Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 कर्मवीर Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 3 कर्मवीर
Hindi Guide for Class 9 PSEB कर्मवीर Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
जीवन में बाधाओं को देखकर वीर पुरुष क्या करते हैं ?
उत्तर:
जीवन में बाधाओं को देखकर वीर पुरुष घबराते नहीं हैं, बल्कि कठिन से कठिन काम भी कर लेते हैं।
प्रश्न 2.
कठिन से कठिन काम के प्रति कर्मवीर व्यक्ति का दृष्टिकोण कैसा होता है ?
उत्तर:
कठिन से कठिन कार्य करते हुए भी कर्मवीर व्यक्ति उकताते अथवा तंग नहीं होते हैं।
प्रश्न 3.
सच्चे कर्मवीर व्यक्ति समय का सदुपयोग किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
सच्चे कर्मवीर आज का काम आज कर के समय का सदुपयोग करते हैं, वे व्यर्थ की बातों में अपना समय नहीं गवाते हैं।
प्रश्न 4.
मुश्किल काम कर के वे दूसरों के लिए क्या बन जाते हैं ?
उत्तर:
मुश्किल काम कर के वे दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
प्रश्न 5.
कवि ने कर्मवीर व्यक्ति के कौन-कौन से गुण इस कविता में बताए गए हैं ?
उत्तर:
कवि ने कर्मवीर व्यक्ति को परिश्रमी, निडर, समय पर काम करने वाला, कठिन से कठिन स्थिति का सामना करने वाला तथा अपनी सहायता स्वयं कर के सफल होने वाला बताया है।
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
प्रश्न 1.
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।।
उत्तर:
कवि कर्मशील व्यक्तियों के गुणों का वर्णन करते हुए लिखता है कि कर्मशील लोग आज जो कार्य करना है उसे आज ही करते हैं, वे जो कुछ सोचते हैं उसे करके भी दिखाते हैं । वे सदा सब की सुनते हैं और मानते भी हैं। वे इस संसार में अपनी सहायता स्वयं करते हैं। वे भूले से भी किसी दूसरे की सहायता नहीं लेते। ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे वे कर नहीं सकते अर्थात् वे सभी कार्य कर सकते हैं।
प्रश्न 2.
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।।
उत्तर:
कवि का कथन है कि कर्मशील व्यक्ति अपना समय व्यर्थ में गंवाते नहीं हैं। वे काम करने के स्थान पर केवल बातें नहीं बनाते हैं। वे अपना दिन आज-कल अथवा टाल-मटोल के व्यतीत नहीं करते हैं। वे मेहनत करने से कभी भी इन्कार नहीं करते हैं। ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो वे नहीं कर सकते, वे तो स्वयं ही कार्य करके दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
(ख) भाषा-बोध
‘क’ (संस्कृत भाषा के शब्द) – ‘ख’ (हिंदी भाषा के शब्द)
कर्म – काम
मुख – मुँह
उपर्युक्त ‘क’ भाग में ‘कर्म’ और ‘मुख’ शब्द संस्कृत भाषा के शब्द हैं। इनका हिंदी भाषा में भी ज्यों का त्यों प्रयोग होता है। इन शब्दों को ‘तत्सम’ शब्द कहते हैं। तत् + सम अर्थात् इसके समान। ‘इसके समान’ से अभिप्राय है-‘स्रोत भाषा के समान’। हिंदी की ‘स्रोत भाषा’ संस्कृत है, अत: जो शब्द संस्कृत भाषा से हिंदी में ज्यों के त्यों अर्थात् बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं उन्हें तत्सम’ शब्द कहते हैं। जैसे : कर्म, मुख।
उपर्युक्त ‘ख’ भाग में ‘कर्म’ के लिए ‘काम’ और ‘मुख’ के लिए ‘मुँह’ शब्दों का प्रयोग किया गया है। ये शब्द (काम, मुँह) संस्कृत से हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ आए हैं। इन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। तद् + भव अर्थात् ‘उससे होने वाले’ से अभिप्राय है-संस्कृत भाषा से विकसित होने वाले। अतः ‘वे’ संस्कृत शब्द जो हिंदी में कुछ परिवर्तन के साथ आते हैं-उन्हें ‘तद्भव’ शब्द कहते हैं। जैसे-काम, मुँह।
1. पाठ में आए निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
तद्भव – तत्सम
भाग – ——-
आठ – ——–
पहर – ———-
आग – ———
उत्तर:
तद्भव – तत्सम
भाग – अंश
आठ – अष्ट
पहर – प्रहर
आग – अग्नि।
2. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए
मुहावरा – अर्थ – वाक्य
1. एक ही आन में – तुरंत, शीघ्र ही —————–
2. फूलना फलना – सम्पन्न होना —————–
3. मुँह ताकना – दूसरों पर निर्भर रहना —————
4. बातें बनाना – गप्पें मारना ——————-
5. जी चुराना – काम से बचना ——————
6. नमूना बनना – आदर्श/उदाहरण बनना ———————–
7. कलेजा काँपना- भय से विचलित होना, दिल दहल जाना —————–
उत्तर:
1. एक ही आन में – तुरंत, शीघ्र ही
वाक्य – सिमरन एक ही आन में चाय बनाकर ले आई।
2. फूलना फलना – सम्पन्न होना
वाक्य – राम का कारोबार आजकल खूब फल-फूल रहा है।
वाक्य
3. मुँह ताकना – दूसरों पर निर्भर रहना
वाक्य – अपना काम स्वयं करना चाहिए न कि किसी का मुँह ताकते रहना चाहिए।
4. बातें बनाना – गप्पें मारना
वाक्य – नरेन्द्र कुछ करता तो है नहीं बस वह बातें बनाना जानता है।
5. जी चुराना – काम से बचना
वाक्य – मुकेश सदा काम से जी चुराता रहता है।
6. नमूना बनना – आदर्श/उदाहरण बनना
वाक्य – हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पूरे देश के लिए सादगी के नमूना थे।
7. कलेजा काँपना – भय से विचलित होना, दिल दहल जाना
वाक्य – नाग को देखते ही मेरा कलेजा काँपने लगा था।
(ग) पाठेत्तर सक्रियता
प्रश्न 1.
आपके अंदर कौन-सी ऐसी खूबियाँ हैं जो आपको दूसरों से अलग करती हैं ? उनकी सूची बनाइए। इन खूबियों को पुष्ट करते रहें तथा जीवन में इनसे कभी न डगमगाएँ।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
आपके अंदर क्या कमियाँ हैं ? उनकी सूची बनाइए और अपने अध्यापकों/अभिभावकों/बड़ों की मदद से उन्हें दूर करने का प्रयास कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
अपनी दिनचर्या स्वयं बनाएँ जिसमें पढ़ने, खेलने/व्यायाम करने, खाने-पीने और सोने का समय निश्चित हो। (नोट : दिनचर्या बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि दिनचर्या कठोर न होकर लचीली हो) छुट्टी वाले दिन/दिनों की विशेष दिनचर्या बनाएँ जिसमें पढ़ने के अधिक घंटे हों। लाल बहादुर शास्त्री तथा अब्दुल कलाम जैसे सच्चे कर्मवीर एवं दृढ़ संकल्पशील नेताओं की जीवनियाँ पढ़ें एवं उनसे प्रेरणा लें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
(घ) ज्ञान-विस्तार
गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कर्मठ व्यक्ति के लिए यह योग अधिक उपयुक्त है। गीता में स्वयं श्रीकृष्ण कहते हैं-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।। 2-47॥
अर्थात् तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में कभी नहीं। इसलिए कर्मों के फल में तेरी वासना (इच्छा) न हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो। अतः कर्मयोग हमें सिखाता है कि कर्म के लिए कर्म करो, आसक्तिरहित होकर कर्म करो। कर्मयोगी इसलिए कर्म करता है कि कर्म करना उसे अच्छा लगता है और उसके परे उसका कोई हेतु नहीं है। कर्मयोगी कर्म का त्याग नहीं करता, वह केवल कर्मफल का त्याग करता है और कर्मजनित दुःखों से मुक्त हो जाता है।
PSEB 9th Class Hindi Guide कर्मवीर Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कर्मवीर किस से कभी नहीं घबराते ?
उत्तर:
कर्मवीर जीवन की राह में आने वाली तरह-तरह की बाधाओं को देख कर कभी नहीं घबराते।
प्रश्न 2.
कर्मवीर को कभी भी पछताना क्यों नहीं पड़ता ?
उत्तर:
कर्मवीर कभी किसी काम में दूसरों के भरोसे पर नहीं रहते। वे अपना काम स्वयं करते हैं। इसलिए उन्हें कभी भी पछताना नहीं पड़ता।
प्रश्न 3.
कर्मवीर किससे कभी नहीं डरते ?
उत्तर:
कर्मवीर कठिन से कठिन काम स्वयं परिश्रमपूर्वक करते हैं और काम की अधिकता से कभी नहीं डरते।
प्रश्न 4.
कर्मवीर को अपने परिश्रम का क्या फल प्राप्त होता है?
उत्तर:
कर्मवीर अपने परिश्रम से बुरे दिनों को भी अच्छे दिनों में बदल देते हैं। वह हर स्थिति में फलते-फूलते रहते हैं; सुख प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 5.
कर्मवीर की काम करने की क्षमता क्यों अधिक प्रतीत होती है?
उत्तर:
कर्मवीर कभी भी आज का काम कल पर नहीं डालते। वे आज का काम आज ही पूरा करते हैं। वे जो सोचते हैं उसे पूरा करते हैं। वे सबकी बात सुनते हैं उसे मानते हैं और दूसरों की सदा सहायता करते हैं। वे सहायता के लिए दूसरों का सहारा नहीं लेते। कोई भी तो ऐसा काम नहीं जिसे वे न कर सकते हों। वे अपना समय व्यर्थ नहीं गंवाते।
प्रश्न 6.
कर्मवीर किस-किस प्रकार के कष्टों को झेलते हुए कर्म करते रहते हैं?
उत्तर:
कर्मवीर कठोर परिश्रम करते हैं। वे सब प्रकार की भीषण से भीषण समस्याओं का सामना करते हुए परिश्रम में जुटे रहते हैं। वे आकाश को छूते ऊँचे-दुर्गम पर्वतों के शिखरों को भी डटकर पार कर जाते हैं। वे घने जंगलों, गरजते समुद्रों और दहकती लपटों का भी सामना करने में भी डरते नहीं। वे कर्म की राह में आने वाली सभी बाधाओं के पार निकल जाने की हिम्मत रखते हैं।
प्रश्न 7.
‘कर्मवीर’ कविता के आधार पर कर्मवीरों की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के द्वारा रचित कविता ‘कर्मवीर’ के आधार पर कर्मवीरों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं.
1. निर्भय – कर्मवीर सदा निडर होते हैं। वे अपनी राह में आने वाली किसी भी स्थिति से टकराने के लिए सदा तैयार रहते हैं। विघ्न-बाधाएँ उनके रास्ते का रोड़ा नहीं बन पाती।
2. आत्मबल से संपन्न – कर्मवीर भाग्य के भरोसे पर नहीं रहते। उनमें अपार आत्मबल होता है। वे अपने भाग्य के भरोसे कभी नहीं रहते। वे किसी भी काम को करते हुए आत्मबल से उससे टकराते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।
3. स्थिर बुद्धि – कर्मवीर चंचल स्वभाव के नहीं होते। वे स्थिर बुद्धि होते हैं। उनका ध्यान इधर-उधर व्यर्थ नहीं भटकता। वे अपने इस गुण से अपने बुरे दिनों को भी अच्छा बना लेते हैं।
4. निष्ठावान – कर्मवीर निष्ठावान होते हैं। वे आज का काम कल पर नहीं डालते। वे जो सोच लेते हैं उसे पूरा करते हैं। वे दूसरों से सहायता लेने की इच्छा कभी नहीं करते।
5. विश्वास से भरे हुए – कर्मवीर स्वयं पर विश्वास करते हैं। वे सब की बात सुनते हैं और अपने आत्मिक बल से उसे पूरा करने की योग्यता रखते हैं। वे दूसरों की सहायता से अपना काम नहीं करते बल्कि अपनी शक्ति से उसे संपन्न करते हैं।
6. कर्मठ – वे अपना समय व्यर्थ नहीं गंवाते। वे कभी भी परिश्रम से जी नहीं चुराते। अपनी कर्मठता से वे सबके आदर्श बन जाते हैं।
7. धैर्यवान – कर्मवीर अपार धैर्यवान होते हैं। ऊँचे पर्वत, गहरे सागर, दहकती अग्नि, डरावने जंगल आदि भी उनका रास्ता नहीं रोक पाते। वे हर स्थिति में उन पर विजय प्राप्त कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हैं।
एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
‘कर्मवीर’ कविता किस कवि के द्वारा रचित है ?
उत्तर:
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।
प्रश्न 2.
कर्मवीर किस से कभी नहीं घबराते ?
उत्तर:
जीवन में आने वाली बाधाओं से।
प्रश्न 3.
भाग्य के भरोसे कौन नहीं रहते हैं ?
उत्तर:
कर्मवीर।
प्रश्न 4.
‘व्योम’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
आकाश।
प्रश्न 5.
मुश्किल काम करके कर्मवीर दूसरों के लिए क्या बन जाते हैं ?
उत्तर:
आदर्श बन जाते हैं।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 6.
हो गए एक आन में उनके भले दिन भी बुरे।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 7.
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी ताकते नहीं।
उत्तर:
हाँ।
सही-गलत में उत्तर दीजिए
प्रश्न 8.
आजकल करते हुए जो दिन गंवाते हैं।
उत्तर:
गलत।
प्रश्न 9.
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।
उत्तर:
सही।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 10.
आग की …….. फैली ……. में लपट।
उत्तर:
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट।
प्रश्न 11.
जो …………. करते हैं ……….. इस जगत में आप ही।
उत्तर:
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही।
बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखें-
प्रश्न 12.
कठिन काम को देखकर कर्मवीर क्या नहीं करते-
(क) घबराते
(ख) पछताते
(ग) उकताते
(घ) शर्माते।
उत्तर:
(ग) पछताते।
प्रश्न 13.
कर्मवीरों के एक आन में दिन कैसे हो जाते हैं
(क) बुरे
(ख) भले
(ग) गर्म
(घ) सर्द।
उत्तर:
(ख) भले।
प्रश्न 14.
कर्मवीर की मदद कौन करता है-
(क) पड़ोसी
(ख) शासन
(ग) स्वयं
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) स्वयं।
प्रश्न 15.
कर्मवीर समय का क्या करते हैं
(क) सदुपयोग
(ख) दुरुपयोग
(ग) व्यर्थ गंवाना
(घ) सोते रहना।
उत्तर:
(क) सदुपयोग।
कर्मवीर सप्रसंग व्याख्या
1. देख कर बाधा विविध, बहु विज घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।
शब्दार्थ:
बाधा = रुकावट, संकट। विविध = अनेक प्रकार की। बहु = बहुत। विज = बाधा। भाग = भाग्य। उबताते = उकताना, तंग आना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित कविता ‘कर्मवीर’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने कर्मशील लोगों के गुणों पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या:
इन पंक्तियों में कवि कर्मशील व्यक्तियों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए लिखता है कि कर्मशील व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली अनेक प्रकार की रुकावटों और बहुत सारे विघ्नों को देखकर घबराते नहीं हैं। वे भाग्य के भरोसे रहकर दुःख भोगते हुए पछताते नहीं हैं। उन्हें चाहे कितना भी कठिन कार्य करना पड़े वे वह कार्य करते हुए तंग नहीं होते। वे भीड़ में फंस कर चंचल बन कर अपनी वीरता नहीं दिखलाते हैं। उनकी मेहनत से उनके बुरे दिन भी भले दिन बन जाते हैं। वे सभी स्थानों तथा सभी समय में सदा प्रसन्न तथा सुखी दिखाई देते हैं।
विशेष:
- कर्मशील व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से कभी नहीं घबराते तथा कठिन-से-कठिन कार्य करके सदा प्रसन्न दिखाई देते हैं।
- भाषा तत्सम, तद्भव शब्दों से युक्त भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।
2. आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी है सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।।
शब्दार्थ:
कही = कहना, बात। मदद = सहायता। मुँह ताकना = किसी की मदद लेना।
प्रसंग:
यह पद्यांश अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘कर्मवार’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने कर्मशील व्यक्तियों की विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कर्मशील व्यक्तियों के गुणों का वर्णन करते हुए लिखता है कि कर्मशील लोग आज जो कार्य करना है उसे आज ही करते हैं, वे जो कुछ सोचते हैं उसे करके भी दिखाते हैं । वे सदा सब की सुनते हैं और मानते भी हैं। वे इस संसार में अपनी सहायता स्वयं करते हैं। वे भूले से भी किसी दूसरे की सहायता नहीं लेते। ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे वे कर नहीं सकते अर्थात् वे सभी कार्य कर सकते हैं।
विशेष:
- कर्मशील व्यक्ति किसी काम को टालते नहीं तथा जो कहते हैं कर के दिखाते हैं। वे अपनी सहायता स्वयं करते हैं तथा सभी कार्य कर सकते हैं।
- भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा मुहावरे से युक्त है।
3. जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।
शब्दार्थ:
यल = प्रयत्न, कोशिश, मेहनत। नमूना = उदाहरण, आदर्श, मिसाल।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित कविता ‘कर्मवीर’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने कर्मशील व्यक्तियों के गुणों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि का कथन है कि कर्मशील व्यक्ति अपना समय व्यर्थ में गंवाते नहीं हैं। वे काम करने के स्थान पर केवल बातें नहीं बनाते हैं। वे अपना दिन आज-कल अथवा टाल-मटोल के व्यतीत नहीं करते हैं। वे मेहनत करने से कभी भी इन्कार नहीं करते हैं। ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो वे नहीं कर सकते, वे तो स्वयं ही कार्य करके दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
विशेष:
- कर्मशील व्यक्ति केवल बातें ही नहीं बनाते बल्कि काम करके दूसरों के लिए मिसाल बन जाते हैं।
- भाषा सरल, भावपूर्ण, मुहावरों से युक्त तथा अनुप्रास अलंकार है।
4. व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।
शब्दार्थ:
व्योम = आकाश। दुर्गम = कठिन, जहाँ जाना मुश्किल हो। शिखर = चोटी। तम = अंधेरा। आठों पहर = हर समय। भयदायिनी = डर पैदा करने वाली। नाकाम = असफल।
प्रसंग:
यह काव्यांश अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘कर्मवीर’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने कर्मशील व्यक्तियों के गुणों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कर्मशील लोगों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए लिखता है कि कर्मशील व्यक्ति अपने परिश्रम से आकाश की ऊँचाइयों को छू लेते हैं। वे पर्वतों की कठिन चोटियों पर भी चढ़ जाते हैं। वे उन घने जंगलों को भी पार कर जाते हैं जहाँ हर समय अंधेरा रहता है। गर्जना करते हुए सागर की ऊँची-ऊँची लहरों तथा आग की भय पैदा करने वाली चारों दिशाओं में फैली लपटों का भी वे सामना कर सकते हैं। इनसे उनका हृदय कभी भी काँपता नहीं है। वे भूल से भी कभी असफल नहीं होते हैं।
विशेष:
- कर्मशील व्यक्ति हर कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहता है तथा किसी भी दशा में घबराता नहीं है।
- भाषा तत्सम प्रधान तथा भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।
कर्मवीर Summary
कर्मवीर कवि-परिचय
जीवन परिचय:
द्विवेदी युग के सबसे बड़े कवि श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1865 ई० में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निज़ामाबाद नामक कस्बे में हुआ। इनके वंश में गुरुदयाल उपाध्याय ने सिक्ख धर्म में दीक्षा ले ली थी इसी कारण ब्राह्मण होकर भी उपाध्याय वंश के लड़के अपने नाम के साथ सिंह लगाने लगे। अयोध्या सिंह जी के पिता का नाम भोला सिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। मिडिल की परीक्षा पास करके आप निज़ामाबाद के तहसीली स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए थे। इन्हें बंगला, अंग्रेजी, गुरुमुखी, उर्दू, फ़ारसी एवं संस्कृत का ज्ञान था। सन् 1889 में आप कानूनगो बन गये और 32 वर्ष तक इसी पद पर आसीन रहे। रिटायर होने के बाद पं० मदन मोहन मालवीय जी की प्रेरणा से आप ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सन् 1941 तक पढ़ाया। 16 मार्च, सन् 1947 को इनका स्वर्गवास हो गया था। इन्हें ‘मंगला प्रसाद’, पुरस्कार प्राप्त हुआ था। साहित्य सम्मेलन ने इन्हें ‘विद्यावाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की थी।
रचनाएँ:
उपाध्याय जी ने अपने जीवन काल में लगभग 45 ग्रंथों की रचना की थी। इनमें से प्रमुख काव्य ग्रंथ हैंप्रिय प्रवास, पद्य प्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, बोलचाल, पारिजात, रस-कलश तथा वैदेही वनवास। ‘प्रिय-प्रवास’ इनका लोकप्रिय महाकाव्य है।
विशेषताएँ:
इनके काव्य में कृष्ण भक्ति की प्रमुखता है। प्रिय-प्रवास’ कृष्ण के वियोग में संतप्त गोपियों की गाथा है। इन्होंने कृष्ण काव्य को राष्ट्र भक्ति तथा समाज सुधार से जोड़ा है। स्वदेश प्रेम तथा कर्म करने की प्रेरणा देना इनकी काव्य की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है।
कर्मवीर कविता का सार
‘कर्मवीर’ कविता में ‘हरिऔध’ जी ने कर्मशील व्यक्तियों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया है कि वे कभी भी विघ्न, बाधाओं को देख कर घबरातें नहीं हैं तथा कठिन से कठिन कार्य भी मन लगा कर पूरा करते हैं। अपनी मेहनत से वे अपने बुरे दिनों को भी भला बना लेते हैं। वे कभी भी किसी काम को कल पर टालते हैं। वे जो कुछ सोचते हैं, वही कर के भी दिखाते हैं। वे अपना कार्य स्वयं करते हैं तथा कभी किसी से सहायता नहीं मांगते। वे अपने समय को अमूल्य समझकर व्यर्थ की बातों में गंवाते नहीं हैं। वे न तो काम से जी चुराते हैं और न ही टाल-मटोल करते हैं। वे तो दूसरों के लिए आदर्श हैं। अपनी मेहनत से वे आकाश की ऊँचाइयों को छू लेते हैं तथा दुर्गम पर्वतों की चोटियों को भी जीत लेते हैं। उन्हें घने जंगलों के अंधकार, गर्जते सागर की लहरों, आग की लपटों आदि भी विचलित नहीं करती तथा वे सदा अपने कार्यों में सफल रहते हैं।