Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत
निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ । (Difficulties Regarding the History of the Punjab)
प्रश्न 1.
पंजाब के इतिहास की रचना में इतिहासकारों को किन मुख्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ? बताइए।
(What difficulties were faced by the historians while constructing the History of Punjab ? Explain.)
अथवा
पंजाब के इतिहास की रचना करते समय इतिहासकारों को किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ?
(Which difficulties are being faced by historians while composing the History of Punjab ?)
अथवा
पंजाब का इतिहास लिखते समय इतिहासकारों को कौन-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ?
(Explain the difficulties faced by the historians while writing the History of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास की रचना करना इतिहासकारों के लिए सदैव एक गंभीर समस्या रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उसकी रचना करते समय उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला (Sikhs did not find time to write their own History) औरंगजेब की मृत्यु के बाद पंजाब में एक ऐसा दौर आया जो पूरी तरह से अशाँति तथा अराजकता से भरा हुआ था। सिखों तथा मुग़लों के मध्य शत्रुता चरम सीमा पर थी। इस पर नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब की दशा और खराब कर दी। अतः ऐसे वातावरण में इतिहास लेखन का कार्य कैसे संभव था। इस क्षेत्र में जो थोड़े बहुत प्रयास हुए भी चे आक्रमणकारियों की भेंट चढ़ गए। परिणामस्वरूप आज के इतिहासकार महत्त्वपूर्ण ग्रंथों से वंचित हो गए।
2. मुस्लिम इतिहासकारों के पक्षपातपूर्ण विचार (Biased Views of Muslim Historians)—पंजाब के इतिहास को लिखने में सबसे अधिक जिन स्रोतों की सहायता ली गई है वे हैं फ़ारसी में लिखे गए ग्रंथ। इन ग्रंथों को मुसलमान लेखकों ने लिखा है जो सिखों के कट्टर दुश्मन थे। इन ग्रंथों को बड़ी जाँच-पड़ताल से पढ़ना पड़ता है क्योंकि इन इतिहासकारों ने अधिकतर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। अतः इन ग्रंथों को पूर्णतः विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। इसके अतिरिक्त औरंगजेब ने सरकारी तौर पर किसी भी राजनीतिक घटना को लिखने की मनाही कर दी थी। परिणामस्वरूप उस काल की पंजाब से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं का सही विवरण उपलब्ध नहीं है।
3. ऐतिहासिक स्रोतों का नष्ट होना (Destruction of Historical Sources)-18वीं शताब्दी के लगभग 7वें दशक तक पंजाब में अशांति एवं अराजकता का वातावरण रहा। पहले मुग़लों तथा बाद में अफ़गानों ने पंजाब में सिखों की शक्ति को कुचलने में कोई प्रयास शेष न छोड़ा। 1739 ई० में नादिर शाह तथा 1747 से 1767 ई० तक अहमद शाह अब्दाली के 8 आक्रमणों के कारण पंजाब की स्थिति अधिक शोचनीय हो गई थी। ऐसे समय जब सिखों को अपने बीवी-बच्चों की सुरक्षा करना कठिन था तो वे अपने धार्मिक ग्रंथों को किस प्रकार सुरक्षित रख पाते। परिणामस्वरूप उनके अनेक धार्मिक ग्रंथ नष्ट हो गए। इस कारण सिखों को अपने अनेक अमूल्य ग्रंथों से वंचित होना पड़ा।
4. पंजाब मुगल साम्राज्य का एक भाग (Punjaba part of Mughal Empire)-पंजाब 1752 ई० तक मुग़ल साम्राज्य का भाग रहा था। इस कारण इसका कोई अलग से इतिहास न लिखा गया। आधुनिक इतिहासकारों को मुग़ल काल में लिखे गए साहित्य से पंजाब की बहुत कम जानकारी प्राप्त होती है। अत: पर्याप्त विवरण के अभाव में पंजाब के इतिहास की वास्तविक तस्वीर पेश नहीं की जा सकती।
5. पंजाब का बँटवारा (Partition of Punjab)-1947 ई० में पंजाब की पड़ी बँटवारे की मार ने भी पंजाब के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोतों को नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप इतिहासकार पंजाब की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री से वंचित रह गए।
पंजाब के इतिहास के मुख्य स्रोत (Main Sources of the History of the Punjab)
प्रश्न 2.
पंजाब के इतिहास के मुख्य स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly the important sources of the History of the Punjab.)
अथवा
पंजाब के इतिहास के मुख्य स्रोतों का वर्णन करें।
(Discuss the main sources of the Punjab History.) .
अथवा
1469 ई० से 1849 ई० तक के पंजाब के इतिहास के मुख्य स्रोतों की चर्चा करें। (Examine the sources of History of the Punjab from 1469 to 1849 A.D.)
उत्तर-
पंजाब के 1469 ई० से 1849 ई० तक के इतिहास के लिए अनेक प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं। इन स्रोतों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है—
(क) साहित्यिक स्रोत (Literary sources)
(ख) पुरातात्विक स्रोत (Archaeological sources)।
- साहित्यिक स्रोतों में निम्नलिखित शामिल हैं—
- सिखों के धार्मिक साहित्य।
- ऐतिहासिक और अर्द्ध ऐतिहासिक सिख साहित्य।
- फ़ारसी की ऐतिहासिक पुस्तकें।
- भट्ट वहियाँ।
- खालसा दरबार रिकॉर्ड।
- विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेज़ों की रचनाएँ।
- पुरातात्विक स्रोतों में निम्नलिखित शामिल हैं—
- भवन तथा स्मारक।
- सिक्के तथा चित्र।
(क) साहित्यिक स्रोत
(Literary Sources)
सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs)-सिखों के धार्मिक साहित्य की पंजाब के इतिहास के निर्माण में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें सबसे प्रमुख स्थान आदि ग्रंथ साहिब जी का आता है। इसे आजकल गुरु ग्रंथ साहिब जी कहा जाता है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था। इससे हमें उस काल की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इसके बाद भाई मनी सिंह जी द्वारा 1721 ई० में संकलित ‘दशम ग्रंथ साहिब’ का स्थान है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इसमें कुल 18 ग्रंथ हैं। इनमें ऐतिहासिक रूप से ‘बचित्तर नाटक’ तथा ‘ज़फ़रनामा’ का नाम प्रमुख है। इन ग्रंथों में गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन तथा मुग़लों तथा सिखों के संबंधों पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इसके बाद भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों का स्थान आता है। इनमें सिख गुरुओं के जीवन का बहुमूल्य विवरण दिया गया है। इनके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित ‘जन्म साखियाँ’ तथा सिख गुरुओं के हुक्मनामे भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
2. ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक सिख साहित्य (Historical and Semi-Historical Sikh Literature)-पंजाब के इतिहास के निर्माण में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है सेनापत द्वारा रचित गुरसोभा। इसमें 1699 ई० से 1708 ई० तक आँखों देखी घटनाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त भाई मनी सिंह जी द्वारा रचित सिखाँ दी भगतमाला, केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित बंसावली नामा, बावा कृपाल सिंह द्वारा रचित महिमा प्रकाश वारतक तथा प्राचीन पंथ प्रकाश जिसके लेखक रतन सिंह भंगू हैं, भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. फ़ारसी के ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical works in Persian)—फ़ारसी की अधिकतर रचनाएँ मुसलमानों द्वारा रचित हैं। उनकी रचनाएँ पंजाब या सिखों के इतिहास का वर्णन तो नहीं है, परंतु फिर भी हमें इतिहास लिखने में इनसे पर्याप्त सहायता मिलती है। इनमें बाबर द्वारा रचित बाबरनामा, अबुल फ़ज़ल द्वारा रचित आइन-एअकबरी और अकबरनामा, जहाँगीर द्वारा लिखी गई तुजक-ए-जहाँगीरी, सोहन लाल सूरी की उमदत-उततवारीख, बूटे शाह की तवारीख-ए-पंजाब, दीवान अमरनाथ की ज़फ़रनामा-ए-रणजीत सिंह तथा अलाउद्दीन मुफ्ती की इबरतनामा प्रमुख हैं।
4. भट्ट वहियाँ (Bhat Vahis)-भट्ट लोग अपनी वहियों में महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित दर्ज कर लेते थे। पंजाब के इतिहास निर्माण में इन वहियों का विशेष स्थान है। इनमें गुरु हरिगोबिंद सिंह जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी के गुरु-काल की अनेकों महत्त्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दर्ज है।
5. खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Durbar Records)-महाराजा रणजीत सिंह के काल के सरकारी रिकॉर्ड तत्कालीन पंजाब पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। ये फ़ारसी भाषा में हैं तथा इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है। इनकी सूची सीता राम कोहली ने तैयार की थी।
6. विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and the Europeans)-पंजाब आने वाले विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेज़ी लेखकों ने भी पंजाब के इतिहास पर अपनी रचनाओं में पर्याप्त प्रकाश डाला है। इनमें जॉर्ज फोरस्टर द्वारा रचित “ए जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम द्वारा रचित ‘स्केच ऑफ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप द्वारा रचित ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन द पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न द्वारा रचित ‘द कोर्ट एंड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, मरे द्वारा रचित हिस्ट्री ऑफ़ द पंजाब शामिल हैं। जे० डी० कनिंघम द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ सबसे अधिक विश्वसनीय तथा महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें 1699 ई० से लेकर 1846 ई० तक की घटनाओं का विवरण दर्ज है।
(ख) पुरातात्विक स्रोत
(Archaeological Sources)
पंजाब के ऐतिहासिक भवन, स्मारक, सिक्के तथा चित्र भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण सहयोग देते हैं। सिख गुरुओं द्वारा बसाए गए खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर, आनंदपुर साहिब आदि धार्मिक नगर पंजाब के इतिहास की मुँह बोलती तस्वीर हैं। इसके अतिरिक्त 18वीं शताब्दी के अनेक सिख सरदारों द्वारा बनाए गए महल तथा दुर्ग भी पंजाब के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। हमें सिख गुरुओं तथा उनके वंशजों से संबंधित अनेक चित्र भी प्राप्त हुए हैं। इन चित्रों के माध्यम से हमें उस काल में पंजाब की सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। पंजाब के विभिन्न मुग़ल शासकों, बंदा सिंह बहादुर, महाराजा रणजीत सिंह, मुग़ल तथा सिख सरदारों द्वारा जारी किए गए सिक्कों से हमें उस काल की ऐतिहासिक तिथियों, धार्मिक विश्वासों तथा आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार ये सिक्के इतिहास निर्माण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सिरवों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs)
प्रश्न 3.
पंजाब के इतिहास के स्रोत के रूप में सिख धार्मिक साहित्य का मूल्यांकन करें।
(Evaluate the Sikh religious literature as a source of the Punjab History.)
अथवा
पंजाब के इतिहास जानने में गुरुमुखी साहित्य का क्या योगदान है ? (What is the contribution of Sikh Gurmukhi Literature in the History of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में आदि ग्रंथ साहिब तथा जन्म साखियों का महत्त्व बताओ।
(Describe the significance of the Adi Granth Sahib and Janam Sakhis as source of the Punjab History.)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास की रचना में सर्वाधिक योगदान सिखों के धार्मिक साहित्य का है। इसमें दी गई जानकारी उस काल की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। सिखों के धार्मिक साहित्यों का क्रमानुसार वर्णन इस प्रकार है—
1. आदि ग्रंथ साहिब जी (The Adi Granth Sahib Ji)—आदि ग्रंथ साहिब जी को सिख धर्म का सर्वोच्च प्रमाणित और पावन ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिब जी तथा हिंदू भक्तों, मुस्लिम सूफ़ियों और भट्टों इत्यादि की वाणी सम्मिलित है। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी सम्मिलित की गई थी तथा इसे गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। इस प्रकार गुरु ग्रंथ साहिब जी में अब 6-गुरु साहिबानों की बाणी दर्ज है। आदि ग्रंथ साहिब जी के गहन अध्ययन से हमें उस समय के राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। क्योंकि यह जानकारी बहुत ही प्रमाणित है, इसलिए आदि ग्रंथ साहिब जी पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत माना जाता है। डॉक्टर इंदू भूषण बैनर्जी के शब्दों में,
“इसे (आदि ग्रंथ साहिब जी को) सिखों की बाइबल कहा जाना चाहिए। विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि सिख धर्म पर यह सबसे विश्वसनीय स्रोत है।”1
2. दशम ग्रंथ साहिब जी (Dasam Granth Sahib Ji) दशम ग्रंथ साहिब जी सिखों का एक और पावन धार्मिक ग्रंथ है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था। ऐतिहासिक पक्ष से ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। बचित्तर नाटक गुरु गोबिंद सिंह जी की लिखी हुई आत्मकथा है। यह गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान और गुरु गोबिंद सिंह जी की पहाड़ी राजाओं के साथ लड़ाइयों को जानने के संबंध में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। ‘ज़फ़रनामा’ एक पत्र है जो गुरु गोबिंद सिंह जी ने फ़ारसी में दीना काँगड़ से औरंगज़ेब को लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब के अत्याचारों, मुग़ल सेनापतियों द्वारा कुरान की झूठी शपथ लेकर गुरु जी के साथ धोखा करने का उल्लेख किया है। दशम ग्रंथ वास्तव में गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन और कार्यों को जानने के लिए हमारा एक अमूल्य स्रोत है।
1. “It may be called the Bible of Sikhism and is admitted to be the greatest authority on Sikhism.” Dr. Indu Bhushan Banerjee, Evolution of Khalsa (Calcutta : 1972) pp. 281-82.
3. भाई गुरदास जी की वारें (Vars of Bhai Gurdas Ji)—भाई गुरदास जी एक उच्च कोटि के कवि थे। उन्होंने 39 वारों की रचना की। इन वारों को गुरु ग्रंथ साहिब जी की कुंजी कहा जाता है। ऐतिहासिक पक्ष से प्रथम तथा 11वीं वार को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रथम वार में गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। 11वीं वार में प्रथम 6 गुरु साहिबान से संबंधित कुछ प्रसिद्ध सिखों तथा स्थानों का वर्णन किया गया है।
4. जन्म पाखियाँ (Janam Sakhis)-गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को ‘जन्म साखियाँ’ कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में बहुत-सी जन्म साखियों की पंजाबी में रचना हुई। परंतु इन जन्म साखियों में अनेक दोष व्याप्त हैं। इनमें घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है। इन जन्म साखियों में घटनाओं का विवरण तथा तिथि क्रम में विरोधाभास मिलता है। इन दोषों के बावजूद ये जन्म साखियाँ गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में पर्याप्त प्रकाश डालती हैं। इन जन्म साखियों में महत्त्वपूर्ण हैं—
i) पुरातन जन्म साखी (Puratan Janam Sakhi)—इस जन्म साखी का संपादन 1926 ई० में भाई वीर सिंह जी ने किया था। यह जन्म साखी सबसे प्राचीन है। इसे अन्य जन्म साखियों की तुलना में सर्वाधिक विश्वसनीय माना जाता है।
ii) मेहरबान वाली जन्म साखी (Janam Sakhi of Meharban)-मेहरबान गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद के पुत्र थे। वे बड़े विद्वान् थे। उन्होंने गुरु नानक साहिब की उदासियों और करतारपुर में गुरु जी के निवास के संबंध में बहुत विस्तारपूर्वक वर्णन किया। यह जन्म साखी काफ़ी विश्वसनीय मानी जाती है।
iii) भाई बाला जी की जन्म साखी (Janam Sakhi of Bhai Bala Ji)-भाई बाला जी गुरु नानक देव जी का बचपन का साथी था। वह गुरु नानक देव जी की उदासियों के समय उनके साथ था। इस जन्म साखी को कब तथा किसने लिखा इस संबंधी इतिहासकारों में मतभेद हैं। इस जन्म साखी में बहुत-सी बातें मनघढ़त हैं। इसलिए इस जन्म साखी को सबसे कम विश्वसनीय माना जाता है।
iv) भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी (Janam Sakhi of Bhai Mani Singh Ji)-इस जन्म साखी को ‘ज्ञान रत्नावली’ भी कहा जाता है। यह जन्म साखी गुरु गोबिंद सिंह जी के एक श्रद्धालु भाई मनी सिंह जी ने लिखी थी। इसकी रचना 1675 ई० से 1708 ई० के बीच की गई थी। यह जन्म साखी बहुत विश्वसनीय है।
v) हुक्मनामे (Hukamnamas)-हुक्मनामे वे आज्ञा-पत्र थे जो सिख गुरुओं अथवा गुरु वंश के सदस्यों ने समय-समय पर सिख संगतों अथवा व्यक्तियों के नाम जारी किए। इनमें से अधिकाँश में गुरु के लंगर के लिए खाद्यान्न, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए धन, लड़ाइयों के लिए घोड़े और शस्त्र इत्यादि लाने की माँग की गई थी। पंजाब के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर गंडा सिंह ने अपने अथक परिश्रम से 89 हुक्मनामों का संकलन किया। इनमें से 34 हुक्मनामे गुरु गोबिंद सिंह जी के तथा 23 गुरु तेग़ बहादुर जी के हैं। इन हुक्मनामों से हमें गुरु साहिबान तथा समकालीन समाज से संबंधित बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक सिरव साहित्य (Historical and Semi-Historical Sikh Literature)
प्रश्न 4.
पंजाब के इतिहास के विषय में जानकारी देने वाला ऐतिहासिक और अर्द्ध ऐतिहासिक सिख साहित्य कहाँ तक सहायक है ? वर्णन करो।
(How far is Sikh Historical and Semi-Historical Literature helpful in giving information about Punjab History ?)
उत्तर-
18वीं और 19वीं शताब्दी में बहुत-से ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक सिख साहित्य की रचना की गई थी। यह साहित्य पंजाब के इतिहास पर बहुत महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है। प्रमुख साहित्यिक ग्रंथों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
श्री गुरसोभा (Sri Gursobha)-श्री गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के एक प्रसिद्ध दरबारी कवि सेनापत ने की थी। इस ग्रंथ में 1699 ई० से लेकर 1708 ई० तक की आँखों-देखी घटनाओं का वर्णन किया गया है। वास्तव में यह गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन तथा कार्यों को जानने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
2. सिखों की भगतमाला (Sikhan Di Bhagatmala)-इस ग्रंथ की रचना भाई मनी सिंह जी ने 18वीं शताब्दी में की थी। इस ग्रंथ को भगत रत्नावली भी कहा जाता है। इसमें सिख गुरुओं के जीवन, प्रमुख सिखों के नाम तथा जातियों के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
3. बंसावलीनामा (Bansavalinama)—बंसावलीनामा की रचना 1780 ई० में केसर सिंह छिब्बड़ ने की थी। इसमें गुरु साहिबान से लेकर 18वीं शताब्दी के मध्य तक का इतिहास वर्णित किया गया है। यह ग्रंथ गुरु काल के बाद के इतिहास के लिए अधिक विश्वसनीय है। इसमें बहुत-सी ऐसी घटनाओं का वर्णन है जोकि लेखक की आँखों-देखी हैं।
i) महिमा प्रकाश (Mehma Prakash)-महिमा प्रकाश की दो रचनाएँ हैं। प्रथम का नाम महिमा प्रकाश वारतक और द्वितीय का नाम महिमा प्रकाश कविता है।
- महिमा प्रकाश वारतक-इस पुस्तक की रचना 1741 ई० में बावा कृपाल सिंह ने की थी। इसमें गुरु साहिबान के जीवन का संक्षिप्त रूप में वर्णन किया गया है।
- महिमा प्रकाश कविता-इस पुस्तक की रचना 1776 ई० में सरूप दास भल्ला ने की थी। इसमें सिख गुरुओं के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
ii) गुरप्रताप सूरज ग्रंथ (Gurpartap Suraj Granth)-यह एक विशाल ग्रंथ है। इसकी रचना भाई संतोख सिंह ने की थी। इस ग्रंथ के दो भाग हैं- .
- नानक प्रकाश (Nanak Prakash)-इसकी रचना 1823 ई० में की गई थी। इसमें केवल गुरु नानक साहिब के जीवन का वर्णन है।
- सूरज प्रकाश (Suraj Prakash)-इसकी रचना 1843 ई० में हुई थी। इसमें गरु अंगद साहिब से लेकर बंदा सिंह बहादुर तक की घटनाओं का वर्णन किया गया है। यद्यपि इसमें अनेक दोष हैं किंतु इसे सिख गुरुओं के जीवन से संबंधित ज्ञान का प्रमुख स्रोत माना जाता है।
4. प्राचीन पंथ प्रकाश (Prachin Panth Prakash)-इस पुस्तक की रचना 1841 ई० में रतन सिंह भंगू ने की थी। इस ग्रंथ में गुरु नानक देव जी से लेकर 18वीं शताब्दी तक के इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह पहली ऐतिहासिक पुस्तक थी जो किसी सिख ने लिखी थी। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कथन पूर्णत: ठीक है,
“यह कार्य किसी सिख द्वारा सिख इतिहास लिखने का प्रथम प्रयास है और यह बहुत महत्त्व रखता है।”2
5. पंथ प्रकाश तथा तवारीख गुरु खालसा (Panth Prakash and Tawarikh Guru Khalsa)ये दोनों रचनाएँ ज्ञानी ज्ञान सिंह जी द्वारा रचित हैं। पंथ प्रकाश कविता के रूप में लिखी गई है जबकि तवारीख गुरु खालसा वारतक रूप में है। इन दोनों ग्रंथों में 1469 ई० से लेकर 1849 ई० तक की घटनाओं का विवरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त इनमें उस समय के प्रसिद्ध संप्रदायों और गुरुद्वारों का वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक पक्ष से पंथ प्रकाश की तुलना में तवारीख गुरु खालसा अधिक लाभदायक है।
2. “This work is the first attempt made by a Sikh to compile a Sikh history and is of supreme importance.”. Dr. Hari Ram Gupta, History of the Sikhs (Delhi : 1987) Vol. 2, p. 371.
संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
ऐतिहासिक स्रोत हमारे लिए क्यों आवश्यक हैं ? पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत के संबंध में हमें कौन-सी मुख्य कठिनाइयाँ पेश आती हैं ?
(Why are historical sources important for us ? What difficulties do we face regarding the sources of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास का संकलन करने के लिए विद्यार्थियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(What problems are faced by the students in composing the History of the Punjab ? )
अथवा
पंजाब के इतिहास के संकलन के लिए विद्यार्थियों के सामने आने वाली किन्हीं तीन समस्याओं का वर्णन कीजिए।
(Describe any three important problems being faced by the students in composing the History of the Punjab.)
उत्तर-
- गुरु साहिबान के काल से संबंधित प्राप्त ऐतिहासिक स्रोत काफ़ी अधूरे हैं। परिणामस्वरूप सही ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करना कठिन है।
- मुसलमान लेखकों ने जान-बूझ कर सिख इतिहास को उचित रूप में प्रस्तुत नहीं किया।
- उस समय पंजाब में युद्धों के कारण चारों ओर अराजकता फैली हुई थी। इस वातावरण में सिखों को अपना इतिहास लिखने का अवसर नहीं मिला।
- पंजाब के बहुत सारे स्रोत अखोजित रह गए।
प्रश्न 2.
हुक्मनामों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a brief note on Hukamnamas.)
उत्तर-
सिख गुरुओं अथवा गुरु परिवारों की ओर से समय-समय पर जारी किए गए आदेशों को ‘हुक्मनामा’ कहा जाता था। इनमें से अधिकाँश में गुरु के लंगर के लिए खाद्यान्न, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए धन, लड़ाइयों के लिए घोड़े और शस्त्र इत्यादि लाने की माँग की गई थी। अब तक प्राप्त हुए हुक्मनामों की संख्या 89 है। इनमें से 34 हुक्मनामे गुरु गोबिंद सिंह जी तथा 23 गुरु तेग़ बहादुर जी के हैं। सिख इन हुक्मनामों को परमात्मा का आदेश समझ कर उनकी पालना करते थे।
प्रश्न 3.
सिखों के धार्मिक साहित्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोतों का वर्णन करें।
(Give a brief account of the important historical sources related to religious literature of the Sikhs.)
अथवा
पंजाब के इतिहास के लिए धार्मिक साहित्य पर आधारित तीन महत्त्वपूर्ण स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of three important sources based on religious literature of the Punjab History.)
उत्तर-
- 1604 ई० आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी ने किया था। आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दशा की भी जानकारी प्राप्त होती है।
- दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था। यह गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन को जानने के लिए एक अमूल्य स्रोत है।
- भाई मनी सिंह जी द्वारा लिखित ‘ज्ञान-रत्नावली’ जन्म साखी भी बहुत-ही विश्वसनीय है। इसमें ऐतिहासिक तथ्यों को क्रम में दिया गया है।
- भाई गुरदास जी ने 39 वारों की रचना की। इन वारों से पहले 6 गुरु साहिबानों से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- हुक्मनामों से हमें गुरु साहिबान और समकालीन समाज के इतिहास के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
प्रश्न 4.
जन्म साखियों से क्या अभिप्राय है ? किन्हीं तीन जन्म साखियों का वर्णन करें।
(What is meant by Janam Sakhis ? Explain any three main Janam Sakhis.)
अथवा
जन्म साखियों के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में एक नोट लिखें। (Write a note on the historical importance of Janam Sakhis.)
अथवा
जन्म साखियाँ क्या हैं ? भिन्न-भिन्न जन्म साखियों का महत्त्व बताएँ।
(What do you understand by Janam Sakhis ? What is the importance of different Janam Sakhis ?)
अथवा
किन्हीं तीन जन्म साखियों के बारे में चर्चा करें।
(Throw light on any three Janam Sakhis.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को जन्म, साखियाँ कहा जाता है।
- पुरातन जन्म साखी का संपादन 1926 ई० में भाई वीर सिंह जी ने किया था जो सबसे प्राचीन और विश्वसनीय है।
- मेहरबान वाली जन्म साखी की रचना पृथी चंद के सुपुत्र मेहरबान ने की थी। उसने गुरु नानक साहिब जी की उदासियों का विस्तृत वर्णन किया है।
- भाई बाला की जन्म साखी की रचना कब और किसने की, इस संबंधी इतिहासकारों में काफ़ी मतभेद है। इस जन्म साखी में बहुत-सी मनघढंत बातों को सम्मिलित किया गया है।
- भाई मनी सिंह जी की जन्मसाखी-इसे ज्ञान रतनावली भी कहा जाता है। इसे भाई मनी सिंह जी ने लिखा था। यह बहुत विश्वसनीय है।
प्रश्न 5.
मेहरबान वाली जन्म साखी पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a short note on Janam Sakhi of Meharban.)
उत्तर-
मेहरबान गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद के पुत्र थे। वह बड़े विद्वान् थे। उन्होंने गुरु नानक देव जी की उदासियों और करतारपुर में गुरु जी के निवास के संबंध में बहुत विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। यह जन्म साखी काफ़ी विश्वसनीय है। इसमें घटनाओं का वर्णन क्रमानुसार दिया गया है। इसमें दिए गए व्यक्तियों तथा स्थानों के नाम आमतौर पर विश्वसनीय हैं। इसमें मनघडंत कहानियों का बहुत कम वर्णन किया गया है।
प्रश्न 6.
भाई गुरदास जी की वारों के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Vars of Bhai Gurdas Ji ?)
अथवा
भाई गरदास जी भल्ला पर एक नोट लिखें। (Write a note on Bhai Gurdas Ji Bhalla.)
उत्तर-भाई गुरदास जी भल्ला, गुरु अमर दास जी के भाई दातार चंद भल्ला जी के पुत्र थे। वह तीसरे, चौथे, पाँचवें तथा छठे गुरुओं के समकालीन थे। वह एक उच्चकोटि के कवि एवं लेखक थे। उन द्वारा रचित वारों की संख्या 39 है। ये वारें पंजाबी भाषा में लिखी गई हैं। गुरु ग्रंथ साहिब जी के शब्दों के भावों को अच्छी प्रकार से समझने के लिए इन वारों का अध्ययन करना आवश्यक है। ऐतिहासिक पक्ष से 1 तथा 11वीं वार बहुत महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 7.
पंजाब के इतिहास के स्रोत के रूप में ‘आदि ग्रंथ साहिब जी’ का क्या महत्त्व है ? (Describe the importance of Adi Granth Sahib Ji as a source of the History of Punjab.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी की विशेषताओं पर एक नोट लिखें।
(Write a note on the special features of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी और इसके ऐतिहासिक महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Give a brief description of Adi Granth Sahib Ji and its historical importance.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करों। (Briefly explain the significance of Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी को सिख धर्म का सर्वोच्च प्रमाणित और पावन ग्रंथ का सम्मान प्राप्त है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिब और नवम गुरु, गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी सम्मिलित है। इसमें भक्तों, मुस्लिम संतों, सूफी संतों और भटों इत्यादि की वाणी को भी सम्मिलित किया गया है। हमें आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी के गहन अध्ययन से उस काल के राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 8.
दशम ग्रंथ साहिब जी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Dasam Granth Sahib Ji ?)
अथवा
दशम ग्रंथ साहिब जी पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Dasam Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी तथा उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से अत्याचारियों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए सिखों में जोश उत्पन्न करना था। यह कुल 18 ग्रंथों का संग्रह है। इनमें से ‘जापु साहिब’, ‘अकाल उस्तति’, ‘चंडी की वार’, ‘चौबीस अवतार’, ‘शबद हज़ारे’, ‘शस्त्रनामा’, ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। बचित्तर नाटक और ज़फ़रनामा ऐतिहासिक पक्ष से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 9.
गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन में ‘बचित्तर नाटक’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Bachittar Natak in the life of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
‘बचित्तर नाटक’ पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Bachittar Natak.)
उत्तर-
बचित्तर नाटक गुरु गोबिंद सिंह जी की एक अद्वितीय रचना है। इसका संबंध गुरु गोबिंद सिंह के जीवन वृत्तांत के साथ है। इसमें परमात्मा की स्तुति की गई है। संसार की रचना कैसे हुई, बेदी वंश तथा सोढी वंश के बारे विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के बारे में भी प्रकाश डाला गया है। इसमें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन के उद्देश्य का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 10.
18वीं सदी में पंजाबी में लिखी गई ऐतिहासिक रचनाओं का संक्षिप्त विवरण दें। (Give a brief account of historical sources written in 18th century in Punjabi.)
उत्तर-
- गुरसोभा-गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह के एक प्रसिद्ध दरबारी कवि सेनापत ने की थी। इस ग्रंथ में उसने 1699 ई० से लेकर 1708 ई० तक की आँखों-देखी घटनाओं का वर्णन किया है।
- सिखाँ दी भगतमाला-इस ग्रंथ की रचना भाई मनी सिंह जी ने 18वीं शताब्दी में की थी। इसमें सिख गुरुओं के जीवन, प्रमुख सिखों के नाम, जातियों तथा उनके निवास स्थान के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।
- प्राचीन पंथ प्रकाश-इस पुस्तक की रचना 1841 ई० में रत्न सिंह भंगू ने की थी। इस ग्रंथ में गुरु नानक साहिब जी से लेकर 18वीं शताब्दी के इतिहास का वर्णन किया गया है।
- बंसावलीनामा-बंसावलीनामा की रचना 1780 ई० में केसर सिंह छिब्बड़ ने की थी। उसमें 18वीं सदी के मध्य तक के इतिहास का वर्णन किया गया है।
- महिमा प्रकाश कविता-इसकी रचना 1776 ई० में सरूप दास भल्ला ने की थी। इसमें सिख गुरुओं के इतिहास का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 11.
गुरसोभा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Gursobha.)
उत्तर-
गुरसोभा की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रसिद्ध दरबारी कवि सेनापत ने 1741 ई० में की थी। इस ग्रंथ में लेखक ने 1699 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, से लेकर 1708 ई० तक जब वह ज्योति-जोत समाए थे, की आँखों देखी घटनाओं का वर्णन किया था। इसकी गणना गुरु गोबिंद सिंह जी के महत्त्वपूर्ण स्रोतों में की जाती है।
प्रश्न 12.
सिखाँ दी भगतमाला के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Sikhan Di Bhagatmala ?)
उत्तर-
इस ग्रंथ की रचना 18वीं शताब्दी के एक महान् सिख भाई मनी सिंह जी ने की थी। इसमें प्रथम 6 सिख गुरुओं, उनके समय के प्रसिद्ध सिखों, उनकी. जातियों एवं निवास स्थानों के बारे में विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त इसमें उस समय की सामाजिक दशा के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई है।
प्रश्न 13.
बंसावलीनामा पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a short note on Bansavalinama.)
उत्तर-
इस ग्रंथ की रचना केसर सिंह छिब्बड़ ने 1780 ई० में की थी। इसमें 14 अध्याय हैं। प्रथम 10 अध्याय 10 सिख गुरुओं से संबंधित हैं। शेष 4 अध्याय चार साहिबजादों की शहीदी, बंदा सिंह बहादुर, माता सुंदरी जी तथा खालसा पंथ से संबंधित हैं। लेखक गुरु गोबिंद सिंह जी का समकालीन था। इसलिए उसने अनेक आँखों देखी घटनाओं का वर्णन किया है। यह 18वीं शताब्दी के सिख इतिहास के लिए हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है।
प्रश्न 14.
प्राचीन पंथ प्रकाश का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Prachin Panth Prakash.) .
उत्तर-
प्राचीन पंथ प्रकाश एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक रचना है। इस ग्रंथ की रचना 1841 ई० में रत्न सिंह भंगू ने की थी। इसमें लेखक ने गुरु नानक देव जी से लेकर 18वीं शताब्दी तक के इतिहास में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है। इसमें मुग़ल-सिख संबंधों, मराठा-सिख संबंधों तथा अफ़गान-सिख संबंधों के बारे में महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक जानकारी प्रदान की गई है। यह प्रथम ऐतिहासिक पुस्तक थी जिसको किसी सिख ने लिखा।
प्रश्न 15.
पंजाब के इतिहास से संबंधित फ़ारसी के स्रोतों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account important Persian sources of the History of Punjab.)
अथवा
फ़ारसी के तीन मुख्य ऐतिहासिक स्रोतों का संक्षेप में वर्णन करें जो कि पंजाब के इतिहास के संकलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
(Give a brief mention of three important Persian sources which are essential for composing the History of Punjab.).
अथवा
पंजाब के इतिहास के तीन प्रसिद्ध फ़ारसी के स्रोतों का विवरण दों। (Give an account of three important Persian sources of the History of Punjab.)
उत्तर-
- आइन-ए-अकबरी-अकबरी के सिख गुरुओं के साथ संबंधों की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारा मुख्य स्रोत है। इसकी रचना अबुल फजल ने की थी।
- जंगनामा की रचना काजी नूर मुहम्मद ने की थी। इस पुस्तक में उसने अब्दाली के आक्रमण का आँखों देखा हाल और सिखों की युद्ध विधि और चरित्र के संबंध में वर्णन किया है।
- उमदत-उत-तवारीख का लेखक महाराजा रणजीत सिंह का दरबारी सोहन लाल सूरी था। यह ग्रंथ महाराजा के काल की ऐतिहासिक जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- तवारीख-ए-सिखाँ का लेखक खुशवक्त राय था। यह गुरु नानक साहिबं से लेकर 1811 ई० तक के इतिहास को जानने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- चार बाग़-ए-पंजाब का लेखक गणेश दास वडेहरा था। यह महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल का एक बहुमूल्य स्रोत है।
प्रश्न 16.
चार बाग़-ए-पंजाब पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Char Bagh-i-Punjab. )
उत्तर-
इस पुस्तक की रचना 1855 ई० में गणेश दास वडेहरा ने की थी। वह महाराजा रणजीत सिंह के अंतर्गत कानूनगो के पद पर कार्यरत था। इस पुस्तक में लेखक ने महाराजा रणजीत सिंह से लेकर 1849 ई० तक पंजाब की घटनाओं का वर्णन किया है। इस पुस्तक में लेखक ने महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित आँखो-देखी घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन किया है। इसमें पंजाब की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक दशा पर भी प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न 17.
पंजाब के इतिहास की जानकारी देने वाले महत्त्वपूर्ण अंग्रेज़ी स्रोतों पर प्रकाश डालें। (Mention important English sources which throw light on the History of Punjab.)
अथवा
अंग्रेज़ी में लिखे पंजाब के इतिहास के बारे में जानकारी देने वाले तीन महत्त्वपूर्ण स्रोतों पर प्रकाश डालें।
(Throw light on three important sources of information on Punjab History written in English.)
उत्तर-
- द कोर्ट एंड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह-इस पुस्तक में कैप्टन विलियम उसबोर्न ने महाराजा रणजीत सिंह के दरबार की भव्यता के संबंध में तथा सेना के संबंध में बहुत अधिक प्रकाश डाला है।
- हिस्ट्री ऑफ़ द पंजाब-इस पुस्तक में डॉक्टर मरे ने महाराजा रणजीत सिंह तथा उसके उत्तराधिकारियों से संबंधित बहुमूल्य स्रोत है।
- हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्- इस पुस्तक में डॉक्टर मैकग्रेगर ने महाराजा रणजीत सिंह तथा सिखों की अंग्रेजों के साथ लड़ाइयों से संबंधित बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- स्कैच आफ़ द सिखस-इस पुस्तक में मैल्कोम ने सिख इतिहास की संक्षेप जानकारी दी है।
- द पंजाब-इस पुस्तक में स्टाइनबख ने महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों की महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है।
प्रश्न 18.
भारतीय अंग्रेज सरकार के रिकॉर्ड के ऐतिहासिक महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the historical importance of Records of British Indian Government.)
उत्तर-
भारतीय अंग्रेज़ सरकार के रिकॉर्ड महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के आरंभ से लेकर सिख राज्य के पतन तक (1799-1849 ई०) के इतिहास को जानने के लिए हमारा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसमें से अधिकतर रिकॉर्ड भारत के राष्ट्रीय पुरालेख विभाग, दिल्ली में पड़े हुए हैं। इन रिकॉर्डों से हमें अंग्रेज़-सिख संबंधों, रणजीत सिंह के राज्य के बारे, अंग्रेज़ों के सिंध तथा अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों के बारे में बहुत विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 19.
पंजाब के इतिहास के निर्माण में सिक्कों के महत्त्व की चर्चा करें। (Examine the importance of coins in the construction of the History of the Punjab.)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास के निर्माण में सिक्कों का विशेष महत्त्व है। पंजाब के हमें मुग़लों, बंदा सिंह बहादुर, जस्सा सिंह आहलूवालिया, अहमद शाह अब्दाली तथा महाराजा रणजीत सिंह के सिक्के मिलते हैं। ये सिक्के विभिन्न धातुओं से बने हुए हैं। इनमें से अधिकाँश सिक्के लाहौर, पटियाला एवं चंडीगढ़ के अजायबघरों में पड़े हैं। ये सिक्के तिथियों तथा शासकों संबंधी विवरण पर बहुमूल्य प्रकाश डालते हैं। अतः ये सिक्के पंजाब के इतिहास की कई समस्याओं को सुलझाने में हमारी सहायता करते हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)
प्रश्न 1.
पंजाब का इतिहास लिखने के संबंध में इतिहासकारों के समक्ष आने वाली किसी एक कठिनाई का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाबियों को इतिहास लिखने में रुचि नहीं थी।
प्रश्न 2.
पंजाब के इतिहास से संबंधित सिखों का कोई एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बताएँ।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी।
प्रश्न 3.
आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना कब की गई थी?
उत्तर-
1604 ई०।
प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किसने किया था?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 5.
सिखों का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ कौन-सा है?
अथवा
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक (ग्रंथ साहिब) का नाम क्या है?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी।
प्रश्न 6.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब किया गया था?
उत्तर-
1721 ई० में।
प्रश्न 7.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन किसने किया था?
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी।
प्रश्न 8.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संबंध किस गुरु से है?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी।
प्रश्न 9.
दशम ग्रंथ साहिब जी में शामिलं गुरु गोबिंद सिंह जी की किसी एक रचना का नाम बताएँ।
उत्तर-
बचित्तर नाटक।
प्रश्न 10.
बचित्तर नाटक की रचना किसने की?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
प्रश्न 11.
बचित्तर नाटक क्या है?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा।
प्रश्न 12.
जफ़रनामा क्या है?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को फ़ारसी में लिखा गया एक पत्र।
प्रश्न 13.
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को ज़फ़रनामा किस स्थान से लिखा गया ?
उत्तर-
दीना काँगड़।
प्रश्न 14.
जफ़रनामा को किस भाषा में लिखा गया ?
उत्तर-
फ़ारसी में।
प्रश्न 15.
भाई गुरदास जी कौन थे ?
उत्तर-
दातार चंद भल्ला के पुत्र।
प्रश्न 16.
भाई गुरदास जी ने कुल कितनी वारों की रचना की?
उत्तर-
39.
प्रश्न 17.
जन्म साखियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ये वे कथाएँ हैं जो कि गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित हैं।
प्रश्न 18.
किसी एक जन्म साखी का नाम लिखें।
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी।
प्रश्न 19.
सर्वाधिक विश्वसनीय जन्म साखी कौन-सी है?
उत्तर-
पुरातन जन्म साखी।
प्रश्न 20.
ज्ञान रत्नावली का श्यथिता कौन था?
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी।
प्रश्न 21.
भाई बाला जी कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के बचपन के साथी।
प्रश्न 22.
हुक्मनामे क्या हैं ?
उत्तर-
‘हुक्मनामे’ का अर्थ है-आज्ञा पत्र।
प्रश्न 23.
गुरु तेग़ बहादुर जी के कितने हुक्मनामे प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर-
23.
प्रश्न 24.
सर्वाधिक हुक्मनामे किस गुरु साहिबान के प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी।
प्रश्न 25.
गुरु गोबिंद सिंह जी के कितने हुक्मनामे प्राप्त हुए हैं ?
उत्तर-
34.
प्रश्न 26.
अब तक प्राप्त हुक्मनामों की कुल संख्या बताएँ।
उत्तर-
89.
प्रश्न 27.
सेनापत कौन था ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबार का एक प्रसिद्ध कवि।
प्रश्न 28.
सिखाँ दी भमतमाला पुस्तक की रचना किसने की ?
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी ।
प्रश्न 29.
रत्न सिंह भंगू ने प्राचीन पंथ प्रकाश की रचना कब की थी ?
उत्तर-
1841 ई० ।
प्रश्न 30.
प्राचीन पंथ प्रकाश की रचना किसने की ?
उत्तर-
रत्न सिंह भंगू।
प्रश्न 31.
गुरु प्रताप सूरज ग्रंथ की रचना किसने की ?
उत्तर-
भाई संतोख सिंह जी।
प्रश्न 32.
‘बंसावलीनामा’ की रचना किसने की थी ?
उत्तर-
केसर सिंह छिब्बड़।
प्रश्न 33.
तुजक-ए-बाबरी का लेखक कौन था ?
उत्तर-
बाबर।
प्रश्न 34.
अकबर के दरबार का सबसे प्रसिद्ध विद्वान् कौन था ?
उत्तर-
अबुल फज़ल.
प्रश्न 35.
आइन-ए-अकबरी तथा अकबरनामा की रचना किसने की ?
उत्तर-
अबुल फज़ल।
प्रश्न 35.
जहाँगीर की आत्म-कथा का नाम लिखो
उत्तर-
तुज़क-ए-जहाँगीरी।
प्रश्न 37.
श्री गुरुसोभा का लेखक कौन था ?
उत्तर-
सेनापत।
प्रश्न 38.
खाफ़ी खाँ द्वारा रचित प्रसिद्ध पुस्तक का नाम बताएँ।
उत्तर-
मुंतखिब-उल-लुबाब।
प्रश्न 39.
जंगनामा का लेखक कौन था?
अथवा
‘जंगनामा’ पुस्तक की रचना किसने की ?
उत्तर-
काज़ी नूर मुहम्मद।
प्रश्न 40.
महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल से संबंधित जानकारी देने वाले फ़ारसी के किसी एक प्रसिद्ध स्रोत के नाम बताएँ ।
उत्तर-
उमदत-उत-तवारीख।
प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह का दरबारी इतिहासकार कौन था?
अथवा
उमदत-उत-तवारीख का लेखक कौन था ?
उत्तर-
सोहन लाल सूरी।
प्रश्न 42.
सोहन लाल सूरी द्वारा रचित प्रसिद्ध रचना का नाम लिखें।
उत्तर-
उमदत-उत तवारीख।
प्रश्न 43.
जफ़रनामा-ए-रणजीत सिंह का लेखक कौन था ?
उत्तर-
दीवान अमरनाथ।
प्रश्न 44.
तवारीख-ए-सिखाँ की रचना किसने की ?
उत्तर-
खुशवक्त राय ने।
प्रश्न 45.
तवारीख-ए-पंजाब का लेखक कौन था ?
उत्तर-
बूटे शाह।
प्रश्न 46.
चार-बाग़-ए-पंजाब पुस्तक की रचना किसने की ?
उत्तर-
गणेश दास वडेहरा।
प्रश्न 47.
भट्ट वहियें क्या थी ?
उत्तर-
भट्टों द्वारा संकलित ब्यौरा।
प्रश्न 48.
भट्ट वहियों की खोज किसने की ?
उत्तर-
ज्ञानी गरजा सिंह ने।
प्रश्न 49.
खालसा दरबार के रिकॉर्ड का संकलन किसने किया था ?
उत्तर-
सीता राम कोहली।
प्रश्न 50.
खालसा दरबार के रिकॉर्ड से हमें किस काल के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह।
प्रश्न 51.
खालसा दरबार के रिकॉर्ड किस भाषा में हैं ?
उत्तर-
फ़ारसी।
प्रश्न 52.
जे० डी० कनिंघम की प्रसिद्ध रचना का नाम बताएँ।
उत्तर-
हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्।
प्रश्न 53.
स्कैच ऑफ द सिखस् का लेखक कौन था ?
उत्तर-
मैल्कोम।
प्रश्न 54.
द कोर्ट ऑफ कैंप ऑफ रणजीत सिंह का लेखक कौन था ?
उत्तर-
विलियम उसबोर्न।
प्रश्न 55.
डाक्टर मरे ने किस पुस्तक की रचना की ?
उत्तर-
हिस्ट्री ऑफ द पंजाब।
प्रश्न 56.
सिख गुरुओं द्वारा निर्मित किसी एक प्रसिद्ध नगर का नाम बताएँ।
उत्तर-
अमृतसर।
प्रश्न 57.
सिखों के सर्वप्रथम सिक्के किसने जारी किए थे ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने।
प्रश्न 58.
बंदा सिंह बहादुर ने किन गुरुओं के नाम पर सिक्के चलाए ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी तथा गुरु गोबिंद सिंह जी।
(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)
प्रश्न 1.
सिख गुरु साहिबान के इतिहास से संबंधित हमारा मुख्य स्रोत…….है।
उत्तर-
(जन्म साखियाँ)
प्रश्न 2.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन……..में हुआ।
उत्तर-
(1604 ई०)
प्रश्न 3.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन……ने किया था।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब जी)
प्रश्न 4.
………ने दशम ग्रंथ साहिब का संकलन किया।
उत्तर-
(भाई मनी सिंह जी)
प्रश्न 5.
दशम ग्रंथ का संबंध……..से है।
उत्तर-
(गुरु गोबिंद सिंह जी)
प्रश्न 6.
गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा का नाम……है।
उत्तर-
(बचित्तर नाटक)
प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखे गए पत्र का नाम……..है।
उत्तर-
(ज़फ़रनामा)
प्रश्न 8.
भाई गुरदास जी ने कुल…….वारों की रचना की।
उत्तर-
(39)
प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को……कहा जाता है।
उत्तर-
(जन्म साखियाँ)
प्रश्न 10.
भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी को………भी कहा जाता है।
उत्तर-
(ज्ञान रत्नावली)
प्रश्न 11.
हुक्मनामों से भाव………है।
उत्तर-
(आज्ञा-पत्र)
प्रश्न 12.
……..ने श्री गुरसोभा की रचना की।
उत्तर-
(सेनापत)
प्रश्न 13.
भाई मनी सिंह जी ने……..की रचना की।
उत्तर-
(सिखाँ दी भगत माला)
प्रश्न 14.
प्राचीन पंथ प्रकाश का लेखक………था।
उत्तर-
(रतन सिंह भंगू)
प्रश्न 15.
तवारीख गुरु खालसा का लेखक……….था।
उत्तर-
(ज्ञानी ज्ञान सिंह)
प्रश्न 16.
गुरु प्रताप सूरज ग्रंथ की रचना……….ने की।
उत्तर-
(भाई संतोख सिंह)
प्रश्न 17.
ज्ञान रत्नावली का लेखक……….था।
उत्तर-
(भाई मनी सिंह जी)
प्रश्न 18.
बाबर की आत्मकथा को……..कहा जाता है।
उत्तर-
(तुज़क-ए-बाबरी)
प्रश्न 19.
……….ने आइन-ए-अकबरी और अकबर नामा की रचना की।
उत्तर-
(अबुल फज़ल)
प्रश्न 20.
तुज़क-ए-जहाँगीरी…….की आत्मकथा है।
उत्तर-
(जहाँगीर)
प्रश्न 21.
……….ने मुतंखिब-उल-लुबाब की रचना की।
उत्तर-
(खाफी खाँ)
प्रश्न 22.
……की रचना काजी नूर मुहम्मद ने की थी।
उत्तर-
(जंगनामा)
प्रश्न 23.
……..महाराजा रणजीत सिंह का दरबारी इतिहासकार था।
उत्तर-
(सोहन लाल सूरी)
प्रश्न 24.
सोहन लाल सूरी ने…….की रचना की।
उत्तर-
(उमदत-उत-तवारीख)
प्रश्न 25.
बूटे शाह ने…….की रचना की।
उत्तर-
(तवारीख-ए-पंजाब)
प्रश्न 26.
ज़फ़रनामा-ए-रणजीत सिंह की रचना…..ने की थी।
उत्तर-
(दीवान अमरनाथ)
प्रश्न 27.
गणेश दास वडेहरा ने……..की रचना की।
उत्तर-
(चार बाग़-ए-पंजाब)
प्रश्न 28.
द कोर्ट एंड कैंप ऑफ रणजीत सिंह का लेखक……..था।
उत्तर-
(विलियम उसबोर्न)
प्रश्न 29.
जे० डी० कनिंघम ने…….की रचना की।
उत्तर-
(हिस्ट्री ऑफ द सिखस्)
प्रश्न 30.
…………ने सिख राज के प्रथम सिक्के जारी किए।
उत्तर-
(बंदा सिंह बहादुर)
(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)
नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—
प्रश्न 1.
आदि ग्रंथ साहिब जी को सिखों का सर्वोच्च और पवित्र ग्रंथ माना जाता है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 2.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 3.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 4.
गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लिखी गई आत्मकथा का नाम ज़फ़रनामा है।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 5.
भाई गुरदास जी ने 39 वारों की रचना की।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन के साथ संबंधित कथाओं को जन्म साखियाँ कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 7.
पुरातन जन्म साखी का संपादन 1926 ई० में भाई वीर सिंह जी ने किया था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 8.
भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी को ज्ञान रत्नावली भी कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 9.
हुक्मनामे वह आज्ञा पत्र थे जो सिख गुरुओं या गुरु घरानों के साथ संबंधित सदस्यों ने सिख संगतों के नाम पर जारी किए।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 10.
श्री गुरसोभा की रचना सेनापत ने 1741 ई० में की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 11.
सिखाँ दी भगतमाला की रचना भाई मनी सिंह ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 12.
गुरप्रताप सूरज ग्रंथ की रचना भाई संतोख सिंह ने की।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 13.
प्राचीन पंथ प्रकाश का लेखक ज्ञानी ज्ञान सिंह था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 14.
बाबर की आत्मकथा को तुज़क-ए-बाबरी कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 15.
माइन-ए-अकबरी और अकबरनामा का लेखक अबुल फज़ल था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 16.
तुज़क-ए-जहाँगीरी की रचना शाहजहाँ ने की थी।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 17.
खुलासत-उत-तवारीख की रचना सुजान राय भंडारी ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 18.
जंगनामा का लेखक काजी नूर मुहम्मद था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 19.
उमदत-उत-तवारीख का लेखक सोहन लाल सूरी था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 20.
ज़फ़रनामा-ए-रणजीत सिंह की रचना दीवन अमरनाथ ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 21.
चार बाग-ए-पंजाब की रचना गणेश दास वडेहरा ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 22.
खालसा दरबार रिकॉर्ड गुरमुखी भाषा में लिखा गया।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 23.
‘स्केच ऑफ द सिखस्’ की रचना मैल्कोम ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 24.
‘द कोर्ट एंड कैंप ऑफ रणजीत सिंह’ की रचना विलियम उसबोर्न ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 25.
‘हिस्ट्री ऑफ द सिखस्’ का लेखक जे० डी० कनिंघम था।
उत्तर-
ठीक
(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):
नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—
प्रश्न 1.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किसने किया ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 2.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब हुआ ?
(i) 1601 ई० में
(ii) 1602 ई० में
(iii) 1604 ई० में
(iv) 1605 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 3.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन किसने किया था ?
(i) गुरु गोबिंद सिंह जी ने
(ii) भाई मनी सिंह जी ने
(iii) बाबा दीप सिंह जी ने
(iv) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 4.
दशम ग्रंथ साहिब जी का संबंध किस गुरु के साथ है ?
(i) पहले गुरु के साथ
(ii) तीसरे गुरु के साथ
(iii) पाँचवें गुरु के साथ
(iv) दशम गुरु के साथ।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 5.
ज़फ़रनामा किस गुरु साहिब ने लिखा था ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने ।
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 6.
बचित्तर नाटक क्या है ?
(i) गुरु नानक देव जी की आत्म-कथा
(ii) गुरु हरगोबिंद जी की आत्म-कथा
(iii) गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्म-कथा
(iv) बंदा सिंह बहादर की आत्म-कथा।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 7.
भाई गुरदास जी ने कुल कितनी वारों की रचना की ?
(i) 15
(ii) 20
(iii) 29
(iv) 39
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 8.
पुरातन जन्म साखी का संपादन किसने किया ?
(i) भाई काहन सिंह नाभा ने
(ii) भाई वीर सिंह ने
(iii) भाई मनी सिंह जी ने
(iv) मेहरबान ने।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 9.
ज्ञान रत्नावली का रचयिता कौन था ?
(i) केसर सिंह छिब्बर
(ii) भाई मनी सिंह जी
(iii) भाई बाला जी
(iv) भाई गुरदास जी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 10.
मेहरबान वाली जन्म साखी का लेखक कौन था ?
(i) मनोहर दास
(ii) अकिल दास
(iii) भाई बाला जी
(iv) भाई गुरदास जी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 11.
हुक्मनामे क्या हैं ?
(i) सिख गुरुओं के आज्ञा-पत्र
(ii) सबसे प्रसिद्ध जन्म साखी
(iii) मुग़ल बादशाहों के आदेश
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 12.
श्री गुरसोभा का रचयिता कौन था ?
(i) भाई मनी सिंह जी
(ii) रत्न सिंह भंगू
(iii) सेनापत
(iv) ज्ञानी ज्ञान सिंह।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 13.
बंसावली नामा की रचना किसने की थी ?
(i) केसर सिंह छिब्बड़ ने
(ii) भाई मनी सिंह जी ने
(iii) भाई गुरदास जी ने
(iv) रतन सिंह भंगू ने।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 14.
सिखाँ दी भगतमाला की रचना किसने की ?
(i) भाई मनी सिंह जी ने
(ii) भाई दया सिंह ने
(iii) भाई संतोख सिंह ने
(iv) रत्न सिंह भंगू ने।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 15.
गुरु प्रताप सूरज ग्रंथ की रचना किसने की ?
(i) सरूप दास भल्ला
(ii) भाई संतोख सिंह
(iii) रत्न सिंह भंगू
(iv) ज्ञानी ज्ञान सिंह।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 16.
रल सिंह भंगू ने प्राचीन पंथ प्रकाश की रचना कब की थी ?
(i) 1641 ई० में
(ii) 1741 ई० में
(ii) 1841 ई० में ।
(iv) 1849 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 17.
तवारीख गुरु खालसा का लेखक कौन था ?
(i) ज्ञानी ज्ञान सिंह
(ii) भाई संतोख सिंह
(iii) रत्न सिंह भंगू
(iv) भाई मनी सिंह जी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 18.
तुजक-ए-बाबरी का संबंध किस बादशाह से है ?
(i) हुमायूँ से
(ii) बाबर से
(iii) जहाँगीर से
(iv) अकबर से।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 19.
बाबर ने तुजक-ए-बाबरी की रचना किस भाषा में की थी ?
(i) फ़ारसी भाषा
(ii) तुर्की भाषा
(ii) उर्दू भाषा
(iv) अरबी भाषा।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 20.
आइन-ए-अकबरी तथा अकबरनामा की रचना किसने की ?
(i) अबुल फज़ल
(ii) सुजान राय भंडारी
(iii) सोहन लाल सूरी
(iv) काजी नूर मुहम्मद।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 21.
तुज़क-ए-जहाँगीरी की रचना किसने की ?
(i) बाबर
(ii) जहाँगीर
(iii) शाहजहाँ
(iv) औरंगजेब।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 22.
खुलासत-उत-तवारीख की रचना किसने की ?
(i) सुजान राय भंडारी
(ii) काजी नूर मुहम्मद
(iii) खाफ़ी खाँ
(iv) सोहन लाल सूरी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 23.
खाफी खाँ ने किस प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की थी ?
(i) दबिस्तान-ए-मज़ाहिब
(ii) जंगनामा
(iii) खुलासत-उत-तवारीख
(iv) मुंतखिब-उल-लुबाब।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 24.
जंगनामा की रचना किसने की ?
(i) सोहन लाल सूरी
(ii) काजी नूर मुहम्मद
(iii) खाफ़ी खाँ
(iv) अबुल फज़ल।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 25.
महारा जा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार सोहन लाल सूरी ने किस प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की थी ?
(i) उमदत-उत-तवारीख
(ii) तवारीख-ए-सिखाँ
(iii) तवारीख-ए-पंजाब
(iv) इबरतनामा।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 26.
खुशवक्त राय ने तवारीख-ए-सिखाँ की रचना कब की थी ?
(i) 1764 ई० में
(ii) 1784 ई० में
(iii) 1811 ई० में
(iv) 1821 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 27.
तवारीख-ए-सिखाँ की रचना किसने की ?
(i) दीवान अमरनाथ
(ii) खुशवक्त राय
(iii) सोहन लाल सूरी
(iv) बूटे शाह।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 28.
ज़फ़रनामा-ए-रणजीत सिंह के रचयिता कौन थे ?
(i) सोहन लाल सूरी
(ii) दीवान अमरनाथ
(iii) अलाउदीन मुफ़ती
(iv) काजी नूर मुहम्मद।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 29.
गणेश दास वडेहरा की प्रसिद्ध पुस्तक का क्या नाम था ?
(i) तवारीख-ए-पंजाब
(ii) तवारीख-ए-सिखाँ
(iii) चार बाग़-ए-पंजाब
(iv) इबरतनामा।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 30.
खालसा दरबार रिकॉर्ड किस भाषा में है ?
(i) अंग्रेज़ी
(ii) फ़ारसी
(iii) उर्दू
(iv) पंजाबी।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 31.
मैल्कोम ने स्केच ऑफ द सिखस् की रचना कब की थी ?
(i) 1802 ई० में
(ii) 1812 ई० में
(iii) 1822 ई० में
(iv) 1832 ई० में।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 32.
द कोर्ट एंड कैंप ऑफ रणजीत सिंह नाम की प्रसिद्ध पुस्तक का लेखक कौन था ?
(i) एच० टी० प्रिंसेप
(ii) विलियम उसबोर्न
(iii) डॉक्टर मैकग्रेगर
(iv) जे० डी० कनिंघम।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 33.
निम्नलिखित में से हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस् का लेखक कौन था ?
(i) जे० डी० कनिंघम
(ii) अलैग्जेंडर बर्नज
(iii) डॉक्टर मरे
(iv) मैलकोम।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 34.
सिखों के सर्वप्रथम सिक्के किसने जारी किए थे ?
(i) गुरु गोबिंद सिंह जी ने
(ii) बंदा सिंह बहादुर ने
(iii) जस्सा सिंह आहलूवालिया
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने।
उत्तर-
(ii)
Long Answer Type Question
प्रश्न 1.
पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों की रचना करते समय पेश आने वाली मुश्किलों के बारे में बताएं।
(Explain the problems being faced for constructing the history of Punjab.)
अथवा
पंजाब के इतिहास को समझने में इतिहासकारों को किन छः मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ?
(Which six problems are faced by the historians in understanding the history of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों के संबंध में हमें कौन-सी मुख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(What are the main problems regarding the historical sources of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों के संबंध में हमें कौन-सी छः मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ?
(What six difficulties do we face regarding the historical sources of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास का संकलन करने के लिए विद्यार्थियों को कौन-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(What problems are faced by the students in composing the history of the Punjab ?)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास की रचना करने में इतिहासकारों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला-औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद पंजाब में एक ऐसा दौर आया जो पूरी तरह से अशाँति तथा अराजकता से भरा हुआ था। सिखों को अपनी रक्षा के लिए पहाड़ों एवं वनों में जाकर शरण लेनी पड़ती थी। अतः ऐसे वातावरण में इतिहास लेखन का कार्य कैसे संभव था।
2. मुस्लिम इतिहासकारों के पक्षपातपूर्ण विचार-पंजाब के इतिहास को लिखने में सबसे अधिक जिन स्रोतों की सहायता ली गई है वे हैं फ़ारसी में लिखे गए ग्रंथ। इन ग्रंथों को मुसलमान लेखकों ने लिखा है जो सिखों के कट्टर दुश्मन थे। इन ग्रंथों को बड़ी जाँच-पड़ताल से पढ़ना पड़ता है क्योंकि इन इतिहासकारों ने अधिकतर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। अतः इन ग्रंथों को पूर्णतः विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।
3. ऐतिहासिक स्रोतों का नष्ट होना-18वीं शताब्दी के लगभग 7वें दशक तक पंजाब में अशांति एवं अराजकता का वातावरण रहा। 1739 ई० में नादिर शाह तथा 1747 से 1767 ई० तक अहमद शाह अब्दाली के 8 आक्रमणों के कारण पंजाब की स्थिति अधिक शोचनीय हो गई थी। ऐसे समय जब सिखों के अनेक धार्मिक ग्रंथ नष्ट हो गए। इस कारण सिखों को अपने अनेक अमूल्य ग्रंथों से वंचित होना पड़ा।
4. अखोजित ऐतिहासिक स्रोत–अनेक सिख परिवारों तथा जागीरदारों के पास सिख मिसलों तथा महाराजा रणजीत सिंह के समय के पट्टे, निजी चिट्टियाँ, भट्ट वहियाँ तथा शास्त्र इत्यादि संदूकों में बंद पड़े हैं। ये लोग इनकी ऐतिहासिक महत्ता से वाकिफ नहीं हैं। इस कारण ये स्रोत अभी तक बिना खोज के ही पड़े हैं।
5. पंजाब मुग़ल साम्राज्य का एक भाग-पंजाब 1752 ई० तक मुग़ल साम्राज्य का भाग रहा था। इस कारण इसका कोई अलग से इतिहास न लिखा गया। आधुनिक इतिहासकारों को मुग़ल काल में लिखे गए साहित्य से पंजाब की बहुत कम जानकारी प्राप्त होती है। अतः पर्याप्त विवरण के अभाव में पंजाब के इतिहास की वास्तविक तस्वीर पेश नहीं की जा सकती।
6. पंजाब का बँटवारा-1947 ई० में भारत के बँटवारे के साथ-साथ पंजाब को भी दो भागों में विभाजित किया गया। इस बँटवारे के कारण अनेक ऐतिहासिक भवन एवं बहुमूल्य ग्रंथ पाकिस्तान में ही रह गए। इन के अतिरिक्त विभाजन के समय हुई भयंकर लूटमार के कारण बहुत-से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।
प्रश्न 2.
हुक्मनामों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a brief note on Hukamnamas.)
उत्तर-
हुक्मनामे वे आज्ञा-पत्र थे जो सिख गुरुओं अथवा गुरु वंश से संबंधित सदस्यों ने समय-समय पर सिख संगतों के नाम जारी किए। इनमें से अधिकाँश में गुरु के लंगर के लिए खाद्यान्न, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए धन, लड़ाइयों के लिए घोड़े और शस्त्र इत्यादि लाने की माँग की गई थी। अब तक 89 हुक्मनामे प्राप्त हुए हैं। इनमें से 34 हुक्मनामे गुरु गोबिंद सिंह जी तथा 23 गुरु तेग़ बहादुर जी के हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामों में तिथियों का वर्णन किया गया है। ये तिथियाँ ऐतिहासिक पक्ष से महत्त्वपूर्ण हैं। एक हुक्मनामे में गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख संगतों को निर्देश दिया है कि वो गुरु घर को भेजी जाने वाली रसद अथवा धन को मसंदों द्वारा भेजने की अपेक्षा स्वयं आकर जमा करवाएँ। उन्होंने अपने अंतिम हुक्मनामे में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया था कि वह बंदा सिंह बहादुर को अपना सैनिक नेता स्वीकार करें तथा उसे यथा संभव सहयोग दें। इनके अतिरिक्त अन्य हुक्मनामे गुरु अर्जन देव जी, गुरु हरगोबिंद जी, गुरु हर राय जी, गुरु हरकृष्ण जी, माता गुजरी जी, माता सुंदरी जी, माता साहिब देवां जी, बाबा गुरदित्ता जी तथा बंदा सिंह बहादुर से संबंधित थे। ये हुक्मनामे गुरु साहिबान के समय के राजनीतिक, धार्मिक, साहित्यिक और आर्थिक दशा पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। सिख इन हुक्मनामों को परमात्मा का आदेश समझ कर उनकी पालना करते थे। इनकी पालना के लिए वे अपना जीवन कुर्बान करने में गर्व महसूस करते थे। इन हुक्मनामों को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर द्वारा छपवाया गया है।
प्रश्न 3.
सिखों के धार्मिक साहित्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोतों का वर्णन करें। ‘
(Give a brief account of the important historical sources related to religious literature of the Sikhs.)
अथवा
पंजाब के इतिहास के लिए धार्मिक साहित्य पर आधारित महत्त्वपूर्ण स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of important sources based on religious literature of Punjab History.)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास की रचना में सर्वाधिक योगदान सिखों के धार्मिक साहित्य का है। इस का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. आदि ग्रंथ साहिब जी-आदि ग्रंथ साहिब जी को सिख धर्म का सर्वोच्च प्रमाणित और पावन ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिबान्, हिंदू भक्तों, मुस्लिम सूफ़ियों और भट्टों इत्यादि की वाणी सम्मिलित है। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी सम्मिलित कर ली गई। आदि ग्रंथ साहिब जी के गहन अध्ययन से हमें उस समय के राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
2. दशम ग्रंथ साहिब जी दशम ग्रंथ साहिब जी सिखों का एक और पावन धार्मिक ग्रंथ है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था। ऐतिहासिक पक्ष से ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। बचित्तर नाटक गुरु गोबिंद सिंह जी की लिखी हुई आत्मकथा है।
3. भाई गुरदास जी की वारें-भाई गुरदास जी एक उच्च कोटि के कवि थे। उन्होंने 39 वारों की रचना की। इन वारों को गुरु ग्रंथ साहिब जी की कुंजी कहा जाता है। ऐतिहासिक पक्ष से प्रथम तथा 11वीं वार को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रथम वार में गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। 11वीं वार में प्रथम 6 गुरु साहिबान से संबंधित कुछ प्रसिद्ध सिखों तथा स्थानों का वर्णन किया गया है।
4. जन्म साखियाँ-गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को जन्म साखियाँ’ कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में बहत-सी जन्म साखियों की पंजाबी में रचना हुई। इन जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, भाई मेहरबान वाली जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण
5. हुक्मनामे–हुक्मनामे वे आज्ञा-पत्र थे जो सिख गुरुओं अथवा गुरु वंश के सदस्यों ने समय-समय पर सिख संगतों अथवा व्यक्तियों के नाम जारी किए। इनमें से अधिकाँश में गुरु के लंगर के लिए खाद्यान्न, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए धन, लड़ाइयों के लिए घोड़े और शस्त्र इत्यादि लाने की मांग की गई थी।
प्रश्न 4.
जन्म साखियों से क्या अभिप्राय है ? चार मुख्य जन्म साखियों का वर्णन करें। (What is meant by Janam Sakhis ? Explain briefly the four Janam Sakhis.)
अथवा
जन्म साखियों के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे एक नोट लिखें। . (Write a note on the historical importance of Janam Sakhis.)
अथवा
जन्म साखियाँ क्या हैं ? भिन्न-भिन्न जन्म साखियों का महत्त्व बताएँ।
(What do you understand by Janam Sakhis ? What is the importance of different Janam Sakhis ?).
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को जन्म साखियाँ कहा जाता है।—
- पुरातन जन्म साखी का संपादन 1926 ई० में भाई वीर सिंह जी ने किया था। यह जन्म साखी सबसे प्राचीन है और काफ़ी विश्वसनीय भी।
- मेहरबान वाली जन्म साखी की रचना पृथी चंद के सपत्र मेहरबान ने की थी। गुरु घर से संबंधित होने के कारण मेहरबान गुरु नानक देव जी के जीवन से भली-भाँति परिचित था। उसने गुरु नानक देव जी की उदासियों का विस्तृत वर्णन किया है। यह जन्म साखी भी काफ़ी विश्वसनीय मानी जाती है।
- भाई बाला की जन्म साखी की रचना गुरु नानक देव जी के साथी बाला जी ने की थी। इस जन्म साखी में बहुत-सी मनगढंत बातों को सम्मिलित किया गया है लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। इसलिए यह जन्म साखी अधिक लाभप्रद नहीं है।
- ज्ञान रत्नावली नामक जन्म साखी की रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी। ऐतिहासिक पक्ष से यह साखी बहुत विश्वसनीय है। इसमें ऐतिहासिक तथ्यों को सही रूप में प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 5.
भाई गुरदास जी की वारों के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Vars of Bhai Gurdas Ji ?)
अथवा
भाई गुरदास जी भल्ला पर एक नोट लिखें। (Write a note on Bhai Gurdas Ji Bhalla.)
उत्तर-
भाई गुरदास भल्ला (1581-1635 ई०) गुरु अमरदास जी के भाई दातार चंद भल्ला जी के पुत्र थे। वह तीसरे, चौथे, पाँचवें तथा छठे गुरुओं के समकालीन थे। वह एक उच्चकोटि के कवि एवं लेखक थे। उन्होंने 39 वारों की रचना की। ये वारें पंजाबी भाषा में लिखी गई हैं। गुरु ग्रंथ साहिब के शब्दों के भावों को अच्छी प्रकार से समझने के लिए इन वारों का अध्ययन करना आवश्यक है। इसी कारण इन वारों को ‘गुरु ग्रंथ साहिब की कुंजी’ कहा जाता है। इन वारों से हम सिखों के प्रथम 6 गुरुओं के जीवन, सिख धर्म की शिक्षाओं, महत्त्वपूर्ण सिखों तथा नगरों के नाम, भक्तों तथा संतों के जीवन से संबंधित बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करते हैं । ऐतिहासिक पक्ष से प्रथम तथा ग्यारहवीं वार बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रथम वार में गुरु नानक देव जी के जन्म से पूर्व संसार की दशा का वर्णन करते हुए गुरु नानक देव जी के आगमन की आवश्यकता, उनके जीवन से संबंधित प्रमुख घटनाओं की विस्तृत जानकारी दी है। इसके पश्चात् गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु हरगोबिंद जी तक का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है। ग्यारहवीं वार में गुरु साहिबान से संबंधित प्रमुख सिखों के बारे में, उनके नामों के बारे में, उनके व्यवसायों के बारे में, जातियों तथा स्थानों आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न 6.
पंजाब के इतिहास के स्रोत के रूप में ‘आदि ग्रंथ साहिब’ जी का क्या महत्त्व है ?
(Describe the importance of ‘Adi Granth Sahib Ji’ as a source of the History of Punjab.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के ऊपर नोट लिखें।
(Write a note on Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी और इसके ऐतिहासिक महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief description of Adi Granth Sahib Ji and its historical importance.)
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था।
1. संकलन की आवश्यकता-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की बाणी कहकर प्रचलित करनी आरंभ कर दी थी। गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की बाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची बाणी पढ़ने के लिए कहा था।
2. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।
3. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले-आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है
i) सिख गुरु-आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक सम्मिलित किए गए।
ii) भक्त एवं संत-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और संतों की बाणी अंकित की गई है। प्रमख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
iii) भट्ट-आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-कलसहार जी, नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।
4. आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्त्व-आदि ग्रंथ साहिब जी में मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी बाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है। आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें 16वीं एवं 17वीं शताब्दियों के पंजाब के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दशा की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 7.
दशम ग्रंथ साहिब जी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Dasam Granth Sahib ?)
अथवा
दशम ग्रंथ साहिब पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Dasam Granth Sahib.)
उत्तर-
दशम ग्रंथ साहिब सिखों का एक अन्य पावन धार्मिक ग्रंथ है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी तथा उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से राजनीतिक तथा धार्मिक अत्याचारियों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए सिखों में जोश उत्पन्न करना था। यह कुल 18 ग्रंथों का संग्रह है। इनमें से ‘जापु साहिब’, ‘अकाल उस्तत’, ‘चंडी दी वार’, ‘चौबीस अवतार’, ‘शबद हज़ारे’, ‘शस्त्रनामा’, ‘बचित्तर नाटक’ और ‘जफ़रनामा’ इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। ऐतिहासिक पक्ष से बचित्तर नाटक और ज़फ़रनामा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। बचित्तर नाटक गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखित आत्मकथा है। यह बेदी और सोढी जातियों के प्राचीन इतिहास, गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान और गरु गोबिंद सिंह जी की पहाड़ी राजाओं के साथ लड़ाइयों को जानने के संबंध में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जफ़रनामा की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने दीना काँगड़ नामक स्थान पर की थी। यह एक पत्र है जो गुरु गोबिंद सिंह जी ने फ़ारसी में औरंगज़ेब को लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब के अत्याचारों, मुग़ल सैनापतियों के द्वारा कुरान की झूठी शपथ लेकर गुरु जी से धोखा करने का उल्लेख बहुत साहूस और निर्भीकता से किया है। दशम ग्रंथ साहिब वास्तव में गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन एवं कार्यों को जानने के लिए हमारा एक अमूल्य स्रोत
प्रश्न 8.
18वीं सदी में पंजाबी में लिखी गई छः ऐतिहासिक रचनाओं का संक्षिप्त विवरण दें। (Give a brief account of six historical sources written in 18th century in Punjabi.)
उत्तर-
18वीं सदी में पंजाबी में लिखी गई ऐतिहासिक रचनाओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
श्री गुरसोभा-श्री गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के एक प्रसिद्ध दरबारी कवि सेनापत ने की थी। इस ग्रंथ में उसने 1699 ई० में, जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, से लेकर 1708 ई० तक जब गुरु गोबिंद सिंह जी ज्योति-जोत समाए थे, की आँखों-देखी घटनाओं का वर्णन किया
2. सिखाँ दी भगतमाला-इस ग्रंथ की रचना भाई मनी सिंह जी ने 18वीं शताब्दी में की थी। इस ग्रंथ को भगत रत्नावली भी कहा जाता है। इसमें सिख गुरुओं के जीवन, प्रमुख सिखों के नाम, जातियों तथा उनके निवास स्थान और उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
3. बंसावली नामा-बंसावली नामा की रचना 1780 ई० में केसर सिंह छिब्बर ने की थी। इसमें गुरु साहिबान से लेकर 18वीं शताब्दी के मध्य तक का इतिहास वर्णित किया गया है। सिख गुरुओं की तुलना में यह ग्रंथ बाद के इतिहास के लिए अधिक विश्वसनीय है।
4. महिमा प्रकाश-महिमा प्रकाश की दो रचनाएँ हैं। प्रथम का नाम महिमा प्रकाश वारतक और द्वितीय का नाम महिमा प्रकाश कविता है।
- महिमा प्रकाश वारतक-इस पुस्तक की रचना 1741 ई० में कृपाल चंद ने की थी। इसमें गुरु साहिबान के जीवन का संक्षिप्त रूप में वर्णन किया गया है।
- महिमा प्रकाश कविता-इस पुस्तक की रचना 1776 ई० में सरूप दास भल्ला ने की थी। इसमें सिख गुरुओं के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
5. प्राचीन ग्रंथ प्रकाश-इस पुस्तक की रचना 1841 ई० में रतन सिंह भंगू ने की थी। इस ग्रंथ में गुरु नानक देव जी से लेकर 18वीं शताब्दी तक के इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है। इस पुस्तक में तथ्यों का वर्णन क्रमानुसार और प्रमाणिक किया गया है।
6. तवारीख गुरु खालसा-इस ग्रंथ की रचना ज्ञानी ज्ञान सिंह ने की थी। इस ग्रंथ में गुरु नानक देव जी से लेकर 1849 ई० तक सिख राज्य के अंत तक की घटनाओं का वृत्तांत दिया गया है।
प्रश्न 9.
पंजाब के इतिहास से संबंधित फ़ारसी के किन्हीं छः स्रोतों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account of six important Persian sources of the History of Punjab.)
अथवा
फ़ारसी के मुख्य ऐतिहासिक स्रोतों का संक्षेप में वर्णन करें जो कि पंजाब के इतिहास के संकलन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
(Give a brief mention of the important Persian sources which are essential for composing the History of Punjab.)
उत्तर-
1. आइन-ए-अकबरी की रचना अकबर के विख्यात दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल ने की थी। यह अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों को जानने के लिए हमारा मुख्य स्रोत है। इसके अतिरिक्त इससे हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दशा के संबंध में भी कुछ जानकारी प्राप्त होती है।
2. तुजक-ए-जहाँगीरी मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा लिखित आत्मकथा है। इससे हमें गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इसे पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि गुरु अर्जन देव जी को धार्मिक कारणों से शहीद किया गया था।
3. जंगनामा की रचना काजी नूर मुहम्मद ने की थी। वह 1764 ई० में अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमण के समय उसके साथ आया था। इस पुस्तक में उसने अब्दाली के साथ आक्रमण का आँखों देखा हाल और सिखों की युद्ध करने की विधि और उनके चरित्र के संबंध में वर्णन किया है।
4. उमदत-उत-तवारीख का लेखक महाराजा रणजीत सिंह का दरबारी सोहन लाल सूरी था। इस ग्रंथ में उसने 1469 ई० से लेकर 1849 ई० तक के पंजाब के इतिहास का वर्णन किया है। यह महाराजा रणजीत सिंह के काल के लिए हमारा एक बहुत ही विश्वसनीय स्रोत है।
5. ज़फरनामा-ए-रणजीत सिंह-यह महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल से संबंधित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। इसकी रचना दीवान अमरनाथ ने की थी। इस पुस्तक में महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल की 1837 ई० तक की आँखों-देखी घटनाओं का वर्णन किया गया है। कई इतिहासकार इस पुस्तक को उमदतउत्त-तवारीख से भी अधिक विश्वसनीय मानते हैं।
6. चार बाग़-ए-पंजाब-इस पुस्तक की रचना 1855 ई० में गणेश दास वडेहरा ने की थी। इस पुस्तक में लेखक ने प्राचीन कालीन पंजाब से लेकर 1849 ई० तक पंजाब की घटनाओं का वर्णन किया है।
प्रश्न 10.
पंजाब के इतिहास की जानकारी देने वाले छः महत्त्वपूर्ण अंग्रेजी स्रोतों पर प्रकाश डालें। (Mention six important English sources which throw light on the History of Punjab.)
अथवा
अंग्रेज़ी में लिखे पंजाब के इतिहास के बारे में जानकारी देने वाले महत्त्वपूर्ण स्रोतों पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the important sources of information on Punjab History written in English.)
उत्तर-
1. द कोर्ट एंड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह-इस पुस्तक की रचना 1840 ई० में कैप्टन विलियम उसबोर्न ने की थी। उसने अपनी पुस्तक में महाराजा रणजीत सिंह के दरबार की भव्यता के संबंध में तथा सेना के संबंध में बहुत अधिक प्रकाश डाला है। ऐतिहासिक पक्ष से एक बहुत ही लाभप्रद स्रोत है।
2. हिस्ट्री ऑफ़ द पंजाब-इस पुस्तक की रचना 1842 ई० में मरे ने की थी। इसके दो भाग हैं। इनमें सिखों के इतिहास का बहुत विस्तृत रूप में वर्णन किया गया है। यह महाराजा रणजीत सिंह तथा उसके उत्तराधिकारियों से संबंधित बहुमूल्य स्रोत है।
3. हिस्ट्री ऑफ़ दि सिखस्-इसकी रचना डॉक्टर मैकग्रेगर ने की थी। यह 1846 ई० में लिखी गई थी तथा यह दो भागों में है। इसमें महाराजा रणजीत सिंह तथा सिखों की अंग्रेजों के साथ लड़ाइयों से संबंधित बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
4. द पंजाब-इसकी रचना 1846 ई० में स्टाईनबख ने की थी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सेना में उच्च पद पर नियुक्त था। इसलिए उसने अपनी रचना में महाराजा रणजीत सिंह की सेना से संबंधित बहुत महत्त्वपूर्ण विवरण दिए हैं।
5. स्कैच ऑफ सिखस्- इसकी रचना 1812 ई० में मैल्कोम ने की थी। वह ब्रिटिश सेना में कर्नल था। वह 1805 ई० में होल्कर का पीछा करता हुआ पंजाब आया था। इसमें उसने सिखों का इतिहास से उनकी संस्थाओं से संबंधित जानकारी दी है।
6. हिस्ट्री ऑफ द सिखस्-इसकी रचना 1849 ई० में जे०डी० कनिंघम ने की थी। इसमें सिख इतिहास की बहुमूल्य जानकारी दी गई है।
प्रश्न 11.
भारतीय अंग्रेज सरकार के रिकॉर्ड के ऐतिहासिक महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the historical importance of Records of British Indian Government.)
उत्तर-
भारतीय अंग्रेज़ सरकार के रिकॉर्ड महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के आरंभ से लेकर सिख राज्य के पतन तक (1799-1849 ई०) के इतिहास को जानने के लिए हमारा एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। लुधियाना एजेंसी तथा दिल्ली रेजीडेंसी के रिकॉर्ड पंजाब से संबंधित अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। इनमें से अधिकतर रिकॉर्ड मर्रे, ऑकटरलोनी, रिचमोंड, मैकग्रेगर, निक्लसन, कनिंघम, प्रिंसेप तथा ब्रॉडफुट इत्यादि अंग्रेज़ अफसरों द्वारा लिखा गया है। इसमें से अधिकतर रिकॉर्ड भारत के राष्ट्रीय पुरालेख विभाग, दिल्ली में पड़ा हुआ है। इन रिकॉर्डों से हमें अंग्रेज़-सिख संबंधों, रणजीत सिंह के राज्य के बारे में, अंग्रेजों के सिंध तथा अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों के बारे में बहुत विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है। इनके अतिरिक्त भारत के अंग्रेज़ी गवर्नर-जनरलों की ओर से इंग्लैंड की सरकार, कंपनी के उच्च अधिकारियों तथा अपने मित्रों आदि को लिखे निजी पत्रों से भी पंजाब की घटनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय अंग्रेज़ सरकार के रिकॉर्ड अंग्रेजों के पक्ष से लिखे गये थे, परंतु फिर भी ये हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
प्रश्न 12.
पंजाब के इतिहास के निर्माण में सिक्कों के महत्त्व की चर्चा करें। (Examine the importance of coins in the construction of the History of the Punjab.)
उत्तर-
पंजाब के इतिहास के निर्माण में सिक्कों का विशेष महत्त्व है। पंजाब से हमें मुग़लों, बंदा सिंह बहादुर, जस्सा सिंह आहलूवालिया, अहमद शाह अब्दाली तथा महाराजा रणजीत सिंह के सिक्के मिले हैं। ये सिक्के विभिन्न धातुओं से बने हुए हैं। इनमें से अधिकाँश सिक्के लाहौर, पटियाला एवं चंडीगढ़ के अजायबघरों में पड़े हैं। ये सिक्के तिथियों तथा शासकों संबंधी विवरण पर बहुमूल्य प्रकाश डालते हैं। बंदा सिंह बहादुर के सिक्के यह सिद्ध करते हैं कि वह गुरु नानक देव जी तथा गुरु गोबिंद सिंह जी का बहुत आदर करता.था। जस्सा सिंह आहलूवालिया के सिक्के यह बताते हैं कि उसने अहमद शाह अब्दाली के क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया था। महाराजा रणजीत सिंह के सिक्के इस तथ्य पर प्रकाश डालते हैं कि उसमें बहुत नम्रता थी तथा वह स्वयं को खालसा पंथ का सेवक मानता था। इन सिक्कों में दी गई जानकारी के आधार पर साहित्यिक स्रोतों में दी गई जानकारी की पुष्टि होती है। अतः ये सिक्के पंजाब के इतिहास की कई समस्याओं को सुलझाने में हमारी सहायता करते हैं।
Source Based Questions
नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
किसी भी देश के इतिहास को भली-भाँति समझने के लिए उसके ऐतिहासिक स्रोतों की जानकारी होना अत्यावश्यक है। स्रोत इतिहास के विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों के संबंध में हमें बहुत-सी मुश्किलें पेश आती हैं। फलस्वरूप सही जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिन है। 18वीं शताब्दी में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा। अशांति और अराजकता के इस वातावरण में जब सिखों ने अपने अस्तित्व के लिए जीवन और मृत्यु का दाँव लगाया था अपना इतिहास लिखने का समय न निकाल पाए। पंजाब के अधिकतर स्रोत 19वीं शताब्दी से संबंधित हैं जब पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की।
- इतिहास के विद्यार्थियों के लिए स्रोत आवश्यक क्यों हैं ?
- पंजाब के ऐतिहासिक स्रोतों संबंधी हमें कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ?
- कौन-सी सदी में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा ?
- पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने कौन-सी सदी में स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना की ?
- पंजाब के इतिहास के अधिकतर स्रोत ………. शताब्दी से संबंधित हैं।
उत्तर-
- किसी भी देश के इतिहास को अच्छी प्रकार से समझने के लिए इतिहास के विद्यार्थियों के लिए स्रोत आवश्यक
- ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ मिथिहास की मिलावट की गई है।
- 18वीं सदी में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा।
- पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं सदी में स्वतंत्र सिख साम्राज्य की स्थापना की।
- 19वीं।
2
पंजाब के इतिहास की रचना में सर्वाधिक योगदान सिखों के धार्मिक साहित्य का है। आदि ग्रंथ साहिब जी को सिख धर्म का सर्वोच्च प्रमाणित और पावन ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिब जी की वाणी सम्मिलित थी। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी सम्मिलित की गई तथा इसे गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। इसके अतिरिक्त इसमें बहुत-से हिंदू भक्तों, मुस्लिम सूफ़ियों और भट्टों इत्यादि की वाणी को भी सम्मिलित किया गया है। आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब को चाहे ऐतिहासिक उद्देश्य से नहीं लिखा गया था, परंतु इसके गहन अध्ययन से हमें उस समय के राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
- आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब तथा किसने किया ?
- आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा किस गुरु साहिब ने दिया ?
- गुरु ग्रंथ साहिब जी में कितने गुरु साहिबानों की बाणी दर्ज है ?
- आदि ग्रंथ साहिब जी का कोई एक महत्त्व बताएँ।
- आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन ……….. ने किया।
उत्तर-
- आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
- आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा गुरु गोबिंद सिंह जी ने दिया था।
- गुरु ग्रंथ साहिब जी में 6 गुरु साहिबानों की बाणी दर्ज है।
- यह सर्व सांझीवाद का संदेश देता है।
- गुरु अर्जन देव जी।
3
दशम ग्रंथ साहिब जी सिखों का एक और पावन धार्मिक ग्रंथ है। यह गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है। इस ग्रंथ साहिब का संकलन 1721 ई० में भाई मनी सिंह जी ने किया था। यह कुल 18 ग्रंथों का संग्रह है। इनमें ‘जापु साहिब’, ‘अकाल उस्तति’, ‘चंडी दी वार’, ‘चौबीस अवतार’, ‘शब्द हज़ारे’, ‘शस्त्र नामा’, ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ इत्यादि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ऐतिहासिक पक्ष से ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। ‘बचित्तर नाटक’ गुरु गोबिंद सिंह जी की लिखी हुई आत्मकथा है। ज़फ़रनामा’ की रचना गुरु गोबिंद सिंह जी ने दीना नामक स्थान पर की थी। यह एक पत्र है जो गुरु गोबिंद सिंह जी ने फ़ारसी में औरंगजेब को लिखा था। इस पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब के अत्याचारों, मुग़ल सेनापतियों द्वारा कुरान की झूठी शपथ लेकर गुरु जी के साथ धोखा करने का उल्लेख बहुत साहस और निडरता से किया है। दशम ग्रंथ साहिब जी वास्तव में गुरु गोबिंद . सिंह जी के जीवन और कार्यों को जानने के लिए हमारा एक अमूल्य स्रोत है।
- दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन किसने किया था ?
- दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब किया गया था ?
- 1604 ई०
- 1701 ई०
- 1711 ई०
- 721 ई०।.
- बचित्तर नाटक क्या है ?
- गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगजेब को लिखे गए पत्र का नाम क्या है ?
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने जफ़रनामा में क्या लिखा था ?
उत्तर-
- दशम ग्रंथ साहिब जी का संकलन भाई मनी सिंह जी ने किया था।
- 1721 ई०।
- बचित्तर नाटक गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा का नाम है।
- गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा औरंगज़ेब को लिखे गए पत्र का नाम जफ़रनामा है।
- इसमें औरंगजेब के अत्याचारों का वर्णन किया गया है।
4
भाई गुरदास जी गुरु अमरदास जी के भाई दातार चंद भल्ला के पुत्र थे। वे गुरु अर्जन देव जी और गुरु हरगोबिंद जी के समकालीन थे। वह एक उच्च कोटि के कवि थे। उन्होंने 39 वारों की रचना की। इन वारों को गुरु ग्रंथ साहिब की कुंजी कहा जाता है। ऐतिहासिक पक्ष से 1 वार तथा 11वीं वार को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रथम वार में गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इस वार में गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी, गुरु अर्जन देव जी तथा गुरु हरगोबिंद जी के जीवन का ब्योरा दिया गया है। 11वीं वार में प्रथम 6 गुरु साहिबान से संबंधित कुछ प्रसिद्ध सिखों तथा स्थानों का वर्णन किया गया है।
- भाई गुरदास जी कौन थे ?
- भाई गुरदास जी ने कितनी वारों की रचना की ?
- भाई गुरदास जी की ………. वार में गुरु नानक देव जी के जीवन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
- गुरु ग्रंथ साहिब जी की कुंजी किसे कहा जाता है ?
- भाई गुरदास जी की वारों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
- भाई गुरदास जी गुरु अमरदास जी के भाई दातार चंद भल्ला के पुत्र थे।
- भाई गुरदास जी ने 39 वारों की रचना की।
- प्रथम।
- भाई गुरदास जी की वारों को गुरु ग्रंथ साहिब जी की कुंजी कहा जाता है।
- इनमें पहले 6 गुरु साहिबानों तथा उनसे संबंधित कुछ प्रसिद्ध सिखों के नामों तथा स्थानों का वर्णन किया गया है।
5
गुरु नानक देव जी के जन्म और जीवन से संबंधित कथाओं को ‘जन्म साखियाँ’ कहा जाता है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में बहुत-सी जन्म साखियों की रचना हुई। ये जन्म साखियाँ पंजाबी भाषा में लिखी गईं। ये जन्म साखियाँ इतिहास के विद्यार्थियों के लिए नहीं अपितु सिख धर्म में विश्वास रखने वालों के लिए रचित की गईं। इन जन्म साखियों में अनेक दोष व्याप्त हैं। प्रथम, इनमें घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया। दूसरा, इन जन्म साखियों में घटनाओं के विवरण तथा तिथि क्रम में विरोधाभास मिलता है। तीसरा, ये जन्म साखियाँ गुरु नानक देव जी के ज्योतिजोत समाने के काफ़ी समय पश्चात् लिखी गईं। चौथा, इनमें तथ्यों एवं कल्पना का मिश्रण किया गया है। इन दोषों के बावजूद ये जन्म साखियाँ गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में पर्याप्त.प्रकाश डालती हैं।
- जन्म साखियों से क्या भाव है ?
- जन्म साखियों की रचना किस भाषा में की गई है ?
- किन्हीं दो जन्म साखियों के नाम बताएँ।
- जन्म साखियों का कोई एक दोष लिखें।
- ………. और ……….. शताब्दी में बहुत-सी जन्म साखियों की रचना हुई।
उत्तर-
- जन्म साखियों से भाव है गुरु नानक देव जी के जन्म तथा जीवन से संबंधित कथाएँ।
- जन्म साखियों की रचना पंजाबी भाषा में की गई है।
- पुरातन जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी।
- इनमें घटनाओं का वर्णन क्रमानुसार नहीं किया गया है।
- 17वीं, 18वीं।
6
हुक्मनामे वे आज्ञा-पत्र थे जो सिख गुरुओं अथवा गुरु वंश से संबंधित सदस्यों ने समय-समय पर सिख संगतों अथवा व्यक्तियों के नाम जारी किए। इनमें से अधिकाँश में गुरु के लंगर के लिए खाद्यान्न, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए धन, लड़ाइयों के लिए घोड़े और शस्त्र इत्यादि लाने की माँग की गई थी। 18वीं शताब्दी में पंजाब में व्याप्त अव्यवस्था के दौरान अनेक हुक्मनामे नष्ट हो गए। पंजाब के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर गंडा सिंह ने अपने अथक परिश्रम से 89 हुक्मनामों का संकलन किया। इनमें से 23 गुरु तेग बहादुर जी के तथा 34 हुक्मनामे गुरु गोबिंद सिंह जी के हैं। इनके अतिरिक्त, अन्य हुक्मनामे गुरु अर्जन साहिब, गुरु हरगोबिंद साहिब, गुरु हर राय जी, गुरु हरकृष्ण जी, माता गुजरी, माता सुंदरी, माता साहिब देवां, बाबा गुरदित्ता जी तथा बंदा सिंह बहादुर से संबंधित थे। इन हुक्मनामों से हमें गुरु साहिबान तथा समकालीन समाज से संबंधित बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
- हुक्मनामों से क्या भाव है ?
- हुक्मनामे क्यों जारी किए जाते हैं ?
- पंजाब के किस प्रसिद्ध इतिहासकार ने हुक्मनामों का संकलन किया ?
- हुक्मनामों का कोई एक महत्त्व बताएँ।
- अब तक कितने हुक्मनामे उपलब्ध हैं ?
- 23
- 24
- 79
- 89.
उत्तर-
- हुक्मनामे वे आज्ञा-पत्र थे जो सिख गुरुओं अथवा गुरु घरानों से संबंधित सदस्यों ने समय-समय पर सिख संगतों तथा व्यक्तियों के नाम पर जारी किए।
- हुक्मनामे गुरु घर के लंगर के लिए राशन, धार्मिक स्थानों के निर्माण के लिए माया, लड़ाइयों के लिए घोड़े तथा शस्त्र आदि मंगवाने के लिए जारी किए जाते थे।
- गंडा सिंह ने।
- इनसे हमें गुरु साहिबानों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- 89.
पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत PSEB 12th Class History Notes
- पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ (Difficulties Regarding the History of the Punjab)-मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फ़ारसी के स्रोतों में पक्षपातपूर्ण विचार प्रकट किए गए हैं—पंजाब में फैली अराजकता के कारण सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला— विदेशी आक्रमणों के कारण पंजाब के अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए-1947 ई० के पंजाब के बँटवारे कारण भी बहुत से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।
- स्त्रोतों के प्रकार (Kinds of Sources)-पंजाब के इतिहास से संबंधित स्रोतों के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
- सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs)-आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस काल की सर्वाधिक प्रमाणित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया-दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है—इसका संकलन भाई मनी सिंह जी ने 1721 ई० में किया-ऐतिहासिक पक्ष से इसमें ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं…भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों से हमें गुरु साहिबान के जीवन तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों का पता चलता है—गुरु नानक देव जी के जीवन पर आधारित जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, मेहरबान जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण हैं—सिख गुरुओं से संबंधित हुक्मनामों से हमें समकालीन समाज की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है—गुरु गोबिंद सिंह जी के 34 हुक्मनामों तथा गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी के 23 हुक्मनामों का संकलन किया जा चुका है।
- पंजाबी और हिंदी में ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ (Historical and SemiHistorical works in Punjabi and Hindi)—’गुरसोभा’ से हमें 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना से लेकर 1708 ई० तक की घटनाओं का आँखों देखा वर्णन मिलता है—गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबारी कवि सेनापत ने की थी—’सिखाँ दी भगतमाला’ से हमें सिख गुरुओं के काल की सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है—इसकी रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी—केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित ‘बंसावली नामा’ सिख गुरुओं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की घटनाओं का वर्णन है—भाई संतोख सिंह द्वारा लिखित ‘गुरप्रताप सूरज ग्रंथ’ तथा रत्न सिंह भंगू द्वारा लिखित ‘प्राचीन पंथ प्रकाश’ का भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में विशेष स्थान है।
- फ़ारसी में ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical Books in Persian)-मुग़ल बादशाह बाबर की रचना ‘बाबरनामा’ से हमें 16वीं शताब्दी के प्रारंभ के पंजाब की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैअबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ से हमें अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों का पता चलता है—मुबीद जुलफिकार अरदिस्तानी द्वारा लिखित ‘दबिस्तान-ए-मज़ाहिब’ में सिख गुरुओं से संबंधित बहुमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है—सुजान राय भंडारी की ‘खुलासत-उत-तवारीख’, खाफी खाँ की ‘मुंतखिब-उल-लुबाब’ और काज़ी नूर मुहम्मद की ‘जंगनामा’ से हमें 18वीं शताब्दी के पंजाब की जानकारी प्राप्त होती है—सोहन लाल सूरी द्वारा रचित ‘उमदत-उततवारीख’ तथा गणेश दास वडेहरा द्वारा लिखित ‘चार बाग़-ए-पंजाब’ में महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित घटनाओं का विस्तृत विवरण है।
- भट्ट वहियाँ (Bhat vahis)—भट्ट लोग महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित अपनी वहियों में दर्ज कर लेते थे—इनसे हमें सिख गुरुओं के जीवन, यात्राओं और युद्धों के संबंध में काफ़ी नवीन जानकारी प्राप्त होती है।
- खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Darbar Records)-ये महाराजा रणजीत सिंह के समय के सरकारी रिकॉर्ड हैं—ये फ़ारसी भाषा में हैं और इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है—ये महाराजा रणजीत सिंह के काल की घटनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।
- विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and Europeans) विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं—इनमें जॉर्ज फोरस्टर की ‘ऐ जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम की ‘स्केच ऑफ़ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप की ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न की ‘द कोर्ट एण्ड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, सटाईनबख की ‘द पंजाब’ और जे० डी० कनिंघम द्वारा रचित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ प्रमुख हैं।
- ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के (Historical Buildings, Paintings and Coins)पंजाब के ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं—खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर और पाऊँटा साहिब आदि नगरों, विभिन्न दुर्गों, गुरुद्वारों में बने चित्रों तथा सिख सरदारों के सिक्कों से तत्कालीन समाज पर विशेष प्रकाश पड़ता है।