellow or white.

3. Court:
The tennis court is rectangular in shape and is divided into 2 halves by a net. The court is 23.40 m in length and 8.10 m in width for singles and 10 97 m in width for doubles.

4. The Net:
The net is suspended across the court by a cable, The height of the net at the middle is 0.91 m. A narrow cloth strap in the middle holds the net tight.

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Lawn Tennis Game Rules And Regulations
1. Toss:
The game starts with the toss which is done with the help of racket. After winning the toss, a player can choose to serve or to decide the court,

2. Service:
The service is delivered from a position in rear of the base line and from within imaginary continuations of the centre line and side lines.

3. Foot Fault:
The server may not walk, run and jump clear of the ground, nor step over the base line while delivering the service. One foot must remain in contact with the ground.

4. Alternating Service:
Service is delivered from alternate sides of the court, beginning from the right. The ball served shall pass over the net and strike the ground within the diagonally opposite service court.

5. Service Fault:
The service is a fault if, besides foot faults, the ball is missed in the attempt to strike it if the ball served touches a permanent fixture (other than net, strap or band) before it strikes the ground.

6. Faults Allowed:
The server is allowed another try at service, from the same half of the court, if the first serve has resulted in a fault. A second fault will result in a score for the opponent.

7. Let:
If the ball served touches the net, strap or band, it is a let, provided the ball falls into the proper service court, otherwise it is a fault. In the case of a let the service shall not be counted and the server shall serve again. A let does not annual the previous fault.

8. Receiver becomes Server:
At the end of a game the receiver shall become the server and vice versa, alternating in all subsequent games of a match.

9. Server Wins Point: If the ball served touches the receiver or anything which he wears or carries.

10. Receiver Wins Point: If the server commits two consecutive faults.

11. Player Loses Point:
If he fails to return the ball directly over the net before it strikes the ground a second time, or fails to return the ball directly over the net inside the lines which outline the opponent’s court.

12. Ball Falling On Line: A ball falling on a line is regarded as in the court bounded by that line.

13. Deuce: When both players have scored three points, the score is called Deuce.

14. Scoring:
Tennis consists of 6 games and each game consists of 4 points. These four points are called 15’30’40 and the game points. If both the players score 40-40. The score is called ‘deuce’. To break this tie, one player must win two consecutive points. To win a set one must win six games with at least lead of two games. In case if the game score is 6 all, tie breaker is played. The game is extended to 7 points and the player who wins 7 points with at least margin of 2 points shall be declared winner of the set. A match consists of 5 sets in case of men and 3 sets in case of women.

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Fundamentals:
1. Holding of Racket:
Adjusting the grip you take on a tennis racket is a way of altering the angle of the racket face as it meets the ball. Most of the time, as you trade forehands from the back of the court, you will have your own standard grip based on your strengths and weaknesses. This should change to a different, flatter grip for serves, volleys, smashes and slices. Both grips can be reversed to play backhands, while the two-handed backhand has a grip of its own.
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A good way to understand different grips in detail is to move your hand around the handle of the racket in a clockwise motion. Left-handers should move the same distance anti-clockwise in all cases. Imagine that the top of the handle (i.e. the narrow side, looking down on the edge of the frame) is 12 o’clock. The racket is held so that the heel of the hand rests on the leather strip which circles the end of the handle. Then the fingers are wrapped wholly around the handle so that the middle finger locks with the thumb.

2. Eastern Forehand:
Move your hand clockwise around the racket, so that the thumb-finger V is somewhere between 12 and one o’clock. This is an eastern grip, which is similar to w’hat you would get by “shaking hands” with the racket in a very relaxed way. This allows for a small amount of racket acceleration up the back of the ball, which will spin it slightly, keeping the ball relatively flat.

3. Semi-Western:
If you move your hand further round, the wrist comes into play, and it puts the racket into a much deeper position, which allows you to hit up the back of the ball a lot more and generate more spin. If the V is between two and three o’clock, you’re using a semi-western forehand. Somewhere around here is the ideal grip for the modem game, where you’re trying to generate both spin and weight of shot through the ball.

4. Full Western:
With the V anywhere beyond three o’clock, you’d be playing a full western fore hand , which is what a lot of the clay-court Spanish players use. In fact, they twist their grip so far that they actually hit the ball with the opposite face of the racket, which generates an awful lot of racket speed and lines up the strings, so they can spin the ball in a steep low-to-high movement.

5. Eastern Backhand:
To change your grip from a forehand to a one – handed backhand, use the clock principle, starting again from the continental grip but this time moving the same amounts anti-clockwise, depending on how much spin you wish to impart. In practice, most one-handed players stick with a roughly eastern backhand.

6. Two-handed Backhand:
Using a two-handed backhand is a bit like playing a forehand with your wrong hand, so for right-handed players, the left hand does all the work and the right is there solely for support. There are three or four different grips you can use, but a standard two-handed backhand would position the right hand in a neutral continental grip, while the left hand would adopt an eastern forehand grip higher up the racket handle.
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7. The Serve:
Player should stand side wise behind the base line. First, the ball is tossed upward and the stroke begun by swinging the racket downward through an arc, past the right knee, backward and upward behind the head in such a manner as to make contact with the falling ball, in accordance with the type or style of serve planned upon.
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8. Continental Serve:
The basic, neutral grip, known as a continental grip, is formed by placing your hand on the racket so that the V formed by your thumb and forefinger are at toughly 11 o’clock. This is the flat grip you would use to serve, volley or smash. You can also use it to slice a delicate drop shot from the back of the court, as it allows you to hit down on the ball, punching through it to impart backspin.

9. The Forehand Drive:
With the estimate of the place where the ball might bounce, the player stands little bit behind that spot and making pivot of the body, with slightly back swing, he brings the racket forward and hits the ball. The ball is hit when it comes parallel to his knees and waist. Then he comes in the same position after follow through.

10. The Backhand Drive:
The player holds the racket in between. As soon as tire ball approaches him, he turns his shoulders towards the net making pivot of his body, he brings forward the racket from his backside. From full back swing to forward action he strikes the ball with extended arm with follow through.

11. Volley:
A volley is a stroke that meets the ball while it is in flight and before it strikes the ground, usually from a position at the net.

12. Lob: A lob is a variation of the forehand or backhand made with a lifting effect, usually used prolong the flight of the ball.

13. Smash: A smash is a variation of the forehand or backhand with a driving downward effect used in general to return a lob.

14. Drive: A drive is a stroke made with the maximum of speed and power, with due regard for accuracy.

15. Foot Work:
In general there will be almost constant movement of the feet in order to be in the logical place at the right time to receive or deliver the ball, depending upon offensive or defensive intent. Movement of the feet and the general quality of foot work should of course be light, agile and economical, and always regulated to make the stroking accurate and effective.

16. Body Action:
Body action and positions are varied under the same principles that apply to foot work. In general, the body position should be such that one is, whenever possible, sidewise to the net at the moment of stroking. The beginner seems disinclined to depart from the erect posture, whereas positions and movements where the body is extremely extended or sprawled out in wide movements are not unusual, except in one who has had long practice and experience and w’ho, as a result has a fine court sense that enables him to be in the right place at the right time.

17. Arm Action:
The stroking arm should remain supple at all times and mannered actions or positions at the shoulder, elbow and wrist should be avoided. Care should be exercised in the use of the free hand as a balancing agent that it does not fly about violently, thus having a contrary influence.

18. Eyes:
The eyes must remain on the ball at all times. To keep the eyes continuously on the ball is of primary’ importance. Most, if not all, of the errors in stroking will trace back to the fact that the ball was lost sight of at some critical point. Concentration on the spin of the ball will help to confirm the habit of watching the ball.

19. Stroking Effects:
Control of the ball is managed chiefly by the adjustment of the level of the face of the racket at the moment of contact with the ball.

20. Cuts:
The ball is usually met squarely with the face of the racket, but for particular effects or purposes, the racket may be angled as if to cut off the top, bottom or one side of the other of the ball.

21. Spin:
It is possible to cut the ball in a manner contrary to its angle of flight so as to cause the ball to spin, with the result that when it strikes the ground it will bounce off at more or less of an angle to the path flight.

22. Follow Through:
The follow through is very important and consists of continuing the stroke past and beyond the point of contact with the ball in a natural manner.

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Important Terminologies

  • Ace: A serve that lands in the service box but is not touched by the receiver is called an ace.
  • All: A term used to describe an even score. For example, 15-all is a score of 15-15.
  • Backhand: The practice of reaching the arm across the body and hitting the ball with the back of the racket.
  • Cross court: A ball hit diagonally into your opponent’s court.
  • Deuce: In a 40-40 match, two consecutive points are required to win and are called a deuce.
  • Fault: A outside of the box serve.
  • Game: Point When one point is required to win the game, the leading player has the game point.
  • Hail Mary: The high lob players sometimes use as a defensive move.
  • Let: A call for the point to be played again. Interference or a serve hitting the net and bouncing into the service box are usually the reasons.
  • Love: The tennis term for “zero”, for example: 15-0 is called as 15-love.
  • Match: Point One point away from winning the game.
  • Rally: A continuous back and forth series of hits by each player. The rally is over when one player fails to successfully return the ball over the net.
  • Singles: A game played with two players, one to each side of the court.
  • Touch: A player may not touch the net while the ball is being played. The result is a lost point.
  • Volley: Hitting the ball before it bounces on your side of the net.

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Lawn Tennis Game Important Tournaments
International Level

  1. Wimbledon
  2. The Grand Slams
  3. Olympic Games
  4. National Tennis Championship.

Arjuna Award Winners

  1. R. Krishnan, Sarabjeet Singh-1961
  2. Naresh Kumar-1962
  3. Jwaideep Mukheijee-1966
  4. Premjeet Lai, Khushi Ram-1967
  5. Gurdial Singh -1968
  6. Haridutt-1969
  7. Vijay Amritraj-1974
  8. Nirupama Makar-1978-79
  9. Ramesh Krishnan-1980-81
  10. Anand Amritraj-1985
  11. Leander Paes-1990
  12. Mahesh Bhupati-1995
  13. Gaurav Nandu Natekar-1996
  14. Asif Ismael-1998
  15. Sandeep Kirtne-2002
  16. Sania Mirza, Archan S. Kamal-2005

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Lawn Tennis Game Important Questions

Question 1.
What is the length of the court?
Answer:
Length of the court is 23.40 m.

Question 2.
What is the breadth of the court?
Answer:
Breadth of the court is 8.10 m.

Question 3.
What is the height of the posts?
Answer:
Height of the posts are 1.07 m.

Question 4.
What is the diameter of the posts?
Answer:
Diameter of posts is 15 cm.

Question 5.
What is the height of net?
Answer:
Height of the net is 0.91 m (in centre).

Question 6.
Define length and weight of the racket for men and women.
Answer:
The length of the rackets is 27″ long. Mostly men choose a racket that weigh about 395 gms whereas women choose that weigh about 365 gms.

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Question 7.
What is the weight of the ball?
Answer:
It must weigh between 56.7 to 58.6 gms.

Question 8.
What is diameter of the ball?
Answer:
Diameter of the ball is 6.35 cm to 6.67 cm.

Question 9.
Explain number of sets for singles.
Answer:
Maximum set for singles in men is 5 and for women it will be 3 sets.

Question 10.
Explain Let.
Answer:
A call for the point to be played again. Interference or a serve hitting the net and bouncing into the service box are usually the reasons.

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Question 11.
What is Deuce?
Answer:
When both players have scored three points, the score is called deuce.

Question 12.
What is All?
Answer:
A term used to describe an even score. For example, 15-all is a score of 15-15.

Question 13.
What is Love?
Answer:
The tennis term for “zero”, for example: 15-0 is called as 15-love.

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Question 14.
Explain Rally.
Answer:
A continuous back and forth series of hits by each player. The rally is over when one player fails to successfully return the ball over the net.

Question 15.
Define Volley.
Answer:
Hitting the ball before it bounces on your side of the net is called volley.

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PSEB 12th Class Physical Education Practical Cricket

PSEB 12th Class Physical Education Practical Cricket

Cricket Game History

Cricket is one of the most interesting popular sport of world played both men and women by using a ball and a wooden bat. Cricket was originated in south-eastern part of England. Some people think that it is originated in France, while others think that it originated in England. The Hembildon Club of cricket was formed in England in year 1760. Second cricket club came into existance in 1787 or Melbourne Cricket Club (M.C.C.).

The first test match was played in 1877 between Australia and England at Melbourne which was won by Australia. MCC deck gave proper shape to cricket by framing rules of this game in 1835. During the First half of the 20th century, cricket spread to other Commonwealth countries. International Cricket Council (I.C.C) look after the affairs of cricket and organise the ICC trophy after every four years. The first world cup was held in 1975. British were credited to introduce Cricket in India.

The first official match was played in 1933 at Gymkhana ground in Mumbai. Under the Captainship of Mr. Kapil Dev India had won World Cup in 1983. First one day match was played on 5 January 1971 and became India’s popular game in India. Board of Cricket Control manages the affairs of cricket. A new form of a fast cricket is coming up which is popular as Twenty-Twenty in which both the teams have to play for only 20 overs each.

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Cricket Game Important Points

  • Number of players in a team:16(11-5)
  • Distance from wicket to wicket:22 yards 20.12 Metre
  • Breadth of the Pitch:10’ (3.05 metre)
  • Breadth of wicket:9” (22.9 cm)
  • Circumference of the ball:8.81-9 inches
  • Circumference of wickets:3.49 – 3.81 cm
  • Weight of the ball:155.9 gm – 163 gm
  • Breadth of the bat:4.25 (10.8 cm)
  • Length of the bat:38” (96.52 cm)
  • Colour of the ball:Red for day match, white for night match
  • The diameter of outer circle from centre:137 m – 150 m
  • The height of wicket from floor:28″(71 cm)
  • Type of Match:20-20,one day,test machs.
  • Number of umpires:Two,one third umpire.
  • The area of small circle:27.4
  • Length of bowling crease (from centre of stumps):8’8″(2.64 m)

Cricket Game Rules And Regulations

  • The match is played between two teams. Each team has eleven players (Twelfth man in case of injury only).
  • Two umpires are appointed for the match one for each end (One third umpire).
  • The scorer keeps record of all the runs scored.
  • A player can be substituted in case of injury or illness. A substitute is not allowed to bat or bowl. He can run for the other player between the wickets or can do fielding.
  • A substitute cannot do fielding at his special position.
  • The captains of the team decide which team is to bat and which is to do fielding.
  • A new ball is taken at the start of each innings. A new ball can also be taken after 200 runs have been scored or after 75 overs. A new ball can also be taken in case the ball is lost or damaged but its condition should resemble that of the lost or damaged ball.

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Number of Players:
1. A cricket match is played between two teams. Each team has 11 players. Each team has its own captain, who nominates his players before the toss for the innings.

2. If during the game a player is incapacitated by illness or injury, a substitute is allowed. But the substituted player can only do fielding. He can neither bat nor bowl.

3. Before the toss for the innings, one umpire for each end is appointed to make impartial decisions of the game.

4. Scorers are appointed to keep record of all the runs scored. They obey all the signs and orders of the umpires.
Cricket kit. It is essential for a cricket player to put on cricket kit. It means white pants, shirts, shoes, socks, pad, abdominal guard, gloves and bat.

Ball:
The cricket ball shall weigh not less than 155.9 gms. and not more than 163 gms. Its circumference shall not be less than 8.81 to 22.4 cms. and not more than 9″ (22.9 cms.). It shall be made of leather which is painted shining red. During the matches played during nights, the white ball is used. Each captain asks for the new ball before the beginning of a new innings. In case the ball is lost or damaged, the umpire can allow a new ball, the condition of which should be like that of the lost or damaged ball.
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Bat: The length of the bat including the handle is 38 ” and its width from the widest part cannot be more than 4.25”.

Pitch:
The area of the ground between the bowling creases is known as the pitch. It is 5′ (1.52 metres) wide on either side of the imaginary line joining the centre of the wickets. The breadth of the entire pitch is 8′. 8 “.
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Wickets:
Three-three wickets shall be fixed in front of each other, and the distance between these fixed wickets shall be 22 yards (20.12 m). The breadth of the wickets shall be 9″. The wickets have three stumps each and there shall be two bails to be placed on them. The stumps shall be equal and shall be so planted as to prevent the ball from passing through them. The top of the stumps from ground shall be 28 “. Each bail shall be 4 3/8in length and when in position on the position of the stumps shall not project more than above them.

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Bowling and Popping Creases:
The bowling creases shall be drawn 8′. 8″ straight in length, with stumps in the centre. The popping creases shall be marked 4 feet in front of and parallel to the bowling crease. It shall extend by 6′ on either side of the stumps. The return crease shall be drawn perpendicular to the two ends of the bowling crease, and it shall be extended to meet the popping crease. Both the return and popping creases are deemed unlimited in length.
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Innings:
Each team has to play two times by turn. It is decided by toss as to which team shall play first. If the team playing first has scored 200 runs in 5 or more than 5 day match, 150 runs in 3 day match, 100 runs in two day match and 50 runs in 1 day match over and above the runs made by the opposing team, it can ask the other team to play again, that is, it can declare follow on. The captain of the batting team can also declare the close of innings before time.

Start and Finish and Intervals:
Everyday at the start of each innings before the start of the match the captain says “play”, and if the team refuses to play, it shall lose the match. Ten minutes in each innings and maximum 2 minutes in the coming of each new batsman are allowed. Runs are reckoned for scoring. When a batsman after hitting the ball reaches from one end to the other, one run is deemed to be completed. If a batsman turns back without reaching the other end, that is not considered as a run. This is called short run. If while making the run, the ball is in the air and is caught, no run shall be deemed to be scored. Similarly, if a batsman is run out, the run being attempted shall not be counted.

Boundary:
If the ball crosses the boundary line having touched the ground, after a batsman has hit it, it is called boundary. Four runs are given for a boundary. If the hit ball falls out of the boundary line without touching the ground, six runs are made. If the boundary results from an overthrow or is intentionally made by the fieldsman, then the scored runs and the runs of the boundary shall be counted in the score.

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Lost Ball:
If the ball is lost, any fieldsman can declare it to be lost. In such a situation, the umpire can re-start the game with a new ball the condition of which resembles that of the lost one.

Results:
Any team which makes more runs in its two innings is considered winner team. In case a match is not completed, it is regarded as a draw.

Over:
In each over the ball is bowled six times. These overs are done alternatively on each wicket. “No ball” and “wide ball” are not reckoned in an over. The number of extra balls bowled in an over shall be equal to the number of “no-balls” in that over. No bowler can bowl two overs continuously in one innings. If the umpire fails to remember the number of balls in an over, the over considered by the umpire shall not be counted.

Fall of Wickets:
The wicket is known as down when the batsman himself or his bat or ball removes either bail from the top of the stumps or both bails be off or strikes a stump out of the ground.

Dead Ball:
The ball shall be deemed to be a dead ball in the following cases:

  • When the ball has been properly caught by the bowler or wicket keeper.
  • When the ball reaches or bounces over the boundary.
  • When the ball, without being played, lodges in the dress of a batsman or a bowler.
  • When a batsman is out.
  • If the umpire decides to stop the game after the bowler gets back the ball.
  • On the call of ‘over’ or ‘time’ by the umpire.

No Ball:
While playing the ball if the front foot of the bowler goes ahead of the batting crease or cuts the returning crease, the umpire declares No Ball. After hitting the ball the batsman can make as many runs as possible. The runs made in this way will be added to the score. If no run has been made, only one run will be added to the score. By spreading one of his arms the umpire gives the signal of no ball.

Wide Ball:
The umpire declares a wide ball if the bowler bowls the ball high over or wide over the wicket which, in the opinion of the umpire, is out of the reach of the batsman. The runs made during the wide ball are reckoned in the wide ball. If no run is attempted, it is reckoned one run. The umpire gives the signal of wide ball by spreading his both arms straight.

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Bye and Leg-bye:
The umpire shall declare ‘bye’ if the properly bowled ball passes the batsman (striker) without touching his bat or body and the run is obtained. But it should not be no-ball or wide-ball. But if the ball touches any part of the striker’s body except his hands which, hold the bat and any run is got, the umpire shall declare “leg-bye.”

Out of his Ground:
A batsman shall be reckoned to be out of his ground until some part of his bat in hand or of his person is grounded behind the ground of popping crease.

Batsman’s Retirement:
A batsman owing to illness or injury may retire at any time. He may bat but he will have to seek the permission of the captain of the opposing team to know his number of batting.

Bowled:
If the wicket is bowled down, the striker (batsman) is said to be bowled out, even if the ball has touched first his body or foot.

Catch:
If the ball from the stroke of a bat or of the hand holding the bat (not the wrist) is caught by a fieldsman before it touches the ground, the batsman is “caught out”. At the time of a catch both the feet of the fieldsman should be on the ground of the playfield. If the fieldsman catches the ball out of the boundary line, the batsman is not reckoned to be out, but is awarded 6 runs. If the ball lodges in the pads of the wicket-keeper, the batsman shall be reckoned to be “caught out.”

Handle the Ball:
During play, if the batsman touches the ball with his hand, he shall be reckoned to be out-“handle the ball out.”

Hit the Ball Twice:
If the ball is struck or stopped by any part of the batsman’s body after it has been hit, and if the batsman deliberately strikes it again, he shall be out. The ball can be hit twice only to defend the wicket but the condition is that it must have been done to defend the wicket. If any run is made in this process, it is not counted.

Wicket is Down or Hit Wicket:
If during the play, the batsman hits down his wicket with any part of the bat or body, it is called “hit wicket out.” If the wicket falls down as a result of the fall of his cap or hat or any broken part of his bat, even then he shall be reckoned to be “hit wicket out.”

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L.B.W. (Leg Before Wicket):
The batsman is considered to be “L.B.W. out” when he tries to obstruct the ball with any part of his body before touching the ball with his bat, and in the opinion of the umpire, the ball and the wicket are in a straight line. If the batsman had not obstructed the ball with any part of his body, the ball would have straight hit the wicket.

Obstructing the field:
If a batsman deliberately obstructs a fieldsman from catching the ball, he can be out “obstructing the field.”

Stumped:
A batsman is out if his bat in hand and his foot is not on the ground behind the supposed popping crease. The batsman is considered to be outstumped when the ball is not “no ball” and is bowled and the batsman goes out of his ground otherwise than attempting a run, and then wicket-keeper outstumps the wicket (removes the stumps placed over the wickets).

Run Out:
The batsman is run out when the ball is in play, the batsman goes out of his ground to score a run, and his wicket is put down by the opposite side. If batsmen cross each other, that batsman will be considered to be “run out” who is running to the fallen wicket.

Wicket-keeper:
The wicket-keeper shall always remain behind the wickets until a ball delivered by a bowler touches the bat or the body of the striker or passes the wicket or the batsman is “out”. He cannot catch the ball.

Fielders:
The fieldsman can stop the ball with any part of his body. He is not allowed to stop the ball with his cap. If he does so, its penalty shall be four runs. In case no run has been made, four runs shall be added.

Field Setting in The Game Of Cricket:
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A.

  1. Wickets
  2. Bowling crease
  3. Return crease
  4. Popping crease.

B.
Position of players:

  1. Slips
  2. 3rd man
  3. Gully
  4. Point
  5. Cover-point
  6. Extra-cover
  7. Mid-off
  8. Bowler
  9. Straight
  10. Mid-on
  11. Long-on
  12. Mid-wicket
  13. Square leg
  14. Fine leg
  15. Leg-slips
  16. Short leg
  17. Silly mid-off
  18. Silly mid-on
  19. Silly point
  20. Backward point
  21. Wicket-keeper.

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Field, Weather and Light:
Before a match starts captains of both the teams will decide about the suitability of the field, weather and light. If they have not given their consent regarding these issues, the umpire shall decide the matter.

Appeal:
The umpire shall not order any batsman out unless a fielder makes an appeal in this regard. This appeal should be made before the delivery of the next ball and before the time is over. The fielder while appealing shall ask the umpire how it happened. The umpire signals ‘out’ by raising the index finger.

Mandatory over:
On the last day of the match, one hour before the close of the match, the umpire signals about the mandatory over. After this, a game of 20 overs is played. 6 Balls are bowled in an over. If it seems the match would be a draw, the game can be ended before the completion of these overs.

Dead Ball:
Dead ball is considered only in certain situations-when the ball settles down completely in the hands of a bowler or wicket-keeper or reaches the boundary line; when it is lodged in the dress of the umpire or batsman or the umpire gives the call of ‘over’ or ‘time’, and in addition to these, when a player is out or receives a serious injury.

Obstructing the Field:
If a batsman intentionally obstructs the game of the opposing team as a result of which the opposing team is obstructed from catching the ball, then the batsman is reckoned to be out. This is called ‘obstructing the field.’

Various types of matches:
1. Test Match: In test match both teams get a chance to play two innings. A test match is played for 5 days.

2. One-day Match:
There is a one day national and international match in which both the teams play in 40-40 or 50-50 overs. The team which scores more runs becomes the winner.

3. 20-20 Match: Like one day match, it is called 20-20 over match because both teams play for 20-20 overs.

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There are new rules for 20-20 match as mentioned under:
1. Free Hit:
When a bowler balls while crossing bowling crease, then it is considered as ‘No ball’. In this case bats man gets free hit and during free
hit batsman will not be out in any case except mn out.

2. Power Play:
As per new cricket rules. In 50 overs match, power play shall be 10 overs, 5 overs and 5 overs. First power play is to be taken in the beginning of the game. 5-5 overs batting & fielding power play can be taken any time.

Some Important Techniques in Cricket Expertise And Techniques in Batting:

To play a hit successfully batsman should play heed to three points to find out the ball and attend to it; to decide which hit will be appropriate; and to turn the body to play the hit in a proper manner. It seems to be very easy, but in fact, it is not so easy. It is easy to think that you are looking at the ball. In reality, it is easy to watch the coming ball provided you are mentally prepared.
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It is indeed a tough task to form the habit of judging, in the real sense of the term, of each and every ball in the entire innings. You can do it by learning to concentrate on the task in your hand. It is, indeed, difficult, but if you learn to do so, not only will it prove to be of use to you in cricket but in life as well. To take a right decision as to how to hit a particular ball is a matter of a sort of inner-inspiration which in cricket is often called “child understanding.” However, it is a matter of experience.

The position of the player:
A player’s restful, tension-free and balanced position is very essential. On it depends the right judgement of the ball and the foot movement for each stroke. Normally, the feet should remain parallel to the sides of the crease, and their toes directed towards the aim.
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Back Lift:
A right back lift is of immense importance. The left arm and wrist should do the whole job, and as the bat rises its front side should be directed towards the aim. The head and body should remain perfectly motionless. As the bat is raised, the right elbow should be slightly separated from the body and the left hand should be upward exactly in front of the right pocket. The bat should move on the desired hit line below. It is but natural that the back lift will be firmer at the time of attack.

The Forward Stroke In Defence for The Straight Ball:
The forward stroke in defence is not only very precious but also the basis of the all hits. If one plays it well, one becomes at least half batsman. Its aim is to play the ball as much as possible from the proximity of the point. In this stroke, the bat is to touch the ball a few inches before the left foot by moving the head forward and by keeping the left buttock and shoulder out of the ball line. The feet should be towards the middle of mid-off and extra-over. The body weight should be directly with the bent left knee.
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Stroke:
Judge the ball throughout its path. As far as possible, you should keep your head in balance while you do so. Don’t feel tempted much to raise your head.

Control in Hits:
The control is essential in taking hits. If you want to take a hard hit, your hit can be longer instead of turning.
In order to hit the ball easily and clearly, the ball should be thrown in the ground instead of towards the boundary line.
If the ball is quite high in the air, the hit can be taken with one long step. You should also learn to make use of your feet in playing a comparatively slow and quicker and shorter ball on the pitch.
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Off Drive:
In off-drive, it is essential that your head, left shoulder and waist should remain on the ball line. If they are in the right direction, the left foot automatically performs its function in the right direction. In order to receive the out-of reach ball and ordinary ball the back of the left shoulder should be towards the bowler, and the aim of the hit should be towards off-side. In fact, the bat will begin its downward movement from the line of fine leg. As far as possible, the whole of the bat should move through the hit-line.

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On-drive:
Many boys lack the ability of on-drive. If they get it, they can increase their capacity or ability of taking more runs. In it, the left shoulder is kept slightly low, the left foot and the line of balance are kept in right proportion and the head is moved ahead. It will enable one to approach the line of ball. The left foot shall remain slightly away.

The batsman should take the aim of hit, and the whole wide side of the bat should move down towards the line. In his on-drives, a batsman will have to resolutely discourage the tendency of depending too much on his right hand and right shoulder for the hit. He should also have a check on his left buttock going after.

Until a batsman has a good judgement of the pitch, he should continue to play with back stroke. In this way, he will get time to judge the ball after the pitch. In case of slow ball and more difficult pitch, he must depend upon the back stroke. The right foot with toe in parallel to the crease can make good movement inside and back side of the ball line. The weight of the body can be shifted on this foot but the head must lean slightly forward. The left foot on toe acts as a good balancer.

The ball should meet immediately below the eyes, and it should be at the level as eyes watch the ball downward the pitch. The control over hit is made by raising the elbow by the left hand and arm. The right hand, in the hold of the thumb and fingers, is relaxed. As far as possible, the body should be kept side ways.

Even Bat Stroke:
A boy cannot become a batsman until he learns how to take a direct hit. He should also know how to play a wrong ball, and it can be possible and effective through cross-bat hits. It seems to be particularly true in the case of long and full bounces, and provides good opportunities of scoring 4 runs (hitting boundary) particularly in the junior cricket. These hits are more easy as they are more natural than direct bat hits. But in order to play hits effectively, you should learn to play more efficiently.
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Back-Foot Square Cut:
In order to tackle the ball received from the ball line and point from the front and back sides, the right foot moves across the buttock-line. Then the wrists and hands are moved down from a high bat- lift, and the head and body move over the bent right knee in the stroke line
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Late Cut:
This hit is similar to the above-mentioned hit except that it begins with a sharper turn of the left shoulder, and the right foot on the toe, towards third slip, is on the ground. The ball is received at the level of wickets, and the batsman hits it in the direction of the gully or second slip. In these two cuts, the left foot remains on the toe in the relaxed condition, and the weight remains fully on the bent right shoulder.

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Cricket Game Important Tournaments

  1. I.C.C. Trophy (ODI)
  2. Reliance Cup
  3. Hero Cup
  4. Australia Cup (One day)
  5. Champions Trophy (ODI)
  6. Benson and Hedges CUP (ODI)
  7. Rothmans Cup (ODI)
  8. Wills Trophy
  9. Pepsi Cup
  10. Coca-Cola Trophy (Asian test)

Cricket Game Important Questions

Question 1.
Number of players in cricket team.
Answer:
11.

Question 2.
What is the width of wicket?
Answer:
9” (22.9 cm)

Question 3.
What is the weight of cricket ball?
Answer:
155.9 gm to 163 gm.

Question 4.
What is the name of first cricket club?
Answer:
Hambildon Cricket Club.

Question 5.
When did First One day match was played in India?
Answer:
5 January 1971.

Question 6.
What is the full form of LBW?
Answer:
Leg Before Wicket.

Question 7.
Name any four cricket strokes.
Answer:
On-Drive, Back Stroke, Straight Drive Late Cut.

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Question 8.
How many umpires are there in cricket?
Answer:
2 Umpires on the field and 1 third umpire.

Question 9.
What is the length of cricket pitch from wicket to wicket?
Answer:
22 yards (20.12 cm).

Question 10.
When did First test match was played in cricket?
Answer:
In 1877 (Australia & England).

Question 11.
Under whose captainship 1983 World Cup was won by India.
Answer:
Kapil Dev.

Question 12.
When the twelth man gets substitution in cricket?
Answer:
When any player gets injury on the field.

Question 13.
How many types of matches are played in cricket?
Answer:
One-day match, test match, 20-20 match.

Question 14.
What is the length of Bowling crease?
Answer:
8’8” (2.64 m).

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Question 15.
What is the area of small circle?
Answer:
27.4 m.

Question 16.
What is the height of wicket from ground?
Answer:
28” (71 cm).

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