Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 9 स्वराज्य की नींव Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 स्वराज्य की नींव (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB स्वराज्य की नींव Textbook Questions and Answers
स्वराज्य की नींव अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिन्दी शब्दों को लिखें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :
(क) अंग्रेज़ों की नीति क्या थी?
उत्तर :
अंग्रेजों की नीति ‘फूट डालो और राज करो’ की थी।
(ख) जूही ने रानी को क्या समाचार सुनाया?
उत्तर :
जूही ने रानी को समाचार सुनाया कि अंग्रेजों ने झाँसी को अपने राज में मिलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और यह भी सुना है कि वे आपको पाँच हज़ार रुपए पेंशन भी देंगे।
(ग) महारानी के सम्मुख कौन-सी दो मुख्य चुनौतियाँ थीं?
उत्तर :
महारानी के सम्मुख पहली समस्या अंग्रेजों का सामना करना था, जो उस समय पूरी ताकत में थे। दूसरी समस्या देशद्रोही और गद्दारों की थी जो अंग्रेजों से जा मिले थे।
(घ) जूही और मोतीबाई क्या-क्या कहकर रानी का हौसला बढ़ाती हैं ?
उत्तर :
जूही कहती है कि – अरे ! दुर्गा की अवतार हैं हम ! दुष्टों पर जब छायेगी, छटी का दूध याद करायेंगी। मोतीबाई भी रानी का हौसला बढ़ाते हुए कहती है कि प्रजा स्वराज्य चाहती है। वीर – वीरांगनाओं की भुजाएं अंग्रेजों से युद्ध को फड़फड़ा रही हैं।
(ङ) रघुनाथ के पूछने पर कि क्या आप दुश्मन के बच्चों को पनाह देंगी तो रानी क्या उत्तर देती है ?
उत्तर :
रघुनाथ के प्रश्न का उत्तर देते हुए रानी कहती है कि हमारा युद्ध अंग्रेजों से है, निरपराध बच्चों और स्त्रियों से नहीं। शरणागत की रक्षा हमारी संस्कृति है।
(च) पाठ में आस्तीन के साँप किसे कहा गया है ?
उत्तर :
पाठ में आस्तीन के साँप देशद्रोहियों और स्वार्थी गद्दारों को कहा गया है।
(छ) रानी ने अपने सैनिकों से क्या कहा?
उत्तर :
रानी ने अपने सैनिकों से झलकारी और अन्य बहादुर शेरों के शहीद होने की बात बताते हुए कहा कि जब तक हमारी जान में जान है स्वराज्य के लिए लड़ेंगे। हमारा एक एक बहादुर सौ – सौ गोरों पर भारी पड़ रहा है। फिरंगी भयभीत हैं। हाँ ध्यान रहे अंग्रेज़ मेरी देह को छूने न पाएँ।
(ज) झलकारी स्वराज्य के लिए किस प्रकार समर्पण करना चाहती है?
उत्तर :
झलकारी रानी और अन्य सरदारों को सुरक्षा के साथ बाहर निकालने के लिए स्वयं रानी का वेश बनाकर अंग्रेजों को अटकाएगी यदि वह स्वराज्य के लिए भेट चढ़ गई तो स्वयं को धन्य समझेगी।।
(झ) घायल होने पर रानी अपने सिपाहियों से क्या कहती है ?
उत्तर :
घायल होने पर रानी अपने सिपाहियों से कहती है कि अंग्रेज़ सैनिक उसकी देह को न छू पाएँ।
(ञ) जब सिपाही रानी को संन्यासी की कुटिया में ले जाते हैं, तब संन्यासी ने क्या कहकर रानी को संबोधित किया?
उत्तर :
रानी को देखते हो संन्यासी ने कहा – मेरे अहो भाग्य साक्षात देवी के दर्शन हो गए।
4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :
(क) आप कैसे कह सकते हैं कि महारानी लक्ष्मीबाई का बलिदान स्वराज्य की नींव बना?
उत्तर :
महारानी लक्ष्मीबाई एक वीरांगना थी। देश की रक्षा के लिए उन्होंने लड़ते – लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। वह साक्षात् दुर्गा का अवतार थी। उसे शिवाजी की कहानियाँ जवानी याद थीं। राज्य की स्त्रियाँ रानी को अपना आदर्श मानती थीं। वे लक्ष्मीबाई के एक इशारे पर लड़ने मरने को तैयार थीं। अंग्रेजों के असमय आक्रमण करने पर रानी अपने वीर सैनिकों के साथ रण भूमि में आ गई। उसने वीरता से युद्ध करके अंग्रेजों को हरा दिया।
देश के सभी राजा महाराजा उसका आदर करते थे। दुबारा अंग्रेजों से युद्ध करते हुए रानी तेईस वर्ष की छोटी – सी आयु में स्वर्ग सिधार गई और रानी स्वराज्य रूपी नारी के रूप में हमें शिक्षा दे गई कि देश की रक्षा करते अपने प्राणों को भी न्योछावर कर दो। अत: कहा जा सकता है कि लक्ष्मी बाई का बलिदान स्वराज्य की नींव बना।
(ख) हमें किस घटना से पता चलता है कि रानी एक वीरांगना होते हुए भी ममतामयी माँ थी?
उत्तर :
हाँ महारानी लक्ष्मी बाई एक वीरांगना होते हुए एक ममतामयी माँ भी थी। उनके इस रूप का पता हमें तब चलता है जब गलमहम्मद रानी को बताता है कि विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेज़ सैनिकों पर धावा बोल दिया है और अंग्रेज़ सैनिक अपने बाल – बच्चों के लिए शरण माँग रहे हैं। इस पर रानी ने तुरन्त अंग्रेज़ सैनिकों के बच्चों तथा स्त्रियों को शरण देने के लिए कहा जो रानी के ममतामयी माँ के स्वरूप का दर्शन कराता है।
5. इन मुहावरों को अर्थ लिखते हुए वाक्यों में प्रयोग करें :
- आस्तीन का साँप = ____________________
- छठी का दूध याद आना = ____________________
- बाल भी बाँका न होने देना = ____________________
उत्तर :
- आस्तीन का साँप – कपटी मित्र
वाक्य – उससे सावधान रहना। वह तो आस्तीन का साँप है। - छटी का दूध याद आना – बहुत घबरा जाना
वाक्य – भारतीय वायु सेना के आक्रमण ने पाकिस्तानियों को छटी का दूध याद दिला दिया। - बाल भी बाँका न होना – तनिक भी चोट न पहुँचना
वाक्य – जिसके ऊपर ईश्वर की कृपा है उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता।
6. नये शब्द बनायें :
- स्व + राज्य = स्वराज्य
- गुप्त + चर = _________________
- देश + द्रोही = _________________
- आक्रमण + कारी = _________________
- अ + समय = _________________
उत्तर :
- स्व + राज्य = स्वराज्य
- गुप्त + चर = गुप्तचर
- देश + द्रोही = देशद्रोही
- आक्रमण + कारी = आक्रमणकारी
- अ + समय = असमय
7. पर्यायवाची शब्द लिखें :
- तलवार = _________________
- हाथ = _________________
- रक्त = _________________
- स्वतंत्रता = _________________
- शहीद = _________________
- घोड़ा = _________________
- इमारत = _________________
- प्रणाम = _________________
- पत्थर = _________________
उत्तर :
- तलवार – खड्ग, कृपाण, करवाल।
- हाथ – हस्त, कर, पाणि।
- रक्त – खून, लहू, शोणित।
- स्वतंत्रता – आजादी, मुक्ति।
- शहीद – बलिदानी, हत, कुर्बान।
- घोड़ा – अश्व, तुरंग, हय।
- इमारत – भवन, मकान।
- प्रणाम – नमः, नमस्ते, नमस्कार।
- पत्थर – पाषाण, वज्र, शिला।
8. लिंग जानें :
वीर = वीरांगना
साधु = साध्वी
दास = दासी
रानी = राजा
उत्तर :
विद्यार्थी पढ़कर समझने का प्रयास करें।
9. विपरीत शब्द लिखें :
- अचेत = _____________
- प्रातः = _____________
- स्वतंत्रता = _____________
- गुप्त = _____________
- अंधेरा = _____________
- युद्ध = _____________
उत्तर :
- अचेत = सचेत
- स्वतन्त्रता = पराधीनता
- अन्धेरा = उजाला
- प्रातः = सायं
- गुप्त = प्रकट
- युद्ध = शान्ति।
10. इन वाक्यों में आए सर्वनाम शब्द को रेखांकित करें तथा उसका भेद बतायें :
वाक्य – भेद
(क) उन्होंने शेरनी के मुँह में हाथ डालने की कोशिश की है। पुरुषवाचक सर्वनाम
(ख) मैं पेंशन नहीं लूँगी।
(ग) आपको पाँच हज़ार रुपये पेंशन दी जायेगी।
(घ) कोई भी बचने नहीं पाये।
(ङ) बेटा! कौन आया है?
(च) यह रानी का महल है।
उत्तर :
(ख) मैं – निजवाचक सर्वनाम
(ग) आपको – मध्यम पुरुष वाचक सर्वनाम
(घ) कोई – अनिश्चय वाचक सर्वनाम
(ङ) कौन – प्रश्नवाचक सर्वनाम
(च) यह – निश्चयवाचक सर्वनाम।
11. (क) महारानी लक्ष्मीबाई की जीवनी पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
(ख) श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी’ पढ़ें और याद करें।
(ग) जिस प्रकार महारानी लक्ष्मीबाई ने देश के लिए बलिदान दिया। इसी प्रकार अन्य बलिदान होने वाले वीर-वीरांगनाओं की सूची बनाओ।
(घ) ‘भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम’ के बारे में जानकारी प्राप्त करो।
(ङ) वीरों के बलिदान से हमें स्वतंत्रता मिली है। इस स्वतंत्रता की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है। आप अपने देश की क्या सेवा कर सकते हैं ? सोचिये और लिखिये।
उत्तर :
(क) विद्यार्थी स्वयं पढ़ने का प्रयास करें।
(ख) विद्यार्थी स्वयं पढ़ कर याद करें।
(ग) जिस प्रकार महारानी लक्ष्मीबाई ने देश के लिए बलिदान दिया। इसी प्रकार अन्य बलिदान होने वाले वीर वीरांगनाओं की सूची निम्नलिखित प्रकार से है –
- वीर – वीरांगनाएँ
- नाना साहिब – जीजाबाई
- वीर शिवाजी – रजिया सुलताना
- ताँत्या टोपे – अहल्या बाई
- नाना धुंधूपंत – कर्मवती।
(घ) भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सन् 1857 में लड़ा गया था। उस समय सारा देश गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए तैयार था। अंग्रेज़ भारतीयों पर खूब अत्याचार कर रहे थे। जो भी देश में आजादी की लहर पैदा करने का प्रयास करता था उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था। उस समय स्त्री, पुरुष, बच्चे और वृद्ध सभी अपने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए आत्म बलिदान देने को तैयार थे।
अंग्रेजों ने फूट डालकर शासन करने की जो नीति अपनाई थी, उसका प्रभाव भी धीरे – धीरे कम होता जा रहा था। उस समय कुछ स्त्रियाँ भी देश के स्वाधीनता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग ले रही थीं। संग्राम को शुरू करने का श्रेय मंगल पाण्डे को जाता है लेकिन एकजुटता के अभाव तथा देश द्रोहियों एवं गद्दारों के कारण यह आन्दोलन पूरी तरह सफल न हो पाया था।
(ङ) प्रत्येक मनुष्य अपने देश को प्यार करता है। वह कहीं भी चला जाए। संसार भर की खुशियों के बीच में वह क्यों न विचरण कर रहा हो लेकिन उसे अपना देश, अपना स्थान ही प्रिय लगता है। ठीक उसी प्रकार मुझे भी अपना देश भारत अच्छा लगता है। प्रत्येक देशभक्त की भाँति मैं भी अपने देश भारत की उन्नति के बारे में सोचता हूँ।
आज जो कुछ हमने प्राप्त किया है तथा जो कुछ हम बन पाए हैं उन सबके लिए हम देश भक्त वीरों के ही ऋणी हैं। इन वीरों से प्रेरणा लेकर मैंने अपने देश की नि: स्वार्थ भाव से सेवा करने का प्रण लिया है तथा अपने देश की सभ्यता, संस्कृति, रीति – रिवाज, भाषा, धर्म तथा मान – मर्यादा की रक्षा करना तथा उसे बनाए रखना अपने जीवन का ध्येय बनाया है।
स्वराज्य की नींव Summary in Hindi
स्वराज्य की नींव पाठ का सार
‘स्वराज्य की नींव’ एक ऐतिहासिक एकांकी है। यह शिव शंकर द्वारा रचित एक श्रेष्ठ – एकांकी है। यह कृति चार दृश्यों में समाप्त होने वाली ऐतिहासिक कथा है। नाटककार शिव शंकर ने अपनी भावुकता और कल्पना के मिश्रण से इसे रसमय बना दिया है। ‘स्वराज्य की नींव’ चार दृश्यों का एकांकी है। इसका घटनास्थल भी बहुत कम है। एकांकी झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के दरबार से शुरू होता है और उसकी मृत्यु पर समाप्त हो जाता है।
नाटककार ने लक्ष्मीबाई की सभा से लेकर उसके बलिदान तक का विवरण अत्यंत मनोरम एवं रोचक ढंग से किया है। रंग मंच की सुविधा की दृष्टि से समस्त कथा वस्तु को चार दृश्यों में विभाजित किया है। इस एकांकी के प्रमुख पात्रों के बारे में जानना आवश्यक है जो निम्न प्रकार से हैं –
दृश्य एक
झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई अपने सभा सदों से अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर विचार कर रही थी कि तभी सभा में जूही का प्रवेश होता है। रानी जूही से पूछती है कि बताओ क्या समाचार है? जूही रानी से कहती है कि समाचार शुभ नहीं है। महारानी अंग्रेजों ने झाँसी को अपने अधिकार में लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। समाचार सुनते ही रानी ने कहा कि इन अंग्रेजों को इनके अंजाम तक पहुँचाना ही होगा।
जूही रानी को अंग्रेजों द्वारा दी जाने वाली पाँच हज़ार रुपए की पेंशन की भी बात बताती है, जिसे रानी तुरन्त मना कर देती है। रानी के सैनिक सरदार रघुनाथ जी रानी को धीरज से काम लेने की सलाह देते हैं। तात्या टोपे रानी को समझाते हुए कहते हैं कि वह शत्रु की शक्ति परख कर, अपनी गुप्त तैयारी करेंगे। रानी तात्या टोपे की बात से सहमत हो जाती है और जूही और मोती बाई को गुप्तचर बन अंग्रेज़ छावनी में जाने को कहती है।
दृश्य दो
इस दृश्य में मोतीबाई का प्रवेश रानी के महल में होता है जहाँ महारानी मोतीबाई से कहती है कि स्वराज्य संग्राम में सभी बराबर हैं। अत: महारानी न कहकर वह उन्हें सखी कहे। मोती बाई रानी से अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी सुनाती है और बताती है कि प्रजा स्वराज्य चाहती है। राज्य के वीर – वीरांगनाओं की भुजाएँ दुश्मन से लोहा लेने के लिए तड़प रही हैं।
रानी मोती बाई से प्रजा में जोश भरने को कहती है ताकि समय आने पर शत्रु का सामना किया जा सके। उस समय तुम्हारी रानी लक्ष्मीबाई स्वयं स्वराज्य का झंडा लहराएगी। ताँत्या, जूही, रघुनाथ तथा गुलमुहम्मद भारतीय वीरांगनाओं पर गर्व जताते हुए अंग्रेजों को छटी का दूध याद दिलाने की बात कहते हैं।
दृश्य तीन
दृश्य के प्रारम्भ में गुल का प्रवेश होता है। वह तात्या टोपे को बताता है कि विद्रोही सैनिक किले में प्रवेश कर गए हैं। उन्होंने अंग्रेज़ सैनिकों पर धावा बोल दिया है। अंग्रेज़ अपने बाल – बच्चों के लिए शरण मांग रहे हैं। रानी अंग्रेज़ सैनिकों के स्त्रियों और बच्चों को महल में शरण देने को कहती है। जब रघुनाथ इस बात पर आश्चर्य प्रकट करते हैं तो रानी कहती है कि उनका युद्ध अंग्रेजों से है; निरपराध बच्चों और स्त्रियों से नहीं।
शरणागत की रक्षा करना हमारी संस्कृति है। रानी ने युद्ध में अंग्रेजों को परास्त कर दिया, लेकिन कुछ ही समय बाद कुछ गद्दारों की सहायता से अंग्रेजों ने पुनः हमला कर दिया। रानी रघुनाथ से सेना को तैयार करने की बात कहती है। वह यह आदेश देती है कि यदि वह युद्ध में वीर गति को प्राप्त हो जाए तो शत्रु उसके शरीर को हाथ न लगाने पाएँ। रघुनाथ रानी से कालपी चलने को कहते हैं।
झलकारी अंग्रेजों का ध्यान बंटाने के लिए रानी का वेश धारण कर लेती है। तब रानी दोनों हाथों में तलवार लेकर चल पड़ती है। रानी अपने वीर सरदारों को एक शोक समाचार सुनाती है कि झलकार और उसकी सेना के कुछ अन्य बहादुर स्वराज्य के लिए शहीद हो गए हैं। रानी सेना में मनोबल भरते हुए कहती है कि अब भी हमारा एक – एक बहादुर सौ – सौ गोरों पर भारी पड़ रहा है।
रानी चण्डी. का रूप बनाए, मुँह में लगाम दबाए, दोनों हाथों से तलवार चलाती हुई दुश्मन को मारती जा रही थी कि तभी एक अंग्रेज़ सैनिक ने उनके शरीर में संगीन घोंप दी। रानी तब लड़ती ही रही। सहसा एक गोली रानी की जाँघ पर आ लगती है और रानी घोड़े से गिरने लगती है। रानी गिरते – गिरते अपनी देह गोरों के हाथ न लगने की बात कहती है। गुल मुहम्मद और रघुनाथ रानी को लेकर जंगल में भाग जाते हैं।
दृश्य चार
इस दृश्य में रानी के सैनिक रानी को लेकर एक संन्यासी की कुटिया में पहुँचते हैं जहाँ संन्यासी रानी के दर्शन पा कर कहता है कि अहो भाग्य उसके कि उसने देवी के दर्शन कर लिए। साधु रानी के मुँह में गंगा जल डालता है। रानी एक बार पुन: उसकी देह अंग्रेज़ों को न छूने देने के लिए कहती है। बाबा रानी से कहते हैं कि स्वराज्य अवश्य मिलेगा।
वह रानी से कहते हैं कि रानी का बलिदान स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेगा रानी स्वराज्य कहते हुए अचेत हो जाती है। सैनिक रानी की मृत्यु पर कहते हैं कि घोर अन्धकार छा गया तब बाबा कहते हैं कि नहीं प्रात: कि किरण के साथ क्रान्ति रूपी सूर्य उदय होगा। तब स्वराज्य चमचमाएगा। इसके साथ परदा गिर जाता है और नाटक समाप्त हो जाता है।
स्वराज्य की नींव गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या
1. महारानी धीरज से काम लें। एक तो अंग्रेज़ ताकत में हैं और दूसरे देशद्रोही उनके साथ हैं। ध्यान रहे मनुष्य के साहस और बुद्धि की परीक्षा विपरीत स्थिति में ही होती है।
तो क्या मैं उन फिरंगियों से हार मान लूँ ?
कदाचित नहीं …….. स्वराज्य की ज्वाला को सुलगने दो, अवसर आने पर विस्फोट करेंगे। अभी उनकी शक्ति परखते हैं और गुप्त तैयारी करेंगे।
ठीक है जूही तुम और मोतीबाई गुप्तचर बन अंग्रेज़ सिपाहियों से जानकारी हासिल करो।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित एकांकी ‘स्वराज्य की नींव’ से लिया गया है जिसके रचयिता शिव शंकर हैं। लेखक ने यहाँ अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रही लक्ष्मीबाई की वीरता एवं साहसा का चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि महारानी लक्ष्मी को समझाते हुए रघुनाथ उनसे कहते हैं कि वे धैर्य से काम लें क्योंकि अंग्रेज़ अपनी पूरी ताकत में हैं और राज्य में विद्रोह करने वाले देशद्रोही उनके साथ हैं। रघुनाथ रानी से कहता है कि महारानी व्यक्ति के साहस और वुद्धि की वास्तविक परीक्षा कठिन समय आने पर ही होती है। रघुनाथ की बाते सुनने के बाद रानी कहती है कि क्या वह इन अंग्रेजों से हार मान ले।
तब ताँत्या टोपे रानी को बीच में टोकते हुए कहते हैं नहीं बिल्कुल नहीं हम अंग्रेजों से बदला लेंगे। लेकिन अभी स्वराज्य की आग को धीरे – धीरे सुलगने दो। समय आने पर हम विस्फोट करेंगे। अभी हम उनकी शक्ति को अच्छे जान और समझ लेते हैं और उसी के अनुसार हम अपनी खुफिया तैयारी करेंगे। तात्या टोपे की बात पर सहमती जताते हुए रानी लक्ष्मीबाई जूही और मोती – बाई को अंग्रेजों की छावनी में गुप्तचर बनकर जाने को कहती है।
विशेष –
- लेखक ने महारानी लक्ष्मीबाई के सरदारों की सूझ – बूझ का चित्रण किया है।
- भाषा सरल तथा सहज है।
2. वीर सरदारो! झलकारी व अन्य बहादुर शेर स्वराज्य के लिए शहीद हो गए। जब तक हमारी जान में जान है स्वराज्य के लिए लड़ेंगे। हमारा एक – एक बहादुर सौ – सौ गोरों पर भारी पड़ रहा है। फिरंगी भयभीत हैं। हाँ, ध्यान रहे अंग्रेज़ मेरी देह न छूने पायें।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित एकांकी ‘स्वराज्य की नींव’ से लिया गया है जिसके लेखक शिव शंकर हैं। लेखक ने यहाँ लक्ष्मीबाई की वीरता एवं साहस का परिचय दिया।
व्याख्या – लेखक कहता है कि महारानी लक्ष्मी बाई अपने बहादुर सरदारों को युद्ध में लड़ने के लिए उनका हौसला बढ़ाते हुए कहती है कि झलकारी और कुछ अन्य बहादुर शेर स्वराज्य की जंग में लड़ते हुए शहीद हो गए हैं। वीर बाँकुरो जब तक हमारे प्राणों में प्राण हैं तब तक हम देश के स्वराज्य के लिए इन अंग्रेजों से लड़ते रहेंगे। रानी अपने वीरों का उत्साह बढ़ाते हुए कहती है कि रानी का एक – एक वीर सिपाही सौ – सौ अंग्रेज़ सिपाहियों पर भारी पड़ रहा है। अंग्रेज़ पूरी तरह से डरे हुए हैं। लेकिन वीरो एक बात का ध्यान रखना, अगर युद्ध में तुम्हारी इस रानी को कुछ हो जाए तो अंग्रेज़ उसके शरीर को छूने न पाएँ।
विशेष –
- लेखक ने महारानी लक्ष्मी बाई के अदम्य साहस एवं वीरता के साथ साथ एक नेतृत्व करने की क्षमता को उजागर किया है।
- भाषा सरल तथा सहज है।
3. चलो आक्रमण करो (रानी रणचण्डी बन जाती है। मुँह में लगाम दबाये दोनों हाथों से युद्ध करती है। सबकी तलवारें कहर बरसा रही हैं। तभी एक अंग्रेज़ रानी के संगीन घोंप देता है।)
(घाव की परवाह न करते हुए) शाबाश वीरो, शाबाश ! विजय हमारी है, हमारे खून का एक – एक कतरा। स्वराज्य की नींव का पत्थर होगा।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में ‘स्वराज्य की नींव’ नामक शीर्षक एकांकी से लिया गया है इसके लेखक शिव शंकर हैं। यहाँ लेखक ने लक्ष्मीबाई की वीरता का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि लक्ष्मी बाई अपने बहादुर सैनिकों से कहती है कि चलो वीरो दुश्मन पर आक्रमण करो। महारानी लक्ष्मी बाई दुर्गा का रूप लिए, मुँह में अपने घोडे की लगाम दबाए अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर यद्ध करती है। सभी की तलवारें चारों ओर मौत ही मौत बरसा रही थीं कि इसी बीच एक अंग्रेज़ ने रानी को अपनी संगीन से घायल कर दिया। रानी अपने घाव की तनिक भी परवाह न करते हुए लड़ती रही।
वह अपनी सेना का युद्ध भूमि में हौंसला बढ़ाती रही और कहती रही कि विजय उन्हीं की होगी। रानी ने यह भी कहा कि उनके खून की एक – एक बूंद स्वराज्य की नींव का पत्थर बनने में सहायक होगी। उनका खून अवश्य रंग लाएगा।
विशेष –
- लेखक ने स्वराज्य हेतु रानी और उसके वीर सैनिकों को युद्ध में लड़ते हुए दिखाया है।
- भाषा सरल तथा सहज है।
4. स्वराज्य की देवी को मेरा शत – शत नमन।
बाबा स्वराज्य कब मिलेगा, कैसे…………… ?
बलिदान से। तुम्हारा बलिदान स्वराज्य की नींव का पत्थर है। इन वीर – वीरांगनाओं का रक्त इस नींव को पूरा करेगा। जिस पर स्वराज्य की इमारत चमचमाएगी। सच बाबा (फिर ) स्वराज्य की इमारत चमचमाएगी………स्वराज्य का परचम लहराएगा (रानी अचेत हो जाती है।)
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित एकांकी ‘स्वराज्य की नींव’ से लिया गया है। इसके लेखक शिव शंकर हैं। लेखक ने यहाँ वीरांगना लक्ष्मी बाई के महान् त्याग और समर्पण को देश में लुटाते हुए दिखाया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब सैनिक घायल अवस्था में रानी लक्ष्मीबाई को लेकर एक संन्यासी की कुटिया में आए तो संन्यासी ने रानी को देखते ही कहा कि स्वराज्य की देवी को उनका सैंकड़ों बार नमस्कार। रानी ने बाबा से कहा कि बाबा स्वराज्य कब और कैसे मिलेगा। बाबा ने रानी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि स्वराज्य बलिदान से मिलेगा। रानी तुम्हारा बलिदान इस स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेगा।
तुम्हारे इन वीर वीरांगनाओं का रक्त इस नींव को सींच कर मज़बूत करेगा। जिस पर स्वराज्य की चमचमाती हुई इमारत तैयार होगी। बाबा की बाते सुनने की बाद रानी ने बुदबुदाते हुए स्वरों में कहा कि सच बाबा स्वराज्य आएगा। स्वराज्य का ध्वज लहराएगा आदि शब्द कहते हुए रानी सबको छोड़ कर स्वराज्य की वेदी पर शहीद हो जाती है।
विशेष –
- लेखक ने रानी के अमर बलिदान की गाथा का वर्णन किया है।
- भाषा विचारानुकूल है।