Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 3 रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार Textbook Questions and Answers
रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :
(क) आमतौर पर दान का अर्थ किस रूप में लिया जाता है?
उत्तर :
आमतौर पर दान का अर्थ ज़रूरतमंदों को रोटी, कपड़ा या कुछ पैसे देने के रूप में लिया जाता है।
(ख) सर्वोत्तम दान कौन-सा है?
उत्तर :
रक्तदान सर्वोत्तम दान है, क्योंकि यह दूसरे को जीवन दे सकता है।
(ग) एक मानव दूसरे मानव की जीवन रक्षा कैसे कर सकता है ?
उत्तर :
एक मानव अपने शरीर से कुछ रक्तदान करके दूसरे के जीवन की रक्षा कर सकता है।
(घ) रक्त की ज़रूरत कब पड़ती है?
उत्तर :
जब कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है या किसी दुर्घटना में घायल हो जाता है तो उसे रक्त की आवश्यकता पड़ती है।
(ङ) रक्त समूह कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
रक्त समूह आठ प्रकार के होते हैं, जिसके नाम निम्न प्रकार से हैं –
- ए – पॉजिटिव
- ए – नेगिटिव
- ए – बी – पॉजिटिव
- ए – बी – नेगिटिव
- बी – पॉजिटिव
- बी – नेगिटिव
- ओ – पॉजिटिव
- ओ – नेगिटिव।
(च) किन व्यक्तियों को रक्तदान नहीं करना चाहिए? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर :
उन व्यक्तियों को रक्तदान नहीं करना चाहिए जो किसी संक्रमित रोग से पीड़ित हों। गर्भवती महिलाओं को जिनकी सर्जरी को कम – से – कम एक वर्ष न हुआ हो। जिस व्यक्ति को रक्तदान किए तीन महीने न हुए हों तथा जिसे मदिरा का सेवन किए 24 घंटे न बीते हों।
(छ) रक्तदान करने से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर :
रक्तदान करने से शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। हम रक्तदान के बाद अपने सभी कार्य दिनचर्या के अनुसार आम दिनों की तरह कर सकते हैं।
4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :
(क) रक्तदान को एक संस्कार के रूप में क्यों नहीं विकसित किया जा सका?
उत्तर :
रक्तदान को एक संस्कार के रूप में इसलिए नहीं विकसित किया जा सका क्योंकि हमें अपने अभिभावकों से रक्तदान जैसा बहुमूल्य संस्कार अल्पमात्र ही प्राप्त होता है। इसका मुख्य कारण आम लोगों का अशिक्षित होना तथा उनमें तरह – तरह के भ्रमों से युक्त रूढ़िवादी विचारों का होना है। हमारे समाज में शिक्षित वर्ग का भी काफ़ी बड़ा भाग इस प्रमाणित तथ्य को मानने को तैयार नही हैं कि रक्तदान एक सुरक्षित दान है। इस दान से हमारे शरीर पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता।
(ख) स्वैच्छिक रक्तदान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
स्वैच्छिक रक्तदान से अभिप्राय है अपनी इच्छानुसार अपने शरीर का रक्तदान करना। जब हम कहीं पर भी अपनी इच्छा से अपने रक्त का दान किसी शिविर, अस्पताल या अन्य किसी स्थान पर करते हैं तो वह दान स्वैच्छिक दान कहलाता है। किसी के दबाव या डर से दिया गया दान स्वैच्छिक दान नहीं कहलाता है।
(ग) क्या रक्तदान करने वाले व्यक्ति की आयु, भार और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है? यदि हाँ, तो समस्त बातों को लिखें।
उत्तर :
हाँ, रक्तदान करने वाले व्यक्ति की आयु, भार और स्वास्थ्य का उचित ध्यान रखा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच में हो तथा जिस का भार 35 किलोग्राम से कम न हो, वह व्यक्ति प्रत्येक तीन महीने बाद आसानी से इच्छापूर्वक रक्तदान कर सकता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकता है। किसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति नहीं।
(घ) आपने कई स्थानों पर रक्तदान शिविर लगा देखा होगा। वहाँ पर जाकर डॉक्टर/नर्स से इस प्रक्रिया को समझें और अपनी डायरी में नोट करें।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
5. नये शब्द बनायें :
- सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
- सर्व + _________ = _________
- अन + भिज्ञ = _________
- अन + _________ = _________
उत्तर :
- सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
- अन + भिज्ञ = अनभिज्ञ
- सर्व + मान्य = सर्वमान्य
- अन + तर = अंतर
6. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिख कर उन्हें वाक्यों में प्रयोग करें :
- प्राणों की रक्षा करना ________________________
- तुच्छ पड़ जाना ________________________
- प्राण हर लेना ________________________
- अपनी चपेट में लेना ________________________
- हाथ धो बैठना ________________________
- आनाकानी करना ________________________
उत्तर :
- प्राणों की रक्षा करना = जान बचाना।
वाक्य – विनोद ने अपने रक्त का दान करके अपने मित्र प्रदीप के प्राणों की रक्षा कर ली। - तुच्छ पड़ जाना = फीका एवं कमज़ोर पड़ जाना।
वाक्य – रक्तदान के समक्ष अन्य सभी प्रकार के दान तुच्छ पड़ जाते हैं। - प्राण हर लेना = जान ले लेना।
वाक्य – पीलिया की बीमारी ने रमेश के प्राणों को हर लिया। - अपनी चपेट में लेना = अपनी पकड़ में लेना।
वाक्य – कैंसर तथा डेंगू जैसी भयानक बीमारियाँ लोगों को अपनी चपेट में लेती जा रही हैं। - हाथ धो बैठना = खो देना।
वाक्य – रक्तदान के विषय में हमारी अज्ञानता किसी को प्राणों से हाथ धो बैठने पर विवश कर देती है। - आनाकानी करना = टाल मटोल करना।
वाक्य – जब मैंने बलराज से अपने पचास रुपये वापस माँगे तो वह आनाकानी करने लगा।
7. ‘ता’ शब्दांश लगाकर भाववाचक संज्ञा बनायें :
- आधुनिक + ता = ________________________
- आवश्यक + ता = ________________________
- अनभिज्ञ + ता = ________________________
- अज्ञान + ता = ________________________
उत्तर :
- आधुनिक + ता = आधुनिकता
- अनभिज्ञ + ता = अनभिज्ञता
- आवश्यक + ता = आवश्यकता
- अज्ञान + ता = अज्ञानता
8. नीचे रक्तदान से जुड़े कुछ वाक्य दिये गये हैं। उन पर सही (✓) या गलत (X) का चिह्न लगायें :
(क) कितने रोगी प्रतिवर्ष केवल समय पर रक्त न मिलने के कारण ही प्राणों से अकारण हाथ धो बैठते हैं।
(ख) सभी लोगों को रक्तदान के बारे में पूरी जानकारी होती है।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति को अपना ब्लड-ग्रुप पता होना चाहिए।
(घ) इन्सान को केवल इंसान का ही रक्त दिया जा सकता है।
(ङ) स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति पर सुरक्षित रूप से रक्तदान करने पर प्रतिकूल प्रभाव
उत्तर :
(क) कितने रोगी प्रतिवर्ष केवल समय पर रक्त न मिलने के कारण ही प्राणों से अकारण हाथ धो बैठते हैं।
(ख) सभी लोगों को रक्तदान के बारे में पूरी जानकारी होती है।
(ग) प्रत्येक व्यक्ति को अपना ब्लड – ग्रुप पता होना चाहिए।
(घ) इन्सान को केवल इन्सान का ही रक्त दिया जा सकता है।।
(ङ) स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति पर सुरक्षित रूप से रक्तदान करने पर प्रतिकूल पड़ता है।
9. अंतर समझें :
- खाद : सड़ा-गलाकर बनाई गयी गोबर
- खाद्य : खाने योग्य
- सम्मान : इज्जत
- समान : बराबर
- सामान : वस्तुएँ, सामग्री
- जहाँ : जिस जगह
- जहां (जहान) : संसार, लोक
- हालत : परिस्थिति, वर्तमान स्थिति, अवस्था, दशा
- हालात : परिस्थितियाँ, स्थितियाँ
- दवा : दवाई
- दावा : अधिकार, हक, न्याय हेतु न्यायालय में दिया गया प्रार्थना-पत्र
- परितोषक : संतुष्ट या खुश करने वाला
- पारितोषिक : इनाम
- कॉफी : कहवा, एक पेड़ का बीज जिसे भूनकर दूध, शक्कर मिलाकर पेय पदार्थ बनाया जाता है
- काफी : बहुत
10. शुद्ध करके लिखें :
शाबासी = …………………..
आपति = …………………..
असानी = …………………..
उमीद = …………………..
उदारण = …………………..
जिमेवारी = …………………..
कटूशब्द = …………………..
अवश्यकता
सरिष्ट = …………………..
अनभिगयता = …………………..
बीमारियाँ = …………………..
सामगरी = …………………..
दुरघटनाएँ = …………………..
तुछ = …………………..
शान्ती = …………………..
भरम = …………………..
वियर्थ = …………………..
उचीत = …………………..
उत्तर :
- शाबाशी = आपत्ति = आसानी
- उम्मीद = उदाहरण = जिम्मेवारी
- कटुशब्द = आवश्यकता = सृष्टि
- अनभिज्ञता = बीमारियाँ = सामग्री
- दुरघटनाएँ = तुछ = शान्ती
- दुर्घटनाएँ = शान्तिः = उचित
11. ‘इक’ और ‘इत’ लगाकर नये शब्द बनायें :
- इक – इत
- धर्म : धार्मिक
- प्रमाण :
- अधुना :
- पुलक :
- विज्ञान :
- सुरक्षा :
- स्वेच्छा :
- शिक्षा :
- नीति :
- परिवार :
- आनंद :
- इतिहास :
- सम्मान :
- पीड़ा :
उत्तर :
- इक – इत
- धर्म = धार्मिक
- प्रमाण = प्रमाणित
- अधुना + इक = आधुनिक
- पुलक + इत = पुलकित
- विज्ञान + इक = वैज्ञानिक
- सुरक्षा + इत = सुरक्षित
- स्वेच्छा + इक = स्वैच्छिक
- शिक्षा + इत शिक्षितः
- नीति + इक = नैतिक
- पीड़ा + इत = पीड़ित
- परिवार + इक = पारिवारिक
- आनंद + इत = आनन्दित
- इतिहास + इक = ऐतिहासिक
- सम्मान + इत = सम्मानित
12. अपने मित्र/सहेली को रक्तदान का महत्व समझाते हुए पत्र लिखें।
उत्तर :
208, सराभा नगर,
लुधियाना।
29 नवम्बर, 20….
प्रिय सुरेश,
प्रसन्न रहो।
कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। तुम्हारे बीमार सहपाठी के स्वास्थ्य की बहुत चिंता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पूँजी होती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। मेरा एक ही सुझाव है कि तुम प्रत्येक व्यक्ति से रक्तदान के विषय में बात करो। रक्तदान से मनुष्य को अनेक लाभ होते हैं। इससे हम किसी को एक नया जीवन दे सकते हैं। रक्तदान करने वाले व्यक्ति को इस कारण कोई क्षति नहीं पहुँचती है। रक्तदान करने के बाद शरीर में स्वत: नवीन एवं स्वच्छ रक्त का संचार होता है। रक्तदान करने से आत्मा तथा मन दोनों प्रसन्न हो उठते हैं। इससे संतुष्टि और परोपकार का भाव उत्पन्न होता है।
मुझे आशा है कि तुम मेरे द्वारा बताई गई बातों के महत्त्व को समझोगे। अधिक क्या कहूँ तुम्हारे और अन्य लोगों के स्वास्थ्य का रहस्य रक्तदान में छिपा है। पूज्य माता जी को प्रणाम। अनन्या को प्यार।
तुम्हारा मित्र,
प्रमोद कुमार
13. ‘रक्तदान’ पर नारे लिखें।
उत्तर :
- रक्तदान महादान,
जो करे उसका जीवन बने महान्। - असली दान ही है रक्तदान,
जो बने किसी की रक्षा का दान। - सबसे उत्तम है रक्तदान,
जो दे दूसरों को जीवनदान। - बहुत सी चीजें हैं मूल्यवान्,
किंतु रक्तदान है अमूल्य दान।
अध्यापन निर्देश
(क) इक’ प्रत्यय लगने पर शब्द में प्रयुक्त पहले स्वर को वृद्धि अर्थात् ‘अ’ को ‘आ’, इ.ई. ए को ‘ऐ’ तथा उ, ऊ, ओ को औ हो जाता है। जैसे- संसार-सांसारिक (अ को आ),
विवाह-वैवाहिक (इ को ऐ), नीति-नैतिक (ई को ऐ) वेद-वैदिक (ए को ऐ) मुख-मौखिक (उ को औ) मूलमौलिक (क को औ) योग-यौगिक (ओ को औ)
अपवाद : कुछ शब्दों में ‘इक’ प्रत्यय होने पर पहले स्वर को आदि वृद्धि नहीं होती जैसे-प्रशासन-प्रशासनिक, क्रम-क्रमिक आदि
(ख) (1) कुछ संज्ञा शब्दों के अंत में ‘आ’ स्वर लगा होता है वहाँ ‘इत’ प्रत्यय होने पर अंतिम आ स्वर का लोप हो जाता है जैसे-पीड़ा-पीड़ित
(2) कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिनके साथ इत’ प्रत्यय अलग तरह से लगता है, अतः यह अपवाद है। जैसे विकास-विकसित इसमें मध्य स्वर ‘आ’ का लोप हुआ है। संक्रमण-संक्रमित (इसमें अंतिम अक्षर का ही लोप हो गया है) प्रेरणा-प्रेरित इसमें मध्य अक्षर ‘र’ के साथ इत प्रत्यय लगा है और अंतिम अक्षर का लोप हो गया है।
रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार Summary in Hindi
रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार पाठ का सार
भारत एक विशाल देश है। भारतीय संस्कृति उदार, ग्रहणशील एवं समय के साथ परिवर्तनशील रही है। यहाँ नित्य नये संस्कार देखने को मिलते हैं। भारत मानव समुद्र है। यह तो सुन्दर फूलों का गुलदस्ता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति इस बात की साक्षी है कि यहाँ के लोगों में दान का संस्कार प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। आज का युग वैज्ञानिक युग है। इस वैज्ञानिक युग में भी भारत में संस्कार कुछ कम नहीं हुए हैं।
हमारे यहाँ दान देने से अभिप्राय यह है कि किसी को धन का दान देना, श्रमदान देना, भूखे को भोजन कराना, वस्त्र आभूषण दान देना आदि अच्छा होता है। इस प्रकार के दान देने वाले व्यक्ति को हमारे समाज में विशेष सम्मान दिया जाता है। यह सर्वमान्य मत है कि दान देने वाले व्यक्ति का मन आनन्द और शान्ति से खिल उठता है। दान में भी एक दान ऐसा है जिसे विश्व में सर्वोत्तम माना जाता है। वह दान है – जीवनदान। यह दान दिया जा सकता है।
इसके लिए हमें स्वयं को थोड़ा – सा मज़बूत करके अपना कुछ रक्त दान में देकर दूसरे को जीवन – दान दे सकते हैं। इस दान के सामने बाकी सब दान फीके पड़ जाते हैं। आज मानव का जीवन वैज्ञानिक उन्नति के कारण अत्यन्त गतिशील बन चुका है। यह गति ही प्रतिदिन कई दुर्घटनाओं का कारण बनती जा रही है। दूसरी ओर अनेक बीमारियाँ विकराल रूप धारण करके मानव जीवन को नष्ट करने के लिए ताक में बैठी हैं।
कैंसर, एड्स, डेंगू, ड्रॉप्सी तथा हैपेटाइटस नामक बीमारियां कुछ इसी प्रकार की जानलेवा बीमारियां हैं। भारत में प्रत्येक वर्ष दुर्घटनाओं तथा बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए अस्सी लाख यूनिट से अधिक रक्त की आवश्यकता पड़ती है जबकि भरसक यत्नों के द्वारा हम मात्र बीस लाख यूनिट रक्त ही इकट्ठा कर पाते हैं।
रक्त का पर्याप्त मात्रा में न मिल पाने का एक सबसे बड़ा कारण हमारे अन्दर चेतना और ज्ञान का अभाव है। इसी अभाव के कारण हम अन्य किसी को रक्तदान के लिए प्रेरित नहीं कर पाते। रक्तदान के विषय में हमारे कम ज्ञान का कारण हमारे अभिभावक हैं जिन्होंने हमें रक्तदान जैसा बहुमूल्य संस्कार बहुत कम मात्रा में दिया है।
यदि कोई बालक साहस करके किसी को रक्तदान के लिए प्रेरित करता हैं तो अभिभावक उसे उत्साहित करने के स्थान पर डाँटते हैं। उनका इस प्रकार से डांटना अशिक्षा तथा भ्रमों से युक्त रूढ़िवादी विचारों का होना बताता है। किन्तु इसके विपरीत हमारे समाज में एक शिक्षित वर्ग ऐसा भी है जो पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा को तोड़कर नवीन जीवन मूल्यों को अपना रहा है। वह रक्तदान करता है।
रक्तदान के लिए औरों को प्रेरित करता है। ऐसे बहुत से लोगों के उदाहरण हमें समाज में देखने को मिलते हैं जिन्होंने दस, बीस, पचास या फिर सौ से भी अधिक बार स्वेच्छा से रक्तदान किया है, किन्तु इनकी संख्या समाज में कम है। हम लोगों में रक्तदान एक संस्कार के रूप में विकसित करना होगा। प्रत्येक समय प्रत्येक ब्लड ग्रुप की आवश्यकता रहती है। ब्लड ग्रुप आठ प्रकार के होते हैं
- ए – पॉजिटिव
- ए – नेगिटिव
- ए – बी – पॉजिटिव
- ए – बी – नेगिटिव
- बी – पॉजिटिव
- बी – नेगिटिव
- ओ – पॉज़िटिव
- ओ – नेगिटिव।
पॉजिटिव ग्रुपों की अपेक्षा नेगिटिव ग्रुप संख्या में बहुत कम होने के कारण उनकी उपलब्धता भी कठिन होती है। एक स्वस्थ व्यक्ति जिस की आयु 18 वर्ष से 60 वर्ष हो वह व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। एक बार में 250 मिली लीटर से 300 मिली लीटर तक रक्त लिया जाता है। हमारे शरीर में लगभग 5 लीटर रक्त होता है। रक्तदान प्रत्येक तीन मास के बाद वर्ष में चार बार किया जा सकता है। रक्तदान में पाँच से दस मिनट लगते हैं।
बीमार तथा संक्रमित रोग से पीड़ित व्यक्ति को रक्तदान नहीं करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति ने मदिरा का सेवन किया है तो 24 घण्टे बाद ही वह रक्तदान कर सकता है। रक्तदान के लिए हमें अपने मन को दृढ़ करना होगा। सब प्रकार के दान में रक्तदान ही महादान है। इसके लिए हम सब को मन, कर्म और वचन से तैयार होना होगा।
रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार कठिन शब्दों के अर्थ
- रक्तदान = खून का दान।
- शिविर = कैम्प।
- विज्ञापन = इश्तिहार।
- स्वस्थ = तन्दरुस्त।
- दुर्घटनाग्रस्त = हादसे का शिकार।
- खाद्य सामग्री = खाने की वस्तु।
- साक्षी = गवाह।
- अनभिज्ञता = अज्ञानता।
- विकराल रूप = भयानक रूप।
- संदेह = शक।
- आपातकालीन = अकस्मात् आया हुआ संकट।
- उपलब्ध = प्राप्त होना।
- बहुमूल्य = बहुत कीमती।
- मानवता = इन्सानियत।
- अकारण = बिना कारण के।
- अल्प = थोड़ा।
- अभिभावक = पालन – पोषण करने वाले।
- रूढ़िवादी विचार = पुराने विचार।
- स्वैच्छा = अपनी इच्छा।
- मदिरा = शराब।
रक्तदान-एक बहुमूल्य संस्कार गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. आज के आधुनिक युग ने जहाँ हमारे जीवन को अत्यन्त सुखदायी व गतिशील बना दिया है वही प्रतिदिन दुर्घटनाएँ न जाने कितनों के प्राण हर लेती हैं और कितने ही अपनी जीवन – रक्षा के लिए अस्पतालों में साँसों से संघर्ष कर रहे होते हैं। दूसरी ओर अनभिज्ञता, प्रदूषण और गिर रहे नैतिक मूल्यों के परिणामस्वरूप एक से बढ़कर एक घातक बीमारी ने लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। बहुत सी बीमारियाँ जिनको हमने पहले कभी सुना भी न था, आज विकराल रूप धारण कर चुकी हैं जैसे कैंसर, एड्स, डेंगू, ड्रॉप्सी, हैपेटाइटस आदि।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘रक्तदानं – एक बहुमूल्य संस्कार’ से लिया गया है, जिसके लेखक महेश कुमार शर्मा हैं। लेखक ने अपने इस लेख में बताया है कि हमें रक्तदान को एक संस्कार के रूप में लेना चाहिए। यहाँ लेखक ने आधुनिक युग के तेज़ जीवन से उभरती हुई समस्याओं का उल्लेख किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि आज के आधुनिक एवं वैज्ञानिक युग ने व्यक्ति के जीवन को अत्यन्त आरामदायक एवं तेज़ बना दिया है। जीवन की यह गतिशीलता प्रतिदिन अनेक दुर्घटनाओं का कारण बनती है और अनेक लोगों के जीवन को समाप्त कर देती है। बहुत से दुर्घटनाग्रस्त लोग अस्पतालों में अपने प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सांसों से पल पल लड़ रहे होते हैं।
इसके साथ आधुनिक मानव के गिरते नैतिक मूल्यों, उसकी अज्ञानता तथा बढ़ते प्रदूषण के कारण बहुत – सी खतरनाक बीमारियाँ लोगों को अपनी ओर खींच रही हैं। आज वे बीमारियाँ जिनका कभी हम लोगों ने नाम भी नहीं सुना था, अपना भयानक रूप लेकर हमारे समक्ष आ खड़ी हुई हैं। ये खतरनाक बीमारियां कैंसर, एड्स, डेंग, ड्रॉप्सी तथा हैपेटाइटस के रूप में हमारे समाज में विद्यमान हैं।
विशेष –
- लेखक ने समाज में फैली भयंकर बीमारियों की ओर संकेत किया है।
- भाषा सरल, सहज तथा विचारानुकूल है।
2. हम लोगों में इतनी चेतना और ज्ञान नहीं कि समय पर किसी के लिए रक्तदान करें ताकि उस व्यक्ति की प्राण – रक्षा की जा सके। अगर हम विचार करें कि उचित समय पर हम किसी जरूरतमंद को रक्तदान नहीं करते या आपत्ति के समय रक्तदान में पहल नहीं करते तो इसमें केवल हमारा ही दोष नहीं है क्योंकि हमें अभिभावकों से रक्तदान जैसा बहुमूल्य संस्कार अल्पमात्र ही प्राप्त होता है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘रक्तदान – एक बहुमूल्य संस्कार’ से अवतरित है, जिसके लेखक महेश कुमार शर्मा हैं। लेखक ने यहाँ रक्तदान के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।
व्याख्या – लेखक रक्तदान के विषय में बताते हुए कहता है कि हम लोग अभी इतने जागरूक एवं ज्ञानवान नहीं हुए कि हम किसी के प्राणों की रक्षा के लिए अपने रक्त का दान करें और समय पर उसके प्राणों को बचाएँ। यदि हम यह जानने का प्रयास करें कि हम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए रक्तदान नहीं करते, जिसे हमारे रक्त की आवश्यकता है तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं। क्योंकि रक्तदान जैसा संस्कार हमें अपने माता – पिता से बहुत कम प्राप्त हुआ है। इसके बारे में उन्होंने हमें बहुत कम ज्ञान दिया है।
विशेष –
- लेखक ने रक्तदान के विषय में हमारे अल्प ज्ञान को उजागर किया है।
- भाषा सरल और साधारण है।
3. यदि कोई बच्चा अपने निर्णय या किसी की प्रेरणा से किसी रक्तदान शिविर में रक्तदान कर देता है तो उसे घर जाने पर पारितोषिक या शाबाशी के स्थान पर कटुशब्द और फटकार को ही सुनना पड़ता है। अभिभावक बड़े होने का दावा तो करते हैं पर अज्ञानतावश किसी भी तर्क को सुनने को तैयार नहीं होते।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘रक्तदान एक बहुमूल्य संस्कार’ से लिया गया है, जिसके लेखक महेश कुमार शर्मा हैं। लेखक ने यहाँ रक्तदान के विषय में अभिभावकों के अल्पज्ञान को उजागर किया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि यदि किसी घर का कोई बालक अपनी स्वेच्छा से स्वयं रक्तदान करता है या फिर किसी के मार्गदर्शन से किसी रक्तदान शिविर में जाकर रक्तदान करता है, तो घर वाले उसे सम्मान, पुरस्कार एवं शाबाशी न देकर उसे कड़वे बोल बोलते हैं। उसे डाँटा जाता है। घर के बड़े लोग एवं अभिभावक अपने आप को घर का बड़ा तो कहते हैं लेकिन अज्ञानता के कारण किसी ओर की बात सुनने को तैयार नहीं होते।
विशेष –
- लेखक ने अभिभावकों की रक्तदान के विषय में अज्ञानता को दर्शाया
- भाषा सरल, सहज तथा विचारानुरूप है।
4. बस एक बार अपने मन को तैयार करने की आवश्यकता है, फिर आपका भय दूर हो जाएगा और आप खुद तो रक्तदान करेंगे ही साथ में दूसरों को भी स्वैच्छिक रक्तदान के लिए प्रेरित करेंगे। याद रखें, सभी दानों में सर्वोत्तम रक्तदान ही है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘रक्तदान – एक बहुमूल्य सस्कार’ से लिया गया है, जिसके लेखक महेश कुमार शर्मा हैं। यहाँ लेखक ने रक्तदान के लिए मन तैयार करने की बात कही है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि रक्तदान करने के लिए सबसे पहले हमें अपने मन को इसके लिए तैयार करना होगा। मन तैयार होने के बाद हमारा डर अपने आप दूर हो जाएगा। तब हम स्वयं तो अपने रक्त का दान करेंगे साथ ही साथ दूसरो को भी स्वेच्छा से रक्तदान करने के लिए प्रेरित करेंगे। हमें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि रक्तदान सभी दानों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह दूसरे को नवजीवन देता है।।
विशेष –
- लेखक ने रक्तदान को सर्वोत्तम दान कहा है।
- भाषा सरल तथा साधारण है।