PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किस विचारक ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है ?
उत्तर-
एल० क्रोबर (L. Kroeber) ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्रियों तथा अर्थशास्त्रियों द्वारा अध्ययन किये जाने वाले कुछ विषयों के नाम बताइये।
उत्तर-
पूँजीवाद, औद्योगिक क्रान्ति, मज़दूरी के संबंध, विश्वव्यापीकरण इत्यादि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका दोनों समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 3.
मानवविज्ञान के अध्ययन के कोई दो क्षेत्र बताइये।
उत्तर-
भौतिक मानव विज्ञान तथा सांस्कृतिक मानव विज्ञान।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र कहा जाता है। समाजशास्त्र में समूहों, संस्थाओं, संगठन तथा समाज के सदस्यों के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है तथा यह अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से होता है। साधारण शब्दों में समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है। यह मुख्य रूप से उन सामाजिक समूहों का अध्ययन करता है जो राज्य की स्वयं की सत्ता में आते हैं। इसके अध्ययन का मुद्दा शक्ति, राजनीतिक व्यवस्थाएं, राजनीतिक प्रक्रियाएं, सरकार के प्रकार तथा कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, संविधान इत्यादि होते हैं।

प्रश्न 3.
शारीरिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भौतिक मानवविज्ञान, मानवविज्ञान की ही एक शाखा है जो मुख्य रूप से मनुष्य के उद्भव तथा उद्विकास, उनके वितरण तथा उनके प्रजातीय लक्षणों में आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। यह आदि मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करके प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृतियों को समझने का प्रयास करती है।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सांस्कृतिक मानव विज्ञान, मानव विज्ञान की वह शाखा है जो संस्कृति के उद्भव, विकास तथा समय के साथ-साथ उसमें आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। मानवीय समाज की अलग-अलग संस्थाएं किस प्रकार सामने आईं, उनका अध्ययन भी मानव विज्ञान की यह शाखा करती है।

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प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों से संबंधित है। यह हमारे पास मौजूद संसाधनों तथा कम हो रहे संसाधनों को संभाल कर रखने के ढंगों के बारे में बताता है। यह कई क्रियाओं जैसे कि उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा लेन-देन से भी संबंधित है।

प्रश्न 6.
इतिहास किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इतिहास बीत गई घटनाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। यह तारीखों, स्थानों, घटनाओं तथा संघर्ष का अध्ययन है। यह मुख्य रूप से पिछली घटनाओं तथा समाज पर उन घटनाओं के पड़े प्रभावों से संबंधित है। इतिहास को पिछले समय का माइक्रोस्कोप, वर्तमान का राशिफल तथा भविष्य का टैलीस्कोप भी कहते हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान के मध्य कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज तथा सामाजिक संबंधों का विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र संगठित, असंगठित तथा अव्यवस्थित समाजों का अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक तौर पर संगठित समाजों का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषयक्षेत्र बहुत बड़ा अर्थात् असीमित है जबकि राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र बहुत ही सीमित है।
  • समाजशास्त्र एक साधारण विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र मनुष्य का सामाजिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्यों का राजनीतिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है।

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प्रश्न 2.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के बीच क्या संबंध है ? दो बिन्द बताइये।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीत चुके समय का अध्ययन करता है। यह आरंभ से लेकर अब तक मानवीय समाज का क्रमवार वर्णन करता है। केवल इतिहास पढ़कर ही पता चलता है कि समज, इसकी संस्थाएं, संबंध, रीति रिवाज इत्यादि कैसे उत्पन्न हुए। इसमें विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक संबंधों, परंपराओं, संस्थाओं, रीति रिवाजों, संस्कृति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार समाजशास्त्र वर्तमान समाज की संस्थाओं, अलग-अलग संबंधों इत्यादि का अध्ययन करता है। अगर हम दोनों विज्ञानों का संबंध देखें तो इतिहास प्राचीन समाज के प्रत्येक पक्ष अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र उस समाज के वर्तमान पक्ष का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञानों को अपना अध्ययन करने के लिए एक दूसरे की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि एक-दूसरे की सहायता किए बिना यह अपना कार्य नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य संबंधों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मानव विज्ञान को अपनी संस्कृति व सामाजिक क्रियाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की मदद लेनी पड़ती है, मानव वैज्ञानिकों ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण किया है। इसके आधार पर प्राचीन समाज का अध्ययन अधिक सुचारु रूप से किया जाता है। संस्कृति प्रत्येक समाज का एक हिस्सा होती है। बिना संस्कृति के हम किसी समाज बारे सोच भी नहीं सकते। यह सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानव विज्ञान को सामूहिक स्थिरता को पैदा करने वाले सांस्कृतिक व सामाजिक तत्त्वों के साथ-साथ उन तत्त्वों का अध्ययन भी करता है जो समाज में संघर्ष व विभाजन पैदा करते हैं।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र किस प्रकार अर्थशास्त्र से संबंधित है ? संक्षेप में बताइये।
उत्तर-
किसी भी आर्थिक समस्या का हल करने के लिए हमें सामाजिक तथ्य का भी सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए बेकारी की समस्या के हल के लिए अर्थशास्त्र केवल आर्थिक कारणों का पता लगा सकता है परन्तु सामाजिक पक्ष इसको सुलझाने के बारे में विचार देता है कि बेकारी की समस्या का मुख्य कारण सामाजिक कीमतों की गिरावट है। इस कारण आर्थिक क्रियाएं सामाजिक अन्तक्रियाओं का ही परिणाम होती हैं इनको समझने के लिए अर्थशास्त्र को समाजशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के पश्चात् सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। समाजशास्त्र ने जब सामाजिक सम्बन्धों के टूटने या समाज की व्यक्तिवादी दृष्टि क्यों है का अध्ययन करना होता है तो उसे अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थशास्त्र समाज में पैसे की बढ़ती आवश्यकता इत्यादि जैसे कारणों को बताता है। इसके अतिरिक्त कई सामाजिक बुराइयां जैसे नशा करना भी मुख्य कारण से आर्थिक क्षेत्र से ही जुड़ा हुआ है। इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए समाजशास्त्र को अर्थशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

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प्रश्न 5.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य सम्बन्ध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मनोविज्ञान, समाजशास्त्रियों को आधुनिक उलझे समाज की समस्याओं को सुलझाने में मदद देता है। मनोविज्ञान प्राचीन व्यक्तियों का अध्ययन करके समाजशास्त्री को आधुनिक समाज को समझने में मदद करता है। इस प्रकार समाजशास्त्री को मनो वैज्ञानिक द्वारा एकत्रित की सामग्री पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इस तरह मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को काफी योगदान है।

मनोविज्ञान को व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की ज़रूरत पड़ती है। कोई भी व्यक्ति समाज से बाहर नहीं रह सकता इसी कारण अरस्तु ने भी मनुष्य को एक सामाजिक पशु कहा है। मनोवैज्ञानिक को मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए उसकी सामाजिक स्थितियों का ज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी हो जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत व्यवहार को जानने के लिए समाजशास्त्र की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान में जब भी कानून बनाते हैं तो सामाजिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना पड़ता है, क्योंकि यदि सरकार कोई भी कानून बिना सामाजिक स्वीकृति के बना देती है तो लोग आन्दोलन की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में समाज के विकास में रुकावट पैदा हो जाती है। इस कारण राजनीतिक विज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

किसी भी समाज में बिना नियन्त्रण के विकास नहीं होता। राजनीति विज्ञान द्वारा समाज पर नियन्त्रण बना रहता है। बहु विवाह की प्रथा, सती प्रथा, विधवा विवाह इत्यादि जैसी सामाजिक बुराइयां जो समाज की प्रगति के लिए रुकावट बन गई हैं, को समाप्त करने के लिए राजनीति विज्ञान का सहारा लेना पड़ा है। इस प्रकार समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें राजनीति विज्ञान से मदद लेनी पड़ती है।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. समाजशास्त्र आधुनिक समाज की आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, कला आदि का अध्ययन अपने ही ढंग से करता है अर्थात् यह केवल सामाजिक आकार, सामाजिक संगठन व विघटन का अध्ययन करता है। परन्तु सामाजिक मानव-विज्ञान की विषय-वस्तु किसी एक समाज की राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक संगठन, धर्म, कला आदि प्रत्येक वस्तु का अध्ययन करता है व यह सम्पूर्ण समाज की पूर्णता का अध्ययन करता है।

2. मानव विज्ञान अपने आप को समस्याओं के अध्ययन तक सीमित रखता है। परन्तु समाजशास्त्र भविष्य तक भी पहुंचता है।

3. समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित है व मानव विज्ञान समाज की सम्पूर्णता से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार दोनों समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में ही आते हैं।

4. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मानव विज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है क्योंकि यह समाजशास्त्र का ही एक हिस्सा है।

5. समाजशास्त्र आधुनिक, सभ्य तथा जटिल समाजों का अध्ययन करता है जबकि मानव विज्ञान प्राचीन तथा अनपढ़ समाजों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का वर्णन करता है व अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक हिस्से का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र की इकाई दो या दो से अधिक व्यक्ति होते हैं परन्तु अर्थशास्त्र की इकाई मनुष्य व उसके आर्थिक हिस्से के अध्ययन से है। .
  • समाजशास्त्र में ऐतिहासिक, तुलनात्मक विधियों का प्रयोग होता है जबकि अर्थशास्त्र में निगमन व आगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में भी अन्तर होता है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का चित्र पेश करता है। इस कारण इसका क्षेत्र विशाल होता है परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से का अध्ययन करने तक सीमित होता है। इस कारण इसका विषय क्षेत्र सीमित होता है।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-

  • मनोविज्ञान मनुष्य के मन का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र समूह से संबंधित है।
  • मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत है जबकि समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।
  • मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है।
  • समाजशास्त्र मानवीय व्यवहार के सामाजिक पक्ष का अध्ययन करता है जबकि मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार के मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है।

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. इतिहास में सामाजिक इतिहास की नई शाखा का विकास, समाजशास्त्र के कई संकल्पों, विचारों व विधियों आदि को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल कर लिया है। इस प्रकार इतिहासकार को कई तरह की समस्याओं को सुलझाने में समाजशास्त्र से मदद मिलती है।

2. समाजशास्त्र व इतिहास में अलग-अलग विधियों को इस्तेमाल किया जाता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है तो वहां इतिहास में वर्णनात्मक विधि का।

3. दोनों विज्ञान की विश्लेषण की इकाइयों में भिन्नता है। समाजशास्त्र की विश्लेषण की इकाई मानवीय समूह है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र कैसे अन्य सामाजिक विज्ञानों से भिन्न है ? किसी दो पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
व्यक्ति का जीवन कई दिशाओं से सम्बन्धित है। जब समाजशास्त्र को किसी भी समाज का अध्ययन करना हो तो उसको अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान इत्यादि से भी सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थ वैज्ञानिक उत्पादन, वितरण, उपभोग इत्यादि सम्बन्धी बताता है, इतिहास हमें प्राचीन घटनाओं का ज्ञान देता है, इत्यादि। समाजशास्त्र इनकी सहायता से विस्तारपूर्वक अध्ययन योग्य हो जाती है। इसलिए इसे सभी सामाजिक विज्ञानों की मां भी कहते इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र के विषय प्रति अलग-अलग समाजशास्त्रियों की अलग-अलग धारणाएं हैं, जैसे कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार यह एक स्वतन्त्र विज्ञान है और दूसरे विद्वानों के अनुसार यह शेष सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण है। हरबर्ट स्पैंसर जैसे समाजशास्त्रियों ने यह बताया है कि समाजशास्त्र संपूर्ण तौर पर बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें सभी सामाजिक विज्ञानों के विषय वस्तु को अध्ययन हेतु प्रयोग किया जाता है। मैकाइवर ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ में इस बात का जिक्र किया है कि हम इन सभी सामाजिक विज्ञानों को बिल्कुल एक-दूसरे से अलग करके अध्ययन नहीं कर सकते। इन विद्वानों के अनुसार, समाजशास्त्र की अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं अपितु यह शेष विज्ञानों का मिश्रण है।

कई समाजशास्त्री इसको एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं। जैसे गिडिंग्स, वार्ड कहते हैं कि समाज शास्त्र को अपने विषय क्षेत्र को समझने हेतु समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होना पड़ता है परन्तु जब यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है तो इसे बाकी सामाजिक विज्ञानों के विषय-क्षेत्र का अध्ययन करने की आवश्यकता पड़ती है।

बार्स (Barmes) के अनुसार, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक विज्ञानों की रखैल है और न ही दासी अपितु उनकी बहन है।”

इस तरह हम देखते हैं कि दूसरा कोई भी सामाजिक विज्ञान सामाजिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, सम्बन्धों इत्यादि का अध्ययन नहीं करता केवल समाजशास्त्र इनका अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का सम्पूर्ण अध्ययन करता है। इसकी अपनी विषय-वस्तु है। समाज के जिन भागों का अध्ययन समाज-विज्ञान करता है उनका अध्ययन दूसरे सामाजिक विज्ञान नहीं करते।

उपरोक्त वर्णन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि यदि समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के लिए दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेता है तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह सहायता लेनी ही जानता है पर देनी नहीं। दे तो वो सकता है यदि हम इस बात को स्वीकार लें कि इसकी अपनी विषय-वस्तु भी है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि किसी भी सामाजिक समस्या का हल ढूंढ़ना हो तो अकेले किसी भी सामाजिक विज्ञान के लिए सम्भव नहीं कि वह ढूंढ़ सके। यदि समस्या आर्थिक क्षेत्र से सम्बन्धित है तो केवल अर्थशास्त्री ही नहीं उस समस्या का हल ढूंढ़ सकते, अपितु दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता भी हमें लेनी पड़ती है। इसीलिए यह सभी सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं परन्तु इनकी विषय-वस्तु अलग भी है।

(i) समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology Economics)-

समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

(ii) समाजशास्त्र तथा राजनीतिक विज्ञान में अंतर (Difference between Sociology and Political Science)-

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।” __ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था। जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और इतिहास में संबंधों पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इतिहास और समाजशास्त्र दोनों मानव समाज का अध्ययन करते हैं। इतिहास आदिकाल से लेकर अब तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है और उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है। समाजशास्त्र और इतिहास दोनों मानवीय समाज का अध्ययन करते हैं। वास्तविकता में समाज शास्त्र की उत्पत्ति इतिहास से हुई है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधियों का प्रयोग किया जाता है जो इतिहास से ली गई हैं।

इतिहास मानव समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह आदिकाल से लेकर अब तक के मानवीय समाज का कालबद्ध वर्णन तैयार करता है। इतिहास केवल ‘क्या था’ का ही वर्णन नहीं करता अपितु ‘कैसे हुआ’ का भी विश्लेषण करता है। इसलिए इतिहास पढ़ने से हमें पता चलता है कि समाज किस तरह पैदा हुआ, इसमें सम्बन्ध, संस्थाएं, रीति-रिवाज कैसे आए। इस प्रकार इतिहास हमारे भूतकाल से सम्बन्धित है कि भूतकाल में क्याक्या हुआ, क्यों और कैसे हुआ।

इसके विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान के मानवीय समाज का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, संस्थाओं आदि का अध्ययन होता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में मानवीय संस्कृति, संस्कृति के अलग-अलग स्वरूपों का भी अध्ययन किया जाता है। इस तरह समाजशास्त्र वर्तमान समाज के अलग-अलग सम्बन्धों, संस्थाओं इत्यादि का अध्ययन करता है।

दोनों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इतिहास बीते हुए समाज के प्रत्येक पहलू का अध्ययन करता है और समाजशास्त्र उसी कार्य को वर्तमान में आगे बढ़ाते हैं।

इतिहास का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of History to Sociology)- समाजशास्त्र इतिहास द्वारा दी गई सामग्री का प्रयोग करता है। मानवीय समाज पुराने समय से चले आ रहे सामाजिक सम्बन्धों का जाल है जिसे समझने के लिए किसी-न-किसी समय पूर्व-काल में जाना पड़ता है। जीवन की उत्पत्ति, ढंग, सारा कुछ अतीत का भाग है। इनका अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्री को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है क्योंकि इतिहास से ही सामाजिक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए वर्तमान को समझने के लिए इतिहास की आवश्यकता पड़ती है।

समाज शास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग अलग-अलग संस्थाओं की तुलना करने के लिए किया जाता है। इस तरह करने के लिए ऐतिहासिक सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। दुर्थीम द्वारा किए गए ‘सामाजिक तथ्य’ में भी इतिहास द्वारा दी गई सूचनाओं का प्रयोग किया गया है। वास्तविकता में तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने वाले समाजशास्त्रियों को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है।

अलग-अलग सामाजिक संस्थाएं एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं। इन प्रभावों के कारण ही इनमें परिवर्तन आते रहते हैं। इन परिवर्तनों को देखने के लिए दूसरी संस्थाओं के प्रभाव को देखना आवश्यक हो जाता है। ऐतिहासिक सामग्री इन सबको समझने में सहायता करती है।

समाजशास्त्र का इतिहास को योगदान (Contribution of Sociology to History)- इतिहास भी समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है। आधुनिक इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया है। इसलिए सामाजिक इतिहास नाम की नयी शाखा का निर्माण हुआ है। सामाजिक इतिहास किसी राजा का नहीं, अपितु किसी संस्था के क्रमिक विकास अथवा किसी कारण से हुए परिवर्तनों का अध्ययन करता है। इस प्रकार इतिहास जो चीज़ पहले फिलॉसफी से उधार लेता था, अब वह समाजशास्त्र से उधार लेता

अन्तर (Differences) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference of point of view)-दोनों एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोणों से अध्ययन करते हैं। इतिहास युद्ध का वर्णन करता है लेकिन समाजशास्त्र उन घटनाओं का अध्ययन करता है जो युद्ध का कारण बनीं। समाजशास्त्री उन घटनाओं का सामाजिक ढंग के साथ अध्ययन करता है। इस तरह इतिहास पुराने ज़माने पर बल देता है और समाजशास्त्र वर्तमान के ऊपर बल देता है।

2. विषय क्षेत्र में अन्तर (Difference of subject matter)-समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र इतिहास के विषय क्षेत्र से ज्यादा व्यापक है क्योंकि इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का या नियमों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं का या नियमों से अध्ययन करता है। इतिहास सिर्फ यह बताता है कि कोई घटना क्यों हुई, पर समाजशास्त्र अलग-अलग घटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के बीच रुचि रखता है और फिर घटनाओं के कारण बताने की कोशिश करता है।

3. विधियों में अन्तर (Difference of methods) समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है। इतिहास किसी घटना का वर्णन करता है और उसके विकास के अलग-अलग पड़ावों (stages) का अध्ययन करता है, जिसके लिए वर्णन विधि ही उचित है। इसके विपरीत समाजशास्त्र किसी घटना के अलग-अलग देशों और अलग-अलग समय में मिलने वाले स्वरूपों का अध्ययन करके उस घटना में होने वाले परिवर्तनों के नियमों को स्थापित करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इतिहास और समाजशास्त्र की विधियों में भी काफ़ी अन्तर पाया जाता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-समाजशास्त्र के विश्लेषण की इकाई मानवीय समाज और समूह है जबकि इतिहास मानव के कारनामों या कार्यों के अध्ययन पर बल देता है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक वैज्ञानिकों के लिए समाजशास्त्रीय समझ क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
राजनीतिक विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाजशास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर दिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की प्रणाली और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

दूसरी ओर, समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अगल-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीतिक विज्ञान उसी राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिज्ञ कैसे कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। यदि राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने के हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन ‘ करने के लिए समाज शास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 4.
मनोविज्ञान समाजशास्त्र को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान, दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है। यह दोनों ही विज्ञान मानव के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। क्रैच एंड क्रैचफील्ड ने अपनी पुस्तक ‘सोशल साईकोलोजी’ में बताया “सामाजिक मनोविज्ञान समाज में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।
संक्षेप में हम देखते हैं कि समाजशास्त्र का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करना है और मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के मानसिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। अब हम सामाजिक मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ देखेंगे।

सामाजिक मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Social Psychology)-सबसे पहली बात तो इस सम्बन्ध में यह कही जाती है कि यह व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करता है अर्थात् समाज का जो प्रभाव उसके मानसिक भाग पर पड़ता है, उसका अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन को समझने के लिए, वह उसकी सामाजिक परिस्थितियों को नहीं देखता अपितु तन्तु ग्रन्थी प्रणाली के आधार पर करता है।

मानसिक प्रक्रियाओं जिनका अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान करता है; यह है मन, प्रतिक्रिया, शिक्षा, प्यार, नफरत, भावनाएं इत्यादि। मनोविज्ञान इन सामाजिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।

हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक प्रकटन के वैज्ञानिक अध्ययन का आधार मनोवैज्ञानिक है और इनका हम सीधे तौर पर ही निरीक्षण कर सकते हैं। अतः इस तरह हम यह विश्लेषण करते हैं कि ये दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। अब हम इस सम्बन्धी चर्चा करेंगे कि इन दोनों विज्ञानों की आपस में एक-दूसरे को देन है और इन दोनों में पाए गए नज़दीकी सम्बन्धों के आधार पर मनोविज्ञान की नई शाखा का जन्म हुआ, जो है सामाजिक मनोविज्ञान।

मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Psychology to Sociology) समाज शास्त्र में हम सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। सामाजिक सम्बन्धों को समझने हेतु व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है क्योंकि मानव की मानसिक और शारीरिक आवश्यकताएं दूसरे व्यक्ति के साथ सम्बन्धों को प्रभावित करती हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति मानव की इन मानसिक प्रक्रियाओं, विचारों, मनोभावों इत्यादि का सूक्ष्म अध्ययन करती है। समाजशास्त्र की व्यक्ति को या समाज के व्यवहारों को समझने हेतु मनोविज्ञान की आवश्यकता ज़रूर पड़ती है। ऐसा करने के लिए मनोविज्ञान की शाखा सामाजिक मनोविज्ञान सहायक होती है जो मनुष्य को सामाजिक स्थितियों में रखकर उनके अनुभवों, व्यवहारों और उनके व्यक्तित्व का अध्ययन करती है।

समाजशास्त्री यह भी कहते हैं कि समाज में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक आधार बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज को समझने के लिए व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है और यह काम मनोविज्ञान का है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
पुस्तक Das Capital के लेखक कौन हैं ?
(A) वैबर
(B) दुर्थीम
(C) मार्क्स
(D) स्पैंसर।
उत्तर-
(C) मार्क्स।

प्रश्न 2.
इनमें से किसके साथ अर्थशास्त्र का सीधा सम्बन्ध नहीं है ?
(A) उपभोग
(B) धार्मिक क्रियाएं
(C) उत्पादन
(D) वितरण।
उत्तर-
(B) धार्मिक क्रियाएं।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र का इतिहास को क्या योगदान है ?
(A) इतिहास समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है
(B) इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने क्षेत्र में शामिल किया है
(C) सामाजिक इतिहास किसी संस्था के क्रमिक विकास तथा परिवर्तनों का अध्ययन करता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
यह शब्द किसके हैं ? “समाज व्यक्ति का विस्तृत रूप है।” .
(A) मैकाइवर
(B) अरस्तु
(C) वैबर
(D) दुर्थीम।
उत्तर-
(B) अरस्तु।

III. सही/गलत (True/False) :

1. तारा विज्ञान प्राकृतिक विज्ञान है।
2. अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझाने में समाजशास्त्र की सहायता लेता है।
3. अरस्तु को राजनीति विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
4. विज्ञान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
5. राजनीति विज्ञान का दृष्टिकोण सामाजिक होता है।
6. अर्थशास्त्र में आगमन व निगमन विधियों का प्रयोग होता है।
7. अर्थशास्त्र उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से संबंधित होता है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Word/line Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास…………..की तरफ देखता है।
उत्तर-
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास भूत की तरफ देखता है।

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प्रश्न 2.
मानवशास्त्र …………से सम्बन्ध रखता है।
उत्तर-
मानवशास्त्र मानव के विकास एवं वृद्धि से सम्बन्ध रखता है।

प्रश्न 3.
मानवशास्त्र का कौन-सा हिस्सा समाजशास्त्र से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
मानवशास्त्र का हिस्सा, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानव विज्ञान समाजशास्त्र से सम्बन्धित है।

प्रश्न 4.
समाज किसके साथ बनता है ?
उत्तर-
समाज व्यक्तियों के साथ बनता है।

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प्रश्न 5.
इतिहास किसके अध्ययन पर बल देता है ?
उत्तर-
इतिहास मनुष्य के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विज्ञान की कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
रसायन विज्ञान, पौधा विज्ञान, भौतिक विज्ञान इत्यादि सभी प्राकृतिक विज्ञान हैं।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र को क्या समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है।

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प्रश्न 8.
इतिहास किस प्रकार का विज्ञान है ?
उत्तर-
इतिहास मूर्त विज्ञान है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र किस चीज़ को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

प्रश्न 10.
इतिहास में कौन-सी विधि का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र किससे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र, उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से सम्बन्धित है।

प्रश्न 12.
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के क्या होते हैं ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के अनुपूरक तथा प्रतिपूरक होते हैं।

प्रश्न 13.
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता………….को माना जाता है।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता अरस्तु को माना जाता है।

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प्रश्न 14.
किताब ‘अर्थशास्त्र’ का लेखक………था।
उत्तर-
किताब अर्थशास्त्र का लेखक कौटिल्य था।

प्रश्न 15.
राजनीति शास्त्र किस प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करता है ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र केवल राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
शास्त्र को हम कितने भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
शास्त्र को हम दो भागों में बांट सकते हैं-प्राकृतिक शास्त्र तथा सामाजिक शास्त्र।

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प्रश्न 17.
प्राकृतिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
प्राकृतिक शास्त्र वे शास्त्र होते हैं, जो जीव वैज्ञानिक घटनाओं से तथा प्राकृतिक घटनाओं से सम्बन्धित होते हैं जैसे रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, वनस्पति शास्त्र इत्यादि।

प्रश्न 18.
सामाजिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
सामाजिक शास्त्र में वे शास्त्र शामिल किए जाते हैं जो मानवीय समाज से सम्बन्धित घटनाओं, प्रक्रियाओं, विधियों इत्यादि से सम्बन्धित हों जैसे अर्थशास्त्र, मनोशास्त्र, मानवशास्त्र।

प्रश्न 19.
समाजशास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित किस नई शाखा का विकास हुआ है?
उत्तर-
समाज शास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित नई शाखा ऐतिहासिक समाजशास्त्र का निर्माण हुआ है।

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प्रश्न 20.
इतिहास क्या होता है?
उत्तर-
इतिहास आदि काल से लेकर आज तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है तथा उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 21.
बार्स ने समाजशास्त्र और सामाजिक शास्त्रों के सन्दर्भ में क्या शब्द कहे थे?
उत्तर-
बार्स ने कहा था कि, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक शास्त्रों की रखैल है तथा न ही दासी बल्कि उनकी बहन है।”

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विज्ञानों का विभाजन।
उत्तर-
विज्ञान में हम सिद्धांतों तथा विधियों को ढूंढ़ते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है तथा वह हैं:(i) प्राकृतिक विज्ञान (ii) सामाजिक विज्ञान।

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प्रश्न 2.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह विज्ञान होता है जिसका संबंध प्रकृति तथा जैविक घटना से होता है, जिनका संबंध, तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि को ढूंढ़ने का प्रयास करता है। जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान।

प्रश्न 3.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज से संबंधित तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जैसे अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मानव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक जीवन की विचारधारा को समझने तथा उसे समझाने का प्रयास करता है।

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प्रश्न 5.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण तथा उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए, इन सबका अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
शब्द समाज शास्त्र अंग्रेजी भाषा के शब्द Sociology का हिन्दी रूपांतर है। Socio का अर्थ है समाज तथा Logos का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन व्यवस्था इत्यादि से संबंधित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके कार्यों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में प्रयोग होने वाली विधियाँ।
उत्तर-
समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि (Historical Method), तुलनात्मक विधि (Comparative method) का प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र में आगमन विधि तथा निगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।

लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह होता है जिसका सम्बन्ध प्राकृतिक व जैविक घटनाओं से होता है जिनसे यह सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों, इत्यादि को ढूंढने का यत्न करते हैं जैसे भौतिक विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, तारा विज्ञान, जीव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 2.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान वह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज का सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों आदि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन की वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। जैसे अर्थ विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, मानव विज्ञान, समाजशास्त्र इत्यादि।

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प्रश्न 3.
समाजशास्त्र बाकी सामाजिक विज्ञान से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान में विषय क्षेत्र का अंतर नहीं बल्कि दृष्टिकोण में ही केवल अंतर होता है परन्तु सभी सामाजिक विज्ञान केवल मानवीय समाज का ही अध्ययन करते हैं जिस कारण हम समाजशास्त्र को इन बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं कर सकते। जैसे अर्थशास्त्र, आर्थिक समस्याओं से चाहे सम्बन्धित है परन्तु ये समस्याएं समाज का ही एक हिस्सा है। किसी भी समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए बाकी विज्ञानों का भी सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के भूतकाल का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक ज़िन्दगी की विचारधारा को समझने का यत्न करता है। इस प्रकार यह “क्या था” व “किस से हुआ” दोनों अवस्थाओं का विश्लेषण करता है। इस प्रकार इतिहास के द्वारा हमें मानवीय इतिहास के सामाजिक संगठन, रीति-रिवाजों, परम्पराओं इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र व इतिहास कैसे एक-दूसरे से अलग होते हैं ?
उत्तर-
ये दोनों सामाजिक विज्ञान एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं में नियमों की खोज करता है व इनके अन्तर्सम्बन्धों का वर्णन करता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि व इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र मानवीय समूह का विश्लेषण करता है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर जोर देता है। इतिहास का सम्बन्ध भूतकाल की घटनाओं से है जबकि समाजशास्त्र समाज से ही अपना सम्बन्ध रखता है।

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प्रश्न 6.
समाजशास्त्र इतिहास पर आधारित।
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए प्राचीन समाज का सहारा लेना पड़ता है। इतिहास से ही इसके प्राचीन समाज के सामाजिक तत्त्व प्राप्त होते हैं। तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने के लिए भी इतिहास से प्राप्त सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जिस कारण समाजशास्त्र को इस पर आधारित होना पड़ता है। अलगअलग सामाजिक संस्थाएं जिनमें एक-दूसरे के प्रभाव के कारण परिवर्तन होता है तो इस परिवर्तन को समझने के लिए ऐतिहासिक सामग्री ही हमारी मदद करती है। ऐतिहासिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक ऐसी शाखा है जिसके द्वारा सामाजिक परिस्थितियों को समझा जा सकता है।

प्रश्न 7.
मानव विज्ञान।
उत्तर-
मानव विज्ञान का अंग्रेजी रूपान्तर दो यूनानी शब्दों (Two Greeks Words) से मिलकर बना है Anthropo का अर्थ है मनुष्य व logy का अर्थ है विज्ञान अर्थात् मनुष्य का विज्ञान। इस विज्ञान का विषय बहुत विशाल है जिस कारण हम इसे तीन भागों में बांटते हैं

  • शारीरिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-इसमें मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, जिसमें मनुष्य की उत्पत्ति, विकास व नस्लों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • पूर्व ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-historic Archedogy)-इस शाखा में मनुष्य के प्राथमिक इतिहास की खोज की जाती है जिस के लिए हमें कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता जैसे खण्डहरों की खुदाई आदि करके।
  • सामाजिक व सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social And Cultural Anthropology)-इसमें सम्पूर्ण मानवीय समाज का पूरा अध्ययन किया जाता है। सामाजिक मानव विज्ञान में आदिम (Primitive) समाज का अध्ययन किया जाता है अर्थात् गांव, कबीले, इत्यादि।

प्रश्न 8.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाओं को सामाजिक संस्थाओं से अलग नहीं किया जा सकता। आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण व उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए इसका वर्णन किया जाता है। अर्थ विज्ञान, आर्थिक सम्बन्धों व उनसे पैदा होने वाले संगठनों, संस्थाओं व समूहों का अध्ययन करता है। आर्थिक घटनाएं सामाजिक ज़रूरतों द्वारा ही निर्धारित होती हैं।

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प्रश्न 9.
मनोविज्ञान।
उत्तर-
मनोविज्ञान व्यक्तिगत का अध्ययन करता है व यह व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं व व्यवहार को समझने के लिए तन्तु ग्रन्थी प्रणाली द्वारा ही करता है। इसमें यादादश्त बुद्धि, योग्यताएं, हमदर्दी इत्यादि आती है। इसमे मानव से सम्बन्धित तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति होता है। इसी कारण यह व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

प्रश्न 10.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन प्रणाली आदि से सम्बन्धित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके देश का अध्ययन करता है। इसके द्वारा राजनीतिक शक्ति व सत्ता को व्यक्त किया जाता है।

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V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित करें।
उत्तर-
समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में क्या सम्बन्ध है ? अन्तरों सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। . दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था।

जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान अलग होते हुए भी एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
समाजशास्त्र की उत्पत्ति का स्रोत इतिहास है जबकि मानव विज्ञान की उत्पत्ति का स्रोत जीव-विज्ञान है। यदि इन दोनों की विधियों, विषय-क्षेत्र को देखें तो यह अलग-अलग हैं, पर इन दोनों का सम्बन्ध बहुत गहरा है। इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। यह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए एक-दूसरे से सहायता लेते रहते हैं। इन दोनों को समझने हेतु इन दोनों की विषय-सामग्री की ओर देखें तो इन दोनों के रिश्तों को समझने में आसानी होगी।

समाजशास्त्र आधुनिक समाज का अध्ययन है। समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक समूहों और उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में संस्कृति के अलग-अलग भागों, समाज में मिलने वाली कई प्रकार की संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

मानव विज्ञान (Anthropology) दो यूनानी शब्दों को मिलाकर बना है। Anthropos, जिसका अर्थ है ‘मनुष्य’ और ‘Logies’ जिसका अर्थ है ‘विज्ञान’। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ है ‘मानव विज्ञान’। मानव विज्ञान मनुष्य का विज्ञान है। मानव विज्ञान मनुष्य विज्ञान, मनुष्य की उत्पत्ति और विकास के भौतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक . . दृष्टिकोण का अध्ययन है।।

मानव विज्ञान का विषय और क्षेत्र काफ़ी विशाल है। इसलिए इसे तीन भागों में बांटा गया है।
1. भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)- मानव विज्ञान की यह शाखा मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करती है जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति और विकास हुआ।

2. पूर्व-ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-Historical Archeology)-इसमें मनुष्य के इतिहास की खोज करना है जिनके बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है। पुराने खण्डहरों की खुदाई करके, हड्डियों, पुरानी वस्तुओं से उस समय के बारे में पता लगाया जाता है। इन भौतिक सबूतों के आधार पर मनुष्य की उत्पत्ति, उसके विकास, संस्कृति इत्यादि के ऊपर रोशनी डाली जाती है। इस प्रकार यह पुराने समय के मनुष्य की संस्कृति को ढूंढ़ता

3. सामाजिक और सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social and Cultural Anthropology)- यह मानवीय समाज का पूर्णतया से अध्ययन करता है। यह एक समाज की आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक व्याख्या, धर्म, कला, विश्वासों इत्यादि प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करता है। इसमें प्राचीन और आधुनिक समाज में उनके समकालीन ढांचों, संस्थाओं और व्यवहारों का विश्लेषणात्मक और तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

सामाजिक मानव विज्ञान वाली मानव विज्ञान की शाखा समाजशास्त्र से काफ़ी सम्बन्धित है जबकि समाज शास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, संस्थाओं, समूहों और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इन दोनों विज्ञानों के उद्देश्य एक-दूसरे से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। इसीलिए यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

उपरोक्त लिखे विवरण से स्पष्ट है कि मानव विज्ञान में आदिम समाज का अध्ययन किया जाता है। आदिम समाज का अर्थ उन समूहों से है जो छोटे-से भौगोलिक क्षेत्र में, कम संख्या में रहते थे और जिनका बाह्य दुनिया से कम सम्बन्ध था और जो साधारण तकनीक का प्रयोग करते हैं। संक्षेप में, सामाजिक मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज का पूर्णता से अध्ययन करता है।

मानव विज्ञान की समाज शास्त्र को देन (Contribution of Anthropology to Sociology)- समाज शास्त्र मानव विज्ञान के अध्ययन का काफ़ी लाभ उठाता है। भौतिक मानव विज्ञान जो समूहों और नस्लों का ज्ञान उपलब्ध करवाता है, उसे समाजशास्त्री अलग-अलग संस्थाओं और व्यवस्थाओं को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्रियों ने सामाजिक स्तरीकरण को प्रजातीय आधार पर समझने की कोशिश की है। इसके अतिरिक्त मानव विज्ञान यह भी बताता है कि आदिम समाज की संस्थाएं, व्यवस्था और संगठन बहुत सरल थे जिसकी सहायता से समाजशास्त्र आज के समाज को समझ सका है। मानव विज्ञान ने धर्म की उत्पत्ति की सामग्री समाजशास्त्र को दी है। इस प्रकार आदिम समाज का अध्ययन जो कि मानव विज्ञान का विषय वस्तु है। उसमें समाज शास्त्र की दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई है। वास्तविकता में समाजशास्त्र की प्रमुख शाखा सामाजिक उत्पत्ति और कुछ नहीं, अपितु सामाजिक मानव विज्ञान है। समाजशास्त्र ने तो कुछ संकल्प, जैसे-सांस्कृतिक क्षेत्र, सांस्कृतिक गुण, सांस्कृतिक जटिलता, सांस्कृतिक पीड़ा इत्यादि मानव विज्ञान से उधार लिये हैं और इनका प्रयोग समाजशास्त्रियों के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध हुआ है। तभी तो समाजशास्त्र में एक नयी शाखा सांस्कृतिक समाजशास्त्र का विकास हुआ है।

समाजशास्त्र का मानव विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Anthropology)केवल समाजशास्त्र ही नहीं, अपितु मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता लेता है। मानव विज्ञान को संस्कृति की उत्पत्ति और विकास के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों को समझना पड़ता है जो समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। संस्कृति के बिना कोई समाज नहीं हो सकता और इसकी उत्पत्ति अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों पर निर्भर करती है।

समाजशास्त्र का एक दूसरा योगदान मानव विज्ञान को यह है कि मानव विज्ञान ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण करके आदिम समाज का अध्ययन किया है, जिनसे मानव विज्ञान को अपनी विषय सामग्री समझने में काफ़ी सहायता मिली है।

मानव विज्ञान ने समाजशास्त्र के कुछ विषयों, संकल्पों और विधियों को अपने क्षेत्र में शामिल करके अपनी विषय सामग्री को सम्बोधित किया है। मानव विज्ञान ने सामूहिक एकता को उत्पन्न करने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक तथ्यों के साथ-साथ और तथ्यों का भी अध्ययन किया है जिनके कारण संघर्ष की आदत मानव में आई।

समाजशास्त्र और मानव विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Anthropology)-
1. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान की विषय-वस्तु में भी अन्तर डाला गया है। समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों, संगठन, संरचना, सामाजिक व्यवस्था इत्यादि का अध्ययन करता है और मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज के अध्ययन से अपने आपको सम्बन्धित रखता है अर्थात् कि इसमें समाज की धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि भाव के हर पक्ष का अध्ययन करता है। इसीलिए इसे सामाजिक विरासत का विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ही संस्कृति संभाल कर रखी जाती है।

2. मानव विज्ञान उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है, जो छोटी और स्थिर होती हैं। परन्तु समाजशास्त्र उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है जो विशाल और परिवर्तनशील होती हैं। इस आधार पर हम देखते हैं कि मानव विज्ञान तेजी से विकसित होता है और समाजशास्त्र से बढ़िया समझा जाता है।

3. मानव विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों अलग-अलग विज्ञान हैं। मानव विज्ञान प्राचीन समय में पाए गए मानव और उसकी संस्कृति का अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इसी विषय वस्तु को आधुनिक व्यवस्था से सम्बन्धित रखकर अध्ययन करता है।
इस प्रकार समाजशास्त्र भविष्य तक भी ले जाता है परन्तु दूसरी ओर मानव विज्ञान समस्याओं के अध्ययन तक अपने आपको सीमित रखता है।

4. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान दोनों में अध्ययन की अलग-अलग विधियां प्रयोग की जाती हैं। मानव विज्ञान में अवलोकन, आगमन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र सर्वेक्षण, प्रश्नावली, अनुसूची, आंकड़ों आदि पर आधारित है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को क्या योगदान है ? दोनों विज्ञानों के बीच अंतरों का भी वर्णन करें।
उत्तर-
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Psychology)मनोविज्ञान को मानव के व्यवहार को समझने हेतु समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मनुष्य के व्यवहार को समाज की संस्कृति प्रभावित करती है और संस्कृति सम्बन्धी आवश्यक जानकारी समाजशास्त्र देता है।

मानव एक सामाजिक प्राणी है। पशुओं के स्थान पर मानव अपने मां-बाप और समाज पर अधिक निर्भर करता है। समाज में रहते हुए उसमें समाजीकरण की प्रक्रिया के कारण कई गुणों का विकास होता है। प्रत्येक समाज में रहने के कुछ नियम होते हैं। यह नियम व्यक्ति समाज में रहकर सीख सकता है और इन नियमों का पीढी दर पीढी विकास होता है और परिवर्तन भी होता रहता है। प्रत्येक संस्कृति एक व्यक्तित्व बनाती है और यह व्यक्तित्व बचपन के सांस्कृतिक अनुभवों का परिणाम होता है। मनोविज्ञान के लिए मानव के व्यवहार और मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक है कि वह उनका सामाजिक वातावरण में ज्ञान प्राप्त करे जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है। यह सब विषय समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। इसीलिए इस प्रकार के ज्ञान के लिए मनोविज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञान एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर ही नहीं, अपितु एक-दूसरे के पूरक भी हैं। दोनों में से कोई भी एक विज्ञान दूसरे के क्षेत्र में जाए बिना अपने विशेष विषय का पूर्ण तौर पर अध्ययन नहीं कर सकता। जिस प्रकार मनोविज्ञान को मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं की वास्तविकता को समझने के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ता है, उसी प्रकार सामाजिक व्यवहारों, सम्बन्धों और अन्तक्रियाओं सम्बन्धी सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों पर निर्भर होना पड़ता है।

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Psychology) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference in Outlook)-मनोविज्ञान के अनुसार मानव के व्यवहार का आधार । मन और चेतना है जबकि समाजशास्त्र के अनुसार सामाजिक आधार मानव का समूह में रहने का स्वभाव है। इस प्रकार मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत और समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।

2. अध्ययन विधियों में अन्तर (Difference in Methods)—मनोविज्ञान में अधिकतर प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है, जिसका कि समाजशास्त्र में काफ़ी कम प्रयोग होता है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि, तुलनात्मक विधि, संगठनात्मक कार्यात्मक विधि इत्यादि का अधिकतर प्रयोग होता है।

3. विषय-सामग्री में अन्तर (Difference in subject matter)-मनोविज्ञान एक ही व्यक्ति की अलगअलग क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र अनेकों व्यक्तियों में होने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-मनोविज्ञान में हमेशा एक व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में कम-से-कम दो व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।

इस प्रकार उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञानों में कोई भी पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं है। दोनों एक-दूसरे की सहायता कर रहे हैं। एक-दूसरे के बिना यह नहीं रह सकते। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए इनको एकदूसरे की सहायता करनी और लेनी ही पड़ती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कई पक्ष होते हैं जैसे कि आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक इत्यादि। इस प्रकार समाजशास्त्र को समाज के अलग-अलग पक्षों का अध्ययन करने के लिए अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेनी पड़ती है।
  • समाजशास्त्र चाहे अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों से कुछ सामग्री उधार लेता है परन्तु वह उन्हें भी अपनी सामग्री प्रयोग करने के लिए देता है। इस प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञान अपने अध्ययन के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है तथाराजनीति विज्ञान समाज के एक पक्ष का विज्ञान है जिसमें राज्य तथा सरकार प्रमुख हैं। दोनों विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर करते हैं जिस कारण इनमें बहुत ही गहरा रिश्ता है। परन्तु इनमें बहुत से अंतर भी पाए जाते हैं।
  • इतिहास अतीत की घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र वर्तमान घटनाओं का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञान मानवीय समाज का अध्ययन अलग-अलग पक्ष से करते हैं। इतिहास की जानकारी समाजशास्त्र प्रयोग करता है तथा समाजशास्त्र की सामग्री इतिहासकार प्रयोग करते हैं। इस कारण यह एक दूसरे पर निर्भर करते हैं परन्तु इनमें काफी अंतर भी होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में भी काफ़ी गहरा रिश्ता है क्योंकि आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। हमारे सामाजिक संबंध आर्थिक संबंधों से निश्चित रूप से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सहायता लेते तथा देते भी हैं।
  • समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से भी काफी गहरा रिश्ता है। मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है तथा मनुष्य का अध्ययन आवश्यक है। इस प्रकार दोनों विज्ञान अपने अध्ययनों में एक दूसरे की सहायता लेते हैं तथा एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  • मानव विज्ञान से भी समाजशास्त्र का गहरा रिश्ता है। मानव विज्ञान पुरातन समाज का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र वर्तमान समाज का। दोनों विज्ञानों को एल० क्रोबर (Kroeber) ने जुड़वा बहनों (Twin Sisters) का नाम दिया है। मानव वैज्ञानिक अध्ययनों से समाजशास्त्री काफी सामग्री उधार लेते हैं। इस प्रकार मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता पुरातन मानवीय समाज को समझने के लिए करता है।
  • सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Cultural Anthropology)—मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के बीच सांस्कृतिक अंतरों का अध्ययन करती हैं।
  • पुरातत्त्व (Archaeology)—यह पुरातन समय की मानवीय क्रियाओं का ज़मीन के अंदर से मिली वस्तुओं की सहायता से अध्ययन करती है। .
  • राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology)-समाजशास्त्र की वह शाखा जो यह अध्ययन करती है कि किस प्रकार बहुत-सी सामाजिक शक्तियां इकट्ठे होकर राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करती हैं।
  • भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के उद्भव, उनमें आए परिवर्तनों तथा वातावरण से अनुकूलता करने के उसके तरीकों के बारे में बताती है।
  • सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology)-वह वैज्ञानिक अध्ययन जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार लोगों के विचार तथा व्यवहार अन्य लोगों की मौजूदगी से प्रभावित होते हैं।

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