Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 9 स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान
SST Guide for Class 10 PSEB स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें
प्रश्न 1.
1857 ई० के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की किन-किन छावनियों में विद्रोह हुआ?
उत्तर-
1857 ई० के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की लाहौर, फिरोजपुर, पेशावर, अम्बाला, मियांवाली आदि छावनियों में विद्रोह हुआ।
प्रश्न 2.
सरदार अहमद खां खरल ने आजादी की लड़ाई में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
सरदार अहमद खां खरल ने कई स्थानों पर अंग्रेजों से टक्कर ली और अंत में वह पाकपटन के निकट अंग्रेज़ों का विरोध करते हुए शहीद हो गया।
प्रश्न 3.
श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेज़ सरकार का असहयोग क्यों किया?
उत्तर-
क्योंकि श्री सतगुरु राम सिंह जी विदेशी सरकार, विदेशी संस्थाओं तथा विदेशी माल के कट्टर विरोधी थे।
प्रश्न 4.
ग़दर लहर क्यों असफल रही?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर के एक सिपाही कृपाल सिंह के धोखा देने के कारण गदर लहर की योजना की पोल समय से पहले ही खुल गई और अंग्रेज़ सरकार तुरन्त सक्रिय हो उठी।
प्रश्न 5.
अकाली लहर के अस्तित्व में आने के दो कारण बताओ।
उत्तर-
गुरुद्वारों को चरित्रहीन महंतों से मुक्त करवाना तथा गुरुद्वारों के प्रबन्ध में सुधार लाना।
प्रश्न 6.
चाबियाँ वाला मोर्चा क्यों लगाया गया?
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार ने दरबार साहिब अमृतसर की गोलक की चाबियां अपने पास दबा रखी थीं जिन्हें प्राप्त करने के लिए सिक्खों ने चाबियों वाला मोर्चा लगाया।
प्रश्न 7.
‘गुरु का बाग’ मोर्चे का कारण बताओ।
उत्तर-
सिक्खों ने गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ (जिला अमृतसर) को महंत सुन्दर दास के अधिकार से मुक्त कराने के लिए गुरु का बाग मोर्चा लगाया।
प्रश्न 8.
साइमन कमीशन कब भारत आया और इसका बहिष्कार क्यों किया गया?
उत्तर-
साइमन कमीशन 1928 में भारत आया। इसमें एक भी भारतीय सदस्य सम्मिलित नहीं था जिसके कारण भारत में इसका बहिष्कार किया गया।
(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में दो
प्रश्न 1.
श्री सतगुरु राम सिंह जी की कैसी गतिविधियों से अंग्रेजों को डर लगता था?
उत्तर-
- श्री सतगुरु राम सिंह जी जहां भी जाते, उनके साथ घुड़सवारों की टोली अवश्य जाती थी। इससे अंग्रेज़ सरकार यह सोचने लगी कि नामधारी किसी विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं। .
- अंग्रेज़ श्री सतगुरु राम सिंह जी के डाक प्रबन्ध को संदेह की दृष्टि से देखते थे।
- श्री सतगुरु राम सिंह जी ने प्रचार की सुविधा को सम्मुख रखकर पंजाब को 22 प्रांतों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रांत का एक सेवादार होता था जिसे सूबेदार कहा जाता था। नामधारियों की यह कार्यवाही भी अंग्रेजों को डरा रही थी।
- 1869 ई० में नामधारियों या कूकों ने कश्मीर के शासक के साथ सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने नामधारियों (कूकों) को फौजी प्रशिक्षण देना भी आरम्भ कर दिया।
प्रश्न 2.
नामधारियों और अंग्रेजों के मध्य मलेरकोटला में हुई दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। जनवरी, 1872 को 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मालेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को ककों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 68 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को मृत्यु दण्ड दिया गया। बाबा राम सिंह को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया।
प्रश्न 3.
पंजाब में आर्य समाज द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब में आर्य समाज ने निम्नलिखित कार्य किए
- इसने पंजाबियों की राष्ट्रीय भावना को जागृत किया।
- इसने लाला लाजपत राय, सरदार अजीत सिंह, श्रद्धानंद, भाई परमानंद तथा लाला हरदयाल जैसे महान् देशभक्तों को उभारा।
- इसने पंजाब में शिक्षा का विस्तार किया।
- इसने पंजाब में स्वदेशी लहर को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 4.
ग़दर पार्टी ने पंजाब में आजादी के लिए क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर-
ग़दर पार्टी द्वारा पंजाब में आजादी के लिए किए गए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है
- रास बिहारी बोस ने लाहौर, फिरोजपुर, मेरठ, अम्बाला, मुलतान, पेशावर तथा कई अन्य छावनियों में अपने प्रचारक भेजे। इन प्रचारकों ने सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया।
- करतार सिंह सराभा ने कपूरथला के लाला रामसरन दास के साथ मिल कर ‘गदर’ नामक साप्ताहिक पत्र को छापने का प्रयास किया। परन्तु वह सफल न हो सका। फिर भी वह ‘गदर-गूंज’ प्रकाशित करता रहा।
- सराभा ने फरवरी, 1915 में फिरोजपुर में सशस्त्र विद्रोह करने का यत्न किया। परन्तु कृपाल सिंह नामक एक सिपाही की धोखेबाज़ी के कारण उसका भेद खुल गया।
प्रश्न 5.
बाबा गुरदित्त सिंह ने कैनेडा जाने वाले लोगों के लिए क्या क्या कार्य किए?
उत्तर-
पंजाब के अनेक लोग रोजी-रोटी की खोज में कैनेडा जाना चाहते थे। परन्तु कैनेडा सरकार की भारत विरोधी गतिविधियों के कारण कोई भी जहाज़ उन्हें कैनेडा ले जाने को तैयार न था। 1913 में जिला अमृतसर के बाबा गुरदित्त सिंह ने ‘गुरु नानक नेवीगेशन’ नामक कम्पनी स्थापित की। 24 मार्च, 1914 को उसने ‘कामागाटामारू’ नामक एक जहाज़ किराये पर लिया और इसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ रखा। इस जहाज़ में उसने कैनेडा जाने के इच्छुक लोगों को कैनेडा ले जाने का प्रयास किया। परन्तु वहां पहुंचते ही उन्हें वापिस जाने का आदेश दे दिया गया।
प्रश्न 6.
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना के क्या कारण थे?
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना निम्नलिखित कारणों से हुई
- रौलेट बिल-1919 में अंग्रेज़ी सरकार ने ‘रौलेट बिल’ पास किया। इस के अनुसार पुलिस को जनता के दमन के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। अत: लोगों ने इनका विरोध किया।
- डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू की गिरफ्तारी-रौलेट बिल के विरोध में पंजाब तथा अन्य स्थानों पर हड़ताल हुई। कुछ नगरों में दंगे भी हुए। अतः सरकार ने पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। इससे जनता और भी भड़क उठी।
- अंग्रेजों की हत्या-भड़के हुए लोगों पर अमृतसर में गोली चलाई गई। जवाब में लोगों ने पांच अंग्रेजों को मार डाला। अत: नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया गया।
इन सब घटनाओं के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में एक आम सभा हुई जहां भीषण हत्याकांड हुआ।
प्रश्न 7.
सरदार ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग़ दुर्घटना का बदला कैसे लिया?
उत्तर-
सरदार ऊधम सिंह पक्का देश भक्त था। जलियांवाला बाग़ में हुए नरसंहार से उसका युवा खून खौल उठा। उसने इस घटना का बदला लेने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसे यह अवसर 21 वर्ष पश्चात् मिला। उस समय वह इंग्लैण्ड में था। वहां उसने सर माइकल ओडायर (लैफ्टिनेंट गवर्नर) को गोली से उड़ा दिया। जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड के लिए यही अधिकारी उत्तरदायी था।
प्रश्न 8.
खिलाफ़त लहर पर नोट लिखो।
उत्तर-
खिलाफ़त आन्दोलन प्रथम विश्व-युद्ध के पश्चात् मुसलमानों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध चलाया। युद्ध में तुर्की की पराजय हुई और विजयी राष्ट्रों ने तुर्की साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर डाला। इससे मुस्लिम जनता भड़क उठी क्योंकि तुर्की के साथ उसकी धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई थीं। इसी कारण मुसलमानों ने खिलाफ़त आन्दोलन आरम्भ कर दिया। परन्तु यह आन्दोलन भारत के राष्ट्रवादी आन्दोलन का एक अंग बन गया और इसमें कांग्रेस के भी अनेक नेता सम्मिलित हुए। उन्होंने इसे पूरे देश में फैलाने में सहायता दी।
प्रश्न 9.
बब्बरों की गतिविधियों का वर्णन करो।
उत्तर-
बब्बरों का मुख्य उद्देश्य सरकारी पिठुओं तथा मुखबिरों का अंत करना था। इसे वे ‘सुधार करना’ कहते थे। इसके लिए उन्हें शस्त्रों की आवश्यकता थी और शस्त्रों के लिए उन्हें धन चाहिए था। अतः उन्होंने सरकारी पिठ्ठओं से धन तथा हथियार भी छीने। उन्होंने पंजाबी सैनिकों से अपील की कि वे शस्त्रों की सहायता से स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए कार्य करें। अपने कार्यों के विस्तार के लिए उन्होंने ‘बब्बर अकाली दुआबा’ नामक समाचार-पत्र निकाला। उन्होंने अनेक सरकारी पिळुओं को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने अपना बलिदान देकर पंजाबियों को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपनी जान पर खेल जाने का पाठ पढ़ाया।
प्रश्न 10.
नौजवान भारत सभा पर नोट लिखो।
उत्तर-
नौजवान भारत सभा की स्थापना सरदार भगत सिंह ने 1925 ई० में लाहौर में की। वह स्वयं इसका जनरल सचिव बना। इस संस्था ने लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लिया तथा नवयुवकों को जागृत किया। इसे गर्म दल के कांग्रेसी नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था। शीघ्र ही यह संस्था क्रांतिकारियों का केन्द्र बन गई। समय समय पर यह संस्था लाहौर में सभा करके मार्क्स और लेनिन के विचारों पर वाद-विवाद करती थी। यह सभा दूसरे देशों में घटित हुई क्रान्तियों पर भी विचार करती थी।
प्रश्न 11.
साइमन कमीशन पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
1928 ई० में एक सात सदस्यीय कमीशन भारत में आया। इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे। इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। इसी कारण भारत में इसका स्थान-स्थान पर विरोध किया गया। यह कमीशन जहां भी गया वहीं इसका स्वागत काली झण्डियों से किया गया। स्थान-स्थान पर ‘साइमन कमीशन वापिस जाओ’ के नारे लगाये गये। जनता के इस शान्त प्रदर्शन को सरकार ने बड़ी कठोरता से दबाया। लाहौर में इस कमीशन का विरोध करने के कारण लाला लाजपतराय पर लाठियाँ बरसायी गईं जिससे वह शहीदी को प्राप्त हुए।
प्रश्न 12.
प्रजामंडल के कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब प्रजामण्डल तथा रियासती प्रजामण्डल ने सेवा सिंह ठीकरी वाला की अध्यक्षता में जन-जागृति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
- इसने किसानों तथा साधारण लोगों की समस्याओं पर विचार करने के लिए सभाएं कीं।
- इसने रियासत पटियाला में हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
- इसने बाबा हीरा सिंह महल, तेजा सिंह स्वतन्त्र, बाबा सुंदर सिंह तथा अन्य कई मरजीवड़ों के सहयोग से रियासती शासन तथा अंग्रेजी साम्राज्य का डटकर विरोध किया।
(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखो
प्रश्न 1.
श्री सतगुरु राम सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए क्या-क्या यत्न किए?
उत्तर-
श्री सतगुरु राम सिंह एक महान् देश भक्त थे। उन्होंने बाबा बालक सिंह के पश्चात् पंजाब में नामधारी अथवा कूका लहर का नेतृत्व किया। बाबा राम सिंह ने 1857 ई० में कुछ लोगों को अमृत छका कर नामधारी लहर को संगठित रूप प्रदान किया। भले ही इस लहर का मुख्य उद्देश्य धार्मिक एवं सामाजिक सुधार के लिए कार्य करना था, तो भी इसने अंग्रेजी शासन का विरोध किया और उसके प्रति असहयोग की नीति अपनाई।
बाबा राम सिंह की गतिविधियां-
- बाबा राम सिंह जहां भी जाते, उनके साथ घुड़सवारों की टोली अवश्य जाती थी। इससे अंग्रेज़ सरकार यह सोचने लगी कि नामधारी किसी विद्रोह की तैयारी कर रहे हैं।
- अंग्रेज़ बाबा राम सिंह के डाक प्रबन्ध को सन्देह की दृष्टि से देखते थे।
- बाबा राम सिंह ने प्रचार की सुविधा को सम्मुख रख कर पंजाब को 22 प्रांतों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रांत का एक सेवादार होता था जिसे सूबेदार कहा जाता था। नामधारियों की यह कार्यवाही भी अंग्रेजों को डरा रही थी।
- 1869 में नामधारियों या कूकों ने कश्मीर के शासक के साथ सम्पर्क स्थापित किया। उन्होंने नामधारियों (कूकों) को सैनिक प्रशिक्षण देना भी आरम्भ कर दिया।
- नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। 1871 ई० में उन्होंने रायकोट (अमृतसर) के कुछ बूचड़खानों पर आक्रमण करके कई कसाइयों को मार डाला।
- जनवरी, 1872 में 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मालेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को कूकों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई ! दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 68 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को मृत्यु दण्ड दिया गया। बाबा राम सिंह को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया।
सच तो यह है कि बाबा राम सिंह के नेतृत्व में नामधारी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अपने उद्देश्य पर डटे रहे।
प्रश्न 2.
आर्य समाज ने पंजाब में स्वतन्त्रता संग्राम में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) थे। इसकी स्थापना उन्होंने 1875 ई० में की। 1877 ई० में उन्होंने आर्य समाज की एक शाखा लाहौर में खोली।
स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान-आर्य समाज ने जहां सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया वहीं इसने स्वतन्त्रता लहर में भी बहुमूल्य भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता संग्राम में इसके योगदान का वर्णन इस प्रकार है —
- राष्ट्रीय भावना जागृत करना-स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से पंजाबियों की राष्ट्रीय भावना को जागृत किया और उन्हें स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए तैयार किया।
- महान् देशभक्तों का उदय-स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीयों को अपने देश और सभ्यता पर गर्व करने को शिक्षा दी। इस बात का प्रभाव पंजाबियों पर भी पड़ा। लाला लाजपतराय, सरदार अजीत सिंह और श्रद्धानंद जैसे महान् देशभक्त आर्य समाज की ही देन थे। भाई परमानंद और लाला हरदयाल भी प्रसिद्ध आर्य समाजी थे।
- असहयोग आन्दोलन में भाग-इस संस्था ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। इसने स्कूल तथा कॉलेज खोलकर स्वदेशी लहर को बढ़ावा दिया।
- सरकारी विरोध का सामना-आर्य समाजियों की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने उन पर कड़ी नज़र रखनी आरम्भ कर दी। जो आर्य समाजी सरकारी नौकरी में थे, उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। यहाँ तक कि उन्हें वांछित तरक्कियां भी न दी गईं। फिर भी उन्होंने अपना कार्य जारी रखा।
1892 ई० में आर्य समाज दो भागों में बंट गया-कॉलेज पार्टी और गुरुकुल पार्टी। इनमें से कॉलेज पार्टी के नेता लाला लाजपतराय तथा महात्मा हंसराज थे। वे वेदों की शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी विज्ञान की शिक्षा देने के भी पक्ष में थे। इस कारण अंग्रेजों और आर्य समाजियों के बीच तनाव लगभग समाप्त हो गया। फिर भी आर्य समाजी देश में स्वतन्त्रता सेनानियों को अपना पूरा सहयोग देते रहे। आर्य समाजियों के समाचार-पत्र भी पंजाब की स्वतन्त्रता लहर में पूरी तरह सक्रिय रहे।
प्रश्न 3.
ग़दर पार्टी ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए क्या क्या यत्न किए?
उत्तर-
ग़दर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में सान फ्रांसिस्को (अमेरिका) में हुई। इसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना थे। लाला हरदयाल इसके मुख्य सचिव तथा कांशी राम सचिव एवं खजांची थे।
इस संस्था ने सान फ्रांसिस्को से उर्दू में एक साप्ताहिक पत्र ‘ग़दर’ निकालना आरम्भ किया। इसका सम्पादन कार्य करतार सिंह सराभा को सौंपा गया। उसके परिश्रम से यह समाचार-पत्र हिंदी, पंजाबी, पश्तो, नेपाली आदि अनेक भाषाओं में प्रकाशित होने लगा। इस समाचार-पत्र के नाम पर ही इस संस्था का नाम ग़दर पार्टी रखा गया।
उद्देश्य-ग़दर पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत को सशस्त्र क्रांति द्वारा स्वतन्त्र करवाना था। इसलिए इस पार्टी ने अग्रलिखित कार्यों पर बल दिया
- सेना में विद्रोह का प्रचार
- सरकारी पिट्ठओं की हत्या
- जेलें तोड़ना
- सरकारी खज़ाने और थाने लूटना
- क्रान्तिकारी साहित्य छापना और बांटना
- अंग्रेजों के शत्रुओं की सहायता करना
- शस्त्र इकट्ठे करना
- बम बनाना
- डाक-तार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त करना तथा रेल मार्गों की तोड़-फोड़ करना।
- क्रान्तिकारियों का झंडा फहराना
- क्रान्तिकारी नवयुवकों की सूची तैयार करना।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास-कामागाटामारू की घटना के पश्चात् काफ़ी संख्या में भारतीय अपने देश वापिस आ गए। वे ग़दर द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना चाहते थे। अंग्रेजी सरकार भी बड़ी सतर्क थी। बाहर से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की छान-बीन होती थी। संदेह होने पर व्यक्ति को नज़रबंद कर दिया जाता था। परन्तु जो व्यक्ति बच निकलता था, वह क्रान्तिकारियों से मिल जाता था। – भारत में ग़दर पार्टी और विदेश से लौटे क्रान्तिकारियों का नेतृत्व रास बिहारी बोस ने किया। अमेरिका से वापिस आए करतार सिंह सराभा ने भी बनारस में श्री रास बिहारी बोस के गुप्त अड्डे का पता लगाकर उनसे सम्पर्क स्थापित किया। ग़दर पार्टी द्वारा आज़ादी के लिए किए गए कार्य-ग़दर पार्टी द्वारा पंजाब में आज़ादी के लिए किए गए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है- रास बिहारी बोस ने लाहौर, फिरोज़पुर, मेरठ, अम्बाला, मुलतान, पेशावर तथा कई अन्य छावनियों में अपने प्रचारक भेजे। इन प्रचारकों ने सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार किया।
- करतार सिंह सराभा ने कपूरथला के लाला रामसरन दास के साथ मिल कर ‘ग़दर’ नामक साप्ताहिक पत्र को छापने का प्रयास किया परन्तु वह सफल न हो सका। फिर भी वह ‘ग़दर-गूंज’ प्रकाशित करता रहा।
- ग़दर पार्टी ने लाहौर तथा कुछ अन्य स्थानों पर बम बनाने का कार्य भी आरम्भ किया।
- ग़दर दल ने स्वतन्त्र भारत के लिए एक झंडा तैयार किया। करतार सिंह सराभा ने इस झंडे को स्थान-स्थान पर लोगों में बांटा।
प्रश्न 4.
कामागाटामारू दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
पृष्ठभूमि-अंग्रेजी सरकार के आर्थिक कानूनों से पंजाबियों की आर्थिक दशा बहुत शोचनीय हो गई थी। अत: 1905 ई० में कुछ लोग रोजी-रोटी की खोज में विदेशों में जाने लगे। इनमें से कई पंजाबी लोग कैनेडा जा रहे थे। परन्तु कैनेडा सरकार ने 1910 ई० में एक कानून पास किया। इसके अनुसार केवल वही भारतीय कैनेडा में प्रवेश कर सकते थे, जो अपने देश की किसी बंदरगाह से बैठकर सीधे कैनेडा जाते थे। परंतु 24 जनवरी, 1913 ई० को कैनेडा के हाई कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया। यह समाचार पाकर पंजाब के बहुत से लोग कैनेडा जाने के लिए कलकत्ता (कोलकाता), सिंगापुर तथा हांगकांग की बंदरगाहों पर पहुँच गए। परन्तु कैनेडा सरकार द्वारा भारतीयों से किए जाने वाले दुर्व्यवहार को देखते हुए कोई भी जहाज़ कम्पनी उन्हें कैनेडा पहुँचाने के लिए तैयार न हुई।
बाबा गुरदित्त सिंह के प्रयास-अमृतसर निवासी बाबा गुरदित्त सिंह सिंगापुर तथा मलाया में ठेकेदारी करता था। उसने 1913 ई० में ‘गुरु नानक नेवीगेशन कम्पनी’ स्थापित की। 24 मार्च, 1914 ई० को इस कम्पनी ने कामागाटामारू नामक एक जहाज़ किराये पर ले लिया जिसका नाम ‘गुरु नानक जहाज़’ रखा गया। उसे हांगकांग से 500 यात्री भी मिल गए। परन्तु हांगकांग की अंग्रेजी सरकार इस बात को सहन न कर सकी। उसने बाबा गुरदित्त सिंह को बंदी बना लिया। भले ही उसे अगले दिन रिहा कर दिया, फिर भी विघ्न पड़ जाने के कारण यात्रियों की संख्या घटकर केवल 135 रह गई।
गुरु नानक जहाज़ 23 मई, 1914 ई० को वेनकुवर (कैनेडा) की बंदरगाह पर पहुंचा, परन्तु यात्रियों को बंदरगाह पर न उतरने दिया गया। बाबा गुरदित्त सिंह प्रीवी कौंसिल में अपील करना चाहता था। परन्तु अंत में भारतीयों ने वापिस आना ही मान लिया। कामागाटामारू की दुर्घटना-23 जुलाई, 1914 ई० को जहाज़ वेनकुवर से वापिस भारत की ओर चल पड़ा। जब जहाज़ हुगली नदी में पहुंचा, तो लाहौर का डिप्टी कमिश्नर पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गया। यात्रियों की तलाशी लेने के पश्चात् जहाज़ को 27 किलोमीटर दूर बजबज घाट पर खड़ा कर दिया गया। यात्रियों को यह बताया गया कि उन्हें वहां से रेलगाड़ी द्वारा पंजाब ले जाया जाएगा। यात्री कलकत्ता (कोलकाता) में ही कोई काम धंधा करना चाहते थे। परन्तु उनकी किसी ने एक न सुनी और उन्हें जहाज़ से नीचे उतार दिया गया। शाम के समय रेलवे स्टेशन पर इन यात्रियों की पुलिस से मुठभेड़ हो गई। पुलिस ने गोली चला दी। इस गोलीकांड में 40 व्यक्ति शहीद हो गए तथा बहुत से घायल हुए।
बाबा गुरदित्त सिंह बचकर पंजाब पहुंच गया। 1920 ई० में उसने गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस पर ननकाना साहिब में स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया। उसे 5 वर्ष के कारावास का दंड दिया गया।
प्रश्न 5.
जलियांवाला बाग़ दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ अमृतसर (पंजाब) में है। यहां 13 अप्रैल, 1919 को एक निर्मम हत्याकाण्ड हुआ। इसका वर्णन इस प्रकार है —
पृष्ठभूमि-1919 ई० में केन्द्रीय विधान परिषद ने दो बिल पास किए। इन्हें रौलेट बिल (Rowlatt Bill) कहते हैं। इन बिलों द्वारा पुलिस और मैजिस्ट्रेट को षड्यन्त्र आदि को दबाने के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। इनके विरुद्ध 13 मार्च, 1919 ई० को महात्मा गाँधी ने हड़ताल कर दी। परिणामस्वरूप अहमद नगर, दिल्ली और पंजाब के कुछ नगरों में दंगे आरम्भ हो गए। स्थिति को सम्भालने के लिए.पंजाब के दो प्रसिद्ध नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में नगर में हड़ताल कर दी गई। प्रदर्शनकारियों का एक दल शान्तिपूर्वक ढंग से डिप्टी कमिश्नर की कोठी की ओर चल दिया। परन्तु उन्हें हाल दरवाज़े के बाहर ही रोक लिया गया। सैनिकों ने उन पर गोली भी चलाई। परिणामस्वरूप कुछ लोग मारे गए तथा अनेक घायल हो गए। नगरवासियों ने क्रोध में आकर पाँच अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। एक अंग्रेज़ महिला कुमारी शेरवुड भी नगरवासियों के क्रोध का शिकार हो गई। इस पर सरकार ने नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया।
जलियांवाला बाग़ में सभा तथा हत्याकाण्ड-अशांति और क्रोध के इस वातावरण में अमृतसर नगर तथा आस-पास के गाँवों के लगभग 25,000 लोग 13 अप्रैल, 1919 ई० को (वैसाखी वाले दिन) जलियांवाला बाग़ में सभा करने के लिए एकत्रित हुए। जनरल डायर ने ऐसे जुलूसों को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था और अपने 150 सैनिकों सहित जलियांवाला बाग़ के दरवाजे के आगे आ डटा। बाग़ में आने-जाने के लिए एक ही तंग मार्ग था। जनरल डायर ने लोगों को तीन मिनट के अन्दर-अन्दर तितर-बितर हो जाने का आदेश दिया। इतने कम समय में लोगों के लिए वहां से निकल पाना असम्भव था। तीन मिनट के पश्चात् जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोलीकाण्ड में लगभग 1000 लोग मारे गए और 1500 से भी अधिक लोग घायल हो गए।
महत्त्व-जलियांवाला बाग़ की घटना ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। इससे पहले यह संग्राम गिने चुने लोगों तक ही सीमित था। अब यह जनता का संग्राम बन गया। इसमें श्रमिक, किसान, विद्यार्थी आदि भी शामिल होने लगे। दूसरे, इसके साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में नया जोश भर गया तथा संघर्ष की गति बहुत तीव्र हो गई।
प्रश्न 6.
अकाली लहर ने स्वतन्त्रता संग्राम में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
अकाली लहर का जन्म अकाली लहर में से हुआ। इसका संस्थापक किशन सिंह गड़गज था। इसका उदय गुरुद्वारों में बैठे चरित्रहीन महंतों का सामना करने के लिए हुआ। सरकार के पिठुओं से टक्कर लेने के लिए ‘चक्रवर्ती’ जत्था बनाया गया। कुछ समय के पश्चात् अकालियों ने ‘बब्बर अकाली’ नामक समाचार-पत्र निकाला। तभी से इस लहर का नाम बब्बर अकाली पड़ गया। महंतों के साथ अन्य सरकारी पिटाओं से निपटना भी इसका उद्देश्य था।
स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान-बब्बर अकालियों ने मुखबिरों तथा सरकारी पिठुओं का अंत करने की योजना बनाई। बावरों की भरमा इस ‘सुधार करना कहते थे। बब्बरो को विश्वास था कि यदि सरकारी मुखाबरों का सफाया कर दिया जाये तो अंग्रेजी सरकार असफल हो जाएगी और भारत छोड़कर चली जायेगी। उनकी मुख्य गतिविधियों का वर्णन इस प्रकार है —
- शस्त्रों की प्राप्ति– बब्बर अकाली अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शस्त्र प्राप्त करना चाहते थे। उनके अपने सदस्य भी शस्त्र बनाने का यत्न कर रहे थे। शस्त्रों के लिए धन की आवश्यकता थी। धन इकट्ठा करने के लिए बब्बरों ने सरकारी पिठ्ठओं से धन और शस्त्र छीने।
- सैनिकों से अपील-बब्बरों ने पंजाबी सैनिकों से अपील की कि वे अपने शस्त्र धारण करके स्वतन्त्रता प्राप्ति का प्रयास करें।
- समाचार-पत्र-बब्बरों ने साइक्लोस्टाइल मशीन की सहायता से अपना समाचार-पत्र ‘बब्बर अकाली दुआबा’ निकाला। इस समाचार-पत्र का चंदा यह था कि इसे पढ़ने वाला, इस समाचार-पत्र को आगे पाँच अन्य व्यक्तियों को पढ़ाता था।
- सरकारी पिठुओं की हत्या-बब्बरों ने अपने समाचार-पत्रों में उन 179 व्यक्तियों की सूची प्रकाशित की जिनका उन्हें ‘सुधार’ करना था। सूची में सम्मिलित जिस व्यक्ति का अंतिम समय आ जाता, उसके बारे में वे अपने समाचार-पत्र द्वारा ही उस व्यक्ति को सूचित कर देते थे। दो-तीन बब्बर उस व्यक्ति के गाँव जाते और उसे मौत के घाट उतार देते। वे खुलेआम वध करने की जिम्मेवारी भी लेते थे। उन्होंने पुलिस से भी डटकर टक्कर ली।
- सरकारी अत्याचार–सरकार ने भी बब्बरों को समाप्त करने का निश्चय कर लिया। उनका पीछा किया जाने लगा। उनमें से कुछ को पकड़ लिया गया और कुछ मारे गए ! सौ से भी अधिक बब्बरों पर मुकद्दमा चलाया गया। 27 फरवरी, 1926 ई० को जत्थेदार किशन सिंह, बाबू संता सिंह, धर्म सिंह हयातपुरा तथा कुछ अन्य बब्बरों को फांसी का दण्ड दिया गया।
इस प्रकार बब्बर लहर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल रही। फिर भी इस लहर ने पंजाबियों को देश की स्वतन्त्रता के लिए अपनी जान पर खेल जाने का पाठ पढ़ाया।
प्रश्न 7.
जैतों के मोर्चे का वर्णन करो।
उत्तर-
जैतों का मोर्चा 1923 ई० में हुआ। इसके कारणों तथा घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है —
कारण-नाभा का महाराजा सरदार रिपुदमन सिंह सिक्खों का बहुत बड़ा हितैषी था। इससे न केवल सिक्खों में अपितु पूरे देश में उसका सम्मान होने लगा। यह बात अंग्रेज़ सरकार को अच्छी न लगी। अतः अंग्रेज़ सरकार किसी न किसी बहाने उसे अपमानित करना चाहती थी। अंग्रेजों को यह अवसर प्रथम विश्व युद्ध के समय मिला। क्योंकि इस युद्ध में महाराजा ने अपनी सेना भेजने से इन्कार कर दिया। उधर पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह और रिपुदमन सिंह के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ। स्थिति का लाभ उठाते हुए अंग्रेजों ने महाराजा पटियाला की सहायता से रिपुदमन सिंह पर अनेक मुकद्दमे दायर कर दिए और झूठे आरोप लगा कर उसे गद्दी से उतार दिया।
घटनाएं-सिक्ख महाराजा के साथ हुए इस दुर्व्यवहार के कारण क्रोधित हो उठे। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध कमेटी के नेतृत्व में सिक्खों ने रोष दिवस मनाने का निर्णय किया। परन्तु पुलिस ने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया और जैतों के गुरुद्वारे गंगसर पर अधिकार कर लिया। उस समय गुरुद्वारे में अखंड पाठ चल रहा था। पुलिस कार्यवाही के कारण पाठ खंडित हो गया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे और उन्होंने अंग्रेज़ों से टक्कर लेने के लिए वहां अपना मोर्चा लगा लिया।
15 सितम्बर, 1923 ई० को 25 सिक्खों का एक जत्था जैतों भेजा गया। इसके पश्चात् छ: महीने तक 25-25 सिक्खों के जत्थे लगातार जैतों जाते रहे। सरकार इन जत्थों पर अत्याचार करती रही। मोर्चा लम्बा होता देखकर शिरोमणि कमेटी ने 500-500 के जत्थे भेजने का कार्यक्रम बनाया। 500 सिक्खों का पहला जत्था जत्थेदार ऊधम सिंह के नेतृत्व में अकाल तख्त से चला। हज़ारों लोग जत्थे के साथ माझे और मालवे से होते हुए नाभा रियासत की सीमा पर जा पहुंचे। __यह जत्था अभी गुरुद्वारा गंगसर से एक फलाँग की दूरी पर ही था कि अंग्रेज़ी सरकार की मशीनगनों ने सिक्खों पर गोलियां बरसानी आरम्भ कर दीं। परन्तु सिक्ख गोलियों की बौछार की परवाह न करते हुए अपने मोर्चे पर डटे रहे। इसी गोलीबारी में अनेक सिक्ख शहीद हो गए।
जैतों का मोर्चा दो वर्ष तक चलता रहा। 500-500 में जत्थे आते रहे और अपना बलिदान देते रहे। पंजाब से बाहर कलकत्ता (कोलकाता), शंघाई और हांगकांग से भी जत्थे जैतों पहुंचे। अन्त में विवश होकर पुलिस ने गुरुद्वारा से पहरा हटा लिया और 1925 ई० में सरकार को गुरुद्वारा एक्ट पास करना पड़ा। अत: अकालियों ने जैतों का मोर्चा समाप्त कर दिया।
प्रश्न 8.
आजाद हिन्द फ़ौज पर विस्तारपूर्वक नोट लिखो।
उत्तर-
आजाद हिन्द सेना की स्थापना की पृष्ठभूमि-आजाद हिन्द सेना की स्थापना रास बिहारी बोस ने जापान में की थी। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान ब्रिटिश सेना को पराजित करके बहुत-से सैनिकों को कैदी बना कर जापान ले गया था। उनमें अधिकांश सैनिक भारतीय थे। इन सैनिकों को लेकर रास बिहारी बोस ने कैप्टन मोहन सिंह की सहायता से ‘आज़ाद हिन्द सेना’ बनाई।
रास बिहारी बोस आज़ाद हिन्द सेना का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस को सौंपना चाहते थे। उस समय सुभाष जी जर्मनी में थे। अतः रास बिहारी बोस ने उन्हें जापान आने का आमन्त्रण दिया। जापान पहुंचने पर सुभाष बाबू ने आज़ाद हिन्द सेना का नेतृत्व सम्भाला। तभी से वह नेताजी सुभाषचन्द्र के नाम से लोकप्रिय हुए।
आज़ाद हिन्द सेना का स्वतन्त्रता संघर्ष-
- 21 अक्तूबर, 1943 को नेता जी ने सिंगापुर में ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की। उन्होंने भारतीयों का ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ कह कर आह्वान किया। शीघ्र ही उन्होंने अमेरिका तथा इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
- नवम्बर, 1943 ई० में जापान ने अन्दमान निकोबार नामक भारतीय द्वीपों को जीत कर आजाद हिन्द सरकार को सौंप दिया। नेता जी ने इन द्वीपों के नाम क्रमशः ‘शहीद’ और ‘स्वराज्य’ रखे।
- इस सेना ने 1 मार्च, 1944 ई० को असम स्थित मावडॉक चौकी को जीत लिया। इस प्रकार उसने भारत की धरती पर पाँव रखे और वहां आज़ाद हिन्द सरकार का ध्वज फहराया।
- तत्पश्चात् असम की कोहिमा चौकी पर भी आज़ाद हिन्द सेना का अधिकार हो गया।
- अब आज़ाद हिन्द सेना ने इम्फाल की महत्त्वपूर्ण चौकी जीतने का प्रयास किया, परन्तु वहाँ की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण उसे सफलता न मिल सकी।
आजाद हिन्द सेना की असफलता (वापसी)-आजाद हिन्द सेना को जापान से मिलने वाली सहायता बन्द हो गई । सैन्य सामग्री के अभाव के कारण आज़ाद हिन्द सेना को पीछे हटने के लिए बाध्य होना पड़ा। पीछे हटने पर भी आजाद हिन्द सेना का मनोबल कम नहीं हुआ। परन्तु 18 अगस्त, 1945 ई० को फार्मोसा में एक विमान दुर्घटना में नेता जी का निधन हो गया। अगस्त, 1945 ई० में जापान ने भी आत्म-समर्पण कर दिया। इसके साथ ही आज़ाद हिन्द सेना द्वारा प्रारम्भ किया गया स्वतन्त्रता का संघर्ष समाप्त हो गया।
आज़ाद हिन्द सेना के अधिकारियों की गिरफ्तारी एवं मुकद्दमा-ब्रिटिश सेना ने आजाद हिन्द सेना के कुछ अधिकारियों तथा सैनिकों को इम्फाल के मोर्चे पर पकड़ लिया। पकड़े गए तीन अधिकारियों पर दिल्ली के लाल किले में देशद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि तीनों दोषियों को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया जाए, परन्तु जनता के जोश को देख कर सरकार घबरा गई। अतः उन्हें बिना कोई दण्ड दिये रिहा कर दिया गया। यह रिहाई भारतीय राष्ट्रवाद की एक महान् विजय थी।
PSEB 10th Class Social Science Guide स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Ouestions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
(i) ग़दर विद्रोह का मुखिया कौन था?
(ii) उसने ‘कामागाटामारू’ घटना के बाद कहां मीटिंग बुलाई?
उत्तर-
(i) ग़दर विद्रोह दल का मुखिया सोहन सिंह भकना था।
(ii) उसने कामागाटामारू घटना के बाद अमेरिका में एक विशेष मीटिंग बुलाई।
प्रश्न 2.
19 फरवरी, 1915 के आन्दोलन में पंजाब में शहीद होने वाले चार ग़दरियों के नाम लिखो।
उत्तर-
करतार सिंह सराभा, जगत सिंह, बलवंत सिंह और अरूढ़ सिंह।
प्रश्न 3.
पंजाब में अकाली आन्दोलन किस वर्ष शुरू हुआ और कब समाप्त हुआ?
उत्तर-
पंजाब में अकाली आन्दोलन 1921 ई० में शुरू हुआ और 1925 ई० में समाप्त हुआ।
प्रश्न 4.
(i) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की स्थापना कब हुई?
(ii) इसके सदस्यों की संख्या कितनी थी?
उत्तर-
(i) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी की स्थापना 1920 में हुई।
(ii) इसके सदस्यों की संख्या 175 थी।
प्रश्न 5.
लोगों ने इसे (रौलेट एक्ट) को किस नाम से पुकारा?
उत्तर-
लोगों ने इसे “काले कानून” कह कर पुकारा।
प्रश्न 6.
(i) लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन में किस महान् नेता पर लाठी के भीषण प्रहार हुए?
(ii) इसके लिए कौन-सा अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी ज़िम्मेदार था?
उत्तर-
(i) लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन में लाला लाजपत राय पर लाठी के भीषण प्रहार हुए।
(ii) इसके लिए अंग्रेज़ पुलिस अफ़सर सांडर्स ज़िम्मेदार था।
प्रश्न 7.
(i) नामधारी लहर के संस्थापक कौन थे?
(ii) उन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के कौन-से दोआब में किया?
उत्तर-
(i) नामधारी लहर के संस्थापक बाबा बालक सिंह जी थे।
(ii) इन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में किया।
प्रश्न 8.
नामधारियों ने मलेरकोटला पर हमला कब किया?
उत्तर-
1872 ई० में।
प्रश्न 9.
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव कब और क्यों पास किया गया?
उत्तर-
पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव 31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पास हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं० जवाहर लाल नेहरू थे। इस प्रस्ताव के परिणामस्वरूप 26 जनवरी, 1930 का दिन पूर्ण स्वराज्य दिवस के रूप में मनाया गया।
प्रश्न 10.
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की पहली लड़ाई कब और कहां से शुरू हुई?
उत्तर-
10 मई को मेरठ से।
प्रश्न 11.
नामधारी या कूका लहर की नींव कब पड़ी?
उत्तर-
12 अप्रैल, 1857 को।
प्रश्न 12.
श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंतर्जातीय विवाह की कौन-सी नई नीति चलाई?
उत्तर-
आनन्द कारज।
प्रश्न 13.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती।
प्रश्न 14.
आर्य समाज की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1875 ई० में।
प्रश्न 15.
देश भक्ति के प्रसिद्ध गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के लेखक कौन थे?
उत्तर-
बांके दयाल।
प्रश्न 16.
ग़दर पार्टी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
1913 ई० में सॉन फ्रांसिस्को में।
प्रश्न 17.
ग़दर लहर के साप्ताहिक पत्र ‘ग़दर’ का सम्पादक कौन था?
उत्तर-
करतार सिंह सराभा।
प्रश्न 18.
‘कामागाटामारू’ नामक जहाज़ किसने किराए पर लिया था?
उत्तर-
बाबा गुरदित्त सिंह ने।
प्रश्न 19.
जलियांवाला बाग़ की घटना कब घटी?
उत्तर-
13 अप्रैल, 1919 को।
प्रश्न 20.
जलियांवाला बाग़ में गोलियां किसने चलवाईं?
उत्तर-
जनरल डायर ने।
प्रश्न 21.
माइकल ओ’डायर की हत्या किसने की और क्यों?
उत्तर-
माइकल ओ’डायर की हत्या शहीद ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड का बदला चकाने के लिए की।
प्रश्न 22.
बब्बर अकाली जत्थे की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
अगस्त 1922 ई० में।
प्रश्न 23.
सरदार रिपुदमन सिंह कहां का महाराजा था?
उत्तर-
नाभा का।
प्रश्न 24.
साइमन कमीशन कब भारत आया?
उत्तर-
1928 में।
प्रश्न 25.
साइमन कमीशन का प्रधान कौन था?
उत्तर-
सर जॉन साइमन।
प्रश्न 26.
लाला लाजपत राय कब शहीद हुए?
उत्तर-
17 नवम्बर, 1928 को।
प्रश्न 27.
‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कब और कहां हुई?
उत्तर-
1925-26 में लाहौर में।
प्रश्न 28.
भगत सिंह और उसके साथियों को फांसी कब दी गई?
उत्तर-
23 मार्च, 1931 को।
प्रश्न 29.
पूर्ण स्वराज प्रस्ताव के अनुसार भारत में पहली बार स्वतन्त्रता दिवस कब मनाया गया?
उत्तर-
26 जनवरी, 1930 को।
प्रश्न 30.
आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
1943 में सुभाष चन्द्र बोस ने।
प्रश्न 31.
‘आप मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा किसने दिया?
उत्तर-
सुभाष चन्द्र बोस ने।
प्रश्न 32.
आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारियों पर मुकद्दमा कहां चलाया गया?
उत्तर-
दिल्ली के लाल किले में।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- सरदार अहमद खां खरल अंग्रेजों के हाथों ……….. के निकट शहीद हुआ।
- गदर लहर अमृतसर के एक सिपाही ………… के धोखा देने के कारण असफल हो गई।
- साइमन कमीशन …………. ई० में भारत आया।
- गदर विद्रोह दल का मुखिया …………….. था।
- लोगों ने रौलेट एक्ट को ………………. के नाम से पुकारा।
- पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव ……………. ई० को लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पास हुआ।
उत्तर-
- पाकपटन,
- कृपाल सिंह,
- 1928,
- सोहन सिंह भकना,
- काले कानून,
- 31 दिसंबर, 1929।
III. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
19 फरवरी, 1915 के आंदोलन में पंजाब में शहीद होने वाला गदरिया था
(A) करतार सिंह सराभा
(B) जगत सिंह
(C) बलवंत सिंह
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 2.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना हुई
(A) 1920 ई० में
(B) 1921 ई० में
(C) 1915 ई० में
(D) 1928 ई० में।
उत्तर-
(A) 1920 ई० में
प्रश्न 3.
लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरोध में किए गए प्रदर्शन के परिणामस्वरूप किस भारतीय नेता को अपनी जान गंवानी पड़ी?
(A) बांके दयाल
(B) लाला लाजपत राय
(C) भगत सिंह
(D) राज गुरु।
उत्तर-
(B) लाला लाजपत राय
प्रश्न 4.
पूर्ण स्वराज्य प्रस्ताव के अनुसार पहली बार कब पूर्ण स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया?
(A) 31 दिसंबर, 1929
(B) 15 अगस्त, 1947
(C) 26 जनवरी, 1930
(D) 15 अगस्त, 1857
उत्तर-
(C) 26 जनवरी, 1930
प्रश्न 5.
देश भक्ति के प्रसिद्ध गीत ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ के लेखक थे
(A) बांके दयाल
(B) भगत सिंह
(C) राज गुरु
(D) अजीत सिंह।
उत्तर-
(A) बांके दयाल
प्रश्न 6.
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया
(A) शहीद भगत सिंह ने
(B) शहीद उधम सिंह ने
(C) शहीद राजगुरु ने
(D) सुभाष चंद्र बोस ने।
उत्तर-
(D) सुभाष चंद्र बोस ने।
IV. सत्य-असत्य कथन ।
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं
- गदर लहर सशस्त्र विद्रोह के पक्ष में नहीं थी।
- 1857 का विद्रोह 10 मई को मेरठ से आरम्भ हुआ।
- 1913 में स्थापित गुरु नानक नेवीगेशन कम्पनी के संस्थापक सरदार वरियाम सिंह थे।
- 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता पं० जवाहर लाल नेहरू ने की।
- पंजाब सरकार के 1925 के कानून द्वारा सभी गुरुद्वारों का प्रबन्ध सिखों के हाथ में आ गया।
उत्तर-
- (✗),
- (✓),
- (✗),
- (✓),
- (✓).
V. उचित मिलान
- ग़दर विद्रोह दल का मुखिया — श्री सतगुरु राम सिंह जी
- नामधारी लहर के संस्थापक — बांके दयाल
- आनंद कारज — बाबा बालक सिंह जी
- पगड़ी संभाल जट्टा — सोहन सिंह भकना।
उत्तर-
- ग़दर विद्रोह दल का मुखिया — सोहन सिंह भकना,
- नामधारी लहर के संस्थापक — बाबा बालक सिंह जी,
- आनंद कारज — श्री सतगुरु राम सिंह जी,
- पगड़ी संभाल जट्टा — बांके दयाल।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
‘कामागाटामारू’ की घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
कामागाटामारू एक जहाज़ का नाम था। इस जहाज़ को एक पंजाबी वीर नायक बाबा गुरदित्त सिंह ने किराए पर ले लिया। बाबा गुरदित्त सिंह के साथ कुछ और भारतीय भी इस जहाज़ में बैठ कर कैनेडा पहुंचे, परन्तु उन्हें न तो वहां उतरने दिया गया और न ही वापसी पर किसी नगर हांगकांग, शंघाई, सिंगापुर आदि में उतरने दिया। कलकत्ता (कोलकाता) पहुंचने पर यात्रियों ने जुलूस निकाला। जुलूस के लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 40 व्यक्ति शहीद हुए और बहुत से घायल हुए। इस घटना से विद्रोहियों को विश्वास हो गया कि राजनीतिक क्रान्ति ला कर ही देश का उद्धार हो सकता है। इसीलिए उन्होंने ग़दर नाम की पार्टी बनाई और क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ कर दिया।
प्रश्न 2.
रास बिहारी बोस के ग़दर आन्दोलन में योगदान का वर्णन करो।
उत्तर-
ग़दर आन्दोलन से सम्बन्धित नेताओं को पंजाब पहंचने के लिए कहा गया। देश के अन्य क्रान्तिकारी भी पंजाब में पहुंचे। इनमें बंगाल के रास बिहारी बोस भी थे। उन्होंने स्वयं पंजाब में ग़दर आन्दोलन की बागडोर सम्भाली। उनके द्वारा घोषित क्रान्ति दिवस का सरकार को पता चल गया। अनेक विद्रोही नेता पुलिस के हाथों में आ गए। कुछ को प्राण दण्ड दिया गया। रास बिहारी बोस बच कर जापान पहुंच गए।
प्रश्न 3.
ग़दर आन्दोलन के भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर-
यद्यपि ग़दर आन्दोलन को सरकार ने कठोरता के साथ दबा दिया परन्तु इसका प्रभाव हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर अधिक पड़ा। ग़दर आन्दोलन के कारण कांग्रेस के दोनों दलों में एकता आई। कांग्रेस-मुस्लिम लीग समझौता हुआ। इसके अतिरिक्त इस आन्दोलन ने सरकार को अन्ततः भारतीय समस्या के विषय में सहानुभूतिपूर्वक सोचने के लिए विवश कर दिया। 1917 ई० में बर्तानवी शासन के भारत-मन्त्री लॉर्ड मान्टेग्यू ने इंग्लैंड की भारत सम्बन्धी नीति की घोषणा की, जिसमें उन्होंने प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी पर बल दिया।
प्रश्न 4.
गुरुद्वारों से सम्बन्धित सिक्खों तथा अंग्रेज़ों में बढ़ते रोष पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महंतों को प्रोत्साहन देते थे। यह बात सिक्खों को प्रिय नहीं थी। महंत सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेज़ी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महंतों को अंग्रेज़ों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 5.
‘जलियांवाला बाग़ की घटना’ कब, क्यों और कैसे हुई? एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की दुर्घटना अमृतसर में 1919 ई० में बैसाखी वाले दिन हुई। इस दिन अमृतसर की जनता जलियांवाला बाग़ में एक सभा कर रही थी। यह सभा अमृतसर में लागू मार्शल ला के विरुद्ध की जा रही थी। जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के इस शान्तिपूर्ण सभा पर गोली चलाने की आज्ञा दे दी। इससे सैकड़ों निर्दोष व्यक्तियों की जानें गईं और अनेक लोग घायल हुए। परिणामस्वरूप सारे देश में रोष की लहर दौड़ गई और स्वतन्त्रता संग्राम ने एक नया मोड़ ले लिया। अब यह सारे राष्ट्र की जनता का संग्राम बन गया।
प्रश्न 6.
जलियांवाला बाग़ की घटना ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम को कैसे नया मोड़ दिया?
उत्तर-
जलियांवाला बाग़ की घटना (13 अप्रैल, 1919 ई०) के कारण कई लोग शहीद हुए। इस घटना में हुए रक्तपात ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। यह संग्राम इससे पहले गिने-चुने लोगों तक ही सीमित था। अब यह जनता का संग्राम बन गया। इसमें श्रमिक, किसान, विद्यार्थी आदि भी शामिल होने लगे। दूसरे, इसके साथ स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत जोश भर गया तथा संघर्ष की गति बहुत तीव्र हो गई।
प्रश्न 7.
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी तथा शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर-
पंजाब में पहले गुरुद्वारों के ग्रन्थी भाई मनी सिंह जैसे चरित्रवान् तथा महान् बलिदानी व्यक्ति हुआ करते थे। परन्तु 1920 ई० तक ये गुरुद्वारे चरित्रहीन महन्तों के अधिकार में आ गए। ये महंत अंग्रेज़ी सरकार के पिठू थे। महन्तों की अनैतिक कार्यवाहियों से तंग आकर लोग गुरुद्वारों के प्रबन्ध में सुधार लाना चाहते थे। इस कार्य में उन्होंने अंग्रेजी सरकार की सहायता लेनी चाही, परन्तु असफल रहे। नवम्बर, 1920 ई० को सिक्खों ने यह निर्णय लिया कि गुरुद्वारों की देखभाल के लिए सिक्खों के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बनाई जाये। फलस्वरूप 16 नवम्बर, 1920 ई० को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी अस्तित्व में आई और 14 दिसम्बर, 1920 ई० को शिरोमणि अकाली दल की स्थापना हुई।
प्रश्न 8.
अखिल भारतीय किसान सभा पर नोट लिखो।
उत्तर-
अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना 11 अप्रैल, 1936 को लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हुई। 1937 में इस संगठन की शाखाएं देश के अन्य प्रान्तों में फैल गईं। इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद थे। इसके दो मुख्य उद्देश्य थे
- किसानों को आर्थिक शोषण से बचाना।
- ज़मींदारी तथा ताल्लुकेदारी प्रथा का अंत करना।
इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इसने ये मांगें की-
- किसानों को आर्थिक संरक्षण दिया जाए।
- भू-राजस्व में कटौती की जाए।
- किसानों के ऋण स्थगित किए जाएं।
- सिंचाई की उत्तम व्यवस्था की जाए तथा
- खेतिहर श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जाए।
बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)
प्रश्न
पंजाब में गुरुद्वारा सुधार के लिए अकालियों द्वारा किए गए संघर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
अकाली आन्दोलन किन कारणों से आरम्भ हुआ? इसके बड़े-बड़े मोर्चों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
ग़दर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण अग्रलिखित थे —
- गुरुद्वारों का प्रबन्ध महंतों के हाथ में था। वे अंग्रेजों के पिट्ठ थे। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। सिक्खों को यह बात स्वीकार नहीं थी।
- अंग्रेज़ों ने ग़दर सदस्यों पर बड़े अत्याचार किए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्खों में अंग्रेजों के प्रति रोष था।
- 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत था।
इन बातों के कारण सिक्खों ने एक आन्दोलन आरम्भ कर दिया जिसे अकाली आन्दोलन कहा जाता है। प्रमुख घटनाएं अथवा प्रमुख मोर्चे
- ननकाना साहिब की घटना-ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।
- हरमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या-हरमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिक्खों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफ़त कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।
- ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ भी बुरा व्यवहार किया गया। इनके सदस्यों को लाठियों से पीटा गया। परंतु अंत में सिक्खों ने गुरु का बाग मोर्चा शांतिपूर्ण ढंग से जीत लिया।
- पंजा साहिब की घटना-‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। इस गाड़ी को हसन अब्दाल स्टेशन से गुज़रना था। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को हसन अब्दाल में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आंगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।
- जैतों का मोर्चा-जुलाई, 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।
सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।
इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारों जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।
स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान PSEB 10th Class History Notes
- पंजाब में 1857 के विद्रोह के केन्द्र-1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की . लाहौर, फिरोजपुर, पेशावर, अम्बाला, मियांवाली आदि छावनियों में विद्रोह हुआ। सरदार अहमद खां खरल का इस विद्रोह में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
- नामधारी या कूका लहर-नामधारी या कूका लहर एक ऐसी लहर थी जिसने बाबा बालक सिंह के बाद बाबा राम सिंह के नेतृत्व में महान् कार्य किया। उन्होंने बूचड़खानों पर आक्रमण करके कई गौ हत्यारों (कसाइयों) को मार डाला।
- आर्य समाज-आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती थे। इसकी स्थापना उन्होंने 1875 ई० में की। आर्य समाज ने जहां सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया, वहीं इसने स्वतन्त्रता लहर में भी बहुमूल्य भूमिका निभाई।
- ग़दर आन्दोलन-ग़दर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में सान फ्रांसिस्को (अमेरिका) में हुई। इसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया। इस संस्था ने रास बिहारी बोस तथा करतार सिंह सराभा के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का प्रयास किया।
- नौजवान सभा-नौजवान सभा की स्थापना 1925-26 ई० में सरदार भगत सिंह ने की। नौजवान सभा का मुख्य उद्देश्य था-बलिदान, देश-भक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना। .
- अकाली लहर अथवा गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन-अंग्रेजों के समय पंजाब के गुरुद्वारों का प्रबंध भ्रष्ट महंतों के हाथ में था। सिक्ख इन महंतों से अपने धार्मिक स्थानों को मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन का आरम्भ किया।
- बब्बर अकाली लहर-कई सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे। उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित कर के होशियारपुर तथा जालंधर में अंग्रेजी पिटुओं के दमन के विरुद्ध प्रचार किया।
- खिलाफ़त लहर-प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार न किया। विरोध में भारतीय मुसलमानों ने अपने प्रिय नेता के लिए खिलाफ़त आन्दोलन चलाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी उनका साथ दिया।
- रौलेट बिल-भारतीयों में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता की भावना को रोकने के लिए अंग्रेजों ने 1919 ई० में रौलेट बिल पास किया। इसके अन्तर्गत सरकार केवल संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी।
- जलियांवाला बाग का हत्याकांड-जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 ई० को हुआ। इस दिन लगभग 25,000 व्यक्ति शांतिपूर्ण ढंग से एक सभा के रूप में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए। जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। परिणामस्वरूप लगभग 1000 लोग मारे गये और 3000 से भी अधिक लोग घायल हुए।
- पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव-दिसम्बर, 1929 ई० के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्ति की शपथ ली। इस अधिवेशन की अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने की।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन-यह आन्दोलन 1930 ई० में गांधी जी ने डाँडी मार्च के साथ आरम्भ किया। यह
आन्दोलन 1934 में समाप्त हुआ। सरकार ने भारतीय जनता पर बड़े अत्याचार किए। - भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन तथा द्वितीय विश्व-युद्ध-सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी युद्ध में धकेल दिया। विरोध में कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिये।
- क्रिप्स मिशन का आगमन-दूसरे महायुद्ध (1939-45) में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती जा रही थी। जापान बर्मा (आधुनिक म्यनमार) तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए 1942 ई० में सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने का प्रस्ताव रखा। परन्तु कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने यह प्रस्ताव स्वीकार न किया।
- भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। अतः महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे। 9 अगस्त, 1942 ई० को उन्होंने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ कर दिया। आन्दोलन बड़े वेग से चला। गांधी जी तथा दूसरे नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
- आजाद हिन्द सेना-आज़ाद हिन्द सेना का पुनर्गठन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में हुआ। इस सेना ने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। परन्तु द्वितीय महायुद्ध में जापान की पराजय से आजाद हिन्द सेना की शक्ति कम हो गयी। कुछ समय पश्चात् एक वायुयान दुर्घटना में नेताजी का देहान्त हो गया।
- एटली की घोषणा, 1945 ई०-1945 ई० में इंग्लैण्ड में सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ आ गयी। नए प्रधानमन्त्री एटली ने सितम्बर, 1945 में भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार कर लिया। भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ‘कैबिनेट मिशन’ को भारत में भेजा गया। इस मिशन ने सिफ़ारिश की कि भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की जाए, संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा बनाई जाए तथा संविधान बनने तक देश में अन्तरिम सरकार की स्थापना की जाए।
- साम्प्रदायिक झगड़े-1946 ई० में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। कांग्रेस को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। ईर्ष्या के कारण मुस्लिम लीग ने अन्तरिम सरकार में शामिल होने से इन्कार कर दिया। उसने फिर पाकिस्तान की मांग की और ‘सीधी कार्यवाही करने का निश्चय किया। फलस्वरूप स्थान-स्थान पर साम्प्रदायिक झगड़े आरम्भ हो गए।
- फरवरी की घोषणा-20 फरवरी, 1947 ई० को प्रधानमन्त्री एटली ने एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की। इस घोषणा में यह कहा गया कि “अंग्रेजी सरकार जून, 1948 तक भारत छोड़ जाएगी।” इस उद्देश्य से वायसराय के पद पर लॉर्ड माऊण्टबेटन की नियुक्ति की गयी।
- देश का विभाजन-लॉर्ड माऊण्टबेटन के प्रयत्नों से जुलाई, 1947 ई० में भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया गया। इसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 ई० को देश को भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र राज्यों में बाँट दिया गया। इस प्रकार भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।